श्रीमहाकालपृथ्वी की नाभि उज्जयिनीमें अनन्तकाल से विराजमान हैं। इन्हें मात्र अवंतिकानाथ ही नहीं वरन् सम्पूर्ण मृत्युलोक का अधिपति माना गया है। यद्यपि इनकी गणना पुण्यभूमि भारत के द्वादश ज्योतिर्लिङ्गोंमें होती है, किन्तु महाकाल का माहात्म्य केवल इतना ही नहीं है। ब्रह्माण्ड को मुख्यत:तीन लोकों में विभाजित किया जा सकता है-आकाश, पृथ्वी और पाताल। इन तीनों लोकों का शासन सर्वव्यापी सदाशिवअपने त्रिगुणात्मक स्वरूप से इस प्रकार करते हैं-
आकाशेतारकंलिङ्गं,पातालेहाटकेश्वरम्।
भूलोकेचमहाकालं,लिङ्गत्रयनमोऽस्तुते॥
आकाश में तारक लिङ्गतथा पाताल में हाटकेश्वरपूजित हैं। महाकाल भूलोक के शासक हैं। योगी जब इन तीनों शिवलिङ्गोंका स्मरण करके इन्हें नमस्कार करते हैं तो उनके द्वारा महादेव की मानसपूजासम्पन्न हो जाती है।
स्कन्दपुराणके अवंतीखण्डमें भगवान शिव के महाकाल वन में निवास तथा यहां से सृष्टि की संरचना का शुभारंभ करने की कथा है। इस खण्ड में मोक्षदायिनीअवंतिकापुरी(उज्जैन) के राजा महाकाल, 84शिवलिङ्गोंतथा परमपुण्यप्रदाशिप्राका सुविस्तृतवर्णन है। स्कन्दपुराणके ब्राह्मोत्तरखण्डमें राजा चन्द्रसेन एवं श्रीकरगोप की शिव-भक्ति तथा महाकालेश्वर की महिमा का गुण-गान मिलता है। शिवपुराणकी कोटिरुद्रसंहितामें महाकाल ज्योतिर्लिङ्गके आविर्भाव की कथा है। भक्तों के अनुरोध पर महाकालेश्वर अवंतिका(उज्जयिनी) में स्थित हो गए। महाभारत के वनपर्वमें लिखा है कि महाकाल के देवालय में स्थित कोटितीर्थ-कुण्डके जल से उनका अभिषेक करने पर अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। शिप्रामें स्नान करके महाकालेश्वर का दर्शन करने वाला अनेक जन्मों के पापों से मुक्त होकर सद्गति पाता है। लिङ्गपुराणमें महाकाल का मृत्युलोक के स्वामी रूप में स्तवन किया गया है-मृत्युलोके महाकालंलिङ्गरूपनमोऽस्तुते।गरुडपुराणमें महाकाल की नगरी अवंतिकाको मोक्षप्रदाएवं सप्त पावन पुरियोंमें तिलाधिकश्रेष्ठ बताया गया है। आदिब्रह्मपुराणमें महाकालेश्वर की अवंतिकाको भूतल पर सर्वोत्तम घोषित किया गया है।
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ अपनी पत्नी अरुन्धतीसे प्रशंसा करते हुए कहते हैं-
महाकाल: सरिच्छिप्रागतिश्चैवसुनिर्मला।
उज्जयिन्यांविशालाक्षिवास: कस्यन रोचयेत्॥
स्नानंकृत्वानरोयस्तुमहानद्यांहि दुर्लभम्।
महाकालंनमस्कृत्यनरोमृत्युंन शोचयेत्॥
जहां भगवान महाकाल हैं, पुण्यसलिलाशिप्राहैं, उस मोक्षदायिनीउज्जयिनीमें रहना भला किसे अच्छा न लगेगा। महानदी शिप्रामें स्नान करके महाकाल का दर्शन कर लेने पर अकाल मृत्यु की कोई चिन्ता नहीं रहती।
त्रिखण्डमंदिर के जमीन की सतह से नीचे स्थित भूगर्भ-खण्ड में श्रीमहाकालेश्वरका विशाल ज्योतिर्लिङ्गहै, जो चांदी की जलहरी(अरघे) में नाग-परिवेष्टित है। इसके एक ओर श्रीगणेश, दूसरी ओर माता पार्वती और तीसरी ओर कार्तिकेय जी के विग्रह हैं। यहां घृतदीपऔर तेलदीपनिरंतर प्रज्वलित रहते हैं। ज्योतिर्लिङ्गके ऊपर की छत चाँदी के विशाल रुद्रयंत्रके रूप में है। उसके ऊपर भूतलखण्डमें ओङ्कारेश्वरशिवलिङ्गहै। इसके ऊपर तीसरे खण्ड में श्रीनागचन्दे्रश्वरविराजमान हैं, जिनका दर्शन साल में एक बार केवल नागपंचमी के दिन ही होता है। नित्य ब्रह्ममुहूर्तमें होने वाली