मनुष्य के मन की आदत हो जाती है कि वह उठापटक करता रहे, दौड़भाग में लगा रहे और आपाधापी में उलझ जाए। मन की सारी रुची भागने में है। इसीलिए जब हम मन के कहने पर चलते हैं तो संसार की वस्तुओं के पीछे भागते हैं। कुछ समय बाद जब संसार से ऊब जाते हैं तो भगवान की ओर भागने लगते हैं। मन के भागने की वृत्ति बनी ही रहती है। मन का काम दौड़ाना है और वह दौड़ाता रहता है भले ही दिशा बदल जाए, जबकि अध्यात्म कहता है रुक जाओ। जब तक थोड़ा ठहरेंगे नहीं ईश्वर से मुलाकात नहीं होगी। सुग्रीव ने श्रीराम से वादा किया था कि बाली का वध हो जाने के बाद तथा मेरे राजा बनने के बाद मैं सीताजी की खोज के लिए वानर भेजूंगा लेकिन वह यह काम भूल गया। तब हनुमानजी ने सुग्रीव को समझाया था कि आप थोड़ा भीतर उतर कर चिंतन करें। पहले आप राज्य पाने के लिए दौड़ रहे थे और अब आप उसी वृत्ति के कारण भगवान का काम नहीं करके डर रहे हैं। आपका मन कुल मिलाकर आपाधापी में है। दुनिया में यदि पाना है तो दौड़ना पड़ेगा और दुनिया बनाने वाले को यदि पाना है तो हो सकता है दौड़ते हुए उसे खो ही दें। दोनों के समीकरण अलग हैं। दौड़े तो ही संसार मिलेगा और अध्यात्म में दौड़े तो शायद ईश्वर को खो देंगे। इसलिए थोड़ा रुकना सीखें। रुकने का अर्थ है आप जैसे हैं वैसे ही परमात्मा को समर्पित हो जाएं। यह सोचना कि पहले साधु बन जाएं और फिर भगवान के पास जाएं तो हो सकता है हम भटक जाएंगे। सबसे पहले जैसे हो वैसे ही रुक जाओ। सुग्रीव को यह बात समझ में आई और वे दोबारा श्रीराम तक पहुंचे। हम जैसे हैं उसे जानने के लिए ध्यान, मेडिटेशन एक सही क्रिया है। सुग्रीव के जीवन में हनुमान की उपस्थिति का अर्थ ही मेडिटेशन था।
25 अप्रैल 2010
पहले ये समझें कि हम क्या हैं
मनुष्य के मन की आदत हो जाती है कि वह उठापटक करता रहे, दौड़भाग में लगा रहे और आपाधापी में उलझ जाए। मन की सारी रुची भागने में है। इसीलिए जब हम मन के कहने पर चलते हैं तो संसार की वस्तुओं के पीछे भागते हैं। कुछ समय बाद जब संसार से ऊब जाते हैं तो भगवान की ओर भागने लगते हैं। मन के भागने की वृत्ति बनी ही रहती है। मन का काम दौड़ाना है और वह दौड़ाता रहता है भले ही दिशा बदल जाए, जबकि अध्यात्म कहता है रुक जाओ। जब तक थोड़ा ठहरेंगे नहीं ईश्वर से मुलाकात नहीं होगी। सुग्रीव ने श्रीराम से वादा किया था कि बाली का वध हो जाने के बाद तथा मेरे राजा बनने के बाद मैं सीताजी की खोज के लिए वानर भेजूंगा लेकिन वह यह काम भूल गया। तब हनुमानजी ने सुग्रीव को समझाया था कि आप थोड़ा भीतर उतर कर चिंतन करें। पहले आप राज्य पाने के लिए दौड़ रहे थे और अब आप उसी वृत्ति के कारण भगवान का काम नहीं करके डर रहे हैं। आपका मन कुल मिलाकर आपाधापी में है। दुनिया में यदि पाना है तो दौड़ना पड़ेगा और दुनिया बनाने वाले को यदि पाना है तो हो सकता है दौड़ते हुए उसे खो ही दें। दोनों के समीकरण अलग हैं। दौड़े तो ही संसार मिलेगा और अध्यात्म में दौड़े तो शायद ईश्वर को खो देंगे। इसलिए थोड़ा रुकना सीखें। रुकने का अर्थ है आप जैसे हैं वैसे ही परमात्मा को समर्पित हो जाएं। यह सोचना कि पहले साधु बन जाएं और फिर भगवान के पास जाएं तो हो सकता है हम भटक जाएंगे। सबसे पहले जैसे हो वैसे ही रुक जाओ। सुग्रीव को यह बात समझ में आई और वे दोबारा श्रीराम तक पहुंचे। हम जैसे हैं उसे जानने के लिए ध्यान, मेडिटेशन एक सही क्रिया है। सुग्रीव के जीवन में हनुमान की उपस्थिति का अर्थ ही मेडिटेशन था।
Labels: ज्ञान- धारा
Posted by Udit bhargava at 4/25/2010 08:11:00 am
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आप का post आज पहली बार पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर ये समझ आया कि इस पोस्ट में आप खुद ही confuse हैं
आप मेरे एक प्रशन का उत्तर अवश्य दें
"कि भगवन ने हमें अपने से अलग कर के यहाँ उसी को फिर से पाने के लिए भेजा है तो इस का क्या उद्देश्य है"
क्यों कि दुनिया में सिर्फ २ तरह कि विचार धारा से अब तक मिला हूँ
१. खुद को जानो
२. भगवान को जानो
३. कुछ कर के दिखाओ (ये सांसारिक विचार है mean इस झूटी दुनिया मे सच कि खोज)
पर मेरे हिसाब से किसी भी विचार में कुछ नहीं रखा
अगर आप भगवन का अंश हैं तो उसे फिर से क्यों जाने
अगर दुनिया में ही कुछ करना है तो बनाने वाला इस को इस्थिर क्यों नहीं रहने देता प्रलय से मिटा क्यों देता है
उदित जी हो सकता है आप बच्चों को बहला लेते होंगे पैर किसी विचार वांन मानुष के लिए ये पोस्ट कुछ मायने नहीं रखती
और न ही दुनिया में आज तक कोई इस विषय पे कुछ बोल पाया है
कम से कम भगवन को फिर से पाने वाला विचार तो निरर्थक है
और दुनिया में खो जाने वाला भी
और सच में करना क्या है वो किसी को नहीं पता सब लगे हैं बस और अंत में किसी को कुछ हासिल नहीं होता चाहे वो राम के सेनिक हों जिन को हम नहीं जानते या वो बिलगेट्स ही क्यों न हों
थोडा विचार कीजिये गा इस पे
आप का जीवन सफल हो (वैसे आज तक किसी का नहीं हुआ न आगे किसी कि सम्भावना है मेरा भी नहीं होगा चिंता न करें ).