ईगो से दूर रखें दोस्ती कोमधुश्री, गायिका
पारिवारिक संबंध के नाम पर मेरे जीवन में अब सिर्फ मेरी मम्मी और बहनें हैं, जो मुझे जी-जान से ज्यादा प्यार करती हैं। मैंने गायन के क्षेत्र में अपना करियर बनाने के लिए वर्षो पहले अपना शहर कोलकाता छोड दिया था। उसके बाद से रिश्तेदारों से मेरा संपर्क टूट सा गया। इसलिए मेरी जिंदगी में शुरू से ही दोस्तों की बहुत खास जगह रही है। मेरे स्कूल के दिनों की एक सहेली का नाम राखी है, उससे आज भी हमारी दोस्ती कायम है। इसी तरह मेरे कॉलेज के दिनों के दोस्त शुभ्रो से मेरी इतनी सच्ची दोस्ती है। आज भी जरूरत पडने पर हम एक-दूसरे की मदद को तैयार रहते हैं। मेरा मानना है कि दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है, जो सामाजिक बंधनों की सभी सीमाओं से परे है। अपने दोस्तों से मेरा बेहद बेतकल्लुफी का रिश्ता है। कभी-कभी हमारे बीच लडाई भी हो जाती है। लेकिन थोडी ही देर के भीतर हम ऐसे हंसने-बोलने लगते हैं जैसे हमारे बीच कभी कोई झगडा हुआ ही नहीं। मेरा मानना है कि दोस्ती में ईगो का टकराव नहीं होना चाहिए। अगर मेरा कोई खास दोस्त मुझसे नाराज होता है तो मैं इस बात का इंतजार नहीं करती कि पहले वह सॉरी बोले। जैसे ही मुझे इस बात का एहसास होता है कि मुझसे गलती हुई है, तो मैं तुरंत सॉरी बोल देती हूं।
जरूरी है विचारों का मिलनाशिखा शर्मा, डायटीशियन
मेरे लिए यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण है कि कोई व्यक्ति कैसा है? चाहे वह दोस्त हो या रिश्तेदार, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पडता। जिससे मेरे विचार मिलते हों, उससे बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। मेरी एक खास सहेली है रेवा चोपडा, जो नर्सरी से बारहवीं तक मेरे साथ पढी है। अब वह साइंटिस्ट बन चुकी है और अमेरिका में रहती है, लेकिन उससे आज भी मेरी दोस्ती कायम है। यह बात सच है कि रिश्तेदारों की तुलना में दोस्त हमारे दिल के ज्यादा करीब होते हैं, क्योंकि दोस्ती में हम सहज होते हैं और रिश्तेदारों की तरह दोस्त हर बात पर शिकायत नहीं करते। अगर किसी से मेरी सच्ची दोस्ती है तो वर्षो बाद भी हम पहले जैसी गर्मजोशी से मिलते हैं। लेकिन रिश्तेदारी निभाने के लिए काफी मेहनत करनी पडती है। चाहे वह मेरा रिश्तेदार या दोस्त कोई भी हो, मतभेद होने पर अगर मुझे अपनी गलती महसूस होती है तो मैं बिना देर किए माफी मांग लेती हूं। अकसर लोग अपने करीबी संबंधों को गंभीरता से नहीं लेते। मैं इसे बहुत गलत मानती हूं किजो लोग हमेशा हमारे साथ रहते हैं, उन्हें हम सॉरी, थैंक्यू बोलने या उनके किसी अच्छे काम की प्रशंसा करने की जरूरत नहीं समझते। जबकि इन छोटे-छोटे शब्दों से रिश्ते और भी प्रगाढ हो जाते हैं।
बहुत खास जगह है दोस्तों कीमैत्रेयी पुष्पा, साहित्यकार
मेरे लिए तो दोस्त ही सब कुछ हैं। मुझे अपने दोस्त इसलिए अच्छे लगते हैं क्योंकि दोस्त हम अपनी मर्जी से चुनते हैं, जबकि रिश्तेदार हमारे लिए पहले से ही तय होते हैं, उन्हें बदल पाना संभव नहीं है। रिश्तेदारी में अगर कोई व्यक्ति हमें नापसंद हो तब भी मजबूरी में उससे संबंध निभाना ही पडता है। जबकि दोस्ती में ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती। हम अपने दिल की जो बातें माता-पिता या भाई-बहनों से नहीं कह पाते वे सारी बातें दोस्तों से कहते हैं। जहां तक मेरे दोस्तों का सवाल है तो बचपन से अब तक कई लोगों से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हुई और आज भी पुरानी सहेलियों से संपर्क बना हुआ है। मेरी बचपन की सहेली कांति भोपाल में रहती है। आज