ईष्र्या ऐसा ही एक मनोभाव है जो मनुष्य को दीमक की तरह न सिर्फ कुतरता है बल्कि उसकी मनुष्यता को भी समाप्त करता है। किसी ने कहा है कि प्रतिशोध या ईष्र्या की भावना के चलते न जाने कितने लोग हमारे मन मस्तिष्क में विचार बना लेते हैं और बिना किराए दिए वहां वर्षो तक बने रहते हैं।
बात बिलकुल दुरूस्त है। हममें से न जाने कितने लोग हैं जो सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक कुछ ऐसे व्यक्तियों को लेकर खीजते और बड़बड़ाते रहते हैं जो ईष्र्या या प्रतिशोध की भावना के चलते हमारे मन-मस्तिष्क में विचार कर जाते हैं। जिस तरह अपने विचार की सफाई पर हमारा ध्यान होता है उसी तरह मन और मस्तिष्क की सफाई भी बहुत जरूरी है।
पुराना कचडा अगर साफ न किए जाए तो वह बीमारी का कारण बन जाता है, उसी तरह अगर हमारे भीतर कोई नकारात्मक मनोभाव विचार कर जाता है तो वह हमें अस्वस्थ्य कर देता है। ईष्र्या, निराशा और प्रतिशोध ऐसे मनोभाव है जो व्यक्ति को नकारात्मकता की तरफ ही ले जाते हैं।
किसी से बदला लेने की भावना मन में जबर्दस्त तरीके से विचार कर गई हो तो जीना मुश्किल हो जाता है। बस यही भाव मन में बना रहता है कि कैसे अपने शत्नु का अनिष्ट किया जाए। जीवन का फलक बहुत विस्तृत है और अगर कोई व्यक्ति सीखना चाहे तो उसके आसपास के परिवेश में ऐसा बहुत कुछ है जिससे सीखा जा सकता है।
हम लोगों ने अक्सर ट्रकों के पीछे बहुत दिलचस्प और चुटीले वाक्य लिखे देखे हैं। ऐसा ही वाक्य मुझे ध्यान आ रहा है, जलो मत बराबरी करो। वास्तव में बहुत सुंदर बात है। ईष्र्या की जगह प्रतिस्पर्धा मनोभाव है। प्रतिशोध पर हमेशा क्षमा का पलड़ा भारी होता है और निराशा का कोहरा आशा का सूरज न निकलने पर ही मनुष्य के मन में छा जाता है।
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