29 दिसंबर 2009

अभीष्ट सिद्ध करते हैं सिद्धिविनायक


श्रीगणेशपुराणके अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी के मध्याह्नकालमें सिद्धिविनायकप्रकट हुए थे, अत:इस तिथि को सिद्धिविनायक-चतुर्थी भी कहा जाता है। महाराष्ट्र-सहित देश के अधिकांश प्रदेशों में इस दिन से गणेशोत्सवका शुभारंभ हो जाता है। लोग अत्यंत श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मंगलमूर्तिविनायक की प्रतिमा अपने घर में स्थापित करते हैं और विविध सामग्रियों से विघन्विनाशककी पूजा करते हैं। जब तक गणेशजीकी वह मृन्मयीमूर्ति घर में विराजमान रहती है, तब तक उसका सत्कार एवं पूजन बडे भक्ति-भाव से होता है। नगरों में अनेक मण्डल सार्वजनिक गणेशोत्सवका आयोजन करते हैं। गणपति-प्रतिमा का एक निश्चित अवधि तक पूजन करने के उपरांत जल में उसका विसर्जन कर दिया जाता है। गणेशोत्सवभाद्रपद- शुक्ल- चतुर्दशी (अनन्त चतुर्दशी) के दिन समाप्त होता है।
गणेशपुराणमें इस संदर्भ में विस्तृत कथा है, जो संक्षेप में यह है-आदिदेव गणेश की तीव्र लालसा से माता पार्वती ने एक रमणीय स्थान पर उनका ध्यान करते हुए एकाक्षरीगणेश-मंत्र का तल्लीन होकर जप किया। इस तरह भगवती उमा के बारह वर्ष तक निरंतर कठोर तप करने पर प्रथम पूज्यदेवगणेश संतुष्ट होकर उनके सम्मुख उपस्थित हो गए तथा उन्होंने जगदम्बा को पुत्र के रूप में अवतरित होने का वचन दे दिया। भाद्रपद-शुक्ल-चतुर्थी के मध्याह्नकालमें स्वाति नक्षत्र के समय अमित महिमामय श्रीगणेश जगज्जननीशिवा के यहाँ पुत्र-रूप में प्रकट हुए। अत:इस पावन तिथि के मध्याह्न में विघ्नेश्वरकी स्थापना करके उनका षोडशोपचारपूजन करें। संभव हो तो गणेश- सहस्त्रनामवलीसे दूर्वा एवं मोदक अर्पित करें और यदि यह न कर सकें तो कम से कम 21लड्डुओं का भोग अवश्य लगाएं। आपके हृदय में जो कामना हो, वह चिन्तामणि गणेश के समक्ष निवेदित कर दें। भक्तवत्सल सिद्धिविनायककी कृपा से साल भर के अंदर वह मनोरथ पूर्ण हो जाएगा। इस व्रतराजका पूरा फल प्राप्त करने के लिए भाद्रपद मास के बाद भी प्रत्येक माह की मध्याह्नव्यापिनीचतुर्थी के दिन व्रत रखते हुए मध्याह्नकालमें सिद्धिविनायककी सविधि पूजा जरूर करें। मनोनुकूल वरदान करने में समर्थ यह तिथि वरदा चतुर्थी एवं वैनायकी चतुर्थी नामों से लोकप्रिय हो गई है।
स्कन्दपुराणोक्तश्रीकृष्ण-युधिष्ठिर संवाद में चतुर्थी-व्रत का विस्तार से वर्णन हुआ है। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी अमोघ फलदायिनीहैं। सिद्धिविनायककी आराधना से समस्त कार्य सिद्ध होते हैं और मनोकामना पूरी होती है। इसी कारण श्रीगणेश का यह सिद्धिविनायक नाम लोकविख्यातहो गया है-
सिद्धयन्तिसर्वकार्याणिमनसा चिन्तितान्यपि।
तेन ख्यातिंगतोलोकेनाम्नासिद्धिविनायक:॥
सिद्धिविनायकका ध्यान इस प्रकार करें-
