30 अप्रैल 2010

क्यों और कैसे किये जाते हैं सोलह श्रंगार ?

शृंगार का उपक्रम यदि पवित्रता और दिव्यता के दृष्टिकोण से किया जाए तो यह प्रेम और अंहिसा का सहायक बनकर समाज में सोम्यता और शुचिता का वाहक बनता है। तभी तो भारतीय संस्कृति में सोलह शृंगार को जीवन का अहं और अभिन्न अंग माना गया है। आइये देखते हैं क्या होते हैं सोलह शृंगार-कैसे करते हैं सोलह शृंगार-

शौच- यानि कि शरीर की आन्तरिक एवं बाह्य पूर्ण शुद्धि।

उबटन- यानि हल्दी, चंदन, गुलाब जल, बेसन तथा अन्य सुगंधित पदार्थौ के मिश्रण को शरीर पर मलना।

स्नान- यानि कि स्वच्छ, शीतल या ऋतु अनुकूल जल से शरीर को स्वच्छता एवं ताजगी प्रदान करना

केशबंधन- केश यानि बालों को नहाने के पश्चात स्वच्छ कपड़े से पोंछकर,सुखाकर एवं ऋतु अनुकूल तेलादि सुगंधित द्रव्यों से सम्पंन कर बांधना।

अंजन- यानि कि आंखों के लिये अनुकूल व औषधीय गुणों से सम्पंन चमकीला पदार्थ पलकों पर लगाना।

अंगराग- यानि ऐक ऐसा सुगंधित पदार्थ जो शरीर के विभिन्न अंगों पर लगाया जाता है।

महावर-पैर के तलवों पर मेहंदी की तरह लगाया जाने वाला एक सुन्दर व सुगंधित रंग।

दंतरंजन-यानि कि दांतों को किसी अनुकूल पदार्थ से साफ करना एवं उनके चमक पैदा करना।

ताम्बूल- यानि कि बढिय़ा किस्म का पान कुछ स्वादिष्ट एवं सुगंधित पदार्थ मिलाकर मुख में धारण करना।

वस्त्र- ऋतु के अनुकूल तथा देश, काल, वातावरण की दृष्टि से उचित सुन्दर एवं सोभायमान वस्त्र पहनना।

भूषण- यानि कि शोभा में चार चांद लगाने वाले स्वर्ण, चांदी, हीरे-जवाहरात एवं मणि-मोतियों से बने सम्पूर्ण गहने पहनना।

सुगन्ध- वस्त्राभूषणों के पश्चात शरीर पर चुनिंदा सुगंधित द्रव्य लगाना। पुष्पहार-सुगंधित पदार्थ लगाने के पश्चात ऋतु-अनुकूल फूलों की मालाएं धारण करना।

कुंकुम- बालों को संवारने के बाद में मांग को सिंदूर से सजाना।

भाल तिलक- यानि कि मस्तक पर चेहरे के अनुकूल तिलक या बिन्दी लगाना।

ठोड़ी की बिन्दी-अन्य समस्त श्रृंगार के पश्चात अन्त में ठोड़ी यानि चिबुक पर सुन्दर आकृति की बिन्दी लगाना।