16 जुलाई 2010

उपवास के समान कोई तप नहीं ( No not the same tenacity of fasting )

उपवास का प्रचलन हर धर्म एवं सम्प्रदाय में रहा है। जैन सम्प्रदाय में प्रारंभ से उपवास का प्रचलन रहा है। मिस्त्र में प्राचीन में कई धार्मिक पर्वों पर उपवास किया जाता था। यहूदियों में अपने सातवें महीने के दसवें दिन उपवास रखने का विधान है। रोमन लोग ईस्टर के पूर्व तीन सप्ताहों में शनिवार एवं रविवार के अतिरिक्त अन्य दिनों में उपवास रखते हैं।

धर्मग्रंथों में उपवास पर विस्तार से चर्चा की गई है। भिन्न-भिन्न तिथियों, मासों तथा पक्षों का भिन्न-भिन्न महत्व बताया गया है।

सचमुच ही उपवास एक विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है। विशिष्ट समय में किये गए उपवास का परिणाम भी विशिष्ट होता है। सोमवार में चन्द्रमा का विशेष प्रभाव होता है। अतः इस दिन के उपवास से कीर्ति, उज्जवल भविष्य, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। मंगल के व्रत से दृढ़ता, कठोरता तथा बुधवार सौम्य शिष्ट प्रधान होता है। गुरूवार के उपवास से ह्रदय का परिमार्जन होता है। इससे श्रेष्ट भावनाएं पनपती हैं। बुद्धि, धन व विद्या प्राप्त होती है। सुखोपभोग का गुण शुक्र में है। इसलिए इसके लिये शुक्रवार का उपवास उत्तम है। स्थिरता हेतु शनि का उपवास बताया गया है। रविवार उपवास का महत्व सर्वाधिक है। रविवार में सातों दिनों का समन्वित प्रभाव रहता है। गायत्री महामंत्र के देवता भी रवि हैं। अतः रविवार के उपवास का प्रभाव सीधा मन पर पड़ता है। मन ही सारी क्रियाओं का केंद्र बिंदु है। इसलिए रविवार के उपवास से आश्चर्यजनक लाभ होता है।