मम्मी आपने दाल में नमक ही नहीं डाला, क्या खाना बनाया है?' श्रुति ने ठुनकते हुए नम्रता से कहा। 'क्या बात कर रही हो? अभी-अभी तो पापा खाना खाकर गए हैं उन्होंने तो कुछ नहीं कहा', नम्रता ने कहा। तभी नम्रता की ननद रीतिका चुटकी लेते हुए बोली 'भैया तो आपके प्यार में बिना नमक का खाना भी स्वाद लेकर खा लेते हैं। वो क्या बोलेंगे।' नम्रता को तब भी विश्वास नहीं हुआ, उसने खुद दाल चखी। दाल बिल्कुल बेस्वाद थी। नम्रता परेशान हो उठी, 'अभिनव कहीं किसी परेशानी में तो नहीं है', जो उन्हें खाने में भी स्वाद का पता नहीं चला।'
नम्रता की परेशानी को भाँपते हुए रीतिका बोली 'भाभी आप भी न खामखाँ परेशान हो रही हैं। आप दोनों हर वक्त एक दूसरे के लिए परेशान रहते हो। बिना बोले ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते हो, परेशानी भाँप जाते हो। आप परेशान या शर्मिंदा न हों, इसलिए भैया ने कुछ नहीं बोला होगा।' रीतिका के समझाने पर नम्रता थोड़ी शांत हो गई।
शाम को श्रुति दौड़ती हुई आई - 'मम्मी-मम्मी ये देखो पापा आपके लिए क्या लाए हैं?' नम्रता पूछती है 'पापा आ गए? कहाँ हैं?' श्रुति ने बताया ड्राइंगरूम में हैं। नम्रता हाथ में पैकेट लिए अभिनव के पास ही चली आई,' ये क्या लाए हैं आप?' अभिनव अखबार पर नज़र गड़ाए हुए ही बोले 'यह एक मशीन है, इससे प्याज, गाजर, गोभी और भी सारी सब्जियाँ बहुत आराम से कट जाती हैं। तुम्हें इससे रसोई का काम करने में बहुत आराम होगा इसलिए ले लिया।' कितने की आई?'
नम्रता के इस सवाल पर अभिनव सिर ऊपर उठा के मुस्कुराते हुए बोले 'क्यों पसंद नहीं आई? पैसे से तुम्हें क्या करना?' नम्रता ने हँसते हुए कहा 'क्यों? सुबह की दाल में नमक नहीं डालने का इनाम लाए हो?' इस पर अभिनव हँसने लगे और कहा - 'अरे वो तो मुझे पता भी नहीं चला, सब्जियाँ जो बहुत स्वादिष्ट थीं। अच्छा! एक प्याला चाय बना दो।' नम्रता हँसते हुए बोली 'वो भी बिना चीनी के बना देती हूँ। क्यों? चलेगी? 'और मुस्कुराती हुई चली जाती है।
नम्रता का यह मुस्कुराता चेहरा देख रीतिका ने कहा - 'देखा भाभी, आप तो यूँ ही परेशान हो रही थीं और एक भैया का प्यार है आपके प्रति, जो बिना बोले ही आपकी परेशानी को समझ लेते हैं। मैं तो भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि हंसों का यह जोड़ा यूँ ही सदा हँसता-मुस्कुराता रहे।
आपके प्यार को किसी की नजर न लगे। टच वुड! काश! मुझे भी इतना ही प्यार करने वाला पति मिल जाए, मैं तो ख्वाबों के आसमान में पंख लगा के उड़ जाऊँ।' नम्रता ने कहा - 'हाँ, हाँ जरूर उड़ना, लेकिन ऐसा पति मिल गया न तो बस भगवान ही मालिक है। न कभी प्यार की दो बातें करते हैं, न कोई हँसी मजाक।
बस, हर वक्त पढ़ाई में ही लगे रहते हैं। प्यार का इजहार तो दूर की बात है, कभी जताते तक नहीं। रोमांस क्या होता है, ये बस फिल्मों में ही देखा है। कभी सचाई के धरातल पर इसका अनुभव करने का मौका ही नहीं मिला। अगर ऐसे पति मिल गए न, तो दो-चार मीठी बातों के लिए भी तरसोगी।' इतना कहते-कहते नम्रता के दिल का दर्द उसकी आँखों में उतर आया, जिस देख रीतिका ने कहा 'पता है भाभी! कुछ इंसान बोलते हैं ज्यादा, करते हैं कम, दिखाते हैं ज्यादा, करते हैं कम, दिखाते हैं ज्यादा और होते हैं कुछ नहीं।
याद है आपको? एक बार आप और भैया बाजार गए थे। आपने लाल वाली साड़ी देखकर बस, इतना कहा था 'वाह! कितनी सुंदर साड़ी है?' उस वक्त भैया ने सिर्फ उसे देखा था। और अगले ही दिन वह आपके हाथ में थी। ये प्यार नहीं तो और क्या है? आपको पता नहीं है भाभी, कुछ लोग मान-मर्यादा, रीतिरिवाज का हवाला देकर पत्नियों को परेशान करते हैं?
