08 फ़रवरी 2010

सेक्‍स: महिलाओं के लिए कुछ टिप्‍स

क्या आप संभोग के अंतिम पड़ाव तक पहुंचने में असफल रहती हैं? संभोग के चरम आनंद तक पहुंचने में आपको कठिनाई होती है? या फिर रति निष्पत्ति से पहले ही आप ठंडी पड़ जाती हैं? यदि ऐसा है, तो घबराने की बात नहीं है। यह बात सच है कि पुरुष बिना किसी कठिनाई के संभोग के चरम आनंद तक पहुंच जाते हैं, लेकिन महिलाओं को वहां तक पहुंचने में समय लगता है।


पुरुष पार्टनर की भूमिका अहम
चूंकि गर्भधारण के लिए महिलाओं में रति निष्पत्ति होना जरूरी नहीं है, इसलिए डॉक्टर भी इस बात को ज्यादा तरजीह नहीं देते। हाल ही में अमेरिका में इसी बात पर एक शोध किया गया। शोध में पता चला कि महिलाएं चाहें तो हर बार चरम आनंद प्राप्त कर सकती हैं। बस कुछ बातों को ध्यान में रखने की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका पुरुष पार्टनर की होती है। यदि वो सेक्स के बारे में ज्ञान रखता है और आपकी परवाह करता है तो वो आपको चरम आनंद तक पहुंचाने में जरूर मदद कर सकता है।

शोध में पाया गया है कि चरम आनंद तक पहुंचने में सबसे ज्यादा परेशानी 20 से 30 के बीच की उम्र में होती है। तकाम सेक्सोलॉजिस्ट कहते हैं कि यदि आप संभोग के दौरान चरम आनंद तक नहीं पहुंच पाती हैं, तो मैथुन करने के प्रयास करें। गुदा मैथुन चरम आनंद तक पहुंचने की क्रिया को सीखने में मदद करता है। एक शोध के मुताबिक 47 प्रतिशत स्त्रियां पहली बार मैथुन के दौरान ही चरम आनंद पर पहुंचती हैं।

चरम आनंद के लिए कुछ टिप्स
महिलाओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यदि संभोग के बीच में वो रुक जाती हैं, तो वापस वही भावनाएं लाने में काफी समय लगता है। जबकि पुरुष जहां पर रुकते हैं वहीं से शुरू करते हैं। इसलिए संभोग से पहले अपने आस-पास से ऐसी वस्तुओं जैसे मोबाइल फोन, अलार्म घड़ी, टेलीफोन, आदि को हटा दें जो आपको डिस्टर्ब कर सकती है। कमरे की रोशनी कम कर दें।

इसके अलावा यदि आपको लगता है कि कोई बीच में आपके बेडरूम का दरवाजा खटखटा सकता है तो उसके लिए पहले से तैयार रहें। ऐसा होने पर एकदम से प्रतिक्रिया नहीं दें। सेक्स के दौरान सबसे महत्वपूर्ण होती हैं संभोग की क्रियाएं। यदि आपको चरम आनंद पहुंचने में दिक्कत आती है तो क्रियाएं बदल-बदल कर संभोग करें।

अलग-अलग तरीके से सेक्स करने पर चरम सुख तक पहुंचने में आसानी होती है। सबसे अहम बात यह है कि आप बीच-बीच में अपने पार्टनर को इस बात का अहसास दिलाती रहें कि वे रति निष्पत्ति के लिए थोड़ा रुक जाएं, जाकि आपको समय मिल सके। इसके अलावा संभोग से पहले पार्टनर को फोर प्ले के लिए उकसाने से भी लाभ मिलता है।

Hindi Book - ELove CH-25 तालीयोंकी गुंज

अंजली और शरवरी कॉफी हाऊसमें एकदुसरेके सामने बैठे थे और दोनो अपने अपने सोच मे डूबी धीरे धीरे कॉफीकी चुस्कीयां ले रही थी. उनमें एक अजिबसा सन्नाटा फैला हुवा था. आखिर अंजलीने उस सन्नाटेको भंग किया -

'' बराबर 2 दिन हो गए है ... उसकी अगली मेल अभीतक कैसे नही आई ? ''

'' शायद उसे शक हुवा होगा '' शरवरीने कहा।

'' ऐसाही लगता है ... '' अंजली आह भरती हुई बोली।

'' मुझे लग रहा था की इस बार हम उसे पकडनेमें जरुर कामयाब होंगे ... लेकिन अब मुझे चिंता होने लगी है की हम उसे कभी पकडनेमें कामयाबभी होंगे की नही '' अंजलीने कहा।

'' और हा उसे शक होना भी उतनाही खतरनाक है... उसने सारे फोटो अगर इंटरनेटपर डाले तो सारा ही खेल बिगड जाएगा ... और बदनामीभी होगी वह अलग '' शरवरीने कहा।

अंजलीने अपने सोचमें डूबे हूए हालतमें सिर्फ सर हिलाया।

'' एकही झटकेमें उसे पकडना जरुरी है ... नही तो अपना प्लान पुरा फेल हो जाएगा '' अंजलीने कहा ....

.... हॉलमें चल रहे तालीयोंकी गुंजसे अंजली अपने सोचके विश्वसे बाहर आ गई। उसने चारो तरफ अपनी नजरे दौडाई. भाटीयाजींका स्पीच खत्म हो चुका था और वे उसके बगलकेही सिटपर वापस आ रहे थे. वह उनके तरफ देखकर मुस्कुराई, मानो उनके स्पिचकी सराहना कर रही हो. उधर ऍन्कर फिरसे माईकके पास गया था और उसने ऐलान किया - '' अब मै पारितोषीक वितरणके लिए जी. एच. इन्फॉरमेटीक्सकी मॅनेजींग डायरेक्टर ... दि आय. टी वुमन ऑफ दिस इयर... मिस. अंजली अंजुळकर ... उन्हे आमंत्रित करता हूं ...''

अंजली उठ खडी होगई और माइकके पास चली गई। फिरसे हॉल तालीयोंसे गुंज उठा।

'' तो अब हम पारितोषीक वितरणके लिए आगे बढते है ... '' एन्करने माइकपर जाहिर किया।

''... जैसे आप लोग जानते हो ... इस प्रतियोगिता को जब जाहिर किया गया तब हमे इसमें भाग लेनेके लिए इच्छूक लोगोंका बहुत प्रतिसाद मिला... देशभरसे लगभग तिन हजार लोगोंके अप्लीकेशन फॉर्मस हमें मिले .... पहले छाननीमें हमनें उसमेंसे सिर्फ 50 अप्लीकेशन्स चूने ... और अब फायनलमें जो चुने है वे है सिर्फ तिन ... लेकिन उन तिन लोगोंके नाम जाननेके पहले हमें थाडा रुकना पडेगा। क्योंकी पहले हम कुछ लोगोंको कुछ प्रोत्साहनपर प्राईजेस देने वाले है ....''

प्रोत्साहनपर प्राइजेस देनेमें जादा समय न बिताते हूए ऍन्कर एक एकको स्टेजपर बुला रहा था और अंजली उनको प्राईज देकर उनको शाबासकी देकर उनकी वहांसे रवानगी कर रही थी। प्रोत्साहनपर प्राईजेस खत्म हूए वैसे लोगोंमे फिरसें उत्साह बढता हूवा दिखने लगा।

'' अब जिन तिनोंके नाम जाननेके लिए हम उत्सुक है वह वक्त आ चुका है ... सबसे पहले मै तिसरा प्राईज जिसे मिला उस प्रतियोगीका नाम जाहिर करने वाला हूं ... '' एन्करने सब लोगोंकी जिज्ञासा और बढाते हूए एक बडा पॉज लिया , '' तिसरा प्राईज है 1 लाख रुपये कॅश और मोमेंटो... तो थर्ड प्राईज... मि। अमोल राठोड फ्रॉम जयपूर... प्लीज कम ऑन द स्टेज... ''

हॉलमें तालियां गुंजने लगी। एक पतलासा सावला 20 -22 जिसकी उम्र होगी ऐसा एक लडका सामनेके दसमेंसे एक कतारमेंसे खडा होकर स्टेजकी तरफ जाने लगा। उस प्रतियोगीकी तरफ देखकर किसे लगेगा नही की उसे तिसरा प्राईज मिल सकता है ... लेकिन उसके चलनेमें एक जबरदस्त आत्मविश्वास झलक रहा था। अमोल राठोड स्टेजपर आया। जिस आत्मविश्वाससे वह चला था उसी आत्मविश्वासके साथ उसने पुरस्कारका स्विकार किया और अंजलीसे हस्तांदोलन किया। हॉलमें मेडीयाकी भी काफी उपस्थिती थी। पुरस्कार स्विकार करते वक्त बिजली चमकें ऐसे फोटोंकें फ्लॅश दोनोंके उपर चमक रहे थे।

फिरसे हॉलमें मानो जोरसे बारिश हो ऐसे लोगोंने तालियां बजाई। अमोल राठोड स्टेजसे उतरकर फिरसे अपने कुर्सीकी तरफ जाने लगा वैसे ऍन्कर दुसरा प्राईज जिसे मिला उसके नामका ऐलान करनेके लिए सामने आया,

'' दुसरा पारितोषीक है 1।5 लाख रुपये कॅश और मोमेंटो... तो थर्ड प्राईज गोज टू... मिस. अनघा देशपांडे फ्रॉम पुणे ... प्लीज कम ऑन द स्टेज... ''

हॉलमें फिरसे तालियां बजने लगी। एक गोरी उंची पतली नाजूकसी लगभग 20-21 सालकी युवती स्टेजपर आने लगी। अंजली शायद वह खुदभी एक स्त्री होनेसे उस लडकीकी तरफ आंखे भरकर देख रही थी। अनघा स्टेजपर अंजलीके पास आ गई। पुरस्कार देकर अंजलीने उसे गले लगा लिया। फिरसे कॅमेरेके फ्लॅश जैसे बिजली चमके ऐसे चमकने लगे।

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Hindi Book - Elove CH-24 कॉम्पीटीशन

'इथीकल हॅकींग कॉम्पीटीशन - ऑर्गनायझर - नेट सेक्यूरा' ऐसा एक बॅनर बडे अक्षरोंमें स्टेजपर लगाया गया था। आज कॉम्पीटीशन का आखरी दिन था और जितनेवालोंके नाम घोषीत किए जाने थे। पारीतोषीक वितरणके लिए प्रमुख अतिथीके तौर पर अंजलीको बुलाया गया था। स्टेजपर उस बॅनरके बगलमें अंजली प्रमुख अतिथी के लिए आरक्षित कुर्सीपर बैठी हुई थी। और उसके बगलमें एक अधेड उम्र आदमी, भाटीयाजी बैठे थे। वे 'नेट सेक्यूरा' के हेड थे। तभी स्टेजके पिछेसे ऍन्कर सामने माईकके पास जाकर बोलने लगा,

'' गुड मॉर्निंग लेडीज ऍंड जन्टलमन... जैसे की आप सब लोग जानते हो की हमारी कंपनी '' नेट सेक्यूराका यह सिल्वर जूबिली साल है और उसी सिलसिले में हमने 'इथीकल हॅकींग' इस प्रतियोगीता का आयोजन किया था ... आज हम उस प्रतियोगीताके आखरी दौरसे यानीकी पारितोषीक वितरणके दौरसे गुजरने वाले है ... इस पारितोषीक वितरण के लिए हमने एक खास मेहमान को यहां आमंत्रित किया है ... जिन्हे हालहीमें 'आय टी वूमन ऑफ द ईयर' सम्मान देकर गौरवान्वीत किया गया है ... ''

हॉलमें बैठे सब लोगोंकी नजरे स्टेजपर बैठे अंजलीपर टीक गई थी। अंजलीनेभी एक मंद स्मित बिखेरते हूए हॉलमें बैठे लोगोंपर एक नजर दौडाई।

'' और उन खास मेहमानका नाम है ... मिस अंजली अंजुळकर .... उनके स्वागतके लिए मै स्टेजपर हमारे एक्सीक्यूटीव मॅनेजर श्रीमती नगमा शेख इन्हे आमंत्रित करता हूं ...''

श्रीमती नगमा शेखने स्टेजपर आकर फुलोंका गुलदस्ता देकर अंजलीका स्वागत किया। अंजलीनेभी खडे होकर उस गुलदस्तेका बडे विनयके साथ अभिवादन करते हूए स्विकार किया. हॉलमें तालीयां गुंज उठी. मानो एक पलमें वहां उपस्थित लोगोंके शरीमें उत्साह प्रवेश कर गया हो. तालीयोंकी आवाज थमतेही ऍन्कर आगे बोलने लगा -

'' अब मै स्टेजपर उपस्थित हमारे मॅनेजींग डायरेक्टर श्री। भाटीयाजीके स्वागतके लिए हमारे मार्केटींग मॅनेजर श्री. सॅम्यूअल रेक्सजीको यहां आमंत्रित करता हूं ...''

श्री। सॅम्यूअल रेक्सने स्टेजपर जाकर भाटीयाजीका एक गुलदस्ता देकर स्वागत किया। हॉलमें फिरसे तालियां गुंज उठी।

'' अब भाटीयाजींको मै बिनती करता हूं की वे यहां आकर दो शब्द बोलें '' ऍन्करने माईकपर कहां और वह भाटीयाजींकी माईकके पास आनेकी राह देखते हूए खडा रहा।

भाटीयाजी खुर्चीसे उठकर खडे हो गए। उन्होने एक बार अंजलीकी तरफ देखा। दोनों एक दुसरेकी तरफ देखकर मुस्कुराए। और अपना मोटा शरीर संभालते हूए धीरे धीरे चलते हूए भाटीयाजी माईकके पास आकर पहूंच गए।

'' आज इथीकल हॅकींग इस स्पर्धाके लिए आमंत्रित की गई ... जी।एच इन्फॉर्मॆटीक्स इस कंपनीकी मॅनेजींग डायरेक्टर और आय टी वूमन ऑफ दिस इयर मिस अंजली अंजुळकर, यहां उपस्थित मेरे कंपनीके सिनीयर आणि जुनियर स्टाफ मेंबर्स, इस स्पर्धामें शामिल हूए देशके कोने कोनेसे आए उत्साही युवक आणि युवतीयां, और इस स्पर्धाका नतिजा जाननेके लिए उत्सुक लेडीज ऍन्ड जन्टलमन... सच कहूं तो ... यह एक स्पर्धा है इसलिए नही तो हर एक के जिंदगी की हर एक बात एक स्पर्धाही होती है ... लेकिन स्पर्धा हमेशा खिलाडू वृत्तीसे खेली जानी चाहिए ॥ अब देखो ना ... यह इतना बडा अपने कंपनीके स्टाफका समुदाय देखकर मुझे एक पुरानी बात याद आ गई ... की 1984 में हमने यह कंपनी शुरु की थी.... तब इस कंपनीके स्टाफकी गिनती सिर्फ 3 थी ... मै और, और दो सॉफ्टवेअर इंजिनिअर्स... और तबसे हमने हर दिन लढते झगडते .... हर दिनको एक स्पर्धा एक कॉंपीटीशन समझते हूए हम आज इस स्थितीमें पहूंच गए है..... मुझे यह बताते हूए खुशी और अभिमान होता है की आज अपने कंपनीने इस देशमेंही नही तो विदेशमेंभी अपना झंडा फहराया है और आज अपने स्टाफकी गिनती... 30000 के उपर पहूंच चूकी है ...''

हॉलमें फिरसे एकबार लोगोंने तालियां बजाते हूए हॉल सर पर उठा लिया। तालीयां थमनेके बाद भाटीयाजी फिरसे आगे बोलने लगे. लेकिन स्टेजपर बैठी अंजली उनका भाषण सुनते हूए कब अपने खयालोंमे डूब गई उसे पताही नही चला ...

