लम्बी दाढ़ी, आंखों में गहरी शांति और चेहरे पर अद्भुत तेज। लगभग ५० वर्ष की आयु के अमरीकी डेविड फ्रॉली को देखकर लगता है जैसे प्राचीन भारत के किसी ऋषि से मिल रहे हों। अमेरिका स्थित 'अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऍाफ वैदिक स्टडीज' के डाइरेक्टर डेविड फ्रॉली का झुकाव भारतीय धर्म, दर्शन के प्रति झुकाव १९ साल की उम्र से ही हो गया था।
साठ के दशक में उन्होंने योग के ऊपर कुछ किताबें पढ़ीं। धीरे-धीरे डेविड का मन उनमें इतना रमने लगा कि उन्होंने भारतीय धर्म, दर्शन, अध्यात्म, वेद, पुराण और उपनिषद आदि का एक सिरे से अध्ययन कर डाला। वह भारतीयता में ऐसे डूबे कि अपना नाम तक वामादेव शास्त्री रख लिया।
उनकी भारतीय धर्म, दर्शन पर लगभग २० से अधिक किताबें आ चुकी हैं। जहां भारत में वेद, ज्योतिष तंत्र-योग आदि का नाम लेना 'सांप्रदायिकता' और 'पिछड़ेपन' की निशानी माना जाता है। वहीं अमेरिका स्थित इस संस्थान में वेद, आयुर्वेद, ज्योतिष, योग, तंत्र और वेदांत आदि पर निरंतर शोध प्रकाशित होते रहते हैं। डेविड फ्रॉली को 'वेदांत' में आत्मिक रुचि है।
वे कहते हैं, 'आत्मा ही परमात्मा है। यानि भगवान हमारे अंदर है। उन्हें कहीं बाहर ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है। ऐसी गहरी शिक्षा केवल मुझे वेदांत में पढ़ने को मिली। अन्य किसी धर्मग्रंथ में ऐसी उदारता नहीं हो सकती। राम मंदिर मसले पर वह अपनी निर्भीक राय देते हैं हिंदुओं के लिए उस जगह का खास महत्व है। इसलिए मुसलमानों को वह जगह छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि उनके लिए इसकी कोई खास अहमियत नहीं है। एक मस्जिद के टूटने को इतना बड़ा मसला बनाना नहीं चाहिए। भारत में पहले हिंदुओं के बहुत से पूजा स्थल तोड़े जा चुके हैं। इतिहास इस बात का गवाह है। इस मसले के इतना बढ़ जाने के लिए वह कोर्ट को जिम्मेदार मानते है, जहां यह पिछले ५० सालों से अटका हुआ है। उनका कहना है अगर अमेरिका की कोर्ट में यह मसला होता, तो कब का सुलझ चुका होता है।
हाल ही में शिक्षा पर लगाए जा रहे भगवाकरण के आरोपों के बारे में वह कहते हैं, अगर इसे इतिहास बदलना कहा जा रहा है, तो यही सही है। विदेशियों ने अगर आपकी पाठ्य पुस्तकों में इतिहास के नाम पर कुछ भी लिख दिया वह कैसे अंतिम शब्द हो सकता है। भारतवासियों को बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए, उनका इतिहास जिसे वह पढ़ रहे हैं, उसे विदेशियों ने औपनिवेशिक काल में केवल अपने फायदे के लिए लिखा था। जिन मैक्समूलर को यहां के लोग महाविद्वान मानकर उन्हें पूजते हैं, उन्हें जर्मनी में कोई नहीं जानता। मैं भारतीयों से यही कहना चाहता हूं कि अपने ऊपर भरोसा करना सीखें। अपने अतीत को अपनी नजरों से देखें और परखें। इस पर गर्व करना सीखें। जितने भी देश औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत रहे, सबने अपने इतिहास को बदला है। जिनमें से चीन एक है। यहां तक कि ब्रिटेन ने खुद अपने इतिहास में बदलाव किया है। हमारी बात ले लीजिए जब मैं छोटा था, तो मैंने इतिहास की किताबों में पढ़ा था कि रेड इंडियन बहुत बुरे होते हैं। वे लोगों को मारते हैं। जबकि आज नयी पीढ़ी पढ़ती है कि सफेद रंग के यूरोपियन रेड इंडियन को परेशान करते थे। इसलिए मैं भारतीयों से यही कहना चाहता हूं कि अपने अतीत को अपनी नजरों से तौलें और उस पर गर्व करना सीखें।
