विंध्य प्रदेश का राजा धार्मिक और दयालु प्रवृति का था। एक बार सूखे के कारण राज्य में अकाल पड़ गया। आदमी और जानवर भूख से तड़पने लगे। चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गई। दरबार के आचार्यों ने सुझाव दिया, राजन इस अकाल से छुटकारा पाने के लिए राज्य भर में हवन करना होगा। राजा ने आचार्यों की बात मान ली।
राज महल से लेकर गली-गांव तक हवन होने लगे। हजारों टन गेहूं और देसी घी हवन कुंड में जला दिए गए, लेकिन न देवता प्रसन्न हुए और न ही अकाल दूर हुआ। जब राजा की मृत्यु हुई तो यमदूतों ने उसे धर्मराज के सामने पेश किया। उसी समय राजा का एक पुराना नौकर भी धर्मराज के सामने लाया गया था। धर्मराज ने बही खाता देखा और राजा को नरक में तथा नौकर को स्वर्ग में भेजने का आदेश दिया। राजा ने कहा, मैंने हमेशा धर्म का काम किया, फिर मुझे नरक और इस नौकर ने कभी कोई धर्म कर्म नहीं किया, फिर भी इसे स्वर्ग -यह तो अन्याय है। धर्मराज ने कहा, तुम ठीक कहते हो, लेकिन तुम्हारे एक अकर्म ने सभी अच्छे कर्मों को निष्फल कर दिया। सूखे के समय जब जनता को अनाज की सख्त जरूरत थी, तब उस अनाज को जनता में न बांट कर, तुमने उसे कर्मकांड के लिए जला दिया। तुम्हारे अन्न के भंडार भूखों के लिए बंद थे, लेकिन हवन के लिए खोल लिए गए। इससे बड़ा पाप कोई और नहीं हो सकता। इसी अधर्म के कारण तुम्हें नरक मिला है। रही बात नौकर की। उसने कभी पूजा पाठ नहीं किया लेकिन वह भूखा- प्यासा सात दिन तक आप के हवन कुंड के पास इस आशा में बैठा रहा कि हवन के बाद अनाज के जो दाने बिखरे मिल जाएंगे, उससे वह अपनी भूख मिटा लेगा। लेकिन उसे एक दाना नहीं मिला और वह वहीं भूख से मर गया। उसने जब तक तुम्हारे यहां काम किया पूरी मेहनत और ईमानदारी से किया, इसलिए उसको स्वर्ग मिला।
09 दिसंबर 2009
भूख और हवन
Posted by Udit bhargava at 12/09/2009 03:35:00 am
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