यजुर्वेद में परमात्मदेवसविता [सूर्य] से प्रार्थना की गई है, हमारी बुराइयां दूर हों और मन के विकार समाप्त हों और इसके स्थान पर हमें अच्छाइयों से भर दीजिए। मंत्र इस प्रकार वर्णित है- ॐविश्वानिदेव सवितर्दुरितानिपरासुव/यदभद्रंतन्नआसुव।वेदों में सूर्योपासना के विविध मन्त्र हैं। वेदों में सूर्य [सविता या अग्नि तत्व] के विषय में जहां ज्योति, प्रकाश और अंधकार रिपु के रूप में उल्लेख आया है, वहीं पुराणों में उत्पत्ति, कार्य तथा शक्ति के विषय में प्रेरक कथाएं भी हैं। यजुर्वेद में जहां अग्नि चयन का चित्रण है, वहीं प्राणाग्निके स्पन्दन का स्त्रोत, कारण सूर्य कहा गया है। वेदों में सविता की संज्ञा मन है। जैसे सूर्योदय से धरती का अंधकार समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार मन में परमात्मा का प्रकाश व्याप्त होने पर अंतहृदयका अंधकार शून्य हो जाता है। अध्यात्म के योद्धा इसे परमात्मा का तेज मानकर इसकी प्रार्थना स्तुति और उपासना करते हैं। वेद में वर्णित है- सविता वैदेवनांप्रसविता: अर्थात् सविता देव सूर्य प्रत्येक प्राण केंद्र में उदबुद्धहोकर अन्य सभी देवों को आकृष्ट कर लेता है। वेद में सविता को देवों का योक्ता कहा गया है। यही सबके कर्मो का विधान करने वाला है- महीदेवस्य सवितु:परिष्टुति:।सविता देव की ही प्रशंसा हमारे लिए उपादेय है, क्योंकि यही जगत के संचालक हैं। विराट विश्वात्मकसविता देव से प्राप्त सावित्री धारा तन से प्रतिफलित होने पर गायत्री अभिधान मिलता है। द्युलोकसावित्री और पृथ्वी गायत्री है। मूलभूत शक्ति के ये दो रूप हैं। सूर्य देव की उपासना सावित्री और गायत्री दोनों की उपासना होती है। ऋग्वेद में परम ज्योति [अग्नि स्वरूप] को कई रूपों में उपास्य माना गया है। श्रेष्ठ ज्योति सवितादेवको वेदों में अमृत वर्णित किया गया है। मत्यभूतोंमें समाहित अमृतदेवअग्नि ही है।, इदं ज्योतिरमृतंमत्र्येषु।[ऋग्वेद 6।9।4]आयुर्बलसे युक्त अग्नि मर्त्य भूर्तोमें रहने वाला अमृत अतिथि है। [ऋग्वेद 6/4/2]मत्र्येषुअग्निमृतोनिधायि[ऋग्वेद 7/4/4]यह अमृत ही निधि स्वरूप है। सविता देव ब्रह्मरूप में जीवन-मरण के साक्षी और कारण हैं। यजुर्वेद में तीन तरह की अग्नि का उल्लेख है। विभा तेअग्नेत्रेधात्रयाणि[यजुर्वेद 12/19]अर्थात् मन, प्राण और वाक् ये तीन अग्नियांहैं। वैदिक ऋषि तीन नामों से उपासना करते हैं। ऋग्वेद [1/16/4/1] में तीन अग्नियोंको तीन भ्राता कहा गया है। सूर्य अग्नि का चित्रण वेद में विस्तृत ढंग से है।
वैदिक ऋषियों ने सूर्य उपासना को महत्व इसलिए दिया है क्योंकि यह भौतिक, शारीरिक सामाजिक आर्थिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है। ऋक संहिता के [1/191] सूक्त में सूर्य देवता को गरल को दूर करने वाला कहा गया है। अथर्ववेद[1/22/1] में आया है कि शारीरिक और हृदयगत रोगों का अपहरण करने में सूर्य के सामर्थ्य का उल्लेख कई ऋचाओंमें है। महर्षि याज्ञवल्क्यने सूर्य की उपासना कर सम्पूर्ण यजुर्वेद प्राप्त कर लिया था। सूर्य का सम्बन्ध सभी वेदों से है। पृथ्वी के कण-कण में सूर्य से ही जीवन को गति मिलती है।
वैदिक ऋषियों ने सूर्य उपासना को महत्व इसलिए दिया है क्योंकि यह भौतिक, शारीरिक सामाजिक आर्थिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है। ऋक संहिता के [1/191] सूक्त में सूर्य देवता को गरल को दूर करने वाला कहा गया है। अथर्ववेद[1/22/1] में आया है कि शारीरिक और हृदयगत रोगों का अपहरण करने में सूर्य के सामर्थ्य का उल्लेख कई ऋचाओंमें है। महर्षि याज्ञवल्क्यने सूर्य की उपासना कर सम्पूर्ण यजुर्वेद प्राप्त कर लिया था। सूर्य का सम्बन्ध सभी वेदों से है। पृथ्वी के कण-कण में सूर्य से ही जीवन को गति मिलती है।
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