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Hindi Book - ELove CH-23 अवार्ड

उस दिलको दर्द देनेवाले, नही दिल को पुरी तरह तबाह कर देनेवाले घटनाको घटकर अब लगभग 10-15 दिन हो गए होंगे। उस घटना को जितना हो सके उतना भूलनेकी कोशीश करते हूए अंजली अब पहले जैसे अपने काममें व्यस्त हो गई थी। या यू कहिए उन घटनासे होनेवाले दर्दसे बचनेके लिए उसने खुदको पुरी तरह अपने काममें व्यस्त कर लिया था। उसी बिच अंजलीको आयटी क्षेत्रमें भूषणाह समझे जाने वाला 'आय टी वुमन ऑफ द ईअर' अवार्ड मिला। उस अवार्डकी वजहसे उसके यहां प्रेसवालोंका तांता लगने लगा था। उस भिडकी अब अंजलीकोभी जरुरत महसूस होने लगी थी। क्योंकी उस तरहसे वह अपने अकेलेपनसे और कटू यादोंसे बच सकती थी। पिछले चारपांच दिनसे लगभग रोजही कभी न्यूजपेपरमें तो कभी टिव्हीपर उसके इंटरव्हू आ रहे थे।

अंजली ऑफीसमें बैठी हूई थी। शरवरी उसके बगलमेंही बैठकर उसके कॉम्प्यूटरपर काम कर रही थी। उस बुरे अनुभवके बाद अंजलीका चॅटींग और दोस्तोंको मेल भेजना एकदमही कम हुवा था। खाली समयमें वह यूंही बैठकर शुन्यमें ताकते हुए सोचते बैठती थी। उसके दिमागमें मानो अलग अलग तरहकी विचारोंका सैलाब उठता था। लेकिन वह तुरंत उन विचारोंको अपने दिमागसे झटकती थी। अबभी उसके मनमें विचारोंका सैलाब उमड पडा था। उसने तुरंत अपने दिमागमें चल रहे विचार झटकर अपने मनको दुसरे किसी चिजमे व्यस्त करनेके लिए टेबलका ड्रावर खोला। ड्रॉवरमें उसे उसने संभालकर रखे हूए न्यूजपेपरके कुछ कटींग्ज दिखाई दिए। ' आय टी वुमन ऑफ द इअर - अंजली अंजुळकर' न्यूज पेपरके एक कटींगपर हेडलाईन थी। उसने वह कटींग बाहर निकालकर टेबलपर फैलाया और वह फिरसे वह समाचार पढने लगी।

यह समाचार पढनेके लिए अब इस वक्त मेरे पिताजी होने चाहिए थे....

उसके जहनमें एक विचार आकर गया।

उन्हे कितना गर्व महसूस हुवा होता... अपनी बेटीका ...

लेकिन भाग्यके आगे किसका कुछ चला है? ...

अब देखोना अभी अभी आया हुवा विवेकका ताजा अनुभव ...

वह सोच रही थी तभी कॉम्प्यूटरका बझर बजा।

काफी दिनोंसे चॅटींग और मेलींग कम करनेके बाद ज्यादातर उसे किसीका मेसेज नही आता था ....

फिर यह आज किसका मेसेज होगा ...

कोई हितचिंतक?...

या कोई हितशत्रू...

आजकल कैसे हर बातमें उसे दोनो पहेलू दिखते थे - एक अच्छा और एक बुरा। ठेस पहूंचनेपर आदमी कैसे संभल जाता है और हर कदम सोच समझकर बढाता है।

अंजलीने पलटकर मॉनीटरकी तरफ देखा।

'' विवेकका मेसेज है ...'' कॉम्प्यूटरपर बैठी शरवरी अंजलीकी तरफ देखकर सहमकर बोली। शरवरीके चेहरेपर डर और आश्चर्य साफ नजर आ रहा था। वह भावनाए अब अंजलीके चेहरेपरभी दिख रही थी। अंजली तुरंत उठकर शरवरीके पास गई। शरवरी अंजलीको कॉम्प्यूटरके सामने बैठनेके लिए जगह देकर वहांसे उठकर बगलमें खडी हो गई। अंजलीने कॉम्प्यूटरपर बैठनेके पहले शरवरीको कुछ इशारा किया वैसे शरवरी तुरंत दरवाजेके पास जाकर जल्दी जल्दी कॅबिनसे बाहर निकल गई।

'' मिस। अंजली ... हाय ... कैसी हो ?'' विवेकका उधरसे आया मेसेज अंजलीने पढा।

एक पल उसने कुछ सोचा और वह भी चॅटींगका मेसेज टाईप करने लगी -

'' ठीक है ... '' उसने मेसेज टाईप किया और सेंड बटनपर क्लीक करते हूए उसे भेज दिया।

'' तुम्हे फिरसे तकलिफ देते हूए मुझे बुरा लग रहा है ... लेकिन क्या करे? ... पैसा यह साली चिजही वैसी है ... कितनेभी संभलकर इस्तमाल करो तो भी खतम हो जाती है ...'' उधरसे विवेकका मेसेज आ गया।

अंजलीको शक थाही की कभी ना कभी वह और पैसे मांगेगा ...

'' मुझे इस बार 20 लाख रुपएकी सख्त जरुरत है ...'' उधरसे विवेकका मेसेज आ गया।

अभी तो तुम्हे 50 लाख रुपए दिए थे ... अब मेरे पास पैसे नही है ...'' अंजलीने झटसे टाईप करते हूए मेसेज भेज भी दिया।

मेसेज टाईप करते हूए उसके दिमागमें औरभी काफी विचारोंका चक्र चल रहा था।

'' बस यह आखरी बार ... क्योंकी यह पैसे लेकर मै परदेस जानेकी सोच रहा हूं '' उधरसे विवेकका मेसेज आया।

'' तुम परदेस जावो ... या और कही जावो ... मुझे उससे कुछ लेना देना नही है ... देखो ... मेरे पास कोई पैसोका पेढ तो नही है ... '' अंजलीने मेसेज भेजा।

'' ठिक है ... तुम्हे अब मुझे कमसे कम 10 लाख रुपए तो भी देने पडेंगे ... पैसे कब कहा और कैसे पहूंचाने है वह मै तुम्हे मेल कर सब बता दुंगा ...'' उधरसे मेसेज आया।

अंजली कुछ टाईप कर उसे भेजनेसे पहलेही विवेकका चॅटींग सेशन बंद हो गया था। अंजली एकटक उसके सामने रखे कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखने लगी। वह देखतो मॉनिटरके तरफ थी लेकिन उसके दिमागमें विचारोंका तांता लग गया था। लेकिन फिरसे उसके दिमागमें क्या आया क्या मालूम?, वह झटसे उठकर खडी हो गई और लंबे लंबे कदम भरते हूए कॅबिनसे बाहर निकल गई।

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Hindi Books - ELove CH-22 ब्रिफकेस

घना जंगल। जंगलमें चारो तरफ बढे हूए उंचे उंचे पेढ। और पेढोंके निचे सुखे पत्ते फैले हूए थे। जंगलके पेढोंके बिचसे बने संकरे जगहसे रास्ता ढूंढते हूए एक काली, काले कांच चढाई हूई, कार तेडेमेडे मोड लेते हूए सुखे पत्तोसे गुजरने लगी। उस कारके चलनेके साथही उस सुखे पत्तोका एक अजिब मसलने जैसा आवाज आ रहा था। धीरे धीरे चल रही वह कार उस जंगलसे रास्ता निकालते हूए एक पेढके पास आकर रुकी। उस कारके ड्रायव्हर सिटका काला शिशा धीरे धीरे निचे सरक गया। ड्रायव्हींग सिटपर अंजली काला गॉगल पहनकर बैठी हूई थी। उसने कारका इंजीन बंद किया और बगलके पेढके तनेपर लगे लाल निशानकी तरफ देखा।

उसने यही वह पेढ ऐसा मनही मन पक्का किया होगा...

फिर उसने जंगलमें चारो ओर एक नजर दौडाई। दुर-दुरतक कोई परींदाभी नही दिख रहा था। आसपास किसीकीभी उपस्थिती नही है इसका यकिन होतेही उसने अपने बगलके सिटपर रखी ब्रिफकेस उठाकर पहले अपने गोदीमें ली। ब्रिफकेसपर दो बार अपना हाथ थपथपाकर उसने अपना इरादा पक्का किया होगा। और मानो अपना इरादा डगमगा ना जाए इस डरसे उसने झटसे वह ब्रिफकेस कारके खिडकीसे उस पेढके तरफ फेंक दी। धप्प और साथही सुखे पत्तोंका मसलनेजैसा एक अजिब आवाज आया।

होगया अपना काम तो होगया ...

चलो अब अपनी इस मसलेसे छूट्टी होगई...

ऐसा सोचते हूए उसने छुटनेके अहसाससे भरी लंबी आह भरी। लेकिन अगलेही क्षण उसके मनमें एक खयाल आया।

क्या सचमुछ वह इस सारे मसलेसे छूट चूकी थी? ...

या वह अपने आपको एक झूटी तसल्ली दे रही थी...

उसने फिरसे चारो तरफ देखा। आसपास कहीभी कोई मानवी हरकत नही दिख रही थी। उसने फिरसे कार स्टार्ट की। और एक मोड लेते हूए कार वहांसे तेज गतिसे चली गई। मानो वहांसे निकल जाना यह उसके लिए इस मसलेसे हमेशाके लिए छूटनेजैसा था।

जैसेही कार वहांसे चली गई, उस सुनसान जागहके एक पेढके उपर, उंचाईपर कुछ हरकत हो गई। उस पेढके उपर उंचाई पर बैठे, हरे पेढके पत्तोके रंगके कपडे पहने हूए एक आदमीने उसी हरे रंगका वायरलेस बोलनेके लिए अपने मुंहके पास लीया।

'' सर एव्हरी थींग इज क्लिअर ... यू कॅन प्रोसीड'' वह वायरलेसपर बोला और फिरसे अपनी पैनी नजर इधर उधर घूमाने लगा। शायद वह, वहांसे चली गई कार कही वापस तो नही आ रही है, या उस कारका पिछा करते हूए वहां और कोई तो नही आयाना, इस बातकी तसल्ली करता होगा।

'' सर एव्हती थींग इज क्लिअर... कन्फर्मींग अगेन'' वह फिरसे वायरलेसपर बोला।

उस पेढपर बैठे आदमीका इशारा मिलतेही जिस पेढके तनेको लाल निशान लगाया हुवा था, उस पेढके बगलमेंही एक बढा सुखे हूए पत्तोका ढेर था, उसमें कुछ हरकत होगई। कार शुरु होनेका आवाज आया और उस सुखे हूए पत्तोके ढेरको चिरते हूए, उसमेंसे एक कार बाहर आ गई। वह कार धीर धीरे आगे सरकती हूई जहां वह ब्रीफकेस पडी हूई थी वहा गई। कारसे एक काले कपडे पहना हूवा और मुंहपरभी काले कपडे बंधा हूवा एक आदमी बाहर आ गया। उसने अपनी पैनी नजरसे इधर उधर देखा। जहां उसका आदमी पेढपर बैठा हूवा था उधरभी देखा और उसे अंगुठा दिखाकर इशारा किया। बदलेमें उस पेढपर बैठे आदमीनेभी अंगूठा दिखाकर जवाब दिया। शायद सबकुछ कंट्रोलमें होनेका संकेत दिया। उस कारमेंसे उतरे, उस काले कपडे पहने आदमीने आसपास कोई उसे देखतो नही रहा है इसकी तसल्ली करते हूए वह निचे पडी हूई ब्रीफकेस धीरेसे उठाई। ब्रीफकेस उठाकर कारके बोनेटपर रखकर खोलकर देखी। हजार रुपयोंके एकके उपर एक ऐसे रखे हूए बंडल्स देखतेही उसके चेहरेपर काले कपडेके पिछे, एक खुशीकी लहर जरुर दौड गई होगी। और उन नोटोंकी खुशबू उसके नाकसे होते हूए उसके मश्तिश्क तक उसे एक नशा चखाती हूए दौड गई होगी। उसने उसमेंसे एक बंडल उठाकर उंगली फेरकर देखकर फिरसे ब्रिफकेसमें रख दिया। उसने फिरसे ब्रिफकेस बंद की। पेढपर बैठे आदमीको फिरसे अंगुठा दिखाकर सबकुछ ठिक होनेका इशारा किया। वह काला साया वह ब्रिफकेस उठाकर फिरसे अपने कारमें जाकर बैठ गया। कारका दरवाजा बंद हो गया, कार शुरु होगई और धीरे धीरे गति पकडती हूई तेज गतिसे वहांसे अदृष्य होगई। मानो वहांसे जल्द से जल्द निकल जाना उस कारमें बैठे आदमीके लिए उन नोटोंपर जल्द से जल्द कब्जा जमाने जैसा था।

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Hindi Books - ELove CH-21 विवेक कहा गया होगा ?

जॉनी अपनेही धुनमें मस्त मजेमें सिटी बजाते हूए रास्तेपर चल रहा था। तभी उसे पिछेसे किसीने आवाज दिया।

'' जॉनी...''

जॉनीने वही रुककर सिटी बजाना रोक दिया। आवाज पहचानका नही लग रहा था इसलिए उसने पिछे मुडकर देखा। एक आदमी जल्दी जल्दी उसीके ओर आ रहा था। जॉनी असमंजससा उस आदमीकी तरफ देखने लगा क्योंकी वह उस आदमीको पहचानता नही था।

फिर उसे अपना नाम कैसे पता चला ?..

जॉनी उलझनमें वहा खडा था। तबतक वह आदमी आकर उसके पास पहूंच गया।

'' मै विवेकका दोस्त हूं ... मै उसे कलसे ढूंढ रहा हूं ... मुझे कॅफेपर काम करनेवाले लडकेने बताया की शायद तुम्हे उसका पता मालूम हो '' वह आदमी बोला।

शायद उस आदमीने जॉनीके मनकी उलझन पढ ली थी।

'' नही वैसे वह मुझेतो बताकर नही गया। ... लेकिन कल मै उसके होस्टेलपर गया था... वहां उसका एक दोस्त बता रहा था की वह 10-15 दिनके लिए किसी रिस्तेदारके यहां गया है ...'' जॉनीने बताया।

'' कौनसे रिस्तेदारके यहां ?'' उस आदमीने पुछा।

'' नही उतना तो मुझे मालूम नही ... उसे मैने वैसा पुछाभी था लेकिन वह उसेभी पता नही था ... उसे सिर्फ उसकी मेल मिली थी '' जॉनीने जानकारी दी।

अंजली अपने कुर्सीपर बैठी हूई थी और उसके सामने रखे टेबलपर एक बंद ब्रिफकेस रखी हूई थी। उसके सामने शरवरी बैठी हूई थी। उनमें एक अजीबसा सन्नाटा छाया हूवा था. अचानक अंजली उठ खडी हो गई और अपना हाथ धीरेसे उस ब्रिफकेसपर फेरते हूए बोली, '' सब पहेलूसे अगर सोचा जाए तो एकही बात उभरकर सामने आती है ..''

अंजली बोलते हूए रुक गई। लेकीन शरवरीको सुननेकी बेसब्री थी।

'' कौनसी ?'' शरवरीने पुछा।

'' ... की हमें उस ब्लॅकमेलरको 50 लाख देनेके अलावा फिलहाल अपने पास कोई चारा नही है ... और हम रिस्क भी तो नही ले सकते ''

'' हां तुम ठिक कहती हो '' शरवरी शुन्यमें देखते हूए, शायद पुरी घटनापर गौर करते हूए बोली।

अंजलीने वह ब्रिफकेस खोली। ब्रिफकेसमें हजार हजारके बंडल्स ठिकसे एक के उपर एक करके रखे हूए थे. उसने उन नोटोंपर एक नजर दौडाई, फिर ब्रिफकेस बंद कर उठाई और लंबे लंबे कदम भरते हूए वह वहांसे जाने लगी. तभी उसे पिछेसे शरवरीने आवाज दिया -

'' अंजली...''

अंजली ब्रेक लगे जैसे रुक गई और शरवरीके तरफ मुडकर देखने लगी।

'' अपना खयाल रखना '' शरवरीने अपनी चिंता जताते हूए कहा।

अंजली दो कदम फिरसे अंदर आ गई, शरवरीके पास गई, शरवरीके कंधेपर उसने हाथ रखा औड़ मुडकर फिरसे लंबे लंबे कदम भरते हूए वहांसे चली गई।

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रामायण – उत्तरकाण्ड - राजा दण्ड की कथा

महर्षि अगस्त्य से श्‍वेत की कथा सुनकर श्रीरामचन्द्र ने पूछा, "मुनिराज! कृपया यह और बताइये कि जिस भयंकर वन में विदर्भराज श्‍वेत तपस्या करते थे, वह वन पशु-पक्षियों से रहित क्यों हो गया था?"

