27 अप्रैल 2010

ज्ञान का सागर - अनमोल वचन (26-50)

26   इस दुनिया में भगवान् से बढ़कर कोई घर या अदालत नहीं है।
27   मां है मोहब्बत का नाम, मां से बिछुड़कर चैन कहाँ।
28   सत्य का पालन ही राजाओं का दया प्रधान सनातन अचार था। राज्य सत्य स्वरुप था और सत्य में लोक प्रतिष्ठित था।
29   सत्य के समान कोई धर्म नहीं है। सत्य से उत्तम कुछ भी नहीं हैं और जूठ से बढ़कर तीव्रतर पाप इस जगत में दूसरा नहीं है।
30   अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है।
31   सत्य भावना का सबसे बड़ा धर्म है।
32   व्रतों से सत्य सर्वोपरि है।
33   वह सत्य नहीं जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिसमें मनुष्य का हित होता हो, वही सत्य है।
34   मनुष्य को उत्तम शिक्षा अच्चा स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास और विज्ञान का सार्थक ग्रहण करके जीवन में सफलता प्राप्त करनी चाहिए।
35   जीवन का महत्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो जिन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं।
36   कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना।
37   संसार की चिंता में पढ़ना तुम्हारा काम नहीं है, बल्कि जो सम्मुख आये, उसे भगवद रूप मानकर उसके अनुरूप उसकी सेवा करो।
38   मृत्यु दो बार नहीं आती और जब आने को होती है, उससे पहले भी नहीं आती है।
39   मां प्यार का सुर होती है। मां बनी तभी तो प्यार बना, सब दिन मां के दिए होते हैं। इसलिये सब दिन मदर्स दे होता है।
40   ज्ञान मूर्खता छुडवाता है और परमात्मा का सुख देता है। यही आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है।
41   संसार के सारे दुक्ख चित्त की मूर्खता के कारण होते है। जितनी मूर्खता ताकतवर उतना ही दुःख मजबूत, जितनी मूर्खता कम उतना ही दुःख कम। मूर्खता हटी तो समझो दुःख छू-मंतर हो जायेगी।
42   पढ़ना एक गुण, चिंतन दो गुना, आचरण चौगुना करना चाहिए।
43   दण्ड देने की शक्ति होने पर भी दण्ड न देना सच्चे क्षमा है।
44   उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है।
45   सच्चा दान वही है, जिसका प्रचार न किया जाए।
46   पाप आत्मा का शत्रु है और सद्गुण आत्मा का मित्र।
47   हमारा शरीर ईश्वर के मन्दिर के समान है, इसलिये इसे स्वस्थ रखना भी एक तरह की इश्वर-आराधना है।
48   सैकड़ों गुण रहित और मूर्ख पुत्रों के बजाय एक गुणवान और विद्वान् पुत्र होना अच्छा है; क्योंकि रात्री के समय हजारों तारों की उपेक्षा एक चन्द्रमा से ही प्रकाश फैलता है।
49   एक ही पुत्र यदि विद्वान् और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है।
50   ब्रह्मविधा मनुश्य को ब्रह्म-परमात्मा के चरणों में बिठा देती है और चित्त की मूर्खता छुडवा देती है।