10 मार्च 2010

सुतून ऐ दार

सुतून ऐ दार की उँचाई से न डर बाबा
जो हौसला है तो इस राह से गुज़र बाबा

ये देख जु़लमत ए शब का पहाड़ काट के हम
हथेलियों पे सजा लाए हैं सहर बाबा

मिली है तब कहीं इरफ़ान ए ज़ात की मंजिल
खुद अपने आपमें सदियों किया सफ़र बाबा

बुलंदियाँ भी उसे ‍सर उठा के देखती हैं
सुतून ए दार की ज़ीनत बने जो सर बाबा

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