29 दिसंबर 2009

अमंगल को मंगल करें मंगलनाथ


सनातन-धर्मावलंबियों के लिए युगों से वैशाख मास का अत्यंत महत्व रहा है। पुराणों में वैशाख के माहात्म्य का काफी विस्तार से वर्णन है। इसका एक विशेष पक्ष यह है कि वैशाख के मंगलवार मंगल ग्रह की शांति तथा मंगलनाथ की पूजा में अतिशय फलदायक माने गए हैं। पुण्यभूमि उज्जयिनीको मत्स्यपुराणमें मंगल की जन्मस्थली बताया गया है। इस कारण वैशाख के प्रत्येक मंगलवार के दिन उज्जयिनीमें शिप्रा-तटके समीप एक ऊंचे टीले पर स्थित मंगलनाथके सुप्रसिद्ध मंदिर में श्रद्धालु बडी संख्या में दर्शनार्थ आते हैं। भारतीय ज्योतिíवज्ञान की यह मान्यता है कि मंगल ग्रह सबसे पहले यहीं देखा गया। प्राचीनकाल से उज्जैनज्योतिषशास्त्र के अध्ययन-अनुसंधान का मुख्य केन्द्र रहा है। धर्मग्रन्थों में महाकालेश्वर की नगरी अवंतिका(उज्जयिनी)का बहुत गुण-गान किया गया है। अतएव मंगलनाथका ज्योतिषीयएवं आध्यात्मिक महत्व इन्हें संपूर्ण भारतवर्ष में पूज्यनीयबना चुका है। देश के कोने-कोने से भक्त बडी आस्था के साथ इनके पूजन हेतु उज्जयिनीआते हैं। वैसे तो हर मंगलवार के दिन भक्तगण मंगलनाथकी अर्चना करते हैं, किन्तु वैशाख के मंगलवार तथा भौमवतीअमावस्या यहां के महापर्वहैं। मंगल भूमिपुत्र हैं अत:मंगलनाथ-मंदिरमें इनकी माता पृथ्वी देवी का श्रीविग्रहभी विद्यमान है। मंगलवार के दिन मंगलनाथका अभिषेक एवं दही-भात से विशिष्ट पूजा करने का विधान है।
मंगलनाथ-मंदिरसे 84सीढियां नीचे उतरने पर पुण्यसलिलाशिप्राके घाट से अत्यंत मनोरम दृश्य दिखाई देता है। यहां आने पर क्षण भर के लिए अशांत चित्त भी शांत और प्रफुल्लित हो जाता है। उज्जयिनीमें कालभैरवसे मंगलनाथतक शिप्राके पूर्व में बहने से यह स्थान क्षेत्र अत्यंत पवित्र माना जाता है। टेकरी पर स्थित मंगलनाथका मंदिर आस-पास के स्थान में सबसे ऊंचा है। मंदिर के कर्क रेखा पर होने से इसकी अपार महिमा है। मंगल का एक नाम अंगारक भी है जिसका अर्थ है- अंगारे के समान लाल रंग वाला।
इस संवत्सर में संयोगवश 17अप्रैल को भौमवतीअमावस्या का वैशाख मास में उपलब्ध होना मणि-कंचन योग बना रहा है। भौमवती(मंगलवारी) अमावस्या का तो इतना महत्व है कि यदि इस पर्व में गंगा-स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो करोडों सूर्यग्रहण के समान फल प्राप्त होता है।
वशिष्ठसंहिता में वíणत मंगल के इक्कीस नामों वाले निमन् स्तोत्र का नित्य प्रात:पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। दरिद्रता दूर होती है तथा भूमि-भवन, सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। नि:संतान को पुत्र, रोगी को आरोग्यताऔर कमजोर को शक्ति प्रदान करने वाला यह स्तोत्र मंगल की पीडा का भी शमन करता है-
ॐमंगलो भूमिपुत्रश्चऋणहर्ताधनप्रद:।
स्थिरात्मजोमहाकाय: सर्वकामार्थसाधक:॥
लोहितोलोहितांगश्चसामागानांकृपाकर:।
धरात्मज:कुजोभौमोभूतिदोभूमिनंदन॥
अंगारकोयमश्चैवसर्वरोगापहारक:।
वृष्टिकर्ताऽपहर्ताचसर्वकामफलप्रद:॥
मंगल की दशा अथवा ग्रह-गोचर में मंगल के अरिष्ट को दूर करने के लिए निमन् मंत्रों में से किसी एक का 40,000जप करें-
ॐअंअंगारकायनम:।
ॐहुं श्रींमंगलायनम:।
ॐक्रांक्रींक्रौंस:भौमायनम:।
नागजिह्वा(अनंतमूल) की जड को मंगलवार के दिन लाल रंग के रेशमी कपडे अथवा डोरे में बांध कर धारण करने से मंगल ग्रह का प्रकोप शांत होता है। मंगल ग्रह द्वारा बाधा देने पर मंगलवार के दिन प्रात:सूर्योदय से 2घटी (48 मिनट) की अवधि में मसूर की दाल, गेहूं, गुड, लालचंदन,सिंदूर, लालपुष्प,तांबा, मूंगा, सोना आदि लालरंगके वस्त्र में रखकर दान करें।
जन्मकुण्डली का मंगली-दोष पूर्वाेक्त उपायों के साथ श्रीमंगलनाथएवं मंगलागौरीकी आराधना करने से शांत हो जाता है। वैशाख-शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ करके 21या 45मंगलवार विधिवत् व्रत करने से भी विपरीत मंगल की अशुभताका निवारण संभव है।