रघुनाथ जी की जिज्ञासा सुनकर महर्षि अगस्त्य ने बताया, "सतयुग की बात है, जब इस पृथ्वी पर मनु के पुत्र इक्ष्वाकु राज्य करते थे। राजा इक्ष्वाकु के सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उन पुत्रों में सबसे छोटा मूर्ख और उद्‍दण्ड था। इक्ष्वाकु समझ गये कि इस मंदबुद्धि पर कभी न कभी दण्डपात अवश्य होगा। इसलिये वे उसे दण्ड के नाम से पुकारने लगे। जब वह बड़ा हुआ तो पिता ने उसे विन्ध्य और शैवल पर्वत के बीच का राज्य दे दिया। दण्ड ने उस सथान का नाम मधुमन्त रखा और शुक्राचार्य को अपना पुरोहित बनाया।

"एक दिन राजा दण्ड भ्रमण करता हुआ शुक्राचार्य के आश्रम की ओर जा निकला। वहाँ उसने शुक्राचार्य की अत्यन्त लावण्यमयी कन्या अरजा को देखा। वह कामपीड़ित होकर उसके साथ बलात्कार करने लगा। जब शुक्राचार्य ने अरजा की दुर्दशा देखी तो उन्होंने शाप दिया कि दण्ड सात दिन के अन्दर अपने पुत्र, सेना आदि सहित नष्ट हो जाय। इन्द्र ऐसी भयंकर धूल की वर्षा करेंगे जिससे उसका सम्पूर्ण राज्य ही नहीं, पशु-पक्षी तक नष्ट हो जायेंगे। फिर अपनी कन्या से उन्होंने कहा कि तू इसी आश्रम में इस सरोवर के निकट रहकर ईश्‍वर की आराधना और अपने पाप का प्रायश्‍चित कर। जो जीव इस अवधि में तेरे पास रहेंगे वे धूल की वर्षा से नष्ट नहीं होंगे। शुक्राचात्य के शाप के कारण दण्ड, उसका राज्य और पशु-पक्षी आदि सब नष्ट हो गये। तभी से यह भूभाग दण्डकारण्य कहलाता है।" यह वृतान्त सुनकर श्रीराम विश्राम करने चले गये। दूसरे दिन प्रातःकाल वे वहाँ से विदा हो गये।

महाभारत - एकलव्य की गुरुभक्ति

आचार्य द्रोण राजकुमारों को धनुर्विद्या की विधिवत शिक्षा प्रदान करने लगे। उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे। द्रोणाचार्य का अपने पुत्र अश्वत्थामा पर भी विशेष अनुराग था इसलिये धनुर्विद्या में वे भी सभी राजकुमारों में अग्रणी थे, किन्तु अर्जुन अश्वत्थामा से भी अधिक प्रतिभावान थे। एक रात्रि को गुरु के आश्रम में जब सभी शिष्य भोजन कर रहे थे तभी अकस्मात् हवा के झौंके से दीपक बुझ गया। अर्जुन ने देखा अन्धकार हो जाने पर भी भोजन के कौर को हाथ मुँह तक ले जाता है। इस घटना से उन्हें यह समझ में आया कि निशाना लगाने के लिये प्रकाश से अधिक अभ्यास की आवश्यकता है और वे रात्रि के अन्धकार में निशाना लगाने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया। गुरु द्रोण उनके इस प्रकार के अभ्यास से अत्यन्त प्रसन्न हुये। उन्होंने अर्जुन को धनुर्विद्या के साथ ही साथ गदा, तोमर, तलवार आदि शस्त्रों के प्रयोग में निपुण कर दिया।

उन्हीं दिनों हिरण्य धनु नामक निषाद का पुत्र एकलव्य भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से द्रोणाचार्य के आश्रम में आया किन्तु निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश हो कर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनु्र्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया।

एक दिन सारे राजकुमार गुरु द्रोण के साथ आखेट के लिये उसी वन में गये जहाँ पर एकलव्य आश्रम बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। राजकुमारों का कुत्ता भटक कर एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा। एकलव्य को देख कर वह भौंकने लगा। इससे क्रोधित हो कर एकलव्य ने उस कुत्ते अपना बाण चला-चला कर उसके मुँह को बाणों से से भर दिया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी किन्तु बाणों से बिंध जाने के कारण उसका भौंकना बन्द हो गया।

कुत्ते के लौटने पर जब अर्जुन ने धनुर्विद्या के उस कौशल को देखा तो वे द्रोणाचार्य से बोले, "हे गुरुदेव! इस कुत्ते के मुँह में जिस कौशल से बाण चलाये गये हैं उससे तो प्रतीत होता है कि यहाँ पर कोई मुझसे भी बड़ा धनुर्धर रहता है।" अपने सभी शिष्यों को ले कर द्रोणाचार्य एकलव्य के पास पहुँचे और पूछे, "हे वत्स! क्या ये बाण तुम्हीं ने चलाये है?" एकलव्य के स्वीकार करने पर उन्होंने पुनः प्रश्न किया, "तुम्हें धनुर्विद्या की शिक्षा देने वाले कौन हैं?" एकलव्य ने उत्तर दिया, "गुरुदेव! मैंने तो आपको ही गुरु स्वीकार कर के धनुर्विद्या सीखी है।" इतना कह कर उसने द्रोणाचार्य की उनकी मूर्ति के समक्ष ले जा कर खड़ा कर दिया।

द्रोणाचार्य नहीं चाहते थे कि कोई अर्जुन से बड़ा धनुर्धारी बन पाये। वे एकलव्य से बोले, "यदि मैं तुम्हारा गुरु हूँ तो तुम्हें मुझको गुरुदक्षिणा देनी होगी।" एकलव्य बोला, "गुरुदेव! गुरुदक्षिणा के रूप में आप जो भी माँगेंगे मैं देने के लिये तैयार हूँ।" इस पर द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा के रूप में उसके दाहिने हाथ के अँगूठे की माँग की। एकलव्य ने सहर्ष अपना अँगूठा दे दिया। इस प्रकार एकलव्य अपने हाथ से धनुष चलाने में असमर्थ हो गया तो अपने पैरों से धनुष चलाने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया।

विवादों का विश्वविद्यालय

रवींद्र नाथ टैगोर के सपनों की विश्वभारती की परंपरा में भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और गुटबाजी का पलीता लगा हुआ है। विश्वविद्यालय का गुरुकुल जैसा परिसर इन दिनों राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। इस संस्थान की स्थापना के समय पुरातन गुरुकुल परंपरा के आदर्श को ध्यान में रखा गया था। इस संस्थान के संस्थापक के शब्दों में यहाँ विश्व भर की शिक्षा की प्यास बुझेगी। आज की तारीख में यह संस्थान विवादों के केंद्र में है। भ्रष्टाचार से लेकर खस्ताहाल प्रबंधन तक के आरोपों का अंबार लगा हुआ है। आखिर कैसे बिगड़े हालात?

यहाँ बात बंगाल के शांतिनिकेतन स्थित प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय विश्वभारती की हो रही है। संस्थापक गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर का जमाना देख चुके लोग आज इसके मौजूदा हालात पर खून के आंसू रो रहे हैं। यहाँ के कुलपति रजत कांत राय के खिलाफ धन लेकर मनमर्जी से नियुक्तियां करने, फर्जी मेडिकल बिल जमा कर 10 लाख से अधिक रुपए का री-इंबर्शमेंट लेने, यहाँ के प्राथमिक स्कूल में अपने रिश्तेदारों को नौकरियाँ देने और गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की कुछ पेंटिंग्स को अवैध तरीके से एक निजी कंपनी को बेच देने से आरोप लग रहे हैं। विश्वविद्यालय परिसर में पिछले 15 सितंबर से धरना-प्रदर्शन पर बैठे विश्वभारती के शिक्षकों-कर्मचारियों के संगठनकर्मी सभा के अध्यक्ष देवव्रत सरकार का दावा है कि 12वीं पास लोगों तक को शिक्षक पद पर नियुक्त कर लिया गया है।

हालात यह हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कर्मी सभा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। मामला आगे बढ़ा और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर सीबीआई जांच की मांग पर 24 अक्टूबर से विश्वविद्यालय में हड़ताल करा दी गई। उसी दिन बेहद नाटकीय अंदाज में कर्मी सभा के खिलाफ विश्वविद्यालय के वीसी भी धरने पर बैठ गए। वीसी ने राज्यपाल से मिलकर अपना पक्ष रखा है लेकिन हालात बिगड़ते जा रहे हैं। विश्वविद्यालय में गुटबाजी चरम पर है। अब ताजा घटनाक्रमों के संदर्भ में विश्वविद्यालय के काले अतीत की खूब चर्चा है।

गुटबाजी की स्थिति तब से ही चली आ रही है, जब 1951 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने महान वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस को यहाँ का वीसी बनाया था। उनके जमाने में चित्रकार रामकिंकर बैज और अंग्रेजी के एक वरिष्ठ प्राध्यापक के बीच गुटबाजी चरम पर थी। कैंपस दो गुटों में बंट गया था। विवाद बढ़ा तो नेहरूजी ने मशहूर कृषि वैज्ञानिक लियोनार्द एमहर्स्ट की अगुवाई में जांच आयोग बिठाया, जिसने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि वीसी बोस प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हैं लेकिन अच्छे प्रशासक नहीं।

उस जमाने में हालात गुटबाजी और अन्य प्रशासनिक दायित्वों को लेकर सीमित रहे लेकिन रवींद्र के सपनों के इस मंडप पर 2004 से भ्रष्टाचार की छाया मंडराने लगी। तब के वीसी दिलीप सिन्हा पर आरोप लगा कि उन्होंने फर्जी अंकपत्र के आधार पर अपने एक रिश्तेदार को गणित का प्राध्यापक बना दिया। उन्होंने देशभर में कई कॉलेजों को अवैध रूप से मान्यता पत्र जारी कर दिया। दोनों ही मामलों में केंद्रीय जाँच टीम ने सिन्हा के खिलाफ आरोपों को सही पाया और उन्हें जेल भी हुई। उनके बाद आए वीसी सुजीत बासु के जमाने में टैगोर को मिले नोबेल पुरस्कार के मेडल और अन्य बहुमूल्य पेंटिंग आदि चोरी चले गए और अब वीसी रजत कांत राय के खिलाफ आरोपों का पुलिंदा! आश्रम से जुड़े रहे कुछ ऐसे लोगों की मानें तो अगर 1951 में विश्वभारती को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के अंतर्गत लाए जाने के बजाय इसके मूल स्वरूप को बचाए रखते हुए कोई अलग दर्जा दिया जाता तो शायद यहाँ के परिवेश में राजनीति, गुटबाजी, चूहादौड़ और अन्य गंदगियों का प्रवेश नहीं होता।

यह भारत का अकेला ऐसा विश्वविद्यालय है जहाँ केजी से लेकर डॉक्टरेट तक की पढ़ाई की व्यवस्था है। गुरुदेव ने ऐसे शैक्षणिक केंद्र का सपना देखा था जहाँ किसी प्रकार की कोई दीवार न हो। यहाँ के बांग्ला विभाग और विद्या भावना (कला) के 41 साल तक प्रमुख रह चुके बुजुर्ग अमृतसूदन भट्टाचार्य का मानना है कि यहाँ ऐसे वीसी की जरूरत है जो टैगोर की फिलॉसफी को समझता हो। यहाँ केंद्र ने भारत के बेस्ट स्कॉलर्स को वीसी बनाया लेकिन यह देखने की कोशिश नहीं की कि वे टैगोर के विचारों को कितना समझ पाते हैं।

शायद अपने आखिरी दिनों में गुरुदेव भी आज के हालात को ताड़ चुके थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई दफा विश्वभारती के तेजी से विस्तार पर नाखुशी जताते हुए टिप्पणी की थी कि इसे किसी आम विश्वविद्यालय की तरह नहीं बनना चाहिए। ऐसा होने पर विश्वभारती अपना मूल स्वरूप खो बैठेगा। 1941 में टैगोर के निधन के बाद विश्वभारती को सरकारी फंड मिलना शुरू हुआ। 1951 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। यहाँ पढ़ा चुके 92 साल के पेंटर दिनकर कौशिक के अनुसार, शायद वहीं से गड़बड़ियों का पौधारोपण हो गया। कौशिक यहाँ 1940 में नंदलाल बोस और रामकिंकर बैज से चित्रकारी सिखने आए थे। शांतिनिकेतन में ही रह रहे टैगोर खानदान के वंशज सुप्रिय टैगोर यहाँ के पाठ भवन के प्रिंसिपल की हैसियत से चार दशक पहले रिटायर हुए। उनके अनुसार, "केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने पर यहाँ फंड अफरात आने लगा। गुरुदेव के जमाने में धन की कमी महसूस की जा रही थी जो दूर हो गई थी लेकिन नियुक्तियों और कामकाज में जिस तरह से सरकारी नियमों की पैठ बढ़ी गड़बड़ियाँ बढ़ती चली गईं।

याद करो और उगल दो!

जरा गौर कीजिए एक "टिपिकल" भारतीय स्कूल की क्लास पर: "पढ़ाते" टीचर और "पढ़ते" बच्चे। यानी टीचर बोलेंगे और बच्चे सुनेंगे व जो सुना उसे याद रखने की कोशिश करेंगे। यानी टीचर ब्लैकबोर्ड पर लिखेंगे और बच्चे अपनी कॉपी में उसे जस का तस उतारेंगे व जो उतारा उसे याद रखने की कोशिश करेंगे।

बच्चों को फिक्र कि सब कुछ याद करना है और टीचर को फिक्र कि इतने समय में सारा कोर्स पूरा करना है। आज यह पाठ निपटा दिया, कल वह और शनिवार तक उसके बाद वाला चैप्टर भी कम्पलीट करवा देना है।

इस झटपट, टारगेट ओरिएंटेड शिक्षण में वे बच्चे रोड़ा होते हैं, जो सवाल करते हैं। टाइम वेस्ट करते हैं वे बच्चे! तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार कोर्स "निपटाने" में बाधा खड़ी करते हैं। अच्छे स्टूडेंट वे होते हैं जो कुछ पूछते नहीं, सिर्फ सुनते हैं। जो सोचते नहीं, सिर्फ रटते हैं।

कहने की जरूरत नहीं कि यह प्रक्रिया न बच्चों के लिए आनंददायी है और न ही शिक्षकों के लिए। तेजी से भागती दुनिया में आज जो पढ़ाया, वह कल, परसों, नरसों कब तक उपयोगी रहेगा, कहा नहीं जा सकता।

ऐसे में निर्धारित पाठ बेवजह रटाने के बजाए होना यह चाहिए कि बच्चों में सीखने की ललक पैदा की जाए, तर्क करने का कौशल विकसित किया जाए। उनकी जिज्ञासा को खाद-पानी दिया जाए, उसमें मट्ठा न डाला जाए। तभी तो बेजान रोबोट के बजाए तैयार होंगे चीजों को जानने-समझने वाले युवा। नई खोज करने वाले युवा, नए शिखर छूने वाले युवा।

07 फ़रवरी 2010

रत्नों के प्रकार

* मासर मणि- यह अकीक पत्थर के समान होता है।

* माक्षिक- यह सोना मक्खी के रंग का पत्थर है।

* माणिक्य- यह गुलाबी तथा सुर्ख लाल रंग का होता है तथा काले रंग का भी पाया जाता है। गुलाबी रंग का माणिक्य श्रेष्ठ माना गया है।

* मूवेनजफ- यह सफेद रंग का काली धारी से युक्त पत्थर होता है। यह फर्श बनाने के काम आता है।

* मूँगा- यह लाल, सिंदूर वर्ण तथा गुलाबी रंग का होता है। यह सफेद व कृष्ण वर्ण में भी प्राप्य है। इसका प्राप्ति स्थान समुद्र है। इसका दूसरा नाम प्रवाल भी है।

* मोती- यह सफेद, काला, पीला, लाल तथा आसमानी व अनेक रंगों में पाया जाता है। यह समुद्र से सीपों से प्राप्त किया जाता है।

* रक्तमणि- यह पत्थर लाल, जामुनी रंग का सुर्ख में कत्थे तथा गोमेद के रंग का पाया जाता है, इसे 'तामड़ा' भी कहा जाता है।

* रक्ताश्म- यह पत्थर गुम, कठोर, मलिन, पीला तथा नीले रंग लिए, हरे रंग का तथा ऊपर लाल रंग का छींटा भी होता है।

* रातरतुआ- यह स्वच्छ लाल तथा गेरुआ रंग का होता है। यह रात्रि ज्वर को दूर करता है।

* लहसुनिया- यह बिल्ली के आँख के समान चमकदार होता है। इसमें पीले, काले तथा सफेद रंग की झाईं भी होती है। इसका दूसरा नाम वैदूर्य है।

* लालड़ी- यह रत्न रक्त रंग का, पारदर्शक कांतिपूर्ण, लाल रंग तथा कृष्णाभायुक्त होता है, इसे सूर्यमणि भी कहते हैं।

* लास- यह मकराने की जाति का पत्थर है।

* लूधिया- यह गुम तथा हरे रंग का होता है। इसका उपयोग खरल बनाने में किया जाता है।

* शेष मणि- यह काले डोरे से युक्त सफेद रंग का होता है। सफेद रंग के डोरे से युक्त काले रंग के पत्थर को सुलेमानी कहा जाता है।

* शैलमणि- यह पत्थर मृदु, स्वच्छ, सफेद तथा पारदर्शक होता है, इसे स्फटिक तथा बिल्लौर भी कहते हैं।
* शोभामणि- यह पत्थर स्वच्छ पारदर्शक तथा अनेक रंगों में पाया जाता है। इसे वैक्रान्त भी कहते हैं।

