रावण की मृत्यु का समाचार पाकर मन्दोदरी सहित उसकी सभी रानियाँ शोक से व्याकुल होकर अन्तःपुर से निकल पड़ीं। समरभूमि की दशा देखकर वे चीख-चीख कर विलाप करने लगीं। 'हा आर्यपुत्र! हा नाथ!' पुकारते हुये वे कटी लताओं की भाँति रावण के मृत शरीर पर गिर कर हाहाकार करने लगीं, "हाय! असुर, देवता और नाग जिसके भय से काँपा करते थे, आज उन्हीं की एक मनुष्य ने यह दशा कर दी। आपके प्रिय भाई विभीषण ने आपके हित की बात कही थी, उसे ही आपने निकाल बाहर किया। राक्षसशिरोमणे! आपके स्वेच्छाचार से हमारा विनाश हुआ है, ऐसी बात नहीं है। दैव ही सब कुछ कराता है। उसका मारा हुआ ही मरता और मारा जाता है।"
मन्दोदरी बिलख-बिलख कर कह रही थी, "नाथ! पहले आपने इन्द्रियों को जीतकर ही तीनों लोकों पर विजय पाई थी, उस बैर का प्रतिशोध लेकर इन्द्रियों ने ही अब आपको परास्त किया है। खर के मरने पर ही मुझे विश्वास हो गया था कि राम कोई साधाराण मनुष्य नहीं है। मैं ने बारम्बार आपसे कहा था, रघुनाथ जी से बैर-विरोध न लें, किन्तु आप नहीं माने। उसी का आज यह फल मिला है। आपने महान तेजस्वी सीता का अपहरण किया। वे संसार की महानतम पतिव्रता नारी हैं। उनका अपहरण करते समय ही आप जलकर भस्म नहीं हो गये, यही महान आश्चर्य है। आज वही सीता आपकी मृत्यु का कारण बन गई। हाय स्वामी! आप श्रीराम के हाथों कैसे मारे गये? आप तो मृत्यु की भी मृत्यु थे। फिर स्वयं ही मृत्य के आधीन कैसे हो गये? महाराज! पतिव्रता के आँसू इस पृथ्वी पर व्यर्थ नहीं गिरते, यह कहावत आपके साथ ठीक-ठीक घटी है। आपने युद्ध में कभी कायरता नहीं दिखाई, परन्तु सीता का हरण करते समय आपने कायरता का ही परिचय दिया था। मैं शोक से पीड़ित हो रही हूँ औ आप मुझे सान्त्वना भी नहीं दे रहे। आज आपका वह प्रेम कहाँ गया?"
इन शोकविह्वल रानियों को देखकर श्रीराम ने विभीषण से कहा, "हे विभीषण! अब इन्हें धैर्य बँधाओं और अपने भाई का अन्तिम संस्कार करो।" श्रीराम की आज्ञा पाकर विभीषण ने माल्यवान के साथ मिलकर दाह संस्कार की तैयारी की। शव को भली-भाँति सजाकर शवयात्रा निकाली गई जिसमें नगर के समस्त निवासियों और अन्तःपुर की सभी रानियों ने भाग लिया। वेदोक्त विधि से उसका अन्तिम संस्कार किया गया।
07 मार्च 2010
रामायण – लंकाकाण्ड - मन्दोदरी का विलाप और रावण की अन्त्येष्टि
Posted by Udit bhargava at 3/07/2010 06:10:00 am
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें