29 दिसंबर 2009

दु:खहारिणी मां दुर्गा


सृष्टि का निर्विकार निर्विकल्प सत्य यदि कोई है तो वह हैं मां दुर्गा। जो कुछ भी सहज एवं मानवीय है, उन्हीं का जागृत एवं शाश्वत रूप है मातृशक्ति।यही पराशक्ति है, यही हमारी सत् चित् आनंदमय है। शक्ति का केंद्रीय रूप मां दुर्गा हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं अन्य देवताओं के तेज से जिनका अवतरण हुआ वे मां दुर्गा हैं।
आश्विन शुक्ल पक्ष के नौ दिन(नवरात्र) मां दुर्गा की आराधना सहस्रोंगुणा फल देने वाली होती है। इस समय शक्तियों का एक ऐसा प्रवाह विद्यमान रहता है कि साधक की श्रद्धा और भक्ति जितनी प्रगाढ होगी वह मां दुर्गा की कृपा और वरदहस्तका उतना ही भागी बनेगा। मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत 700श्लोकों की श्री दुर्गासप्तशतीमां की विविध कथाओं को चित्रित करती है। महर्षि मार्कण्डेय के अनुरोध पर ब्रह्मा जी ने माँ दुर्गा की यह समस्त कथा कही। इस ग्रन्थ के समस्त मंत्र अगाध शक्तियों से पूर्ण हैं। साधक की श्रद्धा-भक्ति जितनी गहन होगी, वह उतना ही उन मंत्रों का फल प्राप्त कर सकता है। दुर्गा का अर्थ है कठिनतासे जिनकी प्राप्ति हो। जो सबके दुर्गुणोंको दूर करती हैं वे मां दुर्गा हैं।
दु:खैनअष्टांगयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेनगम्यतेप्राप्यतेया सा दुर्गा। अर्थात जो अष्टांगयोगकर्म एवं उपासना रूप दु:साध्य साधना से प्राप्त होती हैं वे जगदंबिका दुर्गा कहलाती हैं। जो सबके कल्मषोंएवं दुर्गुणोंको दूर करती हैं वे मां दुर्गा हैं। जो अपने भक्तों के दु:ख और दुर्गति को दूर करती हैं वे मां दुर्गा हैं।
दुर्गासिदुर्गभवसागरनौरसङ्गा।अर्थात जो दुर्गम भवसागर से उतारने वाली नौका रूप हैं वे माँ दुर्गा हैं। जिनसे कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है वे दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध हैं।
जिन्होंने दुर्गम राक्षस का वध किया वे माँ दुर्गा हैं। दुर्गा के 32नाम की माला कठिन से कठिन दु:खों को दूर करने वाली है। मां तुम्हारादैवीय अलौकिक,अद्भुत करुणा से युक्त स्वरूप को वही जान सकता है, जिसने जीवन में तुम्हारी कृपादृष्टि प्राप्त की हो। मां शारदेरूप में साधक को ज्ञान प्रदान करती हो। लक्ष्मी रूप में अनंत वैभव एवं दुर्गा रूप में साधक को शक्तिशाली बना उसके दु:खों को हरती हो। मां तुम निर्बल प्राणियों में बल का संचार करती हो, शरण में आए हुए की रक्षा करती हो। जीवन में अगाध कष्टों से घिरे हुए भक्त जब-जब तुम्हें पुकारते हैं, तब-तब तुम उनके दु:ख दूर करती हो। देवताओं ने अपने संकट निवारणार्थजब-जब तुम्हें पुकारा तब कभी चंडिका, कभी काली, कभी महिषासुरमर्दिनीबन अवतरित हुई एवं शुंभ-निशुंभ,चंड-मुंड, रक्तबीज एवं महिषासुर का वध किया। मां तुम्हें कोटि कोटि नमन।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरेदेवि नारायणिनमोऽस्तुते।

मां दुर्गा शरण में आए हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में सदा संलग्न रहती हैं।
सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणीको नमस्कार है।