* संगिया- यह चाक से मिलता-जुलता मुलायम पत्थर होता है।

* संगेहदीद- यह भारी भूरापन लिए स्याही के रंग का होता है। इसका औषधि में प्रयोग होता है।

* संगेसिमाक- यह गुम सख्त तथा मलिनता लिए लाल रंग का होता है, जिस पर सफेद रंग के छींटे होते हैं। इसका उपयोग खरल बनाने तथा नीलम व माणिक्य को पीसने के काम आता है।

* संगमूसा- यह काले रंग का पत्थर होता है। इसका उपयोग प्याले व तश्तरी बनाने में होता है।

* संगमरमर- यह पत्थर सफेद, काले तथा अन्य कई रंगों में होता है। इसका उपयोग मूर्तियों तथा मकान बनाने के काम में किया जाता है।
* संगसितारा- यह कषाय रंग का पत्थर है। इसमें सोने के समान छींटे चमकते दिखाई देते हैं।
* सिफरी- यह अपारदर्शी, हरापन लिए आसमानी रंग का होता है। यह औषधि के काम में आता है।
* सिन्दूरिया- यह गुलाबी रंग का पानीदार चमकदार व मृदु पत्थर होता है।
* सींगली- यह गुम स्याही तथा रक्त मिश्रित माणिक्य जाति का पत्थर होता है। इसके अंदर छह कलाओं से युक्त सितारे होते हैं।
* सीजरी- यह अकीक के समान विविध रंगों में फूल-पत्तीदार व दाग डालने वाला पत्थर होता है।
* सुनहला- यह पीले रंग का नरम तथा पूर्ण पारदर्शक होता है।
* सूर्यकान्त- इसका रंग चमकदार श्वेत रंग का होता है।

* सुरमा- यह काले रंग का पत्थर होता है तथा इसका उपयोग नेत्रांजन बनाने में होता है।

* सेलखड़ी- यह सफेद रंग का मृदु पत्थर होता है, इसका उपयोग क्रीम, पावडर आदि बनाने के काम में किया जाता है।

* स्फटिक- यह मृदु सफेद रंग का पारदर्शी व चमकदार होता है। इसे फिटकरी भी कहा जाता है।

* सोनामक्खी- इसे स्वर्ण माक्षिक भी कहते हैं। यह कंकड़ के समान पीत वर्ण का होता है। इसका उपयोग औषधि में करते हैं।

* हजरते बेर- यह औषधि में उपयोग होने वाला मटमैला बेर के समान होता है।

* हजरते ऊद- यह पत्थर गुलाबी रंग का लचकदार तथा खुरदरा होता है।

* हरितोपल- यह हरे रंग का चमकदार पत्थर होता है।

* हकीक- यह पत्थर पीले, काले, सफेद, लाल तथा अनेक रंगों में पाया जाता है। यह अपारदर्शी होता है।

* हरितमणि- यह चिकना, कठोर, अपारदर्शी तथा सफेद काले अंगूरी व गुलाबी रंग का होता है।

* हीरा- यह सफेद, नीला, पीला, गुलाबी, काला, लाल आदि अनेक रंगों में होता है। सफेद हीरा सर्वोत्तम है तथा हीरा सभी प्रकार के रत्नों में श्रेष्ठ है।


इन्हें भी देखें :-
रत्न चिकित्सा
रत्नों क़ी  श्रेष्ठता  
नवग्रह रत्न एवं समयावधि
रत्नों के प्रकार
संयुक्त रत्न पहनना श्रेष्ठ फलदायी
रत्नों क़ी उत्त्पत्ति
रत्नों के प्राप्ति स्थान
धन देता है श्वेत मोती

संयुक्त रत्न पहनना श्रेष्ठ फलदायी

रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। हीरा शुक्र को अनुकूल बनाने के लिए होता है तो नीलम शनि को। इसी प्रकार माणिक रत्न सूर्य के प्रभाव को कई गुना बड़ा कर उत्तम फलदायी होता है। मोती जहाँ मन को शांति प्रदान करता है ‍तो मूँगा उष्णता को प्रदान करता है। इसके पहनने से साहस में वृद्धि होती है।

पुखराज रत्न सभी रत्नों का राजा है। इसे पहनने वाला प्रतिष्‍ठा पाता है व उच्च पद तक आसीन हो सकता है। अपनी योग्यतानुसार रत्न पहनने से कार्य में आने वाली बाधाओं को दूर कर राह आसान बना देते हैं। यूँ तो रत्न अधिकांश अलग-अलग व अलग-अलग धातुओं में पहने जाते है। लेकिन मेरे 20 वर्षों के अनुभव से संयुक्त रत्न पहनवाकर कईयों को व्यापार में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति, राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से मुक्ति, वैवाहिक ‍तालमेल में बाधा को दूर कर अनुकूल बनाना, संतान कष्ट, विद्या में रुकावटें, विदेश, आर्थिक उन्नति आदि में सफल‍ता दिलाई।
जन्मपत्रिका के आधार पर व ग्रहों की स्थितिनुसार संयुक्त रत्न पहन कर उत्तम लाभ पाया जा सकता है। संयुक्त रत्न में माणिक-पन्ना, पुखराज-माणिक, मोती-पुखराज, मोती-मूँगा, मूँगा-माणिक, मूँगा-पुखराज, पन्ना-नीलम, नीलम-हीरा, हीरा-पन्ना, माणिक-पुखराज-मूँगा, माणिक-पन्ना, मूँगा भी पहना जा सकता है।
क्या नहीं पहना जा सकता इसे भी जान लेना आवश्यक है। लहसुनियाँ-हीरा, मूँगा-नीलम, नीलम-माणिक। संयुक्त रत्न तभी पहने जाते है जब जन्मपत्रिका में देख व अनुकूल ग्रहों की अवस्था हो या दशा-अन्तर्दशा चल रही है। ऐसी स्थिति में श्रेष्‍ठ फलदायी होते हैं।
कभी-कभी व्यापार नहीं चल रहा हो, अच्छी सफलता नहीं मिल रही हो तो चार रत्न यथा पुखराज-मूँगा, माणिक व पन्ना पहनें तो सफलता मिलने लग जाती है। रत्नों की सफलता तभी मिलती है जब शुभ मुहूर्त में उसी के नक्षत्र में बने हो या जो ग्रह प्रभाव में तेज हो उसके नक्षत्र में बने हो व पहनने का भी उसी ग्रह के नक्षत्र में हो तब लाभ भी कई गुना बढ़ जाता है।

रामायण – उत्तरकाण्ड - वृत्रासुर की कथा

एक दिन श्रीरामचन्द्रजी ने भरत और लक्ष्मण को अपने पास बुलाकर कहा, "हे भाइयों! मेरी इच्छा राजसूय यज्ञ करने की है क्योंकि वह राजधर्म की चरमसीमा है। इस यज्ञ से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अक्षय और अविनाशी फल की प्राप्ति होती है। अतः तुम दोनों विचारकर कहो कि इस लोक और परलोक के कल्याण के लिये क्या यह यज्ञ उत्तम रहेगा?"

बड़े भाई के ये वचन सुनकर धर्मात्मा भरत बोले, "महाराज! इस पृथ्वी पर सर्वोत्तम धर्म, यश और स्वयं यह पृथ्वी आप ही में प्रतिष्ठित है। आप ही इस सम्पूर्ण पृथ्वी और इस पर रहने वाले समस्त राजा भी आपको पितृतुल्य मानते हैं। अतः आप ऐसा यज्ञ किस प्रकार कर सकते हैं जिससे इस पृथ्वी के सब राजवंशों और वीरों का हमारे द्वारा संहार होने की आशंका हो?" भरत के युकतियुक्त वचन सुनकर श्रीराम बहुत प्रसन्न हुये और बोले, "भरत! तुम्हारा सत्यपरामर्श धर्मसंगत और पृथ्वी की रक्षा करने वाला है। तुम्हारा यह उत्तम कथन स्वीकार कर मैं राजसूय यज्ञ करने की इच्छा त्याग देता हूँ।"

तत्पश्चात लक्ष्मण बोले, "हे रघुनन्दन! सब पापों को नष्ट करने वाला तो अश्वमेघ यज्ञ भी है। यदि आप यज्ञ करना ही चाहते हैं तो इस यज्ञ को कीजिये। महात्मा इन्द्र के विषय में यह प्राचीन वृतान्त सुनने में आता है कि जब इन्द्र को ब्रह्महत्या लगी थी, तब वे अशवमेघ यज्ञ करके ही पवित्र हुये थे।" श्री राम द्वारा पूरी कथा पूछने पर लक्ष्मण बोले, "प्राचीनकाल में वृत्रासुर नामक असुर पृथ्वी पर पूर्ण धार्मिक निष्ठा से राज्य करता था। एक बार वह अपने ज्येष्ठ पुत्र मधुरेश्वर को राज्य भार सौंपकर कठोर तपस्या करने वन में चला गया। उसकी तपस्या से इन्द्र का भी आसन हिल गया। वह भगवान विष्णु के पास जाकर बोले कि प्रभो! तपस्या के बल से वृत्रासुर ने इतनी अधिक शक्ति संचित कर ली है कि मैं अब उस पर शासन नहीं कर सकता। यदि उसने तपस्या के फलस्वरूप कुछ शक्ति और बढ़ा ली तो हम सब देवताओं को सदा उसके आधीन रहना पड़ेगा। इसलिये प्रभो! आप कृपा करके सम्पूर्ण लोकों को उसके आधिपत्य से बचाइये। किसी भी प्रकार उसका वध कीजिये।


"देवराज इन्द्र की यह प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु बोले कि यह तो तुम जानते हो देवराज! मझे वृत्रासुर से स्नेह है। इसलिये मैं उसका वध नहीं कर सकता परन्तु तुम्हारी प्रार्थना भी मैं अस्वीकार नहीं कर सकता। इसलिये मैं अपने तेज को तीन भागों में इस प्रकार विभाजित कर दूँगा जिससे तुम स्वयं वृत्रासुर का वध कर सको। मेरे तेज का एक भाग तुम्हारे अन्दर प्रवेश करेगा, दूसरा तुम्हारे वज्र में और तीसरा पृथ्वी में ताकि वह वृत्रासुर के धराशायी होने पर उसका भार सहन कर सके। भगवान से यह वरदान पाकर इन्द्र देवताओं सहित उस वन में गये जहाँ वृत्र तपस्या कर रहा था। अवसर पाकर इन्द्र ने अपने शक्‍तिशाली वज्र वृत्रासुर के मस्तक पर दे मारा। इससे वृत्र का सिर कटकर अलग जा पड़ा। सिर कटते ही इन्द्र सोचने लगे, मैंने एक निरपराध व्यक्‍ति की हत्या करके भारी पाप किया है। यह सोचकर वे किसी अन्धकारमय स्था में जाकर प्रायश्‍चित करने लगे। इन्द्र के लोप हो जाने पर देवताओं ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की कि हे दीनबन्धु! वृत्रासुर मारा तो आपके तेज से गया है, परन्तु ब्रह्महत्या का पाप इन्द्र को भुगतना पड़ रहा है। इसलिये आप उनके उद्धार का कोई उपाय बताइये। यह सुनकर विषणु बोले कि यदि इन्द्र अश्‍वमेघ यज्ञ करके मुझ यज्ञपुरुष की आराधना करेंगे तो वे निष्पाप होकर देवेन्द्र पद को प्राप्त कर लेंगे। इन्द्र ने ऐसा ही किया और अश्‍वमेघ यज्ञ के प्रताप से उन्होंने ब्रह्महत्या से मुक्‍ति प्राप्त की।"

सोरायसिस रोग

सोरायसिस, जिसे हिन्दी में विचर्चिका, चम्बल या अपरस रोग कहते हैं, बहुत ही कष्टदायक, कष्टसाध्य और किसी किसी केस में असाध्य (लाइलाज) रोग है। इस रोग का सही-सही निदान नहीं हो पाया है कि यह रोग किन कारणों से होता है।

इस रोग में पूरे शरीर में कहीं भी खुजली चला करती है, त्वचा पर लाल-लाल, गोलाकार चवन्नी-अठन्नी के आकार के चकत्ते (चठ्ठे या दंदोड़े) बनते हैं, त्वचा पर छिछड़े जैसी परतें उभर आती हैं, जिन्हें खुजाने पर रक्त निकल आता है। ये चकत्ते पूरे शरीर में, यहाँ तक कि हथेली और पैर के तलुओं में भी, निकल आते हैं।

यह रोग स्त्री या पुरुष किसी को भी किसी भी आयु में हो सकता है। इस रोग के प्रभाव से त्वचा मलिन होने लगती है, धीरे-धीरे काली पड़ जाती है। इस रोग के प्रभाव से सिर की त्वचा में भी खुजली चलने लगती है और सिर के बाल उड़ने लगते हैं।

चिकित्सा
इसकी एक चिकित्सा है, जिसे 6-7 मास तक नियमित रूप से बिना भूले-चूके, करना चाहिए-

चोपचन्यादि चूर्ण 50 ग्राम, बंगभस्म, लौहभस्म, ताप्यादि लोह, तीनों 10-10 ग्राम, गन्धक रसायन 30 ग्राम, स्वर्णमाक्षिक भस्म व समीर पन्नग रस 5-5 ग्राम। सबको ठीक से मिलाने के लिए खरल में डालकर थोड़ी देर तक घुटाई करें, फिर इस मिश्रण की 60 पुड़िया बनाकर बॉटल या डिब्बे में रख लें। सुबह-शाम 1-1 पुड़िया शहद में मिलाकर चाट लें। इसके एक घण्टे बाद अरोग्यवर्द्धिनी वटी विशेष नं। 1 और पंच निम्बादि वटी की 2-2 गोली पानी के साथ लें।


भोजन करने के बाद दोनों वक्त खदिरारिष्ट, महामंजिष्ठादि काढ़ा और रक्त शोधान्तक या रक्तदोषान्तक-तीनों 4-4 चम्मच आधा कप पानी में डालकर पिएं। सोने से पहले चन्दनबला लाक्षादि तेल पूरे शरीर पर लगाएं। सुबह उठने के बाद चर्म रोगनाशक तेल पूरे शरीर पर लगाएं और आधा घंटे बाद कुनकुने गर्म पानी से स्नान करें।

06 फ़रवरी 2010

संयुक्त घराना के अकार्य

अनेक प्रकार्यो के साथ-साथ, संयुक्त परिवार अथवा घराना की संरचना में कई अकार्य भी देखने में आते हैं। समाजशास्त्रियों द्वारा निम्नलिखित अकार्यों की चर्चा की गई है:-
संयुक्त घर छोटी-छोटी बातों पर संघर्ष का केंद्र होता है। सदस्यों के बीच में आपसी तालमेल, समायोजन तथा सात्मीकरण का सामान्यत: अभाव होता है। मतभेद एवं कटुता से आंतरिक अंतर्विरोध पैदा होता है। जो संयुक्त घराने के विघटन के लिए रास्ता तैयार करता है।
संयुक्त घराने को सदस्यों के स्वतंत्र व्यक्तित्व के विकास में बाधा माना जाता है। सामान्यत: घर का मुखिया सारे महत्त्वपूर्ण निर्णय खुद लिया करता है फलस्वरूप हर व्यक्ति की पसंद या नापसंद का खयाल रखना संयुक्त घर में संभव नहीं हो पाता। इस तरह स्वतंत्र रचनात्मक संभावना का पूरी तरह विकास एवं दोहन नहीं हो पाता।
कभी-कभी नये विवाहित जोड़ी के बीच आत्मीयता का विकास नहीं हो पाता फलस्वरूप मनोवैज्ञानिक असंतोष एवं नासमझी का माहौल रहता है। संयुक्त परिवार व्यवस्था के अंतर्गत विवाहित युवा स्त्रियों का अधिकांश समय घर के सभी सदस्यों की आवश्यकता पूर्ति में खर्च होता है। इसके कारण उन्हें उचित तरीके से अपने स्वास्थ्य पर धयान देने या आनंद उठाने के लिए समय या अवसर नहीं मिल पाता।
संयुक्त घराने में बुर्जुग तथा युवा दोनों प्रकार के सदस्य पाये जाते है, फलस्वरूप पीढ़ियों के संघर्ष कई प्रकार से उभरते रहते है। बुर्जग लोग कठोरता से पारंपरिक मूल्यों एवं विश्वासों का पालन करते हैं। वे नए सांस्कृतिक चलन एवं सीमा को स्वीकार नहीं पाते। आजकल युवा व्यक्तिवाद के पक्षञ्र होने लगे है एवं पारंपरिक मूल्यों को अञ्निायकवादी, पक्षपातपूर्ण एवं अन्यायी मानकर इनका विरोध करने लगे हैं। इसके कारण कई बार परिवार में समस्याएँ पैदा हो जाती है और घर की शांति भंग हो जाती है। विभिन्न पीढ़ियों की सामाजिक अभिरूचियों में अंतर होता है।

