कहने को ढाई अक्षर भर हैं, पर कितना कुछ समेटे है अपने अंदर। आशय कितना विराट और बहुआयामी। भाँति-भाँति के रंग लिए हुए। नि:शब्द, लेकिन अनुगूँज ठेठ अंदर तक। एक अमूर्त अहसास। अपनी संपूर्ण उदात्तता में प्रेम कोमल भावनाओं की मौन अभिव्यक्ति है। प्रेम कुछ देखा, कुछ अनदेखा, कुछ व्यक्त, कुछ अव्यक्त और कुछ दृश्य, कुछ अदृश्य-सा होता है। उसे किसी एक परिभाषा में बाँधना, उसे छोटा करके देखना है। प्यार का इज़हार आँखों से होता है, जबान से नहीं।
प्रदर्शनकारी होने पर प्रेम की महत्ता घटती है। 'आई लव यू' और 'आई लव यू टू' शब्द बहुत औपचारिक हो गए हैं। टीवी और सिनेमा के पर्दे पर ही अच्छे लगते हैं। पति का झूठा खाने से प्रेम प्रमाणित नहीं होता। दरअसल, शोर प्रेम के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। प्रेम तो अनंत है, असीम। वह बाँटने से बढ़ता है।
प्यार का इजहार भले ही आँखों से होता हो, होता वह हृदय है। कहने को दिल माँस का लोथड़ा भर है, पर कितना परेशान करता है। चैन नहीं लेने देता। तनिक-सी उथल-पुथल से धड़कन बढ़ जाती है। हेंपशायर (ब्रिटेन) की जेनिफर सटन का दिल शल्य चिकित्सा द्वारा बदला गया था। जब जेनिफर को निकाला गया उसका दिल दिखाया गया तो उसके मुँह से सहसा निकला, 'तो माँस का यही लोथड़ा था जिसने मुझे तरह-तरह से परेशान किया।' प्रेम हृदय से होता है, पर हृदय पर किसी का वश नहीं।
वह कब किस पर आ जाएगा, कहना कठिन है। स्त्री इस मामले में अधिक भावुक और संवेदनशील है। वह कब किसको माथे का सिंदूर बना लेगी, कब प्रेमी की खातिर पति की हत्या करवा देगी और कब पति की चिता पर बैठकर सती हो जाएगी, कहना मुश्किल है। कहना मुश्किल है। प्यार पाने के लिए स्त्री राजपाट, पदवी सब छोड़ने को तत्पर रहती है। एक बार प्रेम का अंकुर फूट आए तो फिर उसे मन से बुहारना मुश्किल है। जापान की राजकुमारी साया ने एक आम नागरिक कुरोदा से विवाह करने के लिए शाही परिवार से अलग हो, राजकुमारी की पदवी त्याग दी थी। जापान के शाही परिवार में ऐसे और भी हादसे हुए हैं।
ब्रिटेन के राजकुमार को भी अपने प्रेम की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। बांग्लादेश की अठारह वर्षीय सायरा ने ब्रिटेन की जेल में बंद अपराधी चार्ल्स ब्रोवासन से शादी रचा ली थी, जबकि सायरा चार्ल्स से सिर्फ तीन बार मिली थी। पर्दे पर नारी-अस्मिता की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली खूबसूरत अभिनेत्रियों ने अपनी उम्र से काफी बड़े, विवाहित और युवा संतानों के पिता से विवाह कर लिया, यह भूलकर ऐसा करके वे दूसरी स्त्री का घर बर्बाद कर रही है। नोबेल पुरस्कार विजेता डोरिस लैसिंग ने शायद सही ही कहा है कि औरत ऐसा यथार्थ है, जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। मैत्रेयी पुष्पा ने भी सच कहा है कि पुरुष भले ही औरत के शरीर पर बंधन लगा दे, पर उसके स्वच्छंद विचरण करते मन पर प्रतिबंध लगाना उसके वश में नहीं है।
