रत्न सौंदर्य में इजाफा करने के साथ उपचार का काम भी करते हैं।
रत्न मानव मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं यही कारण है कि इनका उपयोग जन्म पत्री में दुर्बल ग्रहों को धीरे-धीरे मजबूत करने तथा रोगों के उपचार के लिए किया जाता है।
सबसे मूल्यवान रत्नों में हीरे का नाम ऊपर आता है। हीरे से भी कई गुणा ज्यादा मूल्यवान अलेक्स नामक रत्न होता है। सूर्य के प्रकाश में इसका रंग हल्का हरा दिखाई पड़ता है, लेकिन टार्च या बल्ब की रोशनी में यह रंग बदलकर लाल हो जाता है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी यह रत्न अन्य रत्नों की अपेक्षा अधिक प्रभावकारी होता है। आम मरीजों के बीच रत्न चिकित्सा पद्धति [स्टोन थैरेपी] के नाम से मशहूर इस विधि द्वारा कैंसर, दमा, एलर्जी, गैस्ट्रिक, मधुमेह, चर्मरोग, वात, गठिया, जाण्डिस आदि असाघ्य रोगों का सफल उपचार किया गया है। प्राकृतिक चिकित्सा की एक पद्धति क्रोमोपैथी का भी कहना है कि विभिन्न प्रकार के रोगों में व्यक्ति को निरोग करने के लिए रंगों में असाधारण शक्ति होती है।
सुप्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री डॉ। इडैगर मैसी का कहना है कि चिकित्सा का भविष्य विभिन्न रंगों की प्रकाश किरणों और घ्वनि-तरंगों पर निर्भर करता है। शोध एवं चिकित्सा ग्रंथों के आधार पर रत्नों के रोग निदान के लिए प्रयोग का संक्षिप्त विवरण नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है-
माणिक्य
भावप्रकाश में माणिक्य को कषाय और मधुर रस प्रधान बताया गया है। शास्त्रों में माणिक्य दीपनं तृष्यं कफवातक्षयातिनुत् कहकर शरीर में उत्पन्न उष्णता, जल, कफ, वात तथा क्षय रोग का नाशक माणिक्य को कहा गया है। घबराहट, बेचैनी, धड़कन, भय, भ्रम, वक्षपीड़ा, श्वास वेग, याददाश्त की कमी, ह्वदय रोग, रक्तचाप, दुर्बलता, पेटदर्द एवं आंखों की बीमारियों में इसे काफी लाभकारी बताया गया है।
नीलम
यह रत्न विषम ज्वर, मिरगी, मस्तिष्क की कमजोरी, पागलपन, हिचकी, गठिया, सन्धिवात, पेटदर्द, बेहोशी, पक्षाघात, बवासीर, हर्निया आदि रोगों पर उपयोग किया जाता है।
लहसुनिया
इनका उपयोग मूलत: पित्तजनक रोगों के लिए किया जाता है। कफ, खांसी, बवासीर, पित्तदोष, वीर्यदोष, अण्डकोश के रोग, खून की कमी, चेचक, नेत्ररोगहारक, बलबुद्धि एवं वीर्य वर्द्धन में भी लहसुनिया का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त अम्बर का प्रयोग सन्निपात रोग में पुखराज का मुख की दर्गन्ध में किया जाता है।
गोमेद
यह वायु शूल, चर्मरोग, कृमि रोग, बवासीर, फाइलेरिया, गर्मी, हैजा आदि में विशेष लाभप्रद है। इसके अतिरिक्त गोमेद को बलवर्द्धक, बुद्धिवर्द्धक, कफननाशक तथा मस्तिष्क की दुर्बलता को दूर करने में उपयोगी बताया जाता है।
हीरा
वीर्यदोष, धातुरोग, शीघ्रपतन, प्रमेह, नपुसंकता, गर्भक्षय, मधुमेह, टीबी, एनीमिया, अन्धापन, मोतियाबिंद, हिस्टीरिया आदि विभिन्न रोगों पर रामबाण के समान हीरा काम करता है।
विशेष सावधानी हीरा को खाने से मृत्यु तक हो जाती है, अत: कोई भी औषधि बिना चिकित्सक के परामर्श के न ली जाए।
पन्ना
आयुर्वेद के ग्रंथ रत्न समुच्चय [रस रत्न समुच्चय] में पन्ना को श्रेष्ठ विषनाशक बताया गया है। श्वास, दमा, खांसी, अल्सर, रक्तचाप, टांसिल, अनिद्रा, सन्निपात, प्रमेह, मिचली आदि को नष्ट कर बुद्धि एवं वीर्यवर्द्धन की अचूक शक्ति को रखता है।
पुखराज
यह स्वयं में एक महौषधि होते हुए मुख संबंधी रोग, गुर्दा, मूत्राशय, यकृत, तिल्ली, रक्तचाप, कंठरोग, गुप्तेन्द्रिय रोग, आंत्रशोथ, प्रदर, कैंसर, हडि्डयों के रोग, सिरदर्द आदि नष्ट करने वाला होता है।
मोती
मोती कैल्शियम की सर्वोत्तम भरपाई करने वाला रत्न है। आयुर्वेद के भावप्रकाश में मौक्तिक शीतल तुष्यं चक्षुव्यं बल पुष्टिदम् कहकर इसे शीतल, वीर्यवर्द्धक एवं आंखों के लिए उपयोगी तथा बलकारक बताया गया है। अवचेतना, मूर्छा, हिस्टीरिया, कैंसर, एलर्जी, क्रोध, अनिद्रा, मानसिक विकास, मूत्ररोग, दन्तरोग, भय, भ्रम, दिमागी बीमारियों के साथ ही वायु विकार, खूनी बवासीर, मस्तिष्क ज्वर तथा श्वेत प्रदर एवं रक्त प्रदर आदि में भी योग लाभदायक है।
27 फ़रवरी 2010
रत्न चिकित्सा
Posted by Udit bhargava at 2/27/2010 06:52:00 am
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