हमारे जीवन में मुहूर्तो का अत्यधिक महत्व माना जाता है। ऋषि-मुनियों ने अपने चिंतन के बाद जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया, उनके संकलित स्वरूप का नाम मुहूर्त शास्त्र है। विवाह-मुहूर्त में रवि शुद्धि, गुरू शुद्धि एवं चंद्र शुद्धि का विशेष महžव है। देव गुरू बृहस्पति विवाहोपरांत आपसी समझ से गृहस्थी के दायित्व को निभाने की शक्ति प्रदान करते हैं। इसलिए विवाह में कन्या की राशि से गुरू शुद्धि (गुरूबल) का विचार किया जाता है।
विवाह के बाद गृहस्थ के लिए संसाधन जुटाने की जिम्मेदारी पुरूष पर आ जाती है। जिसका सूचक सूर्य को माना जाता है। इसलिए विवाह में वर की राशि से रवि शुद्धि (रविबल) का विचार किया जाता है। प्रत्येक कार्य की सफलता उसकी प्रक्रिया में एकाग्रता पर आधारित होती है। एकाग्रता एवं निरंतरता चंद्र शुद्धि पर आधारित होती है। विवाह में वर-कन्या दोनों की राशि से चंद्र-शुद्धि (चंद्र-बल) का विचार किया जाता है। मुहूर्त शास्त्र की दृष्टि से सभी दोषों का विचार कर यदि शुद्ध मुहूर्त निकाला जाए, तो वर्ष में कम ही मुहूर्त बनते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ऋषियों ने विवाह के उपवाद बताए हैं, जिनमें देवोत्थान या प्रबोधनी का दिन भी शुभ माना जाता है।
मुहूर्त तो काल खंड होता है। लोग शुभाशुभ अवश्य देखते हैं।
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