संयुक्त परिवार में परिवर्तन
संयुक्त परिवार में निम्नलिखित परिवर्तनों की चर्चा समाजशास्त्रियों द्वारा अक्सर की जाती है :-
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संरचनात्मक परिवर्तन
जिन तथ्यों एवं मूल्यों ने संयुक्त परिवार या घराने की व्यवस्था का पोषण किया, स्थायित्व दिया एवं कायम रखा वे निम्नलिखित हैं :-
(1) पुत्रों में पिता के प्रति समर्पण की भावना,
(2) आर्थिक रूप से समर्थ सदस्यों का संयुक्त परिवार के अन्य सदस्यों की मदद के लिए तत्पर रहना जो खुद अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हैं,
(3) बुजुर्ग स्त्री-पुरूष के लिए राज्य द्वारा नियोजित सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था का अभाव होना, एवं
(4) जमीन, पूंजी एवं श्रम के चतुर्दिक लाभ की दृष्टि से संगठन एवं दोहन के लिए संयुक्त परिवार के आकार द्वारा दिया गया भौतिक प्रोत्साहन।

अब संयुक्त घरों में निम्नलिखित कारणों से विघटन हो रहा है :-
(1) भाइयों की आमदनी में अंतर जो घर में कलह को जन्म देता है।
(2) बेटों और उनकी पत्नियों में पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने की भावना में कमी।
(3) पाश्चात्य शैली के प्रभावस्वरूप युवकों मे व्यक्तिवाद का विकास।
(4) अर्थव्यवस्था में सेवाक्षेत्र का बढ़ता महत्त्व तथा बाहरी आमदनी के बढ़ते अवसर के कारण नाभिकीय परिवारों को वरीयता।

प्रकार्यात्मक परिवर्तन
इसकी तीन स्तरों पर पड़ताल की जा सकती है :
1। पति-पत्नी संबंध - पारंपरिक घरों में निर्णय लेने के काम में पत्नी, अपने पति के सहायक की भूमिका निभाती थी। परन्तु समकालीन घरों में पत्नी, अपने पति के बराबर ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाती है। फलस्वरूप घर के कार्य एवं बाहर के कार्य की दृष्टि से पति-पत्नी एक - दूसरे के साथ सहयोग एवं समयोजन करने लगे हैं।
2। माता-पिता एवं बच्चों का संबंध - पारंपरिक परिवारों में शक्ति एवं अधिकार पूरी तरह से र् कत्ता के हाथ में होता था और उसे शिक्षा, व्यवसाय एवं बच्चों के विवाह के बारे में निर्णय लेने के लिए परिवार में असीमित अधिकार प्राप्त होते थे। समकालीन परिवारों में अब अधिकांशत: माता-पिता एवं उनके बच्चे सामूहिक रूप से मिल-जुल कर निर्णय करने लगे हैं।
3। सास-श्वसुर (ससुर) के साथ बहू का संबंध - इस संबंध में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है। शिक्षित बहू अपने ससुर के सामने पर्दा नहीं रखती। सास-बहू के संबंध में भी पहले की तुलना में अब कम कटुता है। सास अब शक्तिशाली पद नहीं रहा परन्तु वह ससुर की तरह एक सम्मानीय संबंधी अब भी है।

जीवन साथी चुनने के नियम

समाज के एक खास समूह की पहचान व पवित्रता कायम रखने के लिए हिन्दू स्मृतिकारों ने योग्य साथी चुनने या विवाह करने के लिए विस्तृत नियम तथा रीतियों की व्यवस्था दी है। ये नियम दो सिध्दांतों पर आधारित हैं, यथा अन्तर्विवाह के नियम तथा बहिर्विवाह के नियम।

अन्तर्विवाह - जीवन साथी चुनने के लिए अपनी जाति या उपजाति के अंतर्गत ही चुनाव करने की स्वतंत्रता है।
1। जातिय अंतर्विवाह : इस नियम के अंतर्गत एक व्यक्ति को अपनी जाति के अंतर्गत ही विवाह करने की छूट है। कोई व्यक्ति अपनी जाति के बाहर विवाह नहीं कर सकता। इस नियम को नहीं मानने वाले व्यक्ति को जाति पंचायत के द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कठोर दंड दिया जाता है। दंड के फलस्वरूप व्यक्ति के साथ जातिगत सहयोग और सुरक्षा के हर दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और उसे जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है।

2। उपजातिय अंतर्विवाह : प्रत्येक जाति अनेक उपजाति में विभक्त होती है जिनमें तुलनात्मक श्रेष्ठता को लेकर अंतर्विरोध होता है। ऐसे प्रत्येक समूह धीरे-धीरे अंतर्विवाही बन जाते है। जैसे ब्राह्मण जाति के अंतर्गत ही सारस्वत, गौड़, कान्यकुब्ज जैसी उपजातियाँ हैं जो अंतर्विवाही हैं।

बहिर्विवाह :
बहिर्विवाह के नियम के अनुसार हर व्यक्ति को अपने समूह के बाहर विवाह करना होता है। यद्यपि अंतर्विवाह एवं बहिर्विवाह के नियम प्रत्यक्ष रूप में विराधी दिखाई पड़ते हैं परन्तु दोनों नियम एक - दूसरे के पूरक है तथा दो स्तरों पर व्यवहारित होते हैं। हिंदू समाज में बहिर्विवाह के दो रूप पाये जाते हैं :-
1. सगोत्र बहिर्विवाह :
एक गोत्र से जुड़े व्यक्ति सगोत्रीय कहलाते हैं। गोत्र एक वंश समूह (क्लान) या परिवार समूह है, जिसके सदस्य आपस में विवाह करने से प्रतिबंञ्ति होते हैं। यह मान्यता है कि सभी सगोत्रीय एक ही पूर्वज की संतान होते हैं और उन सभी में रक्त संबंध होता है। सगोत्र बहिर्विवाह के नियम को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने अप्रभावी बना दिया है।

2. सपिण्ड बहिर्विवाह :
सपिण्ड लोग एक दूसरे के रक्त संबंधी होते हैं। पिता की ओर से सात एवं माता की ओर से पांच पीढ़ियों तक जुड़े रक्त संबंध सपिण्ड कहलाते हैं। एक व्यक्ति अपने जीवन साथी का चुनाव सपिण्ड समूह के अंतर्गत नही कर सकता। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 सामान्यत: सपिण्ड अन्तर्विवाह की इजाजत नहीं देता, परन्तु दक्षिण भारत में प्रचलित ममेरे-फुफेरे भाई बहनों को भी प्रथागत रूप में अपवाद स्वरूप स्वीकार करता है। सपिण्ड बहिर्विवाह का नियम सपिण्ड रिश्तेदारों में विवाह का निषेध करता है। जीवित व्यक्ति और उसके मरे हुए पुरखों के बीच संबंध को सपिण्ड संबंध कहते हैं। सपिण्ड का अर्थ है (1) वे जिनके शरीर का पिण्ड एक समान हैं तथा (2) वे जो मृत पूर्वज को एक साथ पिण्ड दान करते हैं। हिंदु स्मृतिकार सगोत्र की अलग-अलग परिभाषा देते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 पिता की तरफ से पांच पीढ़ियों एवं माता की तरफ से तीन पीढ़ियों तक सपिण्ड संबंध से जुड़े व्यक्तियों के बीच वैवाहिक संबंध की स्वीकृति नहीं देता।

अंतर्जातीय विवाह :
दो भिन्न जातियों के स्त्री-पुरूष के बीच के वैवाहिक संबंध को अंतर्जातीय विवाह कहते हैं। उदाहरण के लिए, जब ब्राह्मण जाति की एक स्त्री बुनकर जाति के एक पुरूष से विवाह करती है तो इसे अंतर्जातीय विवाह कहते हैं। प्रथा के अनुसार अंतर्जातीय विवाह को स्वीकृति नहीं है, परंतु अब शहरी इलाकों में इस प्रथा का पूरी तरह से पालन नहीं किया जाता।

विवाह के अन्य नियम :
1. अनुलोम विवाह - अनुलोम उस विवाह को कहते है, जिसमें उच्च कुल का पुरूष निम्न कुल की स्त्री से विवाह करता है ।
2। प्रतिलोम विवाह - प्रतिलोम उस विवाह को कहते हैं, जिसमें उच्च कुल की स्त्री निम्न कुल के पुरूष से विवाह करती है। विशेष विवाह अध्िनियम 1954, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, हिन्दू विवाह कानून (संशोञ्न) अधिनियम 1976 इत्यादि के कारण अब अंतर्जातीय विवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त हो गई है। फलस्वरूप प्रतिलोम नियम कमजोर हो गया है।

हिन्दू विवाह के प्रकार

हिन्दू धर्म ग्रंथों में विवाह के आठ प्रकार का वर्णन है जो निम्नलिखित हैं :

1। ब्राह्म विवाह : हिन्दुओं में यह आदर्श, सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित विवाह का रूप माना जाता है। इस विवाह के अंतर्गत कन्या का पिता अपनी कन्या के लिए विद्वता, सामर्थ्य एवं चरित्र की दृष्टि से सबसे सुयोग्य वर को विवाह के लिए आमंत्रित करता है। और उसके साथ पुत्री का कन्यादान करता है। इसे आजकल सामाजिक विवाह या कन्यादान विवाह भी कहा जाता है।

2। दैव विवाह : इस विवाह के अंतर्गत कन्या का पिता अपनी सुपुत्री को यज्ञ कराने वाले पुरोहित को देता था। यह प्राचीन काल में एक आदर्श विवाह माना जाता था। आजकल यह अप्रासंगिक हो गया है।

3। आर्ष विवाह : यह प्राचीन काल में सन्यासियों तथा ऋषियों में गृहस्थ बनने की इच्छा जागने पर विवाह की स्वीकृत पध्दति थी। ऋषि अपनी पसन्द की कन्या के पिता को गाय और बैल का एक जोड़ा भेंट करता था। यदि कन्या के पिता को यह रिश्ता मंजूर होता था तो वह यह भेंट स्वीकार कर लेता था और विवाह हो जाता था परंतु रिश्ता मंजूर नहीं होने पर यह भेंट सादर लौटा दी जाती थी।

4। प्रजापत्य विवाह : यह ब्राह्म विवाह का एक कम विस्तृत, संशोञ्ति रूप था। दोनों में मूल अंतर सपिण्ड बहिर्विवाह के नियम तक सीमित था। ब्राह्म विवाह का आदर्श पिता की तरफ से सात एवं माता की तरफ से पांच पीढ़ियों तक जुड़े लोगों से विवाह संबंध नहीं रखने का रहा है। जबकि प्रजापत्य विवाह पिता की तरफ से पांच एवं माता की तरफ से तीन पीढ़ियों के सपिण्डों में ही विवाह निषेध की बात करता है।

5। आसुर विवाह : यह विवाह का वह रूप है जिसमें ब्राह्म विवाह या कन्यादान के आदर्श के विपरीत कन्यामूल्य एवं अदला-बदली की इजाजत दी गई है। ब्राह्म विवाह में कन्यामूल्य लेना कन्या के पिता के लिए निषिध्द है। ब्राह्म विवाह में कन्या के भाई और वर की बहन का विवाह (अदला-बदली) भी निषिध्द होता है।

6। गंधर्व विवाह : यह आधुनिक प्रेम विवाह का पारंपरिक रूप था। इस विवाह की कुछ विशेष परिस्थितियों एवं विशेष वर्गों में स्वीकृति थी परन्तु परंपरा में इसे आदर्श विवाह नहीं माना जाता था।

7। राक्षस विवाह : यह विवाह आदिवासियों में लोकप्रिय हरण विवाह को हिन्दू विवाह में दी गई स्वीकृति है। प्राचीन काल में राजाओं और कबीलों ने युध्द में हारे राजा तथा सरदारों में मैत्री संबंध बनाने के उद्देश्य से उनकी पुत्रियों से विवाह करने की प्रथा चलायी थी। इस विवाह में स्त्री को जीत के प्रतीक के रूप में पत्नी बनाया जाता था। यह स्वीकृत था परंतु आदर्श नहीं माना जाता था।

8। पैशाच विवाह : यह विवाह का निकृष्टतम रूप माना गया है। यह ञेखे या जबरदस्ती से शीलहरण की गई लड़की के अधिकारों की रक्षा के लिए अंतिम विकल्प के रूप में स्वीकारा गया विवाह रूप माना गया है। इस विवाह से उत्पन्न संतान को वैध संतान के सारे अधिकार प्राप्त होते हैं।

संत शिरोमणि गुरु रविदास

संत रविदास की गणना केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के महान संतों में की जाती है। जिन्हें संत शिरोमणि गुरु रविदास से नवाजा गया है। संत रविदास की वाणी के अनुवाद संसार की विभिन्न भाषाओं में पाए जाते हैं, जिसका मूल कारण यह है कि संत रविदास उस समाज से सम्बद्ध थे, जो उस समय बौद्धिकता और ज्ञान के नाम से पूर्णतः अछूता था।

समय जहाँ विविध प्रकार की समस्याओं को लेकर आता है वहीं समाधान भी अपने आगोश में छिपाए रहता है। परंतु महान व्यक्तित्व समय की परिधि को लाँघकर अपने बाद के हजारों वर्षों बाद तक प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं। वे ऐसे कार्य की शुरुआत करते हैं जिनका मूल्य समय के क्रूर प्रहारों से कम नहीं हो सकता। ऐसे संत रविदासजी की जयंती, जो पूरे विश्व में मनाई जाती है।



आज दिवस लेऊँ बलिहारा,
मेरे घर आया प्रभु का प्यारा।

आँगन बंगला भवन भयो पावन,
प्रभुजन बैठे हरिजस गावन।

करूँ दंडवत चरण पखारूँ,
तन मन धन उन परि बारूँ।

कथा कहैं अरु अर्थ विचारैं,
आप तरैं औरन को तारैं।

कहिं रैदास मिलैं निज दास,
जनम जनम कै काँटे पांस।


ऐसे पावन और मानवता के उद्धारक सतगुरु रविदास का संदेश निःसंदेह दुनिया के लिए बहुत कल्याणकारी तथा उपयोगी है।

भारतीय रहस्यदर्शी मेहर बाबा

सूफी, वेदांत और रहस्यवादी दर्शन से प्रभावित मेहर बाबा एक रहस्यवादी सिद्ध पुरुष थे। कई वर्षों तक वे मौन साधना में रहे। मेहर बाबा के भक्त उन्हें परमेश्वर का अवतर मानते हैं।

25 फरवरी 1894 में मेहर बाबा का जन्म पूना में पारसी परिवार में हुआ। 31 जनवरी 1969 को मेहराबाद में उन्होंने देह छोड़ दी। उनका मूल नाम मेरवान एस। ईरानी था। वह एस. मुंदेगर ईरानी के दूसरे नंबर के पुत्र थे।

बाबा एक अच्छे कवि और वक्त थे तथा उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था। 19 वर्ष की आयु में उनकी मुलाकात रहस्यदर्शी महिला संत हजरत बाबाजान से हुई और उनका जीवन बदल गया। इसके बाद उन्होंने नागपुर के हजरत ताजुद्दीन बाबा, केदगाँव के नारायण महाराज, शिर्डी के साँई बाबा और साकोरी के उपासनी महाराज अर्थात पाँच महत्वपूर्ण हस्तियों को अपना गुरु माना।

मेहर मंदिर : उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में बाबा के भक्त परमेश्वरी दयाल पुकर ने 1964 ई। में मेहर मंदिर का निर्माण करवाया था। 18 नवम्बर 1970 ई. को मंदिर में अवतार मेहर बाबा की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यहाँ पर प्रत्येक वर्ष 18 और 19 नवम्बर को मेहर प्रेम मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा भी मेहर बाबा के कई मंदिर है।

मेहराबाद आश्रम : हालाँकि मूलत: उनका विशालकाय आश्रम महाराष्ट्र के अहमदनगर के पास मेहराबाद में हैं जो मेहर बाबा के भक्तों की गतिविधियों का केंद्र माना जाता है। इसके पहले मुंबई में आश्रम था।

गजानन महाराज

समर्थ श्री गजानन महाराज का प्रगटोत्सव 5 फरवरी को मनाया जाता है। पृथ्वी पर समस्त जग का कल्याण करने के लिए समय-समय पर संतों के अवतार होते हैं और वे परोपकार में ही अपनी देह खपाते रहते हैं। ऐसे ही एक संत है- श्री गजानन महाराज शेगाँव वाले। उनका समाधि मंदिर शेगाँव में ही है।

