बड़े कामों की शुरूआत कई बार छोटी-छोटी चीजों से और छोटी-छोटी जगहों पर होती है. इस बार गणतंत्र दिवस के अवसर जहाँ पूरा देश राष्ट्रीय तिरंगे को फहराते हुए राष्ट्रगान गा रहा था, वही बिहार की राजधानी पटना की एक काँलोनी में स्थित 'Trimurti Housing Society' में रहने वाले लोगों ने इस राष्ट्रीय पर्व को कुछ अलग ढंग से मनाने का फैसला किया. इस Apartment के ठीक सामने झुग्गी-झोपड़ियों की एक कतार है, जिनमें रहने वाले ज्यादातर परिवारों के मुखिया मुजरिम करार देते हुए विभिन्न सजाओं के अंतर्गत बेउर जेल में बंद हैं. इन झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे गरीबी में जीने को विवश हैं, जिनका शिक्षा से कभी कोई लेना-देना नहीं रहा. ऐसे में गणतंत्र दिवस पर Apartment के रहवासियों ने अपने परिसर में एक सरस्वती पूजा का आयोजन किया और झोपड़ियों में रहने वाले 6 से 14 वर्ष के तकरीबन 30 बच्चों को इकट्ठा करते हुए उन्हें शिक्षा के साथ जोड़ने की पहल की.
धुल-मिट्टी से सने हुए इन बच्चों का पेन्सिल या इरेजर से कभी कोई वास्ता नहीं पडा था. एक बच्चे ने पेन्सिल को हाथ में चाकू की तरह थाम लिया और बोला, 'मेरे पिता इसी तरह चाकू पकड़ते हैं, जब वह मेरी माँ को धमकाते हैं' उन बच्चों को बताया गया कि पेन्सिल को उँगलियों के बीच कैसे थामा जाता है. बच्चे भी पहली बार अपने हाथ में पेन्सिल पकड़ कागज़ पर उल्लती-सीधी लिखावट में कुछ लिखते हुए काफी उत्साहित थे. यह देखते हुए Trimurti के रहवासियों ने इन बच्चों को पास के एक सरकारी स्कूल में भर्ती कराने का फैसला किया. अपने इस प्रयास के लिये Funds जुटाने की खातिर ये लोग निकट स्थित अन्य आवासीय Societies को भी Approach करने के बारे में सोच रहे हैं. ऐसे में हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा- आखिर देशभक्ति क्या है? दरअसल Trimurti Apartment के रहवासियों ने जो किया, उसमें देशभक्ति की सच्ची भावना की झलक मिलती है. उन्होंने इन बच्चों को अपराध की दुनिया में जाने से बचाते हुए शिक्षा के साथ जोड़ते की पहल की. 18वीं सदी में ब्रिटीश राजनीतिज्ञ रांबर्ट वालपोल ने कहा था, 'लोग अक्सर देशभक्ति के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं इसकी सार्थकता तभी है, जबकि इसे सही मायनों में अमल में लाया जाए.' यदि पटना में रहने वाले कुछ लोग देशभक्ति की सही भावना को व्यवहार में ला सकते हैं तो हम क्यों नहीं.
धुल-मिट्टी से सने हुए इन बच्चों का पेन्सिल या इरेजर से कभी कोई वास्ता नहीं पडा था. एक बच्चे ने पेन्सिल को हाथ में चाकू की तरह थाम लिया और बोला, 'मेरे पिता इसी तरह चाकू पकड़ते हैं, जब वह मेरी माँ को धमकाते हैं' उन बच्चों को बताया गया कि पेन्सिल को उँगलियों के बीच कैसे थामा जाता है. बच्चे भी पहली बार अपने हाथ में पेन्सिल पकड़ कागज़ पर उल्लती-सीधी लिखावट में कुछ लिखते हुए काफी उत्साहित थे. यह देखते हुए Trimurti के रहवासियों ने इन बच्चों को पास के एक सरकारी स्कूल में भर्ती कराने का फैसला किया. अपने इस प्रयास के लिये Funds जुटाने की खातिर ये लोग निकट स्थित अन्य आवासीय Societies को भी Approach करने के बारे में सोच रहे हैं. ऐसे में हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा- आखिर देशभक्ति क्या है? दरअसल Trimurti Apartment के रहवासियों ने जो किया, उसमें देशभक्ति की सच्ची भावना की झलक मिलती है. उन्होंने इन बच्चों को अपराध की दुनिया में जाने से बचाते हुए शिक्षा के साथ जोड़ते की पहल की. 18वीं सदी में ब्रिटीश राजनीतिज्ञ रांबर्ट वालपोल ने कहा था, 'लोग अक्सर देशभक्ति के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं इसकी सार्थकता तभी है, जबकि इसे सही मायनों में अमल में लाया जाए.' यदि पटना में रहने वाले कुछ लोग देशभक्ति की सही भावना को व्यवहार में ला सकते हैं तो हम क्यों नहीं.
फंडा यह है कि...
देशभक्ति होने के लिये तिरंगा फहराना या राष्ट्रगान गाना ही काफी नहीं है. हमें कुछ ऐसा काम करना होगा, जिससे देश और समाज का व्यापक तौर पर भला हो सके.
लेख बहुत प्रभावी है ।
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