साठ के दशक में उन्होंने योग के ऊपर कुछ किताबें पढ़ीं। धीरे-धीरे डेविड का मन उनमें इतना रमने लगा कि उन्होंने भारतीय धर्म, दर्शन, अध्यात्म, वेद, पुराण और उपनिषद आदि का एक सिरे से अध्ययन कर डाला। वह भारतीयता में ऐसे डूबे कि अपना नाम तक वामादेव शास्त्री रख लिया।
उनकी भारतीय धर्म, दर्शन पर लगभग २० से अधिक किताबें आ चुकी हैं। जहां भारत में वेद, ज्योतिष तंत्र-योग आदि का नाम लेना 'सांप्रदायिकता' और 'पिछड़ेपन' की निशानी माना जाता है। वहीं अमेरिका स्थित इस संस्थान में वेद, आयुर्वेद, ज्योतिष, योग, तंत्र और वेदांत आदि पर निरंतर शोध प्रकाशित होते रहते हैं। डेविड फ्रॉली को 'वेदांत' में आत्मिक रुचि है।
वे कहते हैं, 'आत्मा ही परमात्मा है। यानि भगवान हमारे अंदर है। उन्हें कहीं बाहर ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है। ऐसी गहरी शिक्षा केवल मुझे वेदांत में पढ़ने को मिली। अन्य किसी धर्मग्रंथ में ऐसी उदारता नहीं हो सकती। राम मंदिर मसले पर वह अपनी निर्भीक राय देते हैं हिंदुओं के लिए उस जगह का खास महत्व है। इसलिए मुसलमानों को वह जगह छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि उनके लिए इसकी कोई खास अहमियत नहीं है। एक मस्जिद के टूटने को इतना बड़ा मसला बनाना नहीं चाहिए। भारत में पहले हिंदुओं के बहुत से पूजा स्थल तोड़े जा चुके हैं। इतिहास इस बात का गवाह है। इस मसले के इतना बढ़ जाने के लिए वह कोर्ट को जिम्मेदार मानते है, जहां यह पिछले ५० सालों से अटका हुआ है। उनका कहना है अगर अमेरिका की कोर्ट में यह मसला होता, तो कब का सुलझ चुका होता है।
हाल ही में शिक्षा पर लगाए जा रहे भगवाकरण के आरोपों के बारे में वह कहते हैं, अगर इसे इतिहास बदलना कहा जा रहा है, तो यही सही है। विदेशियों ने अगर आपकी पाठ्य पुस्तकों में इतिहास के नाम पर कुछ भी लिख दिया वह कैसे अंतिम शब्द हो सकता है। भारतवासियों को बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए, उनका इतिहास जिसे वह पढ़ रहे हैं, उसे विदेशियों ने औपनिवेशिक काल में केवल अपने फायदे के लिए लिखा था। जिन मैक्समूलर को यहां के लोग महाविद्वान मानकर उन्हें पूजते हैं, उन्हें जर्मनी में कोई नहीं जानता। मैं भारतीयों से यही कहना चाहता हूं कि अपने ऊपर भरोसा करना सीखें। अपने अतीत को अपनी नजरों से देखें और परखें। इस पर गर्व करना सीखें। जितने भी देश औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत रहे, सबने अपने इतिहास को बदला है। जिनमें से चीन एक है। यहां तक कि ब्रिटेन ने खुद अपने इतिहास में बदलाव किया है। हमारी बात ले लीजिए जब मैं छोटा था, तो मैंने इतिहास की किताबों में पढ़ा था कि रेड इंडियन बहुत बुरे होते हैं। वे लोगों को मारते हैं। जबकि आज नयी पीढ़ी पढ़ती है कि सफेद रंग के यूरोपियन रेड इंडियन को परेशान करते थे। इसलिए मैं भारतीयों से यही कहना चाहता हूं कि अपने अतीत को अपनी नजरों से तौलें और उस पर गर्व करना सीखें।
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