गजानन महाराज दिगंबर वृत्ति के सिद्ध कोटि के साधु थे। जो भी मिले खा लेना, कहीं भी रह लेना, कहीं भी भ्रमण करना और मुख से हमेशा परमेश्वर का भजन करते रहना, ऐसी उनकी दिनचर्या थी।

भक्तों के संकट दूर करके परमेश्वर दर्शन करवाने के सैकड़ों उदाहरण उनके चरित्र में हैं। शेगाँव स्थित गजानन महाराज के मंदिर में हमेशा भक्‍तों की भीड़ लगी रहती है। शेगाँव का नाम महाराष्‍ट्र के प्रमुख तीर्थस्‍थानों में शामिल है।


महाराष्ट्र में बुलढाना जिले में सेंट्रल रेलवे के मुंबई-नागपुर मार्ग पर शेगाँव स्थित है। श्री गजानन का मंदिर बीचों-बीच स्थित है जिसके महाद्वार की खिड़की रात भर खुली रहती है। उनका समाधि मंदिर गुफा में स्थित है। मंदिर परिसर में वर्ष भर भजन व प्रवचन चलते रहते हैं। रोजाना सुबह होने वाली पूजा-अर्चना विधिवत चलती है। जिसमें काकड़ आरती और शयन आरती भी‍ शामिल हैं।

श्री गजानन महाराज का प्रकट दिवस माघ वद्यानवमी (फरवरी माह) में तथा इनकी पुण्यतिथि (ऋषि पंचमी के दिन) पर शेगाँव में प्रमुख उत्सव मनाया जाता है, मंदिर के चारों ओर रोशनी की जाती है। हाथी, घोड़ा, रथ, पालकी, दिंडी आदि के साथ जुलूस निकाला जाता है।

शहरी चमक-दमक से दूर शेगाँव में सादगी और महाराष्‍ट्र के ग्रामीण जीवन की सहजता की झलक मिलती है। जो लोग यहाँ आध्‍यात्मिक शांति की तलाश में आते हैं, उनके लिए यहाँ पर बहुत कुछ हैं। मंदिर परिसर में ही एक धार्मिक वाचनालय है। जो भक्‍तों के लिए खुला रहता है। पास में ही 'गजानन वाटिका' नामक सुंदर वाटिका है और एक प्राणी संग्रहालय भी हैं। बाहर से आने वाले भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर परिसर में ही भव्य 'भक्त निवास' बना हुआ है, जहाँ कम दरों पर कमरे मिलते हैं। साथ ही महाप्रसादी का वितरण भी किया जाता है।

वृन्दावन की रासलीला

भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं की मनोहारी प्रस्तुति अपने देश की प्राचीन एवं गौरवशाली परंपरा रही है, जिसकी प्रमुख रंग-स्थली वृन्दावन है। श्रावण के महीने में तो यहाँ रासलीला की निराली ही धूम रहती है। पुरानों में कहा गया है कि माया के आवरण से रहित जीव का ब्रहम के साथ विलास ही रास है। इसमें लौकिक काम नहीं है।

अतः यह साधारण स्त्री- पुरुष का नहीं, अपितु जीव और इश्वर का मिलन है।
रासलीला के मंचन की शुरुआत महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की प्रेरणा से आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व भक्तिकाल में हुई थी। भक्तिकाल में जब मुसलमानों का शासन था तब महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने चौरासी कोस में स्थित समूचे ब्रज मंडल का भ्रमण कर उन-उन स्थानों को खोजा था, जहाँ-जहाँ भगवान् श्रीकृष्ण ने लीला की थी। श्रीमद्भागवत के प्रसंगों के आधार पर बरसाना के निकट करहला गाँव में रासलीला के दौरान भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप को मोर पंखों का जो मुकुट धारण कराया था, वह आज भी करहला में सुरक्षित रखा हुआ है।

श्री नारायण भट्ट को रास मंडलों का संस्थापक माना जाता है। नारायण भट्ट जी ने संवत 1604 में बरसाना के भ्रमेशवर गिरी में से राधारानी का प्राकटय किया था। भट्ट जी नए कुल 28 रास मंडलों की स्थापना की थी। उसी समय वृन्दावन में श्रीहित हरिवंश जी, स्वामी श्री हरिदास जी एवं श्री हरिराम व्यास ने भी पांच रास्मंदलों की स्थापना की। नारायण भट्ट ने बरसाना में बूढी लीलाओं के मंचन की भी शुरुआत की। यह लीलाएं आज भी संत समाज के सहयोग से चिकसोंली के फत्ते स्वामी के वंशज बालकों के द्वारा बाबा चतुर्भुज दास पुजारी के निर्देशन में की जाती हैं। इस समय यह उत्तर प्रदेश की अत्यंत समृद्ध लोक नाट्यकला है। नृत्य, संगीत, नाटक और कविता इसके प्रमुख अंग है। समस्त नौ रस इसमें निहित है।

रासलीला के प्रसंगों को दिन ब दिन विकसित करने में संतों, कवियों और भक्तों आदि का विशेष योगदान रहा है। जयदेव, सूरदास, चतुर्भुज दास, स्वामी हरिदास, कुम्हन दास, नंदास, हरिराम व्यास एवं परमानंद आदि ने रासलीला को मजबूत धरातल प्रदान किया।

इस समय ब्रज में दो प्रकार की रास मंडलियाँ प्रमुख हैं - बायें मुकुटवाली जो कि निम्बार्की मंडली कहलाती है एवं दायें मुकुटवाली, जो कि वल्लभकुली मंडली कहलाती हैं। रासलीला के दो मुख्य भाग है 'रास' और 'लीला'। रास वह हैं जिसमें मंगलाचरण, आरती, गायन, वादन व नृत्य आदि होता है, जिसे 'नृत्य रास' या नृत्य रास' कहा जाता है। लीला में भगवान् श्रीकृष्ण की सुमधुर रसमयी, चंचल व गंभीर निकुंज लीलाओं एवं पौराणिक कथाओं की लीलाओं व भक्त चरित्रों आदि का अभिनयात्मक प्रदर्शक गात्मक और पात्मक शैली में होता है।

रासलीला में 'राधा' व 'कृष्ण' के स्वरूपों को साक्षात् भगवान् मानकर पूजा जाता है। दर्शक उनकी आरती उतारते हैं।
रासलीला की एक प्रमुख लीला महारास। इसके जनक स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण थे। उन्होंने इस लीला को शरद पूर्णिमा की रात्री में वृन्दावन के यमुना तट स्थित वंशीवट पर सोलह हजार एक सुन आठ गोपिकाओं के साथ किया था। सर्वप्रथम उन्होनें अपनी लोक विमोहिनी बंसी बजा कर यमुना के किनारे गोपिकाओं को एकत्रित किया, फिर योग माया के बल पर प्रत्येक गोपी के साथ एक- एक कृष्ण प्रकट किये। तत्पश्चात महारास लीला की। इस लीला में गोपियाँ अनंत थयें, लेकिन उनमएं से प्रत्येक को यह अनुभव हो रहा था कि श्रीकृष्ण के वाल उन्हीं के साथ हैं। भगवान् शिव भी गोपी का रूप धारण कर इस अद्वित्य लीलो को देखने के लिए आये थे। तभी से भगवान् शिव को गोपेश्वर महादेव भी कहा जाता है। अन्य देवता भी इस लीलो को देखने के लिए अपने विमानों में बैठकर आकाश पर छाए रहे थे। यह लीला आज भी प्राय: शरद पूर्णिमा पर ही की जाती है। चूंकि इस लीला मएं अनेक श्रीक्रिश्नों की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए इसमें अनेक रासमं डालियों के ठाकुर ( भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरुप) भाग लेते हैं। यह लीला रात्री गए प्रारंभ होकर प्रातः लगभग दो-तीन बजे तक चलती है।

महारास लीला के अतिरिक्त ' अष्ट्याम लीला' भी रासलीला की एक महत्वपूर्ण लीला मानी जाती है। तीन घंटे का एक 'याम' होने से दिन और रात के चौबीस घंटों में कुल आठ याम होते हैं, उन्हें ही अष्ट्याम कहा गया है। इन आठों यामों में ठाकुर जी (भगवान् श्रीकृष्ण) ने ब्रज में राधारानी के साथ निकुंज बिहारी के रूप में एवं नन्द बाबा के यहाँ बलराम जी के साथ जो-जो लीलाएं की थीं, उनका अभिनयात्मक प्रदर्शन किया जाता है।

रामायण - उत्तरकाण्ड - राजा इल की कथा

जब लक्ष्मण ने अश्‍वमेघ यज्ञ के विशेष आग्रह किया तो श्री रामचन्द्र जी अत्यन्त प्रसन्न हुये और बोले, "हे सौम्य! इस विषय में मैं तुम्हें राजा इल की कथा सुनाता हूँ। प्रजापति कर्दम के पुत्र इल वाह्लिक देश के राजा थे। एक समय शिकार खेलते हुये वे उस स्थान पर जा पहुँचे जहाँ स्वामी कार्तिकेय का जन्म हुआ था और भगवान शंकर अपने सेवकों के साथ पार्वती का मनोरंजन करते थे। उस प्रदेश में शिव की माया से सभी प्राणी स्त्री वर्ग के हो गये थे। नर पशु-पक्षी या मनुष्य कोई भी दिखाई नहीं देता था। राजा इल ने भी सैनिकों सहित स्वयं को वहाँ स्त्री रूप में परिणित होते देखा। इससे भयभीत होकर वे शंकर जी के शरणागत हुये और उनसे पुरुषत्व प्रदान करने की प्रार्थना करने लगे।

"जब भगवान शंकर ने उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की तो उन्होंने व्याकुल होकर, गिड़गिड़ा कर उमा से प्रार्थना की। इससे प्रसन्न होकर उमा ने कहा कि मैं भगवान शंकर की केवल अर्द्धांगिनी हूँ। इलिये मैं तुम्हें तुम्हारे जीवन के केवल आधे काल के लिये पुरुष बना सकती हूँ। बोलो, तुम अपनी आयु के पूर्वार्द्ध के लिये पुरुषत्व चाहते हो या उत्तरार्द्ध के लिये? इल कुछ क्षण सोचकर बोले कि देवि! ऐसा कर दीजिये कि मैं एक मास पुरुष और एक मास स्त्री रहा करूँ। पार्वती जी ने 'तथास्तु' कहकर उनकी इच्छा पूरी कर दी। इस वरदान के फलस्वरूप इल प्रथम मास में त्रिभुवन सुन्दरी नारी बन गये तथा इल से इला कहलाने लगे। इल उक्‍त क्षेत्र से निकलकर उस सरोवर पर पहुँचे जहाँ सोमपुत्र बुध तपस्या कर रहे थे। इला पर द‍ृष्टि पड़ते ही बुध उस पर आसक्‍त हो गये एवं उसके साथ रमण करने लगे। उन्होंने राजा के साथ आये स्त्रीरूपी सैनिकों का वृतान्त जानकर उन्हें किंपुरुषी (किन्नरी) होकर पर्वत के किनारे रहने का निर्देश दिया। उन्होंने आग्रह करके इल को एक वर्ष के लिये वहीं रोक लिया।

"एक मास पश्‍चात् इला ने इल के रूप में पुरुषत्व प्राप्त किया। अगले मास वे फिर नारी बन गये। इसी प्रकार यह क्रम चलता रहा और नवें मास में इला ने पुरुरवा को जन्म दिया। अन्त में इल को इस रूप परिवर्तन से मुक्‍ति दिलाने के लिये बुध ने महात्माओं से विचार विमर्श करके शिव जी को विशेष प्रिय लगने वाला अश्‍वमेघ यज्ञ कराया। इससे प्रसन्न होकर शिव जी ने राजा इल को स्थाई रूप से पौरुष प्रदान किया।" श्री रामचन्द्र जी बोले, "हे महाबाहु! वास्तव में अश्‍वमेघ यज्ञ अमित प्रभाव वाला है।"

'सेक्स किया करो मियां, दिल सेहतमंद रहता है'

तो सेक्स करने के लिए पुरुषों को किसी वजह की जरूरत कम ही पड़ती है। लेकिन अगर कभी जरूरत पड़े भी, तो एक बड़ी वजह है दिल की सेहत। कहा जा रहा है कि लव मेकिंग पुरुषों के दिल के लिए बहुत अच्छा होता है। एक रिसर्च बताता है कि जो पुरुष हफ्ते में कम से कम दो बार सेक्स करते हैं, वे दिल की बीमारी के खतरे से लगभग बाहर होते हैं।

यह रिसर्च कहता है कि जो पुरुष नियमित तौर पर सेक्स करते हैं, उनके दिल की जानलेवा बीमारियों से बचे रहने के चांस 45 फीसदी ज्यादा होते हैं। यह रिसर्च 1000 पुरुषों पर की गई स्टडी के बाद सामने आई है। इसके मुताबिक ऐसा लगता है कि सेक्स पुरुषों के दिल के लिए सुरक्षात्मक प्रभाव पैदा करता है। हालांकि इसका महिलाओं पर क्या असर होता है, इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इस अध्ययन के आधार पर अमेरिकी रिसर्चर्स ने डॉक्टरों से कहा है कि वे पुरुषों के दिल के खतरों की जांच करते वक्त उनकी सेक्शुअल लाइफ पर भी ध्यान दें।

रिसर्चर्स ने कहा है कि लव मेकिंग के ये प्रभाव शारीरिक और भावुक दोनों वजहों से हो सकते हैं। अमेरिकन जर्नल ऑफ कॉर्डियॉलजी को इन रिसर्चर्स ने बताया कि जिन पुरुषों में सेक्स की इच्छा लगातार बनी रहती है और जो नियमित तौर पर सेक्स करते हैं, वे ज्यादा सेहतमंद होते हैं। लेकिन सेक्स शारीरिक क्रिया भी है और इस क्रिया का यही हिस्सा दिल की सेहत को संभाल कर रखता है।

इतना ही नहीं, वैज्ञानिक इस नतीजे पर भी पहुंचे हैं कि जो पुरुष सेक्स में नियमित होते हैं, वे अंतरंग संबंधों में ज्यादा सपोर्टिव होते हैं।

मैसाचुसेट्स के न्यू इंग्लैंड रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने 40 से 70 साल के बीच के पुरुषों की सेक्शुअल ऐक्टिविटी के अध्ययन में 16 साल बिताए हैं। इसके लिए हर वॉलन्टियर पुरुष से अलग-अलग समय पर उनकी सेक्शुअल ऐक्टिविटी से जुड़े सवाल पूछे गए। इसके बाद उनके दिल की जांच की गई। इसमें उम्र, वजन, ब्लड प्रेशर और कॉलेस्ट्रॉल लेवल जैसी बातों का भी ध्यान रखा गया।

हालांकि सेक्स को बहुत पहले से शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए अच्छा बताया जाता रहा है, लेकिन अब तक इसके वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं थे।

स्त्री-पुरुष रोगों की दवाएँ

आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी में हम अभी तक विभिन्न रोगों की दवाएँ बता चुके हैं। इसी कड़ी के अंतर्गत स्त्री संबंधी तथा पुरुष संबंधी रोगों में उपयोगी दवाओं की जानकारी दे रहे हैं।

स्त्री रोगों की दवाएँ
बंध्यत्व : फल घृत, वंग भस्म, शुद्ध शिलाजीत, अशोकारिष्ट।

प्रदर (लाल, पीला, सफेद, पानी जाना) : अशोकारिष्ट, फेमीकेयर सीरप, प्रदरहर वटी, पत्रांगासव, लोध्रासव, प्रदरांतक लौह, पुष्पानुग चूर्ण।

रक्त प्रदर : रक्त स्तम्भक, कामदुधा, रस मौ।यु, कहरवा पिष्टी, बोलबद्ध रस, प्रवाल पिष्टी, अशोकारिष्ट, लोध्रासव, पुष्पानुग चूर्ण, दुग्ध पाषण भस्म।

कष्टार्तव (मासिक धर्म के समय दर्द) पेडू का दर्द : ऋतुरूजाहर, रजः प्रवर्तनी वटी, अशोकारिष्ट, लोध्रासव, कुमारी आसव, पुष्पावरोधग्न चूर्ण।

गर्भवती स्त्रियों के लिए उपयोगी : फल घृत, बादाम तेल, मधुमालिनी वसंत, दशमूराशिष्ट पाल रस, लवंगादि चूर्ण।

प्रसव के पश्चात उपयोगी : दशमूलारिष्ट, सुपारी पाक, जीरकाद्यरिष्ट दशमूल काढ़ा।

पुरुष रोगों की दवाएँ
शुक्रदोष, धातुक्षीणता, नपुंसकता : सिद्ध मकरध्वज, पुष्पधन्वा रस, त्रिवंग भस्म, बंग भस्म, स्वर्णराज बंगेश्वर, शतावरी घृत, अश्वगंधारिष्ट, शतावरी चूर्ण, अश्वगंधादि चूर्ण।

