28 दिसंबर 2009

व्यापार हमेशा साफ-सुथरा ही करना चाहिए

वे जीने की कला (आर्ट ऑफ लिविंग) के प्रणेता आध्यात्मिक गुरू रविशंकर के संपर्क में आए और उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करना शुरू कर दिया। गुप्ता कहते हैं कि वह एक ऎसे व्यक्ति हैं, जिनका उनके जीवन पर सबसे ज्यादा असर हुआ है। महेश गुप्ता ने तीन दशक पहले अपने कॅरियर के शुरू में जब पहली नौकरी की तो उनकी हैसियत एक दोपहिया वाहन खरीदने लायक भी नहीं थी। आज वे देश में उपलब्ध सबसे बेहतरीन कार बीएमडब्ल्यू 750 आई सिरीज के नवीनतम मॉडल को चलाते हैं।उनका कहना है कि "मेरा जन्म एक साधारण से परिवार में हुआ। हम चार बहन और दो भाई थे, जो निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से थे, इसलिए जीवनशैली की दृष्टि से हम पर कई बंदिशें थीं।" इन्हीं बंदिशों के कारण जीवन में बड़ा बनने की उदात्त आकांक्षा जाग्रत हुई। "स्वाभाविक रू प से मैं अच्छे कपड़े पहनना चाहता था; मेरी इच्छा अच्छा वाहन खरीदने की थी और मैं जानता था कि मैं बहुत कुछ करने का इच्छुक हूं और यह सब पाने में समर्थ हो जाऊंगा।"उनके पिता सरकारी सेवा में थे। महेश का बचपन शुरू में लोधी रोड और बाद में साउथ एक्सटेंशन में बीता, जहां वे हाल ही तक रहते थे। वह स्कूल में हमेशा सर्वप्रथम रहते थे। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा दी और छुटि्टयां मनाने अपनी बहन के पास कोटा चले गए। पिता उनके भविष्य को लेकर बहुत चिंतित थे, लेकिन महेश को पूरा भरोसा था कि उन्हें आईआईटी में प्रवेश मिल जाएगा। हुआ भी ऎसा ही। उन्होंने आईआईटी कानपुर में प्रवेश ले लिया।"हालांकि मैं सर्वश्रेष्ठ छात्रों में शामिल था, फिर भी मुझ पर मनोवैज्ञानिक दबाव था, क्योंकि मेरी पृष्ठभूमि बहुत ऊंची नहीं थी।" उनकी मानसिकता बदलने में एक साल लगा। उसके बाद वे सहज हो गए। प्रथम वर्ष में तो वह 10 में से केवल 6।7 अंक ही ले पाए। तृतीय वर्ष में पहुंचते-पहुंचते उन्होंने खोया आत्मविश्वास फिर पा लिया और 10 में से 10 अंक प्राप्त कर दिखाए। वह गर्व से बताते हैं कि आईआईटी में तृतीय वर्ष की पढ़ाई सबसे कठिन मानी जाती है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद गुप्ता 1978 में इंडियन ऑइल कॉरपोरेशन (आईओसी) से जुड़ गए और कड़ी मेहनत की बदौलत वहां उन्हें जल्दी-जल्दी पदोन्नति मिली, जिससे कम्पनी में वह तेजी से आगे बढ़े। वहां काम बहुत अच्छा था, फिर भी गुप्ता ने 1988 में आईओसी की नौकरी छोड़ दी। उन्होंने कहा कि ईमानदारी से कहूं तो उसके दो कारण थे। "एक तो यह कि मैं अपना घर दिल्ली छोड़ना नहीं चाहता था। कम्पनी की नीति हर 3-4 साल में तबादला करने की थी और मेरा पदस्थापन मुंबई में था। मैं जानता था कि मैं दिल्ली में अपनी पोस्टिंग कराने के लिए किसी से नहीं कहने वाला। आखिर मैं कितनी बार ऎसा कर सकता था" दूसरा कारण यह था कि मैं मानवता की व्यापक भलाई के काम में उसे बाधक महसूस करता था। आईओसी में तो वह कम्पनी की सोच के हिसाब से ही काम कर सकते थे। वह लोगों को यह सिखाना चाहते थे कि तेल (ईधन) कैसे बचाया जा सकता है।