महाकाल की भस्म-आरती बडी अनूठी है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिङ्गके दक्षिणमुखीहोने से इनका अपना एक विशेष महत्व है। तंत्रशास्त्रकी दृष्टि में दक्षिणमुखीशिवलिङ्गअति उग्र होने से प्रचण्ड शक्तिशाली एवं त्वरित फलदायीमाना जाता है। इस अनुपम विशेषता के कारण महाकाल का वैदिक अथवा तांत्रिक मंत्रों से पूजन एवं अभिषककरने पर तुरन्त फल प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि महाकाल के समक्ष महामृत्युंजयका जप करने से द्वार पर आई मृत्यु भी उल्टे पैर लौट जाती है। रोगी स्वस्थ होकर दीर्घायु हो जाता है। मरणशय्यापर पडा व्यक्ति भी नया जीवन पाता है।
आकाशेतारकंलिङ्गं,पातालेहाटकेश्वरम्।
भूलोकेचमहाकालं,लिङ्गत्रयनमोऽस्तुते॥
आकाश में तारक लिङ्गतथा पाताल में हाटकेश्वरपूजित हैं। महाकाल भूलोक के शासक हैं। योगी जब इन तीनों शिवलिङ्गोंका स्मरण करके इन्हें नमस्कार करते हैं तो उनके द्वारा महादेव की मानसपूजासम्पन्न हो जाती है।
स्कन्दपुराणके अवंतीखण्डमें भगवान शिव के महाकाल वन में निवास तथा यहां से सृष्टि की संरचना का शुभारंभ करने की कथा है। इस खण्ड में मोक्षदायिनीअवंतिकापुरी(उज्जैन) के राजा महाकाल, 84शिवलिङ्गोंतथा परमपुण्यप्रदाशिप्राका सुविस्तृतवर्णन है। स्कन्दपुराणके ब्राह्मोत्तरखण्डमें राजा चन्द्रसेन एवं श्रीकरगोप की शिव-भक्ति तथा महाकालेश्वर की महिमा का गुण-गान मिलता है। शिवपुराणकी कोटिरुद्रसंहितामें महाकाल ज्योतिर्लिङ्गके आविर्भाव की कथा है। भक्तों के अनुरोध पर महाकालेश्वर अवंतिका(उज्जयिनी) में स्थित हो गए। महाभारत के वनपर्वमें लिखा है कि महाकाल के देवालय में स्थित कोटितीर्थ-कुण्डके जल से उनका अभिषेक करने पर अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। शिप्रामें स्नान करके महाकालेश्वर का दर्शन करने वाला अनेक जन्मों के पापों से मुक्त होकर सद्गति पाता है। लिङ्गपुराणमें महाकाल का मृत्युलोक के स्वामी रूप में स्तवन किया गया है-मृत्युलोके महाकालंलिङ्गरूपनमोऽस्तुते।गरुडपुराणमें महाकाल की नगरी अवंतिकाको मोक्षप्रदाएवं सप्त पावन पुरियोंमें तिलाधिकश्रेष्ठ बताया गया है। आदिब्रह्मपुराणमें महाकालेश्वर की अवंतिकाको भूतल पर सर्वोत्तम घोषित किया गया है।
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ अपनी पत्नी अरुन्धतीसे प्रशंसा करते हुए कहते हैं-
महाकाल: सरिच्छिप्रागतिश्चैवसुनिर्मला।
उज्जयिन्यांविशालाक्षिवास: कस्यन रोचयेत्॥
स्नानंकृत्वानरोयस्तुमहानद्यांहि दुर्लभम्।
महाकालंनमस्कृत्यनरोमृत्युंन शोचयेत्॥
जहां भगवान महाकाल हैं, पुण्यसलिलाशिप्राहैं, उस मोक्षदायिनीउज्जयिनीमें रहना भला किसे अच्छा न लगेगा। महानदी शिप्रामें स्नान करके महाकाल का दर्शन कर लेने पर अकाल मृत्यु की कोई चिन्ता नहीं रहती।
