भगवान् श्रीगणेश साधारण देवता नहीं हैं। वे साक्षात् अनन्तकोटि-ब्रह्माण्डनायक,परात्पर, पूर्णतम,परब्रह्म, परमात्मा ही हैं। सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार को निर्विघ्न बनाने के लिए ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी इनका ध्यान करते हैं। ऋग्वेद का कथन है-न ऋचेत्वत्क्रियतेकिंचनारे।हे गणेश! तुम्हारे बिना कोई भी कर्म प्रारंभ नहीं किया जाता। आदौ पूज्योविनायक:- इस उक्ति के अनुसार समस्त शुभ कार्यो के प्रारंभ में सिद्धिविनायककी पूजा आवश्यक है। विघ्नेश्वरप्रसन्न होने पर विघ्नहर्ता बनकर जब कार्य-सिद्धि में सहायक होते हैं, तब वे सिद्धिविनायक के नाम से पुकारे जाते हैं। गणपति की कृपा के बिना किसी भी कार्य का निर्विघ्न सम्पन्न होना संभव नहीं है क्योंकि वे विघ्नों के अधिपति हैं। याज्ञवलक्यस्मृतिके गणपतिकल्प में स्पष्ट शब्दों में यह उल्लेख है-
विनायक: कर्मविघ्नसिद्धयर्थविनियोजित:।
विनायक: कर्मविघ्नसिद्धयर्थविनियोजित:।
गणानामाधिपत्येचरुद्रेणब्रह्मणातथा॥
ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर ने विनायक को गणों का आधिपत्य प्रदान करके कार्यो में विघ्न डालने का अधिकार तथा पूजनोपरान्तविघ्न को शांत कर देने का अधिकार भी प्रदान किया। इसलिए किसी भी देवता के पूजन में सर्वप्रथम श्रीगणेश की पूजा होती है। ऐसा न करने पर वह व्रत-अनुष्ठान निष्फल हो जाता है। भविष्यपुराणमें लिखा है-
देवतादौयदा मोहाद्गणेशोन चपूज्यते।
ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर ने विनायक को गणों का आधिपत्य प्रदान करके कार्यो में विघ्न डालने का अधिकार तथा पूजनोपरान्तविघ्न को शांत कर देने का अधिकार भी प्रदान किया। इसलिए किसी भी देवता के पूजन में सर्वप्रथम श्रीगणेश की पूजा होती है। ऐसा न करने पर वह व्रत-अनुष्ठान निष्फल हो जाता है। भविष्यपुराणमें लिखा है-
देवतादौयदा मोहाद्गणेशोन चपूज्यते।
तदा पूजाफलंहन्तिविघ्नराजोगणाधिप:॥
यदि किसी कारणवश देव-पूजन के प्रारंभ में विघ्नराजगणपति की पूजा नहीं की जाती है तो वे कुपित होकर उस साधना का फल नष्ट कर देते हैं। इसी कारण सनातनधर्म में गणेशजीकी प्रथम पूजा का विधान बना। मानव ही नहीं वरन् देवगण भी प्रत्येक कर्म के शुभारंभ में विघ्नेश्वरविनायक की पूजा करते हैं। पुराणों में इस संदर्भ में अनेक आख्यान वर्णित हैं।
श्रीगणेशपुराणमें भाद्रपद-शुक्ल-चतुर्थी को आदिदेव गणपति के आविर्भाव की तिथि माना गया है। स्कन्दपुराणमें भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से इस तिथि के माहात्म्य का गुणगान करते हुए कहते हैं-
सर्वदेवमय:साक्षात् सर्वमङ्गलदायक:।
यदि किसी कारणवश देव-पूजन के प्रारंभ में विघ्नराजगणपति की पूजा नहीं की जाती है तो वे कुपित होकर उस साधना का फल नष्ट कर देते हैं। इसी कारण सनातनधर्म में गणेशजीकी प्रथम पूजा का विधान बना। मानव ही नहीं वरन् देवगण भी प्रत्येक कर्म के शुभारंभ में विघ्नेश्वरविनायक की पूजा करते हैं। पुराणों में इस संदर्भ में अनेक आख्यान वर्णित हैं।