एकदन्तंशूर्पकर्णगजवक्त्रंचतुर्भुजं।
पाशांकुशधरंदेवंध्यायेत्सिद्धिविनायकं॥
जिनके एक दाँत, सूप के समान विशाल कान, हाथी के सदृश मुख और चार भुजाएं हैं, जो अपने हाथों में पाश एवं अंकुश धारण करे हुए हैं, ऐसे सिद्धिविनायकदेव का हम ध्यान करते हैं। सिद्धिविनायककी अंग-कान्ति तपे हुए सोने के समान दीप्तिमयहै। वे अनेक प्रकार के आभूषणों से विभूतिषहैं। एक अन्य ध्यान में सिद्धिविनायकको अपने हाथों में दंत, अक्षमाला,परशु और मोदक से भरा हुआ पात्र लिए दिखाया गया है, जिसमें उनकी सूँड का अग्रभाग लड्डू पर लगा हुआ है। गणेशजीकी दो पत्नियां सिद्धि और बुद्धि हैं। शिवपुराणकी रुद्रसंहिताके कुमारखण्डमें गणपति के सिद्धि-बुद्धि के साथ विवाह का प्रसंग वर्णित है। शास्त्रों में श्रीगणेश के वाम भाग में (बायीं ओर) सिद्धि और दक्षिण भाग में (दाहिनी तरफ) बुद्धि की संस्थितिबताई गई है। इनकी कृपा से भक्त को अपने कार्य में सिद्धि (पूर्णता) प्राप्त होती है तथा वह बुद्धिमान और ज्ञानवान बन जाता है। सिद्धिविनायकके कृपा-कटाक्ष से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष अर्थात सब कुछ मिल जाता है। विनयपत्रिकामें गोस्वामी तुलसीदास ने इनकी सिद्धिसदन गजबदनविनायक.. विद्यावारिधिबुद्धिविधाताकहकर वन्दना की है। गणेशजीके क्षेम-लाभ नामक दो पुत्र हैं, जो क्रमश:सिद्धि-बुद्धि से उत्पन्न हुए।
मुंबई में सिद्धिविनायकके दर्शनार्थ बहुत बडी संख्या में भक्त आते हैं। काशी के छप्पन विनायकोंमें मणिकर्णिकाघाट के ऊपर स्थित सिद्धिविनायककी भी काफी मान्यता है। पंचक्रोशी-परिक्रमामें तीर्थयात्री इनका दर्शन-लाभ करते हैं। श्रीसिद्धिविनायकके आविर्भावोत्सवहेतु मध्याह्नव्यापिनीभाद्रपद-शुक्ल-चतुर्थी ही ग्रहण करनी चाहिए। इस वर्ष यह योग रविवार 27अगस्त को ही बनेगा और साथ ही रविवार से इस चतुर्थी का संयोग सोने में सुहागा की कहावत को चरितार्थ कर रहा है। सिद्धिविनायक-चतुर्थी के दिन चन्द्रदर्शननिषिद्ध है। ऐसा सिद्धिविनायकके चन्द्रदेवको शाप देने के कारण है-
भाद्रशुक्लचतुथ्र्यायो ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपिवा।
अभिशापीभवेच्चन्द्रदर्शनाद्भृशदु:खभाग्॥
जो जानकर या अनजाने ही भाद्र-शुक्ल-चतुर्थी को चन्द्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। उसे भारी दुख उठाना पडेगा। योगेश्वर श्रीकृष्ण को स्यमन्तकमणिकी चोरी का मिथ्याकलंकइस तिथि के चन्द्रदर्शनसे ही लगा था। इस दिन चन्द्रमा देख लेने पर उसके दोष के शमन हेतु श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के 57वेंअध्याय को पढें। जिसमें स्यमन्तकमणि के हरण का प्रसंग हैं।
वस्तुत:सिद्धिविनायकअपने नाम के अनुरूप फल प्रदान करने वाले हैं। इनकी उपासना अतिशीघ्र फलीभूत होती है। अभीष्टि-सिद्धिके लिए देवताओं ने भी इनकी अर्चना की है।