ईश्वर एक है, सर्वशक्तिमान है एवं सर्वसमर्थ है।. एक ही ईश्वर को संसार में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। कोई भगवान, कोई अल्लाह, कोई परमात्मा, कोई वाहे गुरु आदि भिन्न-भिन्न नामों से ईश्वर को पुकारता है।. सत्य, दया, अहिंसा, प्रेम, सेवा, परोपकार, त्याग, सादगी आदि उच्चतम मानवीय आदर्शों को जीवन में अपनाना ही धर्म की पहचान है।. सभी मनुष्यों एवं अन्य जीवों में भी अपना ही रूप देखना एवं प्रेम व भाईचारे से जीवन यापन करना ही मनुष्य का धर्म है।. सांसारिक सुख-वैभव एवं भोग विलास को क्षणिक, नष्ट होने वाला और अस्थाई मानकर उसमें मन को न लगाना।. आत्मा को ही अपना वास्तविक स्वरूप मानकर शारीरिक सुख-भोग में जीवन को व्यर्थ न गवाना।. दूसरों में दोष न देखकर अपने ही अवगुणों को खोजना एवं दूर करना।. आत्मा ही मनुष्य का वास्तविक स्वरूप है। आत्मा अजन्मा एवं अमर है। मृत्यु में सिर्फ शरीर बदलता है, आत्मा अजर, अमर एवं अविनाशी है।. सेवा, परोपकार एवं सद्कर्मां के द्वारा मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य जिसे पूर्णता, मोक्ष, निर्वाण एवं आत्मज्ञान कहा जाता है, को प्राप्त किया जाता है।. पूर्ण पवित्रता, नैतिकता, एवं सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए जीवन के अंतिम लक्ष्य को खोजना और प्राप्त करना ही जीवन की सार्थकता एवं उपयोगिता है।. अपने निजी लाभ एवं स्वार्थ को भूलकर परोपकार एवं विश्व कल्याण के लिए प्रयास करना मनुष्य का कर्तव्य है।. गाय, गंगा, गीता, गायत्री, वेद एवं रामायण अत्यंत पवित्र एवं पूज्य हैं।. माता-पिता, गुरु, बड़ों, विद्वानों, संतों, महापुरुषों, ब्राह्मणों एवं आचार्यों की सेवा एवं सम्मान करना हर मनुष्य का कर्तव्य है।. व्रत, उपवास, तप, तयाग, प्रेम, योग आदि के माध्यम से शारीरिक एवं मानसिक पवित्रता प्राप्त करना चाहिए।. सांसारिक जीवन अस्थाई है। शरीर की मृत्यु निश्चित है। अत: आत्मा एवं आत्मज्ञान की खोज प्रत्येक मनुष्य के लिए परम आवश्यक है।
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