स्वप्न दोष (सोते में धातु जाना आदि) : चन्द्रप्रभा वटी, स्वप्न, प्रमेहरी, त्रिबंग भस्म, शुद्ध शिलाजीत, अश्वगंधारिष्ट। साथ में पेट साफ रखने हेतु स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण लेना चाहिए।

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ना (बार-बार पेशाब जाना व तकलीफ से थोड़ा-थोड़ा होना) : चन्द्रप्रभा वटी, गोक्षुरादि गूगल, शुद्ध शिलाजीत।

धातु पौष्टिक व काम शक्ति वर्द्धक : कामिनी विद्रावणरस, सिद्ध मकरध्वज, शक्रवल्लभ रस, पुष्पधन्वा रस, बंगेश्वर रस, मूसली पाक, दशमूलराष्टि, गोक्षुरादि चूर्ण, अश्वगंधादि चूर्ण।

यहाँ भी मिल सकती है नौकरी

केस 1- गायिका आकांक्षा जाचक ने अपनी ऑरकुट प्रोफाइल पर अपने रिकॉर्ड, गाने के उद्देश्य, उपलब्धियों सहित कुछ गीत भी डाउनलोड कर रखे हैं। इतना ही नहीं, किसी खास अवसर पर वे अपनी फ्रेंड लिस्ट में शामिल लोगों को स्क्रेप में भी अपने द्वारा गाया गीत ही भेजती हैं।

केस 2- सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनुराग ने अपनी ऑरकुट प्रोफाइल पर सभी प्रोजेक्ट्स की डिटेल दे रखी है। पुरानी कंपनी में जहाँ वे काम कर चुके हैं, उसके साथ ही वर्तमान कंपनी की डिटेल सहित खुद के पद, जॉब प्रोफाइल आदि के बारे में भी दर्शा रखा है।

केस 3- मीडिया प्रोफेशनल अभिनव ने भी अपनी ऑरकुट प्रोफाइल में अपने कार्यक्षेत्र और बीट्‍स के बारे में निर्धारित तरीके से बताया है। इसी के साथ उन्होंने अपनी एक्सक्लूसिव स्टोरी फोटो के साथ यहाँ लोड कर रखी है।

एचआर हेड कहते हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स से अच्छे उम्मीदवारों की हाइरिंग करना काफी पुराना फंडा है। यह बात अलग है कि यह लाइमलाइट में अब आया है। वे बताते हैं हेड हंटर्स फेसबुक, ऑरकुट या लिंक्डइन जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स अचानक से विजिट करते हैं।

यहाँ वे प्रोफाइल में दी गई जानकारियों के जरिए जॉब सीकर्स (जॉब लेने वाले) को तलाशते हैं। उनकी प्रोफाइल को आधार बनाकर वे कम्युनिटी के ऑनर से कॉन्टेक्ट करते हैं और निर्धारित व्यक्ति के बारे में जानकारियाँ लेते हैं। उन्होंने कहा, इसलिए कोई फ्रेशर हो या अनुभवी व्यक्ति अपनी प्रोफाइल में जानकारियों को अच्छे से सजाकर जॉब प्रोफाइडर को आकर्षित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए मीडिया संबंधित कोर्स कर चुके फ्रेशर हाल ही में स्वयं द्वारा पूरा किया गया प्रोजेक्ट अपलोड कर सकते हैं। वे अपनी प्रोफाइल पर लिंक भी क्रिएट कर सकते हैं।

एक अन्य एचआर मैनेजर कहती हैं, सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए किसी व्यक्ति की स्कील्स के बारे में पता चलता है और कंपनी की कॉस्ट में कट भी हो जाता है। वे कहती हैं हाँ लेकिन यह ध्यान रखने योग्य बात है कि ऑरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट से शॉर्टलिस्ट होने के बाद अपने रिज्यूम को अच्छे-से तैयार करें।

जब भी इंटरव्यू के लिए जाएँ, अपने सीवी में किसी भी झूठी बात का समावेश न करें, क्योंकि आपके सीवी को आपकी ऑरकुट प्रोफाइल से वेरीफाई भी किया जा सकता है। इसके अलावा स्क्रेपबुक को चेक करके ब्रेकग्राउंड चेकिंग भी की जा सकती है।इंदौर। इन तीन केसेस के जरिए हम बताना चाह रहे हैं कि सोशल नेटवर्किंग साइट केवल चैटिंग, दोस्तों से कनेक्ट रहने और एंटरटेनमेंट के लिए ही नहीं है, बल्कि इसके जरिए अब कंपनियाँ व जॉब प्रोफाइडर अपने-अपने श्रेत्र के बेहतर कर्मचारियों को भी ढूँढ़ रहे हैं यानी अब क्लासीफाइड्स को भूल जाइए...।

अब अदद उम्मीदवार ढूँढने वाले लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सही उम्मीदवार का चयन करने लगे हैं। ऐसे में हो सकता है आपकी ऑरकुट या लिंक्डइन प्रोफाइल इनका अगला डेस्टिनेशन हो।

05 फ़रवरी 2010

जैन धर्मग्रंथ का संक्षिप्त परिचय

जैन धर्म ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं है। भगवान महावीर ने सिर्फ प्रवचन ही दिए। उन्होंने कोई ग्रंथ नहीं रचा, लेकिन बाद में उनके गणधरों ने, प्रमुख शिष्यों ने उनके अमृत वचन और प्रवचनों का संग्रह कर लिया। यह संग्रह मूलत: प्राकृत भाषा में है, विशेष रूप से मागधी में।

भगवान महावीर से पूर्व के जैन धार्मिक साहित्य को महावीर के शिष्य गौतम ने संकलित किया था जिसे 'पूर्व' माना जाता है। इस तरह चौदह पूर्वों का उल्लेख मिलता है। जैन धर्म के सबसे पुराने आगम ग्रंथ 46 माने जाते हैं। इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है। समस्त आगम ग्रंथो को चार भागो मैं बाँटा गया है:- 1। प्रथमानुयोग 2. करनानुयोग 3. चरर्नानुयोग 4. द्रव्यानुयोग।


12 अंगग्रंथ :- 1। आचार, 2. सूत्रकृत, 3. स्थान, 4. समवाय 5. भगवती, 6. ज्ञाता धर्मकथा, 7. उपासकदशा, 8. अन्तकृतदशा, 9. अनुत्तर उपपातिकदशा, 10. प्रश्न-व्याकरण, 11. विपाक और 12. दृष्टिवाद। इनमें 11 अंग तो मिलते हैं, बारहवाँ दृष्टिवाद अंग नहीं मिलता।
12 उपांगग्रंथ :- 1। औपपातिक, 2. राजप्रश्नीय, 3. जीवाभिगम, 4. प्रज्ञापना, 5. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति 6. चंद्र प्रज्ञप्ति, 7. सूर्य प्रज्ञप्ति, 8. निरयावली या कल्पिक, 9. कल्पावतसिका, 10. पुष्पिका, 11. पुष्पचूड़ा और 12. वृष्णिदशा।

10 प्रकीर्णग्रंथ :- 1। चतुःशरण, 2. संस्तार, 3. आतुर प्रत्याख्यान, 4. भक्तपरिज्ञा, 5. तण्डुल वैतालिक, 6. चंदाविथ्यय, 7. देवेन्द्रस्तव, 8. गणितविद्या, 9. महाप्रत्याख्यान 10. वीरस्तव।
6 छेदग्रंथ :- 1। निशीथ, 2. महानिशीथ, 3. व्यवहार, 4. दशशतस्कंध, 5. बृहत्कल्प और 6. पञ्चकल्प।

4 मूलसूत्र :- 1। उत्तराध्ययन, 2. आवश्यक, 3. दशवैकालिक और 4. पिण्डनिर्य्युक्ति।

2 स्वतंत्र ग्रंथ :- 1। अनुयोग द्वार 2. नन्दी द्वार।

जैन पुराणों का परिचय : जैन परम्परा में 63 शलाका-महापुरुष माने गए हैं। पुराणों में इनकी कथाएँ तथा धर्म का वर्णन आदि है। प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा अन्य देशी भाषाओं में अनेक पुराणों की रचना हुई है। दोनों सम्प्रदायों का पुराण-साहित्य विपुल परिमाण में उपलब्ध है। इनमें भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है।

मुख्य पुराण हैं:- जिनसेन का 'आदिपुराण' और जिनसेन (द्वि।) का 'अरिष्टनेमि' (हरिवंश) पुराण, रविषेण का 'पद्मपुराण' और गुणभद्र का 'उत्तरपुराण'। प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में भी ये पुराण उपलब्ध हैं। भारत की संस्कृति, परम्परा, दार्शनिक विचार, भाषा, शैली आदि की दृष्टि से ये पुराण बहुत महत्वपूर्ण हैं।

अन्य ग्रंथ:- षट्खण्डागम, धवला टीका, महाधवला टीका, कसायपाहुड, जयधवला टीका, समयसार, योगसार प्रवचनसार, पञ्चास्तिकायसार, बारसाणुवेक्खा, आप्तमीमांसा, अष्टशती टीका, अष्टसहस्री टीका, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक टीका, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, भगवती आराधना, मूलाचार, गोम्मटसार, द्रव्यसङ्ग्रह, अकलङ्कग्रन्थत्रयी, लघीयस्त्रयी, न्यायकुमुदचन्द्र टीका, प्रमाणसङ्ग्रह, न्यायविनिश्चयविवरण, सिद्धिविनिश्चयविवरण, परीक्षामुख, प्रमेयकमलमार्तण्ड टीका, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय भद्रबाहु संहिता आदि।

इन्हें भी देखें :-

जयवीयराय सूत्र
स्तवन
चैत्य-वंदन की शुरुआत
आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज
क्षमावाणी का महापर्व...
आनंद के आंतरिक स्त्रोतों की खोज यात्रा
जैन सिद्ध क्षेत्र
आराधना स्तोत्र

रामायण – उत्तरकाण्ड - अश्‍वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान

सब भाइयों के आग्रह को मानकर रामचन्द्र जी ने वशिष्ठ, वामदेव, जाबालि, काश्यप आदि ऋषियों को बुलाकर परामर्श किया। उनकी स्वीकृति मिल जाने पर वानरराज सुग्रीव को सन्देश भेजा गया कि वे विशाल वानर सेना के साथ यज्ञोत्सव में भाग लेने के लिये आवें। फिर विभीषण सहित अन्य राज-महाराजाओं को भी इसी प्रकार के सन्देश और निमन्त्रण भेजे गये। संसार भर के ऋषि-महर्षियों को भी सपरिवार आमन्त्रित किया गया। कुशल कलाकारों द्वारा नैमिषारण्य में गोमती तट पर विशाल एवं कलापूर्ण यज्ञ मण्डप बनाने की व्यवस्था की गई। विशाल हवन सामग्री के साथ आगन्तुकों के भोजन, निवास आदि के लिये बहुत बड़े पैमाने पर प्रबन्ध किया गया। नैमिषारण्य में दूर-दूर तक बड़े-बड़े बाजार लगवाये गये। सीता की सुवर्णमय प्रतिमा बनवाई गई। लक्ष्मण को एक विशाल सेना और शुभ लक्षणों से सम्पन्न कृष्ण वर्ण अश्‍व के साथ विश्‍व भ्रमण के लिये भेजा गया।

देश-देश के राजाओं ने श्रीराम को अद्‍भुत उपहार भेंट करके अपने पूर्ण सहयोग का आश्‍वासन दिया। आगत याचकों को मनचाही वस्तुएँ संकेतमात्र से ही दी जा रही थीं। उस यज्ञ को देखकर ऋषि-मुनियों का कहना था कि ऐसा यज्ञ पहले कभी नहीं हुआ। यह यज्ञ एक वर्ष से भी अधिक समय तक चलता रहा। इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिये महर्षि वाल्मीकि भी अपने शिष्यों सहित पधारे। जब उनके निवास की समुचित व्यवस्था हो गई तो उन्होंने अपनरे दो शिष्यों लव और कुश को आज्ञा दी कि वे दोनों भाई नगर में सर्वत्र घूमकर रामायण काव्य का गान करें। उनसे यह भी कहा कि जब तुमसे कोई पूछे कि तुम किसके पुत्र हो तो तुम केवल इतना कहना कि हम ऋषि वाल्मीकि के शिष्य हैं। यह आदेश पाकर सीता के दोनों पुत्र रामायण का सस्वर गान करने के लिये चल पड़े।

लव-कुश द्वारा रामायण गान
जब-लव कुश अपने रामायण गान से पुरवासियों एवं आगन्तुकों का मन मोहने लगे तब एक दिन श्रीराम ने उन दोनों बालकों को अपनी राजसभा में बुलाया। उस समय राजसभा में श्रेष्ठ नैयायिक, दर्शन एवं कल्पसूत्र के विद्वान, संगीत तथा छन्द कला मर्मज्ञ, विभिन्न शास्त्रों के ज्ञाता, ब्रह्मवेत्ता आदि मनीषि विद्यमान थे। लव-कुश को देखकर सबको ऐसा प्रतीत होता था मानो दोनों श्रीराम के ही प्रतिरूप हैं। यदि इनके सिर पर जटाजूट और शरीर पर वल्कल न होते तो इनमें और श्रीराम में कोई अन्तर दिखाई न देता। दोनों भाइयों ने अपराह्न तक प्रारम्भिक बीस सर्गों का गान किया और उस दिन का कार्यक्रम समाप्त किया। पाठ समाप्त होने पर श्रीराम ने भरत को आदेश दिया कि दोनों भाइयों को अट्ठारह हजार स्वर्ण मुद्राएँ दी जायें, किन्तु लव-कुश ने उसे लेने से इन्कार कर दिया और कहा कि हम वनवासी हैं, हमें धन की क्या आवश्यकता है। इससे श्रीराम सहित सब श्रोताओं को भारी आश्‍चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, "यह काव्य किसने लिखा है और इसमें कितने श्‍लोक हैं?"

यह सुनकर उन मुनिकुमारों ने बताया, "महर्षि वाल्मीकि ने इस महाकाव्य की रचना की है। इसमें चौबीस हजार श्‍लोक और एक सौ उपाख्यान हैं। इसमें कुल पाँच सर्ग और छः काण्ड हैं। इसके अतिरिक्‍त उत्तरकाण्ड इसका सातवाँ काण्ड है। आपका चरित्र ही इस महाकाव्य का विषय है।" यह सुनकर रघुनाथ जी ने यज्ञ समाप्त होने के पश्‍चात् सम्पूर्ण महाकाव्य सुनने की इच्छा प्रकट की। इस काव्य-कथा को सुनकर उन्हें पता चला कि कुश और लव सीता के ही सुपुत्र हैं।

उपवास : सर्वश्रेष्ठ औषधि

दुनिया के सभी धर्मों में उपवास का महत्व है। खासतौर पर बीमार होने के बाद उपवास को सबसे अच्छा इलाज माना गया है। आयुर्वेद में बीमारी को दूर करने के लिए शरीर के विषैले तत्वों को दूर करने की बात कही जाती है और उपवास करने से इन्हें शरीर से निकाला जा सकता है। इसीलिए 'लंघन्‌म सर्वोत्तम औषधं' यानी उपवास को सर्वश्रेष्ठ औषधि माना जाता है।

संसार के सभी धर्मों में उपवास को ईश्वर के निकट पहुँचने का एक सबसे कारगर उपाय माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के परे यह निर्विवाद सत्य है कि उपवास करने से शरीर स्वस्थ रहता है। संभवतः इसके महत्व को समझते हुए सभी धर्मों के प्रणेताओं ने इसे धार्मिक रीति-रिवाजों से जोड़ दिया है ताकि लोग उपवास के अनुशासन में बँधे रहें।

आयुर्वेद समेत दूसरी सभी चिकित्सा पद्धतियों में उपवास यानी पेट को खाली रखने की प्रथा रही है। हालाँकि हर बीमारी का इलाज भी उपवास नहीं लेकिन यह अधिकांश समस्याओं में कारगर रहता है। दरअसल उपवास का धार्मिक अर्थ न ग्रहण करते हुए इसका चिकित्सकीय रूप समझना चाहिए। पेट को खाली रखने का ही अर्थ उपवास है।

यह आर्थराइटिस, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, हमेशा बनी रहने वाली थकान, कोलाइटिस, स्पास्टिक कोलन, इरिटेबल बॉवेल, लकवे के कई प्रकारों के साथ-साथ न्यूराल्जिया, न्यूरोसिस और कई तरह की मानसिक बीमारियों में फायदेमंद साबित होता है। माना तो यहाँ तक जाता है कि इससे कैंसर की बीमारी तक ठीक हो सकती है क्योंकि उपवास से ट्यूमर के टुकड़े तक हो जाते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि लीवर के कैंसर में उपवास कारगर नहीं होता।

