लियो टॉल्स्टाय ने 18वीं सदी में एक उपन्यास लिखा था- अन्ना कारेनिना। एक विवाहित स्त्री का प्रेम के लिए भटकना और उसे पाकर भी मौत को पाना, विचारों की जटिलता प्रस्तुत करता है। यह एक ऐसे दौर की कथा है, जब समाज में स्त्री का प्रेम करना अपराध माना जाता था और यदि एक विवाहित स्त्री ऐसा कर रही है, तो उससे बड़ा कलंक और क्या हो सकता था! लेकिन उपन्यास की नायिका अन्ना कारेनिना ने उन बंधनों को मानने से इंकार कर दिया और प्रेम कर बैठी।
"लियो टॉल्स्टाय ने 18वीं सदी में एक उपन्यास लिखा था- अन्ना कारेनिना। एक विवाहित स्त्री का प्रेम के लिए भटकना और उसे पाकर भी मौत को पाना"
अन्ना का विवाह उससे उम्र में 20 साल बड़े व्यक्ति काउंट कारेनिन से होता है। उसका एक बेटा भी है-सेर्योझा। सारी सुख-सुविधाओं से घिरी अन्ना के जीवन में एक ऐसा खालीपन था, जिसे कोई भी ऐशो-आराम भर नहीं सकता था। उस खालीपन को तलाश थी, प्रेम की। और एक दिन ट्रेन में सफर करने के दौरान उसकी मुलाकात होती है व्रोन्स्की से। शुरुआत में अन्ना को व्रोन्स्की में कोई दिलचस्पी नहीं होती, लेकिन धीरे-धीरे अन्ना को उसका साथ अच्छा लगने लगता है। उसे महसूस होता है, इसी प्रेम की तो उसे तलाश थी। दोनों के रिश्ते प्रगाढ़ होने लगते हैं। व्रोन्स्की से उसे एक बेटी भी होती है। यह प्रेम अन्ना के पति को बिल्कुल रास नहीं आती। काउंट को लगता है कि इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी। वह अन्ना को व्रोन्स्की से दूर रहने की हिदायत देता है और साथ ही उनकी बेटी को अपनाने की बात भी कहता है।अन्ना ने जिस प्यार के लिए अपने पति और पूरे समाज से बगावत की, उससे ही दूरियाँ बढ़ने लगीं थीं। अब अन्ना और व्रोन्स्की के रिश्ते बोझिल होने लगे थे, अन्ना के जीवन में न प्रेम रहा और न ही पति नाम का कोई सामाजिक रिश्ता। दोराहे पर खड़ी अन्ना को लगा कि उसकी जिंदगी में मौत से बेहतर विकल्प और कुछ नहीं हो सकता। अंतत: उसने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली, और प्रेम की तलाश पूरी होकर भी अधूरी रह गई।
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