श्रीगणेशपुराणमें भाद्रपद-शुक्ल-चतुर्थी को आदिदेव गणपति के आविर्भाव की तिथि माना गया है। स्कन्दपुराणमें भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से इस तिथि के माहात्म्य का गुणगान करते हुए कहते हैं-
सर्वदेवमय:साक्षात् सर्वमङ्गलदायक:।
भाद्रशुक्लचतुथ्र्यातुप्रादुर्भूतोगणाधिप:॥
सिद्धयन्तिसर्वकार्याणिमनसा चिन्तितान्यपि।
तेन ख्यातिंगतोलोकेनाम्नासिद्धिविनायक:॥
समस्त देवताओं की शक्ति से सम्पन्न मंगलमूर्तिगणपति का भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन आविर्भाव हुआ। इस तिथि में आराधना करने पर वे सब कार्यो को सिद्ध करते हैं तथा मनोवांछित फल देते हैं। आराधकोंका अभीष्ट सिद्ध करने के कारण ही वे सिद्धिविनायक के नाम से लोक-विख्यात हुए हैं।
ब्रह्मवैवर्तपुराणके अनुसार भगवती पार्वती नेपरब्रह्मको पुत्र के रूप में प्राप्त करने के लिए देवाधिदेव महादेव के परामर्श पर परम दुष्कर पुण्यकव्रत का अनुष्ठान किया था। इस व्रतराजके फलस्वरूप ही साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर ही श्रीगणेश के रूप में उनके यहां आए।
गणेश-पूजन के समय उनके सम्पूर्ण परिवार का स्मरण करना चाहिए। सिद्धि और बुद्धि उनकी पत्नियां हैं। मुद्गलपुराणके गणेशहृदयस्तोत्रमें सिद्धि-बुद्धि से सेवित विघ्ननायकगणपति की स्तुति की गई है-
सिद्धि-बुद्धिपतिम् वन्दे ब्रह्मणस्पतिसंज्ञकम्।
माङ्गल्येशंसर्वपूज्यंविघ्नानांनायकंपरम्॥
सद्बुद्धिसे विचार करके काम करने पर ही मनोरथ सिद्ध होता है। सिद्धि-बुद्धि के साथ विनायक का ध्यान करने का यही अभिप्राय है। श्रीगणेशजीके वामभागमें (बायें) सिद्धि और दक्षिण भाग में (दाहिने) बुद्धि की संस्थितिहै। सिद्धिविनायककी उपासना से मस्तिष्क पर छाया अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है तथा बुद्धि जाग्रत होकर कार्य-सिद्धि की योजना बनाने में सक्षम हो जाती है। सिद्धि-बुद्धि से युक्त विनायक का तेज करोडों सूर्यो के प्रकाश से भी ज्यादा है- सिद्धिबुद्धियुत: श्रीमान् कोटिसूर्याधिकद्युति:।शिवपुराणकी रुद्रसंहिताके कुमारखण्डमें श्रीगणेश के सिद्धि-बुद्धि के साथ विवाह का प्रसंग वर्णित है। गणेशपुराणके उपासनाखण्डमें भी श्रीगणेश के विवाह का विस्तार से वर्णन है। लोक-प्रचलन में गणेशजीकी पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि के नाम से जानी जाती हैं। गणेशजीकी पत्नी सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नाम के अतिशय शोभासम्पन्नदो पुत्र हुए-
सिद्धेर्गणेशपत्न्यास्तुक्षेमनामासुतोऽभवत्।
तेन ख्यातिंगतोलोकेनाम्नासिद्धिविनायक:॥
समस्त देवताओं की शक्ति से सम्पन्न मंगलमूर्तिगणपति का भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन आविर्भाव हुआ। इस तिथि में आराधना करने पर वे सब कार्यो को सिद्ध करते हैं तथा मनोवांछित फल देते हैं। आराधकोंका अभीष्ट सिद्ध करने के कारण ही वे सिद्धिविनायक के नाम से लोक-विख्यात हुए हैं।
