दोस्तो! हर किसी की यही तमन्ना होती है कि जो उसे प्यार करे हमेशा एक सा प्यार करता रहे पर बहुत कम रिश्तों में ऐसा होता है जहाँ हमेशा खुशी और उत्साह बना रहे। एक बार रिश्ता कोई स्वरूप धारण कर लेता है तो बस उसी के इर्द-गिर्द एक बेजान मशीन की तरह वह घूमता रहता है पर हताश होने की जरूरत नहीं इस बेजान सी मशीन में फिर से जान डाली जा सकती है। यूँ तो बहुत से तरीके हैं अपने बेरंग रिश्ते में रंग भरने के लेकिन यहाँ पर उन्हीं नुस्खों को आपके लिए पेश किया जा रहा है जिसमें दोनों की खुशी बरकरार हो :
निर्जीव हुए रिश्तों में जान फूँकने का सबसे अच्छा तरीका है अपनों के साथ समय बिताना। जो लोग आपके जीवन में मायने रखते हों उनके साथ क्वालिटी टाइम यानी गुणवत्ता समय बिताना बहुत असरदार होता है। समय का अभाव है तो समय निकालें। समय चाहे थोड़ा हो पर यह अहसास करना कि उनके साथ समय बिताना आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है, जरूरी है। कई बार दोनों अपने-अपने काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि एक-दूसरे के लिए समय निकालने की जरूरत ही नहीं समझते हैं। उनके दिमाग में एक ही बात होती है कि हम ये सब काम सिर्फ अपने लिए तो नहीं कर रहे हैं पर ऐसा करते हुए हम एक घर में रहते हुए भी अकेले से हो जाते हैं। इस अजनबीयत को तोड़ने का बस एक ही तरीका है कि सोच-समझकर समय साथ-साथ बिताएँ।
हम पूरी दुनिया की बात ध्यान से सुनते हैं और उन्हें सम्मान करते हैं पर जो हमारे अपने होते हैं हम उनकी बातों को ध्यान से सुनने की जरूरत ही नहीं समझते और ऐसा कर हम उनका अपमान करते हैं। यह आदत बदलने की जरूरत है। हमने सामाजिक व्यवहार में यही सीखा हुआ होता है कि यदि हम किसी के विचारों से असहमत हैं फिर भी उनके नजरिए को जरूर सुनें पर अपने करीबी लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करने का प्रशिक्षण हमें अमूमन नहीं मिला होता है इसलिए जैसे ही किसी की राय हमसे भिन्न होती है तो हम बेचैन होकर उसी समय उस बात को काटकर रोक देते हैं।
* अपने सब्र का दामन कभी न छोड़ें, चाहे शिकायत का मुद्दा आपकी सोच से विपरीत क्यों न हो। अगर आपने उनकी शिकायत को धैर्य से नहीं सुना तो सामने वाले को यही लगेगा कि आपको उनकी परवाह नहीं है। हो सकता है उनकी शिकायत पूरी तरह वाजिब न हो पर यह दुख या सवाल उनके मन में आपके ही किसी व्यवहार से आया है। बेहतर यही है कि उस शिकायत को खुले दिल से सुन लें। ऐसी परिस्थितियों से बचने से या अपनी बात कहकर चुप कराने से रिश्तों का अपनापन जाता रहता है।
* अपने प्यार करने वालों को घर की मुर्गी की तरह नहीं लेना चाहिए। अकसर कुछ समय के बाद हम यही मानने लगते हैं कि यह कहाँ जाएगा या जाएगी। इस खड़ूस को कौन चाहने वाला मिल सकता है या मिल सकती है पर जब कभी ऐसा होता है तब पाँव तले से जमीन खिसकने लगती है। हैरानी तब होती है जब वही व्यक्ति डर के मारे छोटी-बड़ी बातों का खयाल रखने लगता है। फिर उन्हें अपने साथी की पसंद-नापसंद पर नजर रखना भी आ जाता है। हँसना-हँसाना भी वे सीख जाते हैं पर यही सारा कुछ कोई पहले से ही करे तो जिंदगी इतनी बेरौनक न हो कि गुलजार करने के लिए किसी और का सहारा लिया जाए।
* अगर आप किसी रिश्ते को लेकर आश्वस्त हैं तो आपके साथी तक अपने आप ही उस आश्वस्ती की लहर पहुँच जाएगी। आपका भरोसा, अपनापन बिना शब्दों में ढाले ही दूसरे पर प्रतिबिंबित होगी। जहाँ मन की सच्चाई नहीं हो वहाँ कोई शब्द, कोई जादू-टोना काम नहीं करता। यदि एक व्यक्ति आश्वस्त नहीं है तो दूसरे से आश्वस्ती की उम्मीद करना बेकार है।
* यदि अनजाने में कोई भूल हो गई है तो माफ करने की कोशिश करनी चाहिए। यदि सचमुच उसका इरादा दुख पहुँचाने का नहीं था तो उस बात को दिल से लगाए रखने का कोई तुक नहीं है। माफ करते हुए रिश्ते को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। समझौते की गुंजाइश हमेशा रहने देना चाहिए। चीखना-चिल्लाना और बहुत क्रूर होना तो भूल ही जाना चाहिए। इससे रिश्ते सुधरते नहीं हैं बल्कि बिगड़ते हैं।
ऊपर लिखे सातों नुस्खों को हम यदि आजमाएँ तो यकीन मानिए कम से कम पचास प्रतिशत तो हमारे रिश्ते में सुधार आना निश्चित है। रिश्ते में गरमाहट और खुशी भी तभी मिलती है जब हम उसे सच्चे मन व सचेत रूप से निभाते हैं।
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