आईओसी की "पक्की" नौकरी छोड़कर उन्होंने ठीक ऎसा ही काम शुरू किया। कुछ महीने तो पिता उनसे नाराज भी रहे, लेकिन बाद में बेटे की अपने निजी उद्यम के प्रति उत्कंठा को उन्होंने महसूस किया। गुप्ता के अनुसार "इसके बाद उन्होंने मुझे सहयोग देना शुरू कर दिया। आज 73 साल की उम्र होने के बावजूद वे मुझे पूरा सहयोग दे रहे हैं।"तेल से वह पानी पर कैसे आ गए वर्ष 1998 में महेश गुप्ता के दोनों बच्चों को दूषित पानी पीने के कारण पीलिया हो गया। इसके बाद उन्होंने पानी पीने योग्य साफ बनाने वाली प्रणाली की तलाश की। गुप्ता को महसूस हुआ कि बाजार में सही मायने में ऎसी कोई प्रणाली उपलब्ध नहीं है, जो पीने के पानी को हानिरहित करने के मानदंडों पर पूरी तरह खरी उतर सके। इसके बाद उन्होंने अपने घर के गैरेज में ही पहली आरओ प्रणाली तैयार की। इसी के साथ उनके दिमाग में यह बात भी आई कि जब मैं अपने लिए यह प्रणाली तैयार कर सकता हूं, तो दूसरों के लिए क्यों नहीं इसी सोच से केंट आरओ अस्तित्व में आया।इसी दौरान गुप्ता आध्यात्मिक दृष्टि से कई परिवर्तनों से गुजरे। वे जीने की कला (आर्ट ऑफ लिविंग) के प्रणेता आध्यात्मिक गुरू रविशंकर के संपर्क में आए और उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करना शुरू कर दिया। गुप्ता कहते हैं कि वह एक ऎसे व्यक्ति हैं जिनका उनके जीवन पर सबसे ज्यादा असर हुआ है। "उन्होंने मेरी सोच को ही पूरी तरह बदल दिया।" गुप्ता हर महीने 5-7 दिन अपने गुरू के आश्रम जाते हैं। अपने मैनेजमेंट मंत्रों के बारे में पूछने पर वह कहते हैं- "मैं बहुत अनुदार हूं।" और मानता हूं कि किसी को भी अपनी आर्थिक क्षमता के अनुरू प ही आगे बढ़ना चाहिए।" उनका दूसरा मंत्र है "व्यापार हमेशा साफ-सुथरा ही करना चाहिए।" दस साल में केंट आरओ परिवार एक से बढ़ते-बढ़ते डेढ़ हजार लोगों की एक सशक्त टीम बन गया है। आज उनकी कम्पनी नगण्य से बढ़कर दो सौ करोड़ की हो गई है।वह केंट आरओ परिवार के लिए सदस्यों का चयन कैसे करते हैं यह पूछने पर उन्होंने बताया कि हम पढ़ाई-लिखाई देखकर तय करते हैं, यदि वह ठीक है तो हम प्रशिक्षण देकर उसे अपने योग्य बना लेते हैं। गुप्ता जब से आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े हैं, उनका "हर क्षण उत्सव" होता है। वह शाकाहारी हैं और प्रतिदिन ध्यान-पूजन करते हैं। उनके परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और एक बेटा है। बेटा वरूण उनके साथ कारोबार में लगा है और बेटी सुरभि ने प्राचीन स्मारकों के पुनरूद्धार में विशेषज्ञता अर्जित की है।आज के युवाओं के लिए उनका क्या संदेश है यह पूछने पर गुप्ता ने कहा आज के युवा में आत्मविश्वास की कमी है। "उन्हें लगता है कि भौतिक सुख-सुविधाएं जुटाने से आत्मविश्वास आता है, लेकिन ऎसा नहीं है। आत्मविश्वास तभी आता है, जब यह भावना आए कि मैं यह काम कर सकता हूं। उन्हें यह महसूस करने की जरू रत है कि सफलता तभी मिलेगी, जब वह अपनी पूरी क्षमता से काम करेंगे अन्यथा समय की बर्बादी ही होगी।