ब्रह्मवैवर्तपुराणके अनुसार भगवती पार्वती नेपरब्रह्मको पुत्र के रूप में प्राप्त करने के लिए देवाधिदेव महादेव के परामर्श पर परम दुष्कर पुण्यकव्रत का अनुष्ठान किया था। इस व्रतराजके फलस्वरूप ही साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर ही श्रीगणेश के रूप में उनके यहां आए।
गणेश-पूजन के समय उनके सम्पूर्ण परिवार का स्मरण करना चाहिए। सिद्धि और बुद्धि उनकी पत्नियां हैं। मुद्गलपुराणके गणेशहृदयस्तोत्रमें सिद्धि-बुद्धि से सेवित विघ्ननायकगणपति की स्तुति की गई है-
सिद्धि-बुद्धिपतिम् वन्दे ब्रह्मणस्पतिसंज्ञकम्।
माङ्गल्येशंसर्वपूज्यंविघ्नानांनायकंपरम्॥
सद्बुद्धिसे विचार करके काम करने पर ही मनोरथ सिद्ध होता है। सिद्धि-बुद्धि के साथ विनायक का ध्यान करने का यही अभिप्राय है। श्रीगणेशजीके वामभागमें (बायें) सिद्धि और दक्षिण भाग में (दाहिने) बुद्धि की संस्थितिहै। सिद्धिविनायककी उपासना से मस्तिष्क पर छाया अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है तथा बुद्धि जाग्रत होकर कार्य-सिद्धि की योजना बनाने में सक्षम हो जाती है। सिद्धि-बुद्धि से युक्त विनायक का तेज करोडों सूर्यो के प्रकाश से भी ज्यादा है- सिद्धिबुद्धियुत: श्रीमान् कोटिसूर्याधिकद्युति:।शिवपुराणकी रुद्रसंहिताके कुमारखण्डमें श्रीगणेश के सिद्धि-बुद्धि के साथ विवाह का प्रसंग वर्णित है। गणेशपुराणके उपासनाखण्डमें भी श्रीगणेश के विवाह का विस्तार से वर्णन है। लोक-प्रचलन में गणेशजीकी पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि के नाम से जानी जाती हैं। गणेशजीकी पत्नी सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नाम के अतिशय शोभासम्पन्नदो पुत्र हुए-
सिद्धेर्गणेशपत्न्यास्तुक्षेमनामासुतोऽभवत्।
बुद्धेर्लाभाभिध:पुत्र आसीत्परमशोभन:॥
गणपति के रेखाचित्र स्वस्तिक (") के दोनों तरफ दो रेखायें (॥) उनकी दो पत्नियों और दो पुत्रों का प्रतीक हैं। दीपावली, बही-बसना अथवा गृह-प्रवेश आदि के समय ऋद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ लिखना गणेशजीका पत्नियों व पुत्रों सहित आवाहन करना ही है। क्षेम का ही दूसरा नाम शुभ है। इस प्रकार सम्पूर्ण गणेश-परिवार सदा से ही प्रथमपूज्यरहा है।
श्रीरामचरितमानसमें गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराम-विवाह के बाद सीताजीके जनकपुर से अयोध्या में आगमन के अवसर पर सिद्धिविनायकका स्मरण चित्रित किया है-
प्रेमबिबसपरिवारुसब जानिसुलगन नरेस।
गणपति के रेखाचित्र स्वस्तिक (") के दोनों तरफ दो रेखायें (॥) उनकी दो पत्नियों और दो पुत्रों का प्रतीक हैं। दीपावली, बही-बसना अथवा गृह-प्रवेश आदि के समय ऋद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ लिखना गणेशजीका पत्नियों व पुत्रों सहित आवाहन करना ही है। क्षेम का ही दूसरा नाम शुभ है। इस प्रकार सम्पूर्ण गणेश-परिवार सदा से ही प्रथमपूज्यरहा है।
श्रीरामचरितमानसमें गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराम-विवाह के बाद सीताजीके जनकपुर से अयोध्या में आगमन के अवसर पर सिद्धिविनायकका स्मरण चित्रित किया है-