त्रिखण्डमंदिर के जमीन की सतह से नीचे स्थित भूगर्भ-खण्ड में श्रीमहाकालेश्वरका विशाल ज्योतिर्लिङ्गहै, जो चांदी की जलहरी(अरघे) में नाग-परिवेष्टित है। इसके एक ओर श्रीगणेश, दूसरी ओर माता पार्वती और तीसरी ओर कार्तिकेय जी के विग्रह हैं। यहां घृतदीपऔर तेलदीपनिरंतर प्रज्वलित रहते हैं। ज्योतिर्लिङ्गके ऊपर की छत चाँदी के विशाल रुद्रयंत्रके रूप में है। उसके ऊपर भूतलखण्डमें ओङ्कारेश्वरशिवलिङ्गहै। इसके ऊपर तीसरे खण्ड में श्रीनागचन्दे्रश्वरविराजमान हैं, जिनका दर्शन साल में एक बार केवल नागपंचमी के दिन ही होता है। नित्य ब्रह्ममुहूर्तमें होने वाली महाकाल की भस्म-आरती बडी अनूठी है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिङ्गके दक्षिणमुखीहोने से इनका अपना एक विशेष महत्व है। तंत्रशास्त्रकी दृष्टि में दक्षिणमुखीशिवलिङ्गअति उग्र होने से प्रचण्ड शक्तिशाली एवं त्वरित फलदायीमाना जाता है। इस अनुपम विशेषता के कारण महाकाल का वैदिक अथवा तांत्रिक मंत्रों से पूजन एवं अभिषककरने पर तुरन्त फल प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि महाकाल के समक्ष महामृत्युंजयका जप करने से द्वार पर आई मृत्यु भी उल्टे पैर लौट जाती है। रोगी स्वस्थ होकर दीर्घायु हो जाता है। मरणशय्यापर पडा व्यक्ति भी नया जीवन पाता है।
महाकाल की आराधना से अकाल मृत्यु का योग नष्ट हो जाता है। मालवा में यह कहावत प्रसिद्ध है-
अकाल मृत्यु वो मरे, जो काम करे चण्डाल का।
काल उसका क्या करे, जो भक्त हो महाकाल का॥
महाकाल कालचक्र के प्रवर्तक हैं-कालचक्र- प्रवर्तकोमहाकाल: प्रतापन:।भारतीय ज्योतिर्विज्ञान में महाकाल की नगरी उज्जयिनीसदा से ही पंचांग-गणना की केंद्रबिन्दु रही है। इस प्रकार काल के नियंत्रक होने से उनका महाकाल नाम पूर्णतया सार्थक और सत्य है। श्रावण एवं कार्तिक मास में तथा विजयादशमी, वैकुण्ठ चतुर्दशी आदि पर्वो में महाकाल की सवारी नगर-भ्रमण के लिए निकलती है, जिसमें अपार जनसमूह श्रद्धा के साथ भाग लेता है।
फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष में षष्ठी से चतुर्दशी तिथि (महाशिवरात्रि) तक के नौ दिन के परमपुनीतकाल को महाकालेश्वर-नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रमें महाकाल का नित्य नूतन विशिष्ट श्रृंगार होता है। यह नवरात्रीयमहोत्सव उज्जयिनीमें बडे धूमधाम से मनाया जाता है। देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु महाकाल के दर्शनार्थ अवंतिका(उज्जैन) पहुंचते हैं। महाकाल अपने प्रत्येक भक्त का पिता के समान पालन करते हुए उसकी सर्वत्र रक्षा करते हैं।
महाकाल कालचक्र के प्रवर्तक हैं-कालचक्र- प्रवर्तकोमहाकाल: प्रतापन:।भारतीय ज्योतिर्विज्ञान में महाकाल की नगरी उज्जयिनीसदा से ही पंचांग-गणना की केंद्रबिन्दु रही है। इस प्रकार काल के नियंत्रक होने से उनका महाकाल नाम पूर्णतया सार्थक और सत्य है। श्रावण एवं कार्तिक मास में तथा विजयादशमी, वैकुण्ठ चतुर्दशी आदि पर्वो में महाकाल की सवारी नगर-भ्रमण के लिए निकलती है, जिसमें अपार जनसमूह श्रद्धा के साथ भाग लेता है।
फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष में षष्ठी से चतुर्दशी तिथि (महाशिवरात्रि) तक के नौ दिन के परमपुनीतकाल को महाकालेश्वर-नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रमें महाकाल का नित्य नूतन विशिष्ट श्रृंगार होता है। यह नवरात्रीयमहोत्सव उज्जयिनीमें बडे धूमधाम से मनाया जाता है। देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु महाकाल के दर्शनार्थ अवंतिका(उज्जैन) पहुंचते हैं। महाकाल अपने प्रत्येक भक्त का पिता के समान पालन करते हुए उसकी सर्वत्र रक्षा करते हैं।
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