भी जब मैं भोपाल जाती हूं तो उससे जरूर मिलती हूं। निर्मला राजे मेरे कॉलेज के दिनों की घनिष्ठ सहेली हैं, जिनसे अब भी मिलना-जुलना होता रहता है। इसके अलावा साहित्यिक जगत में राजेंद्र यादव मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं, जिन्होंने हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया है। हालांकि भारतीय समाज में आज भी स्त्री और पुरुष की मित्रता को लोग शक की निगाहों से देखते हैं, लेकिन मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पडता। मेरा मानना है कि संकट की घडी में दोस्त ही आपके काम आते हैं। रिश्तेदार और जाति-बिरादरी के लोग मदद करने के बजाय अकसर मुश्किलें बढा देते हैं।
दोनों की है अहमियतअंशु पाठक, इंटीरियर डिजाइनर
मेरा मानना है कि किसी भी इंसान के सामाजिक जीवन में रिश्तेदारों और दोस्तों की समान अहमियत होती है। दोनों में से किसी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मुझे ऐसा लगता है कि स्त्रियों के जीवन में रिश्तेदारों का स्थान ज्यादा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि किसी लडकी की शादी एक व्यक्ति से नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार से होती है। इसलिए शादी के बाद पति के रिश्तेदारों से बेहतर संबंध बनाए रखने की जिम्मेदारी पत्नी की ही मानी जाती है। हालांकि मुझे ऐसा लगता है कि दोस्ती की तुलना में रिश्तेदारी निभाना ज्यादा मुश्किल है, क्योंकि रिश्तेदारी में अपेक्षाएं अधिक होती हैं। इसके अलावा रिश्तेदार दूसरों से आपकी बुराइयां करने से भी बाज नहीं आते। फिर हमें सामाजिक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए संतुलन बनाकर चलना पडता है। आज की दिनचर्या इतनी व्यस्त है कि लोगों के पास एक-दूसरे से मिलने-जुलने का समय नहीं होता। लेकिन ई मेल और एसएमएस जैसी आधुनिक तकनीकों के कारण अब समय के अभाव में भी दूर बैठे दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क कायम रखना आसान हो गया है।
गहरा होता है खून का रिश्ता
रानी खानम, कथक नृत्यांगना
वैसे, तो हर संबंध की अपनी अलग गरिमा और अहमियत होती है। हमारे लिए दोस्त और रिश्तेदार दोनों ही जरूरी हैं। लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है कि खून का रिश्ता बहुत गहरा होता है। कई बार रिश्तेदार भी बहुत अच्छे दोस्त साबित होते हैं। रिश्तेदार हमारे पारिवारिक जीवन से संबंधित होते हैं। भले ही उनके साथ लंबे अरसे से हमारा मिलना-जुलना न हो, फिर भी जब कभी उनसे हमारी मुलाकात होती है तो हम उनके साथ अलग ही तरह का जुडाव महसूस करते हैं। उनसे जुडी सारी पुरानी यादें फिर से ताजा हो उठती हैं। मेरा मानना है कि चाहे दोस्ती हो या रिश्तेदारी, किसी भी इंसान को अपने संबंधों का निर्वाह बहुत ईमानदारी से करना चाहिए। जिंदगी में दोनों रिश्ते होने बहुत जरूरी हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो रिश्तेदारों के बिना अपना पूरा जीवन गुजार देते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम होता कि वह जीवन की ढेर सारी खुशियों से वंचित रह गए। दोस्तों की भी हमारी जिंदगी में खास जगह होती है क्योंकि उनके साथ हमारा बेहद बेतकल्लुफी भरा रिश्ता होता है। जहां तक मेरी जिंदगी का सवाल है तो मेरी दोनों बडी बहनों शमशाद और शहनाज से मेरा बेहद दोस्ताना रिश्ता है और हर जरूरत पर वे हमेशा मेरी मदद के लिए हाजिर होती हैं।
15 मई 2011
दोस्ती या रिश्तेदारी किसका पलड़ा भारी
Posted by Udit bhargava at 5/15/2011 09:52:00 am
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