सोरायसिस, जिसे हिन्दी में विचर्चिका, चम्बल या अपरस रोग कहते हैं, बहुत ही कष्टदायक, कष्टसाध्य और किसी किसी केस में असाध्य (लाइलाज) रोग है। इस रोग का सही-सही निदान नहीं हो पाया है कि यह रोग किन कारणों से होता है।
इस रोग में पूरे शरीर में कहीं भी खुजली चला करती है, त्वचा पर लाल-लाल, गोलाकार चवन्नी-अठन्नी के आकार के चकत्ते (चठ्ठे या दंदोड़े) बनते हैं, त्वचा पर छिछड़े जैसी परतें उभर आती हैं, जिन्हें खुजाने पर रक्त निकल आता है। ये चकत्ते पूरे शरीर में, यहाँ तक कि हथेली और पैर के तलुओं में भी, निकल आते हैं।
यह रोग स्त्री या पुरुष किसी को भी किसी भी आयु में हो सकता है। इस रोग के प्रभाव से त्वचा मलिन होने लगती है, धीरे-धीरे काली पड़ जाती है। इस रोग के प्रभाव से सिर की त्वचा में भी खुजली चलने लगती है और सिर के बाल उड़ने लगते हैं।
चिकित्सा
इसकी एक चिकित्सा है, जिसे 6-7 मास तक नियमित रूप से बिना भूले-चूके, करना चाहिए-
चोपचन्यादि चूर्ण 50 ग्राम, बंगभस्म, लौहभस्म, ताप्यादि लोह, तीनों 10-10 ग्राम, गन्धक रसायन 30 ग्राम, स्वर्णमाक्षिक भस्म व समीर पन्नग रस 5-5 ग्राम। सबको ठीक से मिलाने के लिए खरल में डालकर थोड़ी देर तक घुटाई करें, फिर इस मिश्रण की 60 पुड़िया बनाकर बॉटल या डिब्बे में रख लें। सुबह-शाम 1-1 पुड़िया शहद में मिलाकर चाट लें। इसके एक घण्टे बाद अरोग्यवर्द्धिनी वटी विशेष नं। 1 और पंच निम्बादि वटी की 2-2 गोली पानी के साथ लें।
भोजन करने के बाद दोनों वक्त खदिरारिष्ट, महामंजिष्ठादि काढ़ा और रक्त शोधान्तक या रक्तदोषान्तक-तीनों 4-4 चम्मच आधा कप पानी में डालकर पिएं। सोने से पहले चन्दनबला लाक्षादि तेल पूरे शरीर पर लगाएं। सुबह उठने के बाद चर्म रोगनाशक तेल पूरे शरीर पर लगाएं और आधा घंटे बाद कुनकुने गर्म पानी से स्नान करें।
07 फ़रवरी 2010
सोरायसिस रोग
Labels: आयुर्वेद
Posted by Udit bhargava at 2/07/2010 07:06:00 am
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इसकी बहुत अच्छी दवा मेरे पास है ,बस एक मलहम और दो खाने के लिए ,जो भी चाहे ले सकता है
जवाब देंहटाएंKripya dava
हटाएंकृपया हमे बताने का कष्ट करें। मैं इस बीमारी से काफी समय से पीड़ित हूँ।
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