रावण सहित राक्षस सेना को आया देखकर ललकारती हुई वानर सेना भी सामने आ पहुँची। उसे देखकर रावण का क्रोध और भड़क गया। उसने रोषपूर्वक भारी मारकाट मचा दी। कितने ही वानरों के सिर काट डाले, कितनों के मस्तक कुचल डाले, कितनों ही की छातियाँ फाड़ डालीं। जिधर भी उसकी दृष्टि घूम जाती, वहीं उसके बाण वीर यूथपतियों को अपनी मार से व्याकुल कर देते। अन्त में बचे घायल वानरों ने दौड़कर श्री रामचन्द्र जी के पास गुहार लगाई। उनके पीछे-पीछे रावण भी श्री राम के सामने जा पहुँचा।
उधर सुग्रीव ने वानर सेना की दुर्दशा देखकर सेना को स्थिर रखने का भार वीर सुषेण पर सौंपा और स्वयं एक विशाल वृक्ष उखाड़कर शत्रु पर आक्रमण करने के लिये दौड़ा। अनेक यूथपति भी बड़े-बड़े वृक्ष और पत्थर लेकर उसके पीछे दौड़ चले। उनकी मार से राक्षस सेना धराशायी होने लगी। राक्षस सेना को नष्ट होते देख विरूपाक्ष गर्जना करते हुये सुग्रीव पर आक्रमण करने के लिये दौड़ा। सुग्रीव ने एक बड़ा वृक्ष उस पर दे मारा जिससे विरूपाक्ष का हाथी वहीं मरकर ढेर हो गया। हाथी की पीठ से कूदकर हाथ में तलवार ले विरूपाक्ष सुग्रीव पर झपटा। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। जब सुग्रीव उसकी तलवार से घायल हो गया तो उन्होंने क्रोध से दाँत किटकिटाकर उसकी छाती में मुक्का मारा। इससे वह और क्रुद्ध हो गया। उसने तलवार के एक ही वार से सुग्रीव का कवच काट डाला। तब अत्यन्त कुपित हो सुग्रीव ने उस पर लगातार अनेक प्रहार किये। उसके शरीर से रक्त बहने लगा, एक आँख फूट गई। अन्त में उसने वहीं दम तोड़ दिया।
विरूपाक्ष को मरते देखकर महोदर ने अत्यन्त कुपित हो वानर सेना में भयंकर संहार आरम्भ कर दिया। जब घायल होकर वानर इधर-उधर भागने लगे तो सुग्रीव ने एक बड़ी शिला उस पर दे मारी जिसे महोदर ने अपने बाणों से बीच में ही काट डाला। फिर सुग्रीव ने एक साल वृक्ष से उस पर आक्रमण किया, किन्तु उसने उसे भी काट डाला। जब सुग्रीव ने मारने के लिये परिध उठाया तो महोदर ने गदा से आक्रमण करना आरम्भ कर दिया। युद्ध में जब परिध और गदा दोनों टूट गये तो वेर दोनों एक दूसरे पर मुक्कों से वार करने लगे। दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। तभी सुग्रीव और महोदर ने वहाँ पड़ी तलवारों को उठा लिया। महोदर ने तलवार से सुग्रीव का कवच काटने के लिये आक्रमण किया तो तलवार कवच में अटक गई। जब वह तलवार को खींच रहा था तभी सुग्रीव ने उसका सिर काटकर उसे यमलोक पहुँचा दिया।
महोदर को मरते देख महाबली महापार्श्व सुग्रीव पर तीक्ष्ण हथियारों की मार करता हुआ टूट पड़ा। सामने जाम्बवन्त और अंगद को देखकर उसने अपने बाणों से दोनों को घायल कर दिया। इससे अंगद के नेत्र क्रोध से लाल हो गये। उसने एक लौहमय परिध को उसकी ओर इतने वेग से फेंका कि उसके हाथ से धनुष और सिरस्त्राण छूटकर दूर जा गिरे। इससे क्रोधित होकर महापार्श्व ने एक तीक्ष्ण परशु अंगद पर फेंका जिसे बचाकर अंगद ने पूरी शक्ति से राक्षस के सीने पर घूँसा मारा। वज्र सदृश घूँसा पड़ते ही उसका हृदय फट गया और वह वहीं मरकर धराशायी हो गया।
इधर जब रावण ने अपने तीनों पराक्रमी वीरों की मृत्यु का समाचार सुना तो उसने अपने तामस नामक अस्त्र से वानरों को भस्म करना आरम्भ कर दिया। रावण को विशाल वानर सेना का संहार करते देख राम और लक्ष्मण अपने-अपने धनुष बाणों को लेकर युद्ध करने के लिये तैयार हुये। सबसे पहले लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण पर आक्रमण किया। रावण लक्ष्मण के बाणों को काटते हुये श्री राम के सामने जा पहुँचा और उन पर बाणों की वर्षा करने लगा। राम ने भी इसका उचित उत्तर दिया और दोनों ओर से भयंकर युद्ध होने लगा। दोनों ही दो भयानक यमराजों की भाँति एक दूसरे से भिड़ रहे थे और नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से आक्रमण कर रहे थे। रावण ने सिंह, बाघ, कंक, चक्रवाक, गीध, बाज, मगर, विषधर जैसे मुख वाले बाणों की वर्षा की तो श्रीराम ने अग्नि, सूर्य, चन्द्र, धूमकेतु, उल्का तथा विद्युत प्रभा के समान बाणों से आक्रमण किया। दोनों ही वीर उन अस्त्रों का निवारण कर नया आक्रमण कर देते थे। कुपित रावण ने दस बाण एक साथ छोड़कर रघुनाथ जी को घायल कर दिया। उसकी चिन्ता न करते हये उन्होंने भी रावण को बुरी तरह से घायल कर दिया।
10 मार्च 2010
रामायण – लंकाकाण्ड - भयानक युद्ध
Posted by Udit bhargava at 3/10/2010 06:16:00 am
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