ये मत पहनो, उससे बात मत करो, कहाँ गई थी? इतना समय कहाँ लगा दिया? इतने पैसे कहाँ खर्च कर दिए? जैसे अनगिनत सवालों से अपनी पत्नी को अपमानित करते हैं। भैया ने तो शादी के बाद आपकी इच्छा पर आपको एम।ए.करवाया। आपने पेंटिंग कोर्स करना चाहा तो भैया ने आपके शौक को पूरा करने के लिए कभी ना नहीं कहा। कितनों के पति सिर्फ पत्नी की खुशी के लिए यह सब करने देते हैं? आपने कहा कि ब्यूटी पार्लर खोलना चाहती हैं, चुपचाप बिना रकम भरा चेक काट के आपको चेक दे दिया।
भाभी आप तो बहुत भाग्यशाली हैं जो आपको इतना प्यार करने वाला पति मिला है। जरूर आपने पिछले जन्म में मोती दान किए होंगे।' इतना सुनने के बाद नम्रता सचाई के स्वरूप को समझ गई। वह समझ गई कि वाकई में अभिनव उसे कितना प्यार करते हैं। उनके बीच भावनाओं का बंधन है। जीने की आजादी है। इतनी देर में प्यार से भरी एक प्याली चाय तैयार हो चुकी थी, जिसके साथ मीठे जज्बात के बिस्कुट थे, जिसे लेकर वो ड्राइंगरूम में आ गई। दोनों चुप थे पर दोनों एक-दूसरे के दिलों के एहसास को समझ रहे थे तभी श्रुति कूदती-फानती हुई पापा के गोद में आ बैठी और बाप-बेटी दोनों अपनी ही बातों में लग गए। मुस्कुरा कर नम्रता दोनों को एक भरपूर नजर से निहारने लगती है।
रात को सारे काम निपटाने के बाद जब नम्रता बेडरूम में आई तो, अभिनव ने कहा 'तुम्हारे लिए अलमारी में कुछ रखा है।' नम्रता ने जैसे ही अलमारी खोली वहाँ एक लाल रंग का लिफाफा रखा हुआ था उसने आश्चर्यचकित होकर उसे खोला। पत्नी को समर्पित एक संगीत वाला कार्ड था उसमें जो 'आई लव यू' बोल रहा था। साथ ही एक पत्र था -
मेरी जिंदगी की हर सुबह खुशनसीब होती है क्योंकि वो तुम्हारे सुंदर चेहरे को देखकर शुरू होती है। मैं चाहता हूँ कि अंत भी ऐसा ही हो। तुमने जैसे पति की कल्पना की थी वैसा मैं नहीं हो सका इसके लिए माफी चाहता हूँ, क्योंकि मेरी परवरिश बहुत गरीबी में हुई, जहाँ मुझे फिल्म देखने का मौका नहीं मिला। मामा के यहाँ रह कर किसी तरह पढ़-लिखकर एक नौकरी हासिल करने के लक्ष्य के आगे कभी कुछ सोच ही नहीं पाया। परंतु, अब मैं कोशिश करूँगा तुम्हारे ख्वाबों का पति बनने की, क्या तुम थोड़ी मदद करोगी?
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
अभिनव
पत्र पढ़कर नम्रता की आँखें भर आईं, जिसे देख अभिनव घबराए से नम्रता के पास आए। 'अरे! ये क्या हुआ? मेरा इरादा ऐसा तो कतई नहीं था। मैंने तुम्हारी और रीतिका की बातें सुन ली थीं इसलिए... लेकिन मैं तो तुम्हें खुशी देने के लिए यह सब किया और तुम तो रोने लगीं।'
नम्रता अभिनव के सीने से लग कर रोते हुए बोली 'आप बहुत अच्छे हैं। आप बिल्कुल मत बदलिए आप जैसे हैं वैसे ही मुझे प्यारे हैं। मैं क्यों न आप से ही आपकी तरह ही प्यार करूँ?'
14 मई 2010
तुम्हें क्यों न चाहे मन?
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:41:00 pm
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