एक बार सुकरात अपने कुछ शिष्यों के साथ घूमने निकले। रास्ते में उनके एक शिष्य ने कहा कि यहां एक दुकान पर विभिन्न प्रकार की बेहद खूबसूरत वस्तुएं बिकती हैं। कृपया आप भी उन्हें देख लीजिए। शिष्यों के बहुत जोर देने पर सुकरात उनका मन रखने के लिए दुकान के अंदर गए। वहां ढेरों वस्तुएं सजा कर रखी गई थीं। सुकरात उन वस्तुओं को देखकर बेहद प्रसन्न हुए। कुछ वस्तुएं तो इतनी अधिक आकर्षक थीं कि सुकरात उन्हें उठा-उठा कर देखने लगे। उन्हें इस तरह प्रसन्न व शांत मन से वस्तुओं को निहारते देख उनका एक शिष्य बोला, 'गुरुजी, आप इन सुंदर वस्तुओं को देख रहे हैं। क्या आप की इच्छा इन खूबसूरत वस्तुओं को खरीदने की तो नहीं हो रही?'
सुकरात कुछ कहते उससे पहले ही उनका दूसरा शिष्य बोला, 'हां गुरुजी, आप कुछ वस्तुओं को खरीद लीजिए न। मेरा मन तो कर रहा है कि मैं सारी की सारी वस्तुएं खरीद लूं किंतु मेरे पास इसके लिए पर्याप्त धन नहीं हैं।' दूसरे शिष्य की बात पर सुकरात मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले, 'इसमें कोई दो राय नहीं कि यहां पर उपस्थित सभी वस्तुएं अत्यंत सुंदर हैं, लेकिन मुझे फिलहाल इनमें से किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है और अनावश्यक रूप से वस्तुओं का संग्रह करने से क्या लाभ?' सुकरात की इस बात पर पहला शिष्य बोला, 'गुरुजी, मगर खूबसूरत वस्तुओं को खरीदने में क्या हर्ज है?' शिष्य की बात पर सुकरात बोले, 'पुत्र, दवा की दुकान पर दवाएं भी विभिन्न रंगों की बेहद आकर्षक शीशियों व पैकिटों में बिकती हैं। किंतु कोई भी व्यक्ति सिर्फ दवाओं को इसलिए नहीं खरीदता कि वे खूबसूरत हैं बल्कि तब खरीदता है जब उसे वाकई उनकी जरूरत महसूस होती है। यही बात इन खूबसूरत वस्तुओं पर भी लागू होती है। बेशक ये खूबसूरत हैं किंतु जब इनका उपयोग ही नहीं होगा तो इनका संग्रह व्यर्थ है। अनावश्यक संग्रह से जीवन सुखी नहीं होता।'
09 दिसंबर 2009
सुकरात का संदेश
Posted by Udit bhargava at 12/09/2009 03:29:00 am
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