15 मई 2011

अप्पर

अप्पर यानी पिता। सचमुच तमिलनाडु के भक्तों के पिता की तरह ही हैं अप्पर। उसी समय के एक और महान संत तिरुज्ञान संबंधर ने बचपन में कभी उन्हें देख कर कहा था अप्पर। और मरुलनीक्कियार हो गये अप्पर। कितनी अजीब बात है कि अप्पर के कोई संतान नहीं थी। लेकिन उन्हें सभी अप्पर कह कर पुकारते हैं। वह भोले बाबा के उपासक थे।

बीच में वह जैन धर्म की परिक्रमा भी कर आये थे। लेकिन वे अपने प्रिय शिव शंकर को भुला नहीं पाए। इसीलिए उनकी शरण में वापस लौट आये। उनके आराध्य भगवान शिव को अर्र्पित दो पद:-

यही है वह जगह
जहां भगवान शिव का वास है
देखो, उधर देखो
जिसने मिलन कराया है
चंद्रमा और गंगा के निर्मल जल का-
देखो, उसकी घुंघराली अलकों को देखो
देखो उसे, जो अपनी शरण में
आने वालों के लिए
बन जाता है अमृत
देखो उसे जिसने मिटा दिये
असुरों के वे तीन स्थान
जो लटके हुए थे हवा में
देखो उस प्रभु को देखो
जो भक्तों के लिए वही रूप धर लेता है
जिसकी करते हैं वे पूजा
देखो उसकी ओर देखो जिसने
किया है चारों वेदों का गान
देखो उसे जो छिपा है
वैदिक ऋचाओं और मंत्रों में
वही जो बसा है
समुद्र से घिरे गोकरणम में
सदा और सर्वदा।

मैं आया-नाचता और गाता
प्रभु के गीत,
और कहता रहा-
हे पावन प्रभु! तुम धन्य हो।
मैं उस प्रभु के गीत गाता रहा-
जिसके मस्तक पर है चंद्रमा
करता रहा आराधना उस देवी की
जो है फूल से भी कोमल
जब मैं आइयारु जा रहा था
जहां चक्रधारी भगवान विष्णु
कर रहे थे उस प्रभु की पूजा
मैंने देखा पंछियों के जोड़ों को
आते हुए चुपचाप वहां
और देखा!
प्रभु के पावन चरणों को
ऐसा दृश्य देखा मैंने-
जैसा पहले न देखा था कभी।