उपवास के अनगिनत फायदे हैं। उपवास जितना लंबा होगा शरीर की ऊर्जा उतनी ही अधिक बढ़ेगी। उपवास करने वाले की श्वासोच्छवास विकार रहित होकर गहरा और बाधा रहित हो जाता है। इससे स्वाद ग्रहण करने वाली ग्रंथियाँ पुनः सक्रिय होकर काम करने लगती हैं। उपवास आपके आत्मविश्वास को इतना बढ़ा सकता है ताकि आप अपने शरीर और जीवन और क्षुधा पर अधिक नियंत्रण हासिल कर सकें।

हमारा शरीर एक स्वनियंत्रित एवं खुद को ठीक करने वाली प्रजाति का हिस्सा है। उपवास के जरिए यह अपने मेटॉबॉलिज्म को सामान्य स्तर पर ले आता हैतथा ऊतकों की प्राणवायु प्रणाली को पुनर्जीवित कर सकता है।

उपवास आपके शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकाल फेंकता है। शरीर में जमा विषैले तत्व श्लेष्मा, थूक, पसीना, उल्टियाँ, कभी-कभी दस्त के रूप में बाहर निकलते हैं। यही वजह है कि जो लोग लंबे उपवास (3 दिन या 7 दिन) करते हैं, उनकी साँसों से दूसरे दिन ही बास आने लगती है।

कई लोगों को उल्टियाँ आने लगती हैं, ये सब विषैले तत्वों के बाहर निकलने के लक्षण हैं। फैट सेल्स, आर्टरी में जमा वसा के थक्के, श्लेष्मा तथा यहाँ तक कि बरसों से जमा रखी हुई चिंताएँ औरभावनाएँ भी बाहर निकल आती हैं परन्तु उपवास का अर्थ भूखे मरना नहीं होता। वस्तुतः उपवास शरीर रूपी मशीन के पाचन तंत्र को आराम देना व उसकी ओवरहालिंग जैसा होता है पर अति सर्वज्ञ वर्जते के अनुसार अतिशय व अवैज्ञानिक तरीके से किए गए उपवास के खराब परिणाम भी सामने आ सकते हैं।

उपवास कैसे करें
उपवास करने का सबसे सुरक्षित तरीका है एक दिन के उपवास से शुरुआत करना। बाद में इसे हफ्ते में एक दिन नियमित रूप से किया जा सकता है। आप शुरुआत में अन्न का त्याग कर सकते हैं तथा इन पदार्थों पर निर्भर रहते हुए दिन निकाल सकते हैं।

* ताजी सब्जियों का रस * फल * पानी * बिना पकी कच्ची सब्जियाँ * ताजे फलों का रस।

इनसे बचें :
पकी हुई सब्जियाँ, अन्न या अन्न के बने दूसरे पदार्थ, रोटियाँ, ब्रेड, बिस्कुट, पास्ता न खाएँ। इसके अलावा चाय, दूध, दही, आइसक्रीम, मक्खन, अंडे, मांस, फास्ट फूड, जंक फूड, तैयार किया हुआ भोजन, आलू की चिप्स, साबुदाने की खिचड़ी, मूँगफली के दाने या फरियाली मिक्चर भी आपके उपवास के मकसद को नष्ट कर सकते हैं।

फायदे
* मानसिक स्पष्टता में वृद्धि होती है तथा मस्तिष्क का धुंधलका छँट जाता है।
* तत्काल एवं सुरक्षित तरीके से वजन घटता है।
* तंत्रिका तंत्र में संतुलन कायम होता है।
* ऊर्जा का स्तर बढ़ने से संवेदी क्षमताओं में वृद्धि होती है।
* शरीर के सभी अवयवों में ऊर्जा का संचार होता है।
* सेल्युलर बायोकेमेस्ट्री में संतुलन कायम होता है।
* त्वचा संवेदनशील, नर्म और रेशमी हो जाती है।
* आपके हाथ-पैरों का संचालन सरलता से होने लगता है।
* पाचन तंत्र ठीक होकर सुचारु रूप से काम करने लगता है।
*आंतों में भोजन से रस सोखने की क्रिया में वृद्धि होती है।

सावधानियाँ
उपवास करने वालों को यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि यदि वे किसी असाध्य बीमारी से पीड़ित हैं या किसी बीमारी के लंबे इलाज को ले रहे हैं तो आपको अपने चिकित्सक की सलाह लिए बिना उपवास नहीं करना चाहिए। डायबिटीज के रोगियों व गर्भवती महिलाओं व स्तनपान करा रही माताओं को भी उपवास नहीं करना चाहिए। उपवास अपनी शारीरिक सामर्थ्य से अधिक नहीं करना चाहिए।

04 फ़रवरी 2010

वाइल्ड सेक्स से बढ़ जाते हैं प्रेग्नंसी के चांस

प्रेग्नंसी के लिए कपल्स क्या-क्या नहीं करते। डॉक्टरों के चक्कर काटने से लेकर वूडू तक सब किया जाता है। लेकिन साइंटिस्ट कहते हैं कि एक आसान तरीका भी है। वाइल्ड सेक्स कीजिए। यानी इतने जोश और जुनून से कि सारी सीमाएं टूट जाएं।

टॉप 10 सेक्स गेम्स
साइंटिस्ट कहते हैं कि लव मेकिंग यानी सेक्स की क्वॉलिटी जितनी अच्छी होगी , महिलाओं के कन्सीव करने के चांस उतने ही ज्यादा होंगे। शेफील्ड यूनिवर्सिटी के सीनियर लेक्चरर ऐलन पासी के मुताबिक ऐसा सेक्स , जिसमें दोनों पार्टनर एक-दूसरे को संतुष्ट करने की पूरी कोशिश करते हैं , प्रेग्नंसी के चांस को बढ़ा देता है। वह कहते हैं कि जो कपल बच्चे के लिए कोशिश कर रहे होते हैं , वे अक्सर सेक्स को एक काम की तरह करते हैं। पासी के मुताबिक ऐसे कपल्स ने बताया है कि उनका सेक्स बहुत मशीनी और रूटीन काम जैसा होता है। यह गलत है।

सेक्स के 10 फायदे
ब्रिटिश फर्टिलिटी सोसायटी के सेक्रटरी पासी कहते हैं कि सेक्स वैसा ही वाइल्ड और थ्रिलिंग होना चाहिए , जैसा आप पहली बार मिलने पर कर रहे थे और बच्चे के बारे में नहीं सोच रहे थे। आमतौर पर इंटरकोर्स के दौरान 25 करोड़ स्पर्म्स पैदा होते हैं। लेकिन एक रिसर्च के मुताबिक जब पुरुष सेक्स में पूरी तरह संतुष्ट होता है , तो स्पर्म्स की संख्या 50 फीसदी तक बढ़ जाती है।

टेक्नॉलजी और सेक्स
पासी बताते हैं कि अगर आप सेक्स को रूटीन से पांच मिनट ज्यादा लंबा खींचते हैं , तो स्पर्म्स की संख्या ढाई करोड़ तक बढ़ सकती है।

लाइफ में सेक्स का तड़का

अगर आप सोचते हैं कि सेक्स सिर्फ मजे के लिए होता है, तो हम आपको बताना चाहेंगे कि आप थोड़े गलत हैं। दरअसल, मजे के अलावा सेक्स सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है और अगर आप रोज इसका आनंद लेते हैं, तो फिर क्या कहने! इससे न सिर्फ आपको अच्छी नींद आती है, बल्कि स्ट्रेस दूर हो जाता है और कैलरी भी बर्न होती है। इसके अलावा और भी तमाम वजहें हैं, जो हेल्दी सेक्स को जिंदगी के लिए जरूरी बनाता है।

हार्ट रहेगा हैपी
हाल ही में आई एक स्टडी के मुताबिक, जो लोग हफ्ते में दो बार से ज्यादा सेक्स करते हैं, उनको महीने में एक बार सेक्स करने वालों के मुकाबले हार्ट अटैक का खतरा बेहद कम रहता है।

टेंशन होगी हवा
आप परेशान हैं और इसलिए सेक्स से कतरा रहे हैं? नहीं, ऐसा मत कीजिए। सेक्स तो आपके लिए दवा का काम करेगा। यह साबित हो चुका है कि सेक्स दर्द और स्ट्रेस को दूर करने में मदद मिलती है। दरअसल, जब आप आर्गेज्म के करीब होते हैं, तो ऑक्सिटोसिन हॉमोर्न पांच गुना ज्यादा रिलीज होता है और आप बेहतर फील करने लगते हैं।

अगर आप काम या फैमिली प्रॉब्लम की वजह से स्ट्रेस में रहते हैं, तो इसे बेड रूम से दूर रखिए। एक स्टडी के मुताबिक जो लोग रेग्युलर बेड रूम एक्टिविटीज में ऐक्टिव रहते हैं, वे औरों के मुकाबले ज्यादा खुश रहते हैं।

इम्यून होंगे आप
रोजाना संबंध बनाने से बॉडी की इम्यूनिटी बढ़ती है। इससे आपकी बॉडी को कॉमन कोल्ड और बुखार जैसी बीमारियों का मजबूती से सामना करने में मदद मिलती है। तो स्वाइन फ्लू के बारे में आप क्या सोचते हैं?

हेल्दी लाइफ
ऑर्गेज्म के दौरान एक खास हॉर्मोन रिलीज होता है, जो आपकी इम्यूनिटी पावर को बढ़ाता है और टिश्यूज की मरम्मत कर स्किन को हेल्दी रखता है। अगर आपने हफ्ते में दो बार ऑर्गेज्म हासिल कर लिया, तो समझिए आप उस आदमी के मुकाबले ज्यादा जीएंगे, जो कई हफ्तों में एक बार सेक्स करता है।

सेक्स के दौरान टेस्टस्टेरॉन का स्त्राव बढ़ जाता है। पुरुषों में इस हॉर्मोन की ज्यादा मात्रा उन्हें बेड पर बेहतर परफॉर्म करने में मदद करती है। फिर इससे हड्डियां व मसल्स मजबूत होती हैं, हार्ट हेल्दी रहता है और कॉलेस्ट्रॉल भी कंट्रोल में रहता है। इसी तरह सेक्स महिलाओं में स्त्राव होने वाला एस्ट्रोजन हार्ट डिजीज से बचाव करता है।

स्लीपिंग पिल्स
सेक्स के समय हार्ट रेट बढ़ जाती है। इससे बॉडी के सभी ऑर्गन्स और एक-एक सेल्स तक फ्रेश ब्लड पहुंचता है। इसके बाद जब ब्लड अपनी जगह वापस जाता है, तो शरीर को थकान-सी महसूस होती है। अगर आप ध्यान देंगे, तो पाएंगे कि आप चाहे लाख टेंशन में रहें, लेकिन इसके बाद आपको सुकून भरी नींद आती है। जाहिर है, अगर आपको अच्छी नहीं आ रही और आप इस वजह से परेशान हैं, तो सेक्स को एंजॉय कर सकते हैं। रात को अच्छी नींद आएगी, तो आप ज्यादा स्वस्थ रहेंगे।

कैलरी बर्न में सहायक
अगर आप रोजाना जिम जाकर और दूसरे उपायों से अपना वेट कंट्रोल करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं, तो आपके लिए एक और उपाय है। तमाम स्टडीज से यह साबित हो चुका है कि रोजाना सेक्स करने से आपको अपनी वेस्ट लाइन कम करने में मदद मिलती है। अगर आप प्यार को आधा घंटा देते हैं, तो 80 कैलरी बर्न करते हैं। है ना फायदेमंद!

Hindi Novels - Novel - ELove CH-20 चारा

अंजली अपने ऑफीसमें कुर्सीपर बैठकर कुछ सोच रही थी। उसका चेहरा मायूस दिख रहा था। शायद उसने उसके जिवनमें इतना बडा भूचाल आएगा ऐसा कभी सोचा नही होगा। उसने अपना कॉम्प्यूतर शुरु कर रखा तो था, लेकिन उसे ना चाटींग करनेकी इच्छा हो रही थी ना किसी दोस्तको मेल भेजनेकी। उसने अपनी सारी ऑफीशियल मेल्स चेक की और फिरसे वह सोचने लगी। तभी कॉम्प्यूटरपर बझर बजा। उसने अपनी चेअर घुमाकर कॉम्प्यूटरकी तरफ अपना रुख कीया -

' हाय ... मिस अंजली'

विवेकका चॅटींगपर मेसेज था।

उसे अहसास हो गया की उसके दिलकी धडकने तेज होने लगी है। लेकिन इसबार धडकने बढनेकी वजह कुछ अलग थी। अंजली सिर्फ उस मेसेजकी तरफ देखती रही। उसे अब क्या किया जाए कुछ सुझ नही रहा था। तभी शरवरी अंदर आ गई। अंजलीने शरवरीको विवेकका मेसेज आया है ऐसा कुछ इशारा किया। शरवरी झटसे बाहर चली गई, मानो पहले उन्होने कुछ तय किया हो। अंजली अबभी उस मेसेजकी तरफ देख रही थी।

' अंजली कम ऑन एकनॉलेज यूवर प्रेझेन्स' विवेकका फिरसे मेसेज आ गया।

' यस' अंजलीने टाईप किया और सेंड बटनपर क्लीक किया।

अंजलीने कॉम्प्यूटर ऑपरेट करते हूए उसके हाथोमें और उंगलियोंमे पहली बार कंपन महसूस किया।

' मै अब मेलमें सारी जानकारी भेज रहा हूं ' विवेकका मेसेज आ गया।

' लेकिन 50 लाख रुपए देनेके बादभी फिरसे तुम ब्लॅकमेल नही करोगे इसकी क्या गॅरंटी। ?' अंजलीने मेसेज भेजकर उसे बार बार सता रहा सवाल उठाया.

विवेकने उधरसे एक हंसता हूवा छोटासा चेहरा भेजा।

इस बार अंजलीको उस चेहरेके हसनेमें मासूमियतसे जादा कपट दिख रहा था।

' देखो ... यह दुनिया भरोसेपर चलती है ... तुम्हे मुझपर भरोसा करना पडेगा ... और तुम्हारे पास मुझपर भरोसा करनेके अलावा और क्या चारा है ?' उधरसे विवेकका ताना मारता हुवा मेसेज आ गया।

और वहभी सचही तो था ... उसके पास उसपर भरोसा करनेके अलावा कोई दुसरा चारा नही था....

अंजली अब उसने भेजे मेसेजको क्या जवाब दिया जाए इसके बारेमें सोचने लगी। तभी अगला मेसेज आ गया -

' ओके देन बाय... दिस इज अवर लास्ट कन्व्हरसेशन... टेक केअर... तुम्हारा ... और सिर्फ तुम्हारा विवेक...'

अंजली उस मेसेजकी तरफ काफी देरतक देखती रही। बादमें उसे क्या सुझा क्या मालूम, उसने फटाफट कीबोर्डपर कुछ बटन्स दबाए और कुछ माऊस क्लीक्स किए। उसके सामने उसका खुला हुवा मेलबॉक्स अवतरीत हुवा। उसके अपेक्षानुसार और विवेकने जैसा कहा था, उसकी मेल उसके मेलबॉक्समें पहूंच चूकी थी। उसने पलभरकी भी देरी ना करते हूए वह मेल खोली।

मेलमें 50 लाख रुपए कहां, कैसे, और कब पहुचाने है यह सब विस्तारपुर्वक बताया था। साथमें पुलिसके चक्करमें ना पडनेकी हिदायतरुप धमकीभी दी थी। अंजलीने अपनी कलाईपर बंधी घडीकी तरफ देखा। अबभी मेलमें बताए स्थानपर पैसे पहुंचानेमें 4 घंटेका अवधी बाकी था। उसने एक दिर्घ श्वास लेकर धीरेसे छोड दी। वह वैसे कर शायद अपने मनका बोझ हलका करनेकी कोशीश करती होगी। वैसे चार घंटे उसके लिए काफी समय था। और पैसोंका बंदोबस्त भी उसने पहलेसे ही कर रखा था - यहांतक की पैसे सुटकेसमें पॅकभी कर रखे थे। मेलकी तरफ देखते देखते उसके अचानक ध्यानमें आ गया की मेलके साथ कोई अटॅचमेंटभी आई हूई है। उसने वह अटॅचमेंट खोलकर देखी। वह एक JPG फॉरमॅटमें भेजा हुवा एक फोटो था। उसने क्लीक कर वह फोटो खोला।

वह उनके हॉटेलके रुममें दोनो जब एक दिर्घ चुंबन लेते हूए आलिंगनबध्द थे तबका फोटो था।