पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मैनपुरी नगर की देवी माँ शीतला की महिमा अपरम्पार है। उनका भव्य मंदिर मैनपुरी कुरावली मार्ग पर मैनपुरी नगर से लगभग 4कि।मी. की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 16वींशताब्दी में मैनपुरी के आठवें व चौहान राजवंश के नब्बे वेंराजा जगतमणिने कराया था। कहा जाता है कि जो व्यक्ति एक बार भी इस मंदिर में विराजितमां शीतला के दर्शन कर लेता है। उसकी मनोकामनाएंनिश्चित ही पूरी हो जाती हैं। इसीलिए यहां वर्ष भर विभिन्न जाति-सम्प्रदाय के भक्त-श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। चैत्र व आश्विन मास की नवदुर्गा में तो यहां असंख्य श्रद्धालु आते है। मैनपुरी में मां शीतलाको मैनपुरी के राजा जगतमणिही यहां लाए थे। वे प्राय: मां शीतला के दर्शनों के लिए अपने उत्तरप्रदेश स्थित गुमधामकडा मानिकपुर (प्रतापगढ) जाया करते थे। एक बार जब वह चैत्र मास में कडा मानिकपुर गए हुए थे, तो वहां सप्तमी-अष्टमी की रात्रि से शीतला मां ने उन्हें स्वप्न दिया और यह कहा कि राजन! में तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हूं। अब तुम्हें इतना कष्ट उठाने की आवश्यकता नहीं है कि तुम अपना राजकाजछोड कर मेरे दर्शनों के लिए यहां आओ। तुम मुझे मैनपुरी ले चलो। मैं तुम्हें वह जगह बताए देती हूं, जहां पर कि मैं प्रकट होऊंगी। राजा जगमणिने माँ शीतला द्वारा बताए गए स्थान पर पृथ्वी से खोदना शुरू किया, जिसमें कि उन्हें लाल पत्थर व काले संगमरमर से निर्मित माँ शीतला की अत्यंत आकर्षक प्रतिमा प्राप्त हुई। प्रकटव्यस्थान पर राजा जगतमणिने 24फुट की वर्गाकृतिके अन्तर्गत 9.9फुट ऊंचे मंदिर का निर्माण कराया। तत्पश्चात मां शीतला की प्राण प्रतिष्ठा अत्यंत धूमधाम से कराई गई। मैनपुरी में मां शीतला का मंदिर बनते ही वह यहां की सांस-सांस में बस गई और यहां की कुल देवी मानी जाने लगी। मैनपुरी की देवी मां शीतला का मंदिर प्राचीनतम आध्यात्मिक व सांस्कृतिक धरोहर होने के साथ-साथ तत्कालीन शिल्पकला व पुरातत्व की भी बहुमूल्य कृति है। मंदिर के मुख्य द्वारा के शीर्ष पर दुधाराखड्ग धाम भैरों बाबा की मूर्ति है। जिनकी अगलबगल में दो खौफनाक सिंहों की मूर्तियां हैं। मंदिर के मुख्य दरवाजे को पार करने के बाद अंदर के प्रकोष्ठ में मां शीतला का अत्यंत आकर्षक विग्रह स्थापित है। यह विग्रह अत्यंत सिद्ध है। विग्रह के सम्मुख वह झार आज भी बनी हुई है। जिसमें से कि मां शीतला प्रकट हुई थीं। बताया जाता है कि इस झार की गहराई अथाह है। मां शीतला के मंदिर से गंगा व यमुना नदियों की दूरी बिल्कुल एक समान है। मैनपुरी का किला व अश्वावलिका किला भी यहां से समान दूरी पर स्थित है। प्रमुख नदी ईसनमैनपुरी में मां शीतला के मंदिर की परिक्रमा सी करती हुई निकलती है। लोग-बागों ने मां शीतला के करिश्मे प्रत्यक्ष देखे है। कुछ वर्ष पूर्व मां शीतला की प्रतिमा को कुछ व्यक्तियों ने मंदिर से चुरा लिया था। जिससे कुछ ही दिनों में चारों के परिवार खण्डित होने लगे। साथ ही भांति-भांति की व्याधियोंने उन्हें घेर लिया। परिणामत:उन्होंने एक रात को देवी की प्रतिमा को यहां की देवी गेट चुंगी के पास रखा छोड दिया। देवी जी के भक्तों ने प्राप्त प्रतिमा को मंदिर में पहुंचाया। प्रतिमा के मंदिर में पहुंचते ही मूर्ति चोरों की सटी व्याधियांअपने आप समाप्त हो गई। देवीजीके मंदिर के निकट रहने वाले संत मिट्ठू लाल व नागा बाबा में देवी जी के प्रताप से इतने अधिक दैव्यत्वकी प्राप्ति हो गई थी कि वह जब कभी जिस किसी वस्तु की आवश्यकता अनुभव करते थे, वह वस्तु उनकी कुटिया में स्वत:आ जाती थी। मैनपुरी की देवी मां शीतलाका आशीर्वाद लेने असंख्य जन यहां आते है। यहां बच्चों के मुण्डन यज्ञोपवीत संसार, श्राद्ध, कथा व हवन आदि कराना निहायत शुभ माना जाता है। कोई यहां मनौती करने आता है तो कोई अपना मनोरथ पूरा होने पर बोले गए अनुष्ठान पूरे करता दिखाई देता है। आज भी मैनपुरी में बहुत सारे ऐसे परिवार हैं, जिनकी दिनचर्या मां शीतला के दर्शन करने के बाद आरंभ होती है। वस्तुत:न केवल मैनपुरी का अपितु उसके निकटवर्ती व दूरदराज के क्षेत्रों की जनता का भी बहुत बडा प्रतिशत मैनपुरी की देवी के साथ किसी न किसी रूप में जुडा हुआ है।
29 दिसंबर 2009
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