भगवान श्रीकृष्ण ज्ञानातीत होने के साथ-साथ कालातीत भी हैं। वह भारतीय इतिहास को प्रभावित करनेवाले युगनायक रहे हैं। वह भारतीय जन के नायक हैं। मथुरा के कारागार में वासुदेव व देवकी की आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म तथा वृंदावन में उनका लालन-पालन हुआ, ऐसा शास्त्रों-ग्रंथों में वर्णित है।
करोड़ों हिन्दुओं के आस्थापुरुष श्रीकृष्ण के बारे में ऋगवेद के आठवें मंडल में मंत्रद्रष्टा ऋषि के रूप में हमें उल्लेख मिलता है, लेकिन उससे यह नहीं लगता कि वह देवकीपुत्र श्रीकृष्ण ही हैं। वे कोई और ऋषि भी हो सकते हैं। देवकीपुत्र श्रीकृष्ण की चर्चा छांदोग्योपनिषद में मिलती है, जहां उन्हें घोर आंगिरस का शिष्य बताया गया है। यहां भी उनके पिता का उल्लेख नहीं है। हालांकि ऋगवेद में आए उल्लेख के अतिरिक्त कुछ अन्य स्थानों पर श्रीकृष्ण का नाम आया है, जहां उन्हें यमुना के किनारे इंद्र से युद्ध करते हुए बतलाया गया है। उल्लेखनीय है कि वासुदेव कृ ष्ण की इंद्र से युद्ध की स्थिति बन गयी थी और तब उन्होंने गोवद्र्धन की सहायता से ब्रजवासियों की रक्षा की थी। इससे कुछ विद्वानों का मत है कि वासुदेव कृष्ण का वैदिक कृष्ण से संबंध हो सकता है।
देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में वासुदेव कृष्ण का स्पष्ट उल्लेख महर्षि पाणिनी कीअष्टाध्यायी में है। इसी ग्रंथ में कृष्ण, अर्जुन और बलराम का भी उल्लेख मिलता है। अष्टाध्यायी में भगवान श्रीकृष्ण के दैवी और मानवीय दोनों ही रूपों के उल्लेख मिलते हैं। सबसे विस्तृत चर्चा उनकी महाभारत ग्रंथ में है। भारत के जन-जन की आस्था में बसे श्रीकृष्ण का वर्णन विदेशों में भी मिलता है। यूनानी शासक अगाथोलिक्स द्वारा जारी किये गये सिक्के में एक ओर सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण और दूसरी ओर हलधर बलराम की आकृतियां खुदी हुई मिलती हैं। श्रीकृष्ण से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अभिलेख चित्तौड़ के निकट नागरी के घोसुंडी से प्राप्त हुआ है, जिसके अनुसार सर्वताक नामक एक व्यक्ति अपने को वासुदेव (कृष्ण) और संकर्षण (बलराम) का भक्त बतलाता है। इस वर्णन से लगता है कि सर्वातक कोई ब्राह्मण राजा था, जो अपने को अश्वमेधयाजी भी कहता था।
विभिन्न विद्वानों के मत को आधार मानें तो कृ ष्ण का जन्म द्वापर के उत्तराद्र्ध में हुआ था। पिछले ५१०० वर्ष से भी अधिक समय से कलियुग चल रहा है। इससे लगता है कि उनका जन्म लगभग छह हजार वर्ष पूर्व हुआ होगा। वैदिक कृष्ण को ही अगर हम वासुदेव कृष्ण मान लें, तो वह भारतीय काल गणना के अनुरूप बन जाएगा।
श्रीकृष्ण के जन्म को लेकर भारतीय इतिहास और वेदों की व्याख्या करनेवाले विद्वानों का चाहे जो मत हो, पर यथार्थ यही है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस भारतीय धरा पर अपनी लीलाएं कीं, जीवन का दर्शन भारतवासियों को अमूल्य धरोहर के रूप में दिया और आज भी वह भारतीय जन के नायक हैं।
15 मई 2011
भारत जन के नायक हैं श्रीकृष्ण
Labels: संत महापुरुष
Posted by Udit bhargava at 5/15/2011 05:43:00 pm
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