अपने देश को छोड़कर दूसरे देशों में रहने की तमन्ना भारतीयों में अथाह है. जोड़-तोड़ लगाकर और जोश में भारतीय चले तो जाते हैं, लेकिन वहां के समाज में घुलने-मिलने में प्रारम्भिक वर्षों में उन्हें बहुत कठिनाई होती है. उन्हें दूसरे देश के निवासियों का रिजेक्शन झेलना पड़ता है और चरम परिस्थितियों में कई भारतीय एडजस्ट नहीं होने के कारण मानसिक अवसाद से ग्रस्त होकर आत्महत्या तक को मजबूर हो जाते हैं. जिसकी कोई जरूरत नहीं है क्योंकि बातें बहुत छोटी-छोटी सी होती है.
अमरीकी किसी के भी बहुत जल्दी दोस्त बन जाते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आपके कठिन परिस्थितियों में वे आपके वित्तीय एवं व्यक्तिगत दायित्वों की पूर्ती में सहायक होंगे. भारत में इसके विपरीत किसी भी दोस्ती में दोनों ही चीजों की आवश्यकता है.
जापान के समाज में निवासी बनने से पहले यह जान लो कि किसी भी जापानी द्वारा की गई सहायता [चाहे कितनी भी छोटी हो या बड़ी हो] को भविष्य में आपके द्वारा लौटाना आवश्यक है. अक्सर जापानी यह आशा करते हैं कि कुछ हजार डाँलर आपको डाक्टर, वकील, अध्यापक को प्रति वर्ष उनकी फीस के अलावा देने हैं, क्योंकि वे आपके परिवार का ध्यान रखते हैं. वहां यह भी पारंपरिक है कि जैसे ही आपका बच्चा प्राइमरी स्कूल की क्लास उत्तीर्ण करे, तो एक-दो लाख रूपये आप स्कूल के अधिकारियों को थेंक यू मनी के रूप में दे. इसी तरह से यदि आप कहीं बैठकर गप-शाप कर रहे हैं, तो किसी भी उम्र का अमरीकन यह आशा करेगा कि आप उसके प्रथम नाम से उसे पुकारें. यहीं जर्मनी, फ्रांस आदि के नागरिक इसको ठीक नहीं मानते हैं. चीन में यदि कोई अपना नाम बताता है तो पहले वह अपना फेमिली नेम बताता है और फिर अपना नाम. वे भी इस बात से हिचकिचाते हैं कि कोई भी उन्हें बिना प्रगाढ़ संबंध बने, प्रथम नाम से पुकारें. यदि हम उपहार की बात करें, तो अमरीका में कपड़ों का उपहार देना ठीक नहीं माना जाता है क्योंकि कपड़ों के बारे में निर्णय बहुत पर्सनल डिसीजन माने जाते हैं. इसी तरह से कपड़ों के उपहार रसिया में रिश्वत मानी जाती है. रूमालों के उपहार थाईलैंड, इटली, वेनेजुएला, ब्राजील देशों में ठीक नहीं माने जाते क्योंकि वहां इसको ट्रेजडी का प्रतीक माना जाता है. इसी तरह से चीन और जापान में कभी भी 'चार' वस्तुएँ एक साथ उपहार में नहीं देनी चाहिए. इसे अशुभ माना जाता है. इसी तरह ताइवान एवं चीन में घड़ी एक उपहार की तरह नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह मृत्यु का घोतक है.
फंडा यह है कि...
सारांश यही है कि जब किसी भी देश में रहने जाएं, तो उसकी संस्कृति का अध्ययन करें और उसका अपने व्यवहार में ध्यान रखें.
अमरीकी किसी के भी बहुत जल्दी दोस्त बन जाते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आपके कठिन परिस्थितियों में वे आपके वित्तीय एवं व्यक्तिगत दायित्वों की पूर्ती में सहायक होंगे. भारत में इसके विपरीत किसी भी दोस्ती में दोनों ही चीजों की आवश्यकता है.
जापान के समाज में निवासी बनने से पहले यह जान लो कि किसी भी जापानी द्वारा की गई सहायता [चाहे कितनी भी छोटी हो या बड़ी हो] को भविष्य में आपके द्वारा लौटाना आवश्यक है. अक्सर जापानी यह आशा करते हैं कि कुछ हजार डाँलर आपको डाक्टर, वकील, अध्यापक को प्रति वर्ष उनकी फीस के अलावा देने हैं, क्योंकि वे आपके परिवार का ध्यान रखते हैं. वहां यह भी पारंपरिक है कि जैसे ही आपका बच्चा प्राइमरी स्कूल की क्लास उत्तीर्ण करे, तो एक-दो लाख रूपये आप स्कूल के अधिकारियों को थेंक यू मनी के रूप में दे. इसी तरह से यदि आप कहीं बैठकर गप-शाप कर रहे हैं, तो किसी भी उम्र का अमरीकन यह आशा करेगा कि आप उसके प्रथम नाम से उसे पुकारें. यहीं जर्मनी, फ्रांस आदि के नागरिक इसको ठीक नहीं मानते हैं. चीन में यदि कोई अपना नाम बताता है तो पहले वह अपना फेमिली नेम बताता है और फिर अपना नाम. वे भी इस बात से हिचकिचाते हैं कि कोई भी उन्हें बिना प्रगाढ़ संबंध बने, प्रथम नाम से पुकारें. यदि हम उपहार की बात करें, तो अमरीका में कपड़ों का उपहार देना ठीक नहीं माना जाता है क्योंकि कपड़ों के बारे में निर्णय बहुत पर्सनल डिसीजन माने जाते हैं. इसी तरह से कपड़ों के उपहार रसिया में रिश्वत मानी जाती है. रूमालों के उपहार थाईलैंड, इटली, वेनेजुएला, ब्राजील देशों में ठीक नहीं माने जाते क्योंकि वहां इसको ट्रेजडी का प्रतीक माना जाता है. इसी तरह से चीन और जापान में कभी भी 'चार' वस्तुएँ एक साथ उपहार में नहीं देनी चाहिए. इसे अशुभ माना जाता है. इसी तरह ताइवान एवं चीन में घड़ी एक उपहार की तरह नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह मृत्यु का घोतक है.
फंडा यह है कि...
सारांश यही है कि जब किसी भी देश में रहने जाएं, तो उसकी संस्कृति का अध्ययन करें और उसका अपने व्यवहार में ध्यान रखें.
दुनिया रंग रंगीली और कबिरा इस संसार में भांति भांति के लोग.
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