09 मार्च 2010

रामायण – लंकाकाण्ड - लक्ष्मण मूर्छित

इसी बीच लक्ष्मण ने रावण की ध्वजा काटकर उसके सारथि को मार डाला और उसके धनुष को काट डाला। विभीषण ने भी अपनी गदा से रावण के रथ के घोड़ों को मार डाला। विभीषण के इस कृत्य से रावण को इतना क्रोध आया कि उसने विभीषण पर एक प्रज्वलित शक्‍ति चलाई। विभीषण के पास पहुँचने से पहले ही लक्ष्मण ने उस शक्‍ति को अपने बाणों से नष्ट कर दिया। इससे अत्यन्त क्रोधित होकर रावण ने विभीषण पर ऐसी अमोघ शक्‍ति चलाई जिसका वेग काल भी न सह सकता था। विभीषण के प्रण संकट में देख लक्ष्मण स्वयं आगे बढ़कर शक्‍ति के सामने खड़े हो गये। नागराज वासुकि की जिह्वा के समान महातेजस्वी शक्‍ति लक्ष्मण की छाती पर लगी जिससे लक्ष्मण रक्‍त से लथपथ होकर मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़े।
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वानरों ने उस शक्‍ति को लक्ष्मण के शरीर में से निकालने का भरसक प्रयत्न किया, किन्तु सफल न हो सके। अन्त में श्री राम ने पूरी शक्‍ति लगा कर दोनों हाथों से खींचकर उसे बाहर निकाला और तोड़कर भूमि पर फेंक दिया। जब तक राम शक्‍ति को खींचकर निकालते रहे रावण निरन्तर बाणों की वर्षा करके उन्हें घायल करता रहा। शक्‍ति निकाल कर उन्होंने शीघ्र ही रावण को मार डालने की प्रतिज्ञा की। फिर वे रावण के साथ भयानक युद्ध करने लगे। जब रावण उनके बाणों को न सह सका तो वह घायल होकर रणभूमि से भाग गया।

अब श्रीराम लक्ष्मण के पास बैठकर नाना प्रकार से विलाप करने लगे। उनके विलाप से दुःखी सारी वानर सेना रोने लगी। तभी सुषेण ने कहा, "हे वीरशिरोमणि! आप दुःखी न हों। ये जीवित हैं, इनकी हृदयगति चल रही है।" फिर हनुमान से कहा, "तुम शीघ्र ही महोदय पर्वत पर जाकर विशल्यकरणी, सावण्यकरणी, संजीवकरणी तथा संधानी नामक औषधियाँ ले आओ। उनसे लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा हो सकेगी।" सुषेण के निर्देशानुसार हनुमान तत्काल महोदय गिरि पर जा पहुँचे, परन्तु इन औषधियों की पहचान न होने के कारण उस शिखर को ही उखाड़ लाये जिस पर अनेक प्रकार की औषधियों के वृक्ष उग रहे थे। सुषेण ने इनमें से औषधियों को पहचानकर उनको कूट-पीस कर लक्ष्मण को सुँघाया। इससे वे थोड़ी ही देर में स्वस्थ होकर उठ खड़े हुये।