प्रेमबिबसपरिवारुसब जानिसुलगन नरेस।
कँुअरिचढाई पालकिन्हसुमिरे सिद्धि-गनेस॥
भाद्रपद-शुक्ल-चतुर्थी के दिन श्रीसिद्धिविनायकका आविर्भावोत्सवबडे धूमधाम से मनाया जाता है।
गणेशपुराणके अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लेने पर कलंक अवश्य लगता है। ऐसा गणेश जी के अमोघ शाप के कारण है। स्वयं सिद्धिविनायकका वचन है-
भाद्रपद-शुक्ल-चतुर्थी के दिन श्रीसिद्धिविनायकका आविर्भावोत्सवबडे धूमधाम से मनाया जाता है।
गणेशपुराणके अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लेने पर कलंक अवश्य लगता है। ऐसा गणेश जी के अमोघ शाप के कारण है। स्वयं सिद्धिविनायकका वचन है-
भाद्रशुक्लचतुथ्र्यायो ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपिवा।
अभिशापीभवेच्चन्द्रदर्शनाद्भृशदु:खभाग्॥
जो जानबूझ कर अथवा अनजाने में ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। उसे बहुत दुख उठाना पडेगा। भाद्र-शुक्ल-चतुर्थी का चंद्र देख लेने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण को स्यमन्तकमणि की चोरी का मिथ्या कलंक लगा था। श्रीमद्भागवत महापुराणके दशम स्कन्ध के 57वेंअध्याय में यह कथा है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्र-दर्शन हो जाने पर उसका दोष दूर करने के लिए श्रीमद्भागवत में वर्णित इस प्रसंग को पढना अथवा सुनना चाहिए।
वस्तुत:सिद्धिविनायक चतुर्थी हमें ईश्वर के विघ्नविनाशकस्वरूप का साक्षात्कार कराती है जिससे अभीष्ट-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। जीवन को निर्विघ्न बनाने के लिए आइये हम सब इनकी स्तुति करें-
आदिपूज्यंगणाध्यक्षमुमापुत्रंविनायकम्।
जो जानबूझ कर अथवा अनजाने में ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। उसे बहुत दुख उठाना पडेगा। भाद्र-शुक्ल-चतुर्थी का चंद्र देख लेने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण को स्यमन्तकमणि की चोरी का मिथ्या कलंक लगा था। श्रीमद्भागवत महापुराणके दशम स्कन्ध के 57वेंअध्याय में यह कथा है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्र-दर्शन हो जाने पर उसका दोष दूर करने के लिए श्रीमद्भागवत में वर्णित इस प्रसंग को पढना अथवा सुनना चाहिए।
वस्तुत:सिद्धिविनायक चतुर्थी हमें ईश्वर के विघ्नविनाशकस्वरूप का साक्षात्कार कराती है जिससे अभीष्ट-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। जीवन को निर्विघ्न बनाने के लिए आइये हम सब इनकी स्तुति करें-
आदिपूज्यंगणाध्यक्षमुमापुत्रंविनायकम्।
मङ्गलंपरमंरूपंश्रीगणेशंनमाम्यहम्॥
मेरो नाम केभिन एडम्स, बंधक ऋण उधारो एडम्स तिर्ने कम्पनी को एक प्रतिनिधि, म 2% ब्याज मा ऋण दिनेछ छ। हामी विभिन्न को सबै प्रकार को 2% ब्याज मा ऋण प्रदान प्रदान। हामी ऋण को सबै प्रकार प्रदान। यदि तपाईं सम्पर्क अब यो इमेल एक ऋण आवश्यक
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