सुख और दुख जीवन में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सिक्का उछलेगा भी, गिरेगा भी और चित या पट में हमारा सुख-दुख प्रदर्शित होगा। च्च्नानक दुखिया सब संसारज्ज इसका अर्थ यह नहीं है कि नानक कह रहे हैं कि सारा संसार दुखी है। दरअसल नानक कह रहे हैं दुख सांसारिक जीवन का अनिवार्य पहलू है। यह बहुत बारीक बात है। सभी दुखी हैं ऐसा नहीं कह सकते पर दुख आएगा ही नहीं यह भी नहीं कहा जा सकता। महापुरुषों ने इसके भी रास्ते बताए हैं कि दुख से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है। महावीर ने कहा है भाव विरक्ति दुख मुक्ति का एक सरल तरीका है। च्च्भावे विरत्तो मणुओ, विसोगो, एएण दुक्खोह परम्परेणज्ज इस सूत्र में महावीर स्वामी ने कहा है-भाव विरक्त पुरुष संसार में रहकर भी अनेक दुखों में लिप्त नहीं होता। भाव विरक्त का सीधा सा अर्थ है हर हाल में मस्ती। हमसे ही संबंधित जो घट रहा है उसे हम ही देखने लगें। इस साक्षी भाव में शुरुआत होती है भाव विरक्ति की। इसका सीधा सा अर्थ है काम सारे करना, छोड़ना कुछ भी नहीं है लेकिन संतुलन बनाए रखना है। हम क्रिया तो योग की करते हैं लेकिन इरादा भोग का होता है और फिर उलझ जाते हैं। जिसके भीतर भाव विरक्ति आ जाती है वह यह कभी नहीं सोचता कि सारी स्थितियां मेरे कारण बन रही है और मेरे करने से ही सबकुछ हो रहा है। आसक्त व्यक्ति ऐसा मानता है और अशांत हो जाता है। इसलिए जो लोग शांति की खोज में हैं वे साक्षी भाव का अर्थ समझें और उसके माध्यम से अपने व्यक्तित्व में भाव विरक्ति उतारें। चूंकि भाव विरक्त स्थिति को विचार प्रभावित करते हैं इसलिए विचारों का नियंत्रण करते रहना चाहिए। विचार नियंत्रित रहने की स्थिति का नाम ध्यान है।
25 अप्रैल 2010
जीवन के लिए जरूरी है दु:ख भी
सुख और दुख जीवन में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सिक्का उछलेगा भी, गिरेगा भी और चित या पट में हमारा सुख-दुख प्रदर्शित होगा। च्च्नानक दुखिया सब संसारज्ज इसका अर्थ यह नहीं है कि नानक कह रहे हैं कि सारा संसार दुखी है। दरअसल नानक कह रहे हैं दुख सांसारिक जीवन का अनिवार्य पहलू है। यह बहुत बारीक बात है। सभी दुखी हैं ऐसा नहीं कह सकते पर दुख आएगा ही नहीं यह भी नहीं कहा जा सकता। महापुरुषों ने इसके भी रास्ते बताए हैं कि दुख से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है। महावीर ने कहा है भाव विरक्ति दुख मुक्ति का एक सरल तरीका है। च्च्भावे विरत्तो मणुओ, विसोगो, एएण दुक्खोह परम्परेणज्ज इस सूत्र में महावीर स्वामी ने कहा है-भाव विरक्त पुरुष संसार में रहकर भी अनेक दुखों में लिप्त नहीं होता। भाव विरक्त का सीधा सा अर्थ है हर हाल में मस्ती। हमसे ही संबंधित जो घट रहा है उसे हम ही देखने लगें। इस साक्षी भाव में शुरुआत होती है भाव विरक्ति की। इसका सीधा सा अर्थ है काम सारे करना, छोड़ना कुछ भी नहीं है लेकिन संतुलन बनाए रखना है। हम क्रिया तो योग की करते हैं लेकिन इरादा भोग का होता है और फिर उलझ जाते हैं। जिसके भीतर भाव विरक्ति आ जाती है वह यह कभी नहीं सोचता कि सारी स्थितियां मेरे कारण बन रही है और मेरे करने से ही सबकुछ हो रहा है। आसक्त व्यक्ति ऐसा मानता है और अशांत हो जाता है। इसलिए जो लोग शांति की खोज में हैं वे साक्षी भाव का अर्थ समझें और उसके माध्यम से अपने व्यक्तित्व में भाव विरक्ति उतारें। चूंकि भाव विरक्त स्थिति को विचार प्रभावित करते हैं इसलिए विचारों का नियंत्रण करते रहना चाहिए। विचार नियंत्रित रहने की स्थिति का नाम ध्यान है।
Posted by Udit bhargava at 4/25/2010 06:44:00 am
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