07 फ़रवरी 2010

रत्नों के प्रकार

* मासर मणि- यह अकीक पत्थर के समान होता है।

* माक्षिक- यह सोना मक्खी के रंग का पत्थर है।

* माणिक्य- यह गुलाबी तथा सुर्ख लाल रंग का होता है तथा काले रंग का भी पाया जाता है। गुलाबी रंग का माणिक्य श्रेष्ठ माना गया है।

* मूवेनजफ- यह सफेद रंग का काली धारी से युक्त पत्थर होता है। यह फर्श बनाने के काम आता है।

* मूँगा- यह लाल, सिंदूर वर्ण तथा गुलाबी रंग का होता है। यह सफेद व कृष्ण वर्ण में भी प्राप्य है। इसका प्राप्ति स्थान समुद्र है। इसका दूसरा नाम प्रवाल भी है।

* मोती- यह सफेद, काला, पीला, लाल तथा आसमानी व अनेक रंगों में पाया जाता है। यह समुद्र से सीपों से प्राप्त किया जाता है।

* रक्तमणि- यह पत्थर लाल, जामुनी रंग का सुर्ख में कत्थे तथा गोमेद के रंग का पाया जाता है, इसे 'तामड़ा' भी कहा जाता है।

* रक्ताश्म- यह पत्थर गुम, कठोर, मलिन, पीला तथा नीले रंग लिए, हरे रंग का तथा ऊपर लाल रंग का छींटा भी होता है।

* रातरतुआ- यह स्वच्छ लाल तथा गेरुआ रंग का होता है। यह रात्रि ज्वर को दूर करता है।

* लहसुनिया- यह बिल्ली के आँख के समान चमकदार होता है। इसमें पीले, काले तथा सफेद रंग की झाईं भी होती है। इसका दूसरा नाम वैदूर्य है।

* लालड़ी- यह रत्न रक्त रंग का, पारदर्शक कांतिपूर्ण, लाल रंग तथा कृष्णाभायुक्त होता है, इसे सूर्यमणि भी कहते हैं।

* लास- यह मकराने की जाति का पत्थर है।

* लूधिया- यह गुम तथा हरे रंग का होता है। इसका उपयोग खरल बनाने में किया जाता है।

* शेष मणि- यह काले डोरे से युक्त सफेद रंग का होता है। सफेद रंग के डोरे से युक्त काले रंग के पत्थर को सुलेमानी कहा जाता है।

* शैलमणि- यह पत्थर मृदु, स्वच्छ, सफेद तथा पारदर्शक होता है, इसे स्फटिक तथा बिल्लौर भी कहते हैं।
* शोभामणि- यह पत्थर स्वच्छ पारदर्शक तथा अनेक रंगों में पाया जाता है। इसे वैक्रान्त भी कहते हैं।

* संगिया- यह चाक से मिलता-जुलता मुलायम पत्थर होता है।

* संगेहदीद- यह भारी भूरापन लिए स्याही के रंग का होता है। इसका औषधि में प्रयोग होता है।

* संगेसिमाक- यह गुम सख्त तथा मलिनता लिए लाल रंग का होता है, जिस पर सफेद रंग के छींटे होते हैं। इसका उपयोग खरल बनाने तथा नीलम व माणिक्य को पीसने के काम आता है।

* संगमूसा- यह काले रंग का पत्थर होता है। इसका उपयोग प्याले व तश्तरी बनाने में होता है।

* संगमरमर- यह पत्थर सफेद, काले तथा अन्य कई रंगों में होता है। इसका उपयोग मूर्तियों तथा मकान बनाने के काम में किया जाता है।
* संगसितारा- यह कषाय रंग का पत्थर है। इसमें सोने के समान छींटे चमकते दिखाई देते हैं।
* सिफरी- यह अपारदर्शी, हरापन लिए आसमानी रंग का होता है। यह औषधि के काम में आता है।
* सिन्दूरिया- यह गुलाबी रंग का पानीदार चमकदार व मृदु पत्थर होता है।
* सींगली- यह गुम स्याही तथा रक्त मिश्रित माणिक्य जाति का पत्थर होता है। इसके अंदर छह कलाओं से युक्त सितारे होते हैं।
* सीजरी- यह अकीक के समान विविध रंगों में फूल-पत्तीदार व दाग डालने वाला पत्थर होता है।
* सुनहला- यह पीले रंग का नरम तथा पूर्ण पारदर्शक होता है।
* सूर्यकान्त- इसका रंग चमकदार श्वेत रंग का होता है।

* सुरमा- यह काले रंग का पत्थर होता है तथा इसका उपयोग नेत्रांजन बनाने में होता है।

* सेलखड़ी- यह सफेद रंग का मृदु पत्थर होता है, इसका उपयोग क्रीम, पावडर आदि बनाने के काम में किया जाता है।

* स्फटिक- यह मृदु सफेद रंग का पारदर्शी व चमकदार होता है। इसे फिटकरी भी कहा जाता है।

* सोनामक्खी- इसे स्वर्ण माक्षिक भी कहते हैं। यह कंकड़ के समान पीत वर्ण का होता है। इसका उपयोग औषधि में करते हैं।

* हजरते बेर- यह औषधि में उपयोग होने वाला मटमैला बेर के समान होता है।

* हजरते ऊद- यह पत्थर गुलाबी रंग का लचकदार तथा खुरदरा होता है।

* हरितोपल- यह हरे रंग का चमकदार पत्थर होता है।

* हकीक- यह पत्थर पीले, काले, सफेद, लाल तथा अनेक रंगों में पाया जाता है। यह अपारदर्शी होता है।

* हरितमणि- यह चिकना, कठोर, अपारदर्शी तथा सफेद काले अंगूरी व गुलाबी रंग का होता है।

* हीरा- यह सफेद, नीला, पीला, गुलाबी, काला, लाल आदि अनेक रंगों में होता है। सफेद हीरा सर्वोत्तम है तथा हीरा सभी प्रकार के रत्नों में श्रेष्ठ है।


इन्हें भी देखें :-
रत्न चिकित्सा
रत्नों क़ी  श्रेष्ठता  
नवग्रह रत्न एवं समयावधि
रत्नों के प्रकार
संयुक्त रत्न पहनना श्रेष्ठ फलदायी
रत्नों क़ी उत्त्पत्ति
रत्नों के प्राप्ति स्थान
धन देता है श्वेत मोती