हमारे देश में मन्नतें माँगने और उन्हे पूर्ण कराने के लिए जितने प्रयास और कयास लगाए जाते हैं, उतना किसी और देश में शायद ही कहीं होता होगा। इसका ताजा उदाहरण है बुरहानपुर के उतावली नदी स्थित नाग मंदिर पर मन्नत माँगने वालों की भीड़, जहाँ मन्नत पूरी होने पर नाग-नागिन का जोड़ा छोड़ा जाता है।
शहर से लगी उतावली नदी के समीप स्थित अड़वाल परिवार के नाग मंदिर पर हर वर्ष ऋषि पंचमी के दिन बड़ी संख्या में लोग पहुँचते हैं। इनमें से कुछ मन्नत माँगने तो कुछ मन्नत पूरी होने पर नाग-नागिन का जोड़ा छोड़ने आते हैं।
लोग यहाँ नौकरी-पेशे, व्यवसाय में बढ़ोतरी, बच्चे की इच्छा से लेकर शारीरिक एवं मानसिक रोगों के ठीक होने तक हर प्रकार की मन्नत माँगते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु आने वाले वर्ष में इसी दिन साँपों के जोड़े को छोड़ते हैं। ये साँपों के जोड़े स्थानीय सपेरों से खरीदे जाते हैं।
एक श्रद्धालु दिलीप यादव का कहना है कि पिछले 25 सालों से वे यहाँ इच्छा पूरी होने पर साँपों के जोड़े छोड़ रहे हैं। यहाँ हमारी हर इच्छा पूर्ण हुई है।
यहाँ से जुड़ी एक किंवदंती है कि एक बार घोड़े पर सवार राज सैनिक जंगल से जा रहे थे, रास्ते में काँटों में फँसे एक साँप ने इंसानी रूप में आकर मदद की पुकार लगाई और राज सैनिकों ने उसे काँटों से मुक्त कर दिया। नाग देवता ने तब से वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति अड़वाल मंदिर पर आकर मन्नत माँगेगा, उसकी हर इच्छा पूर्ण होगी। तब से यह प्रथा चली आ रही है।
पीढ़ी दर पीढ़ी अड़वाल परिवार ही अड़वाल नाग मंदिर की पूजा-पाठ करते आ रहे हैं, इसलिए इन्हें नागमंत्री कहा जाता है। अड़वाल परिवार के अनिल भावसार का कहना है कि देश में अड़वाल नाग मंदिर एकमात्र नाग मंदिर है, जहाँ दूर-दूर से लोग मन्नत माँगने के लिए आते हैं।
यदि बात भगवान की पूजा आराधना तक सिमित हो तो इसमें कोई बुराई नहीं है परंतु निरीह प्राणियों की आस्था के नाम पर दुर्गति करना कहाँ तक उचित है। सपेरे ऋषि पंचमी से काफी पहले साँप पकड़कर उन्हें बहुत बुरी हालत में रखते हैं। श्रद्धा-भक्ति के नाम पर इन बेजुबाँ जीवों को यूँ परेशान करना, उनकी दुर्गति करना कहाँ तक उचित है? आप मुझे अपनी राय से जरूर अवगत कराएँ।
01 जनवरी 2010
मन्नत के नाम पर नागों की दुर्गति
Labels: आस्था या अन्धविश्वास
Posted by Udit bhargava at 1/01/2010 08:01:00 am
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें