11 फ़रवरी 2010

आशीर्वाद

आत्मानंद को अपने परिचित युवा मित्र के विवाह पर आयोजित आशीर्वाद समारोह पर स्वरूचि भोज का निमंत्रण मिला था। समय तो 7 बजे अंकित था पर वे घर से ही घंटे डेढ़ घंटे बाद समारोह स्थल के लिए रवाना हुए थे।

विद्युत का जगमगाता प्रकाश दूर से ही आकर्षित कर रहा था। प्रवेश द्वार पर चूनड़ी का साफा बांधे, बंद गले का जोधपुरी कोट पहने एक सान खड़े थे। उनके पास ही खडी थी, आभूषणों में सजी धजी महिला, शायद उनकी पत्नी। जो भी आ रहा था, वह उन्हें आशीर्वाद का लिफाफा देकर भीतर प्रवेश कर रहा था। लिफाफों से उनकेकोट की दोनों जेबें लबालब भरी थीं।

आत्मानंद ने उन्हें ही युवा मित्र का पिता समझ, अपना आशीर्वाद का लिफाफा दे दिया। लम्बी नाल से गलियारे में बिछे कालीन को जूतों से खटाखट से दबाते जैसे ही भीतर पहूंचे, मंच पर दोनों आसन खाली दिखे। सामने कुसिर्यों पर अवश्य महिलाऐं जमीं थीं। कुछ दूर आगे बगल में भोजन पर भीड़ टूटी पड़ी थी।

आत्मानंद को वहां से यथा शीघ्र निपटकर दूसरी जगह आवश्यक रूप से पहुंचना था। इसलिए उन्होंने सीधे पहुंच भोजन किया और बाहर आ जैसे ही गाड़ी स्टार्ट की, उनके कानों में आवाज आई, बारात आ गई - बारात आ गई। वे सोच में पड़ गये। क्या वे मित्र के पिता नहीं थे? क्या वधू पक्ष के भोजन को ही उन्होंने अपना स्वरूचि भोज मान मित्रों को वहीं आमंत्रित किया है। उनके माथे पर सल पड़ गये। सोचने लगे कब तक होता होगा वधू पक्ष का इस तरह शोषण। पढ़ी लिखी लड़की देकर भी इस पुरूष- प्रधान समाज में लड़की का पिता कब तक छला जाता रहेगा। मित्र ने अपना भार दूसरे के कंधे पर डाल दिया। कैसा जमाना आ गया है। यह कहते-कहते उन्होंने अपना माथा ठोक लिया। एक बार तो सोचा कि लौट चलूं और मित्र को इस सबके लिए उपालम्भ भी दूं। लेकिन द्वार पर खडा वह लड़की का पता समझेगा कि दुबारा खाने के लिए आ गया। इसी उहापोह में उनकी गाड़ी गंतव्य की ओर बढ़ती रही। वे सोचते रहे क्या लड़कियों की भ्रूण- हत्या इसीलिए होती है। क्या इसीलिए युवा लड़कियों आत्महत्या कर लेती हैं? क्या इसीलिये विधवाउं अपनी बच्चियों को लेकर कुओं में कूद जीवित समाधि ले लेती हैं? कब रूकेगी लड़के वालों की यह भूख? कब मिलेगा लड़कियों को उचित सम्मान?

गाड़ी गंतव्य पर पहुंच चुकी थी। फाटक लगाते हुए उन्होंने यह सोच संतोष की सांस ली कि जिसे आशीर्वाद चाहिये था, उसे ही उन्होंने आशीर्वाद दिया है। वे प्रसन्न प्रसन्न त्वर गति से भीतर प्रवेश कर गये।