एक औरत की मोहब्बत और पुरुष की मोहब्बत में बहुत फर्क है। पुरुष की तुलना में स्त्री अधिक निष्ठावान, समर्पित और सहिष्णु होती है। पता नहीं, यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियालाजिस्ट के निष्कर्ष इस विचार को किस हद तक समर्थन देते हैं। सोसायटी की वर्ष 2007 में वियना में संपन्न बैठक में व्यक्त मतानुसार बहुत जुदा हैं महिला और पुरुष के दिल।
इसलिए दोनों के दिलों की बीमारी की ऑपरेशन विधि में थोड़ी भिन्नता है। पुरुष का जीवन बचाने के लिए किए जाने वाले ऑपरेशन स्त्रियों के लिए घातक भी सिद्ध हो सकते हैं। देखा गया है कि कारोनरी बायपास के बाद महिला मरीजों के मरने की संख्या पुरुष रोगियों की तुलना में ज्यादा है। मानसिक और शारीरिक स्तर पर पुरुष से अधिक सहनशील होने का भी कारण स्त्री के शरीर में मौजूद विशेष हारमोन्स हैं। समय से पूर्व (प्रिमेच्योर) जन्मे बच्चों में से अस्सी प्रतिशत लड़कियाँ बच जाती हैं, जबकि अधिकांश लड़के दम तोड़ देते हैं।
प्रेम और देह के अंतर्संबंधों का सवाल बहसतलब है। क्या देह को अलग कर प्रेम को देखा जा सकता है? क्या प्रेम देह के आकर्षण से परे है? क्या प्रेम देह के माध्यम से ही व्यक्त होता है? क्या प्रेम की सूक्ष्मता शरीर की स्थूलता में ही जाकर समाप्त होती है। कथाकार प्रियंवद का मत है कि देह के साथ प्रेम हो, वह अनिवार्य नहीं पर प्रेम के साथ देह होने से इंकार नहीं किया जा सकता। वरिष्ठ साहित्यकार गिरिराज किशोर के अनुसार हर प्रेम या रोमांस में सेक्स का स्फुरण होता है।
प्रेम की प्रारंभिक अवस्था में भी सेक्स के आकर्षण से इंकार नहीं किया जा सकता। सत्येनकुमार की कहानियाँ 'तेंदुआ' और काँच में भी प्रेम के साथ शरीर का संगीत है। देखा गया है कि अरैंज्ड मैरिज में देह के साथ-साथ प्रेम परवान चढ़ता है - स्थायी भाव के रूप में - एक अव्यक्त सुखानुभूति के साथ। उसी से समर्पण बढ़ता है।
सच्चे प्यार की डोर बारीक, किंतु मजबूत होती है। इसीलिए छोटे-छोटे आघात से टूटती नहीं। प्रेम में सघनता है तो तमाम कुंठाएँ, अंतर्विरोध, संदेह समाप्त हो जाते हैं। ऐसे में शरीर की शुचिता, अशुचिता का प्रश्न भी गौण हो जाता है। यदि समझ व्यापक, दृष्टि उदार, प्रेम सच्चा और भरोसेमंद हो तो देह की पवित्रता-अपवित्रता का सवाल पीछे छूट जाता है।
यदि सवाल ऊब, अतृप्ति और एकरसता का है तो उसका सीधा संबंध शरीर से है, वासना से है। टाल्सटॉय ने एक जगह लिखा है - 'एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कब तक प्यार करता रह सकता है!' यदि ऊबकर लोग देह की तलाश में बाजार जाते हैं या विवाहेत्तर संबंध बनाते हैं तो वहाँ व्यक्ति की अनिष्ठा और वासना पूर्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं है। प्रेम के बिना तृप्ति अधूरी है। तृप्ति और पूर्णता प्रेम के साथ आती है।
प्रेम में दीवानगी देखना हो तो लैला-मजनू, शीरी-फरहाद और हीर-रांझा के किस्से हमारे सामने हैं। प्रेम में पागल होने वालों की अजीब दास्तान है। प्रेमाग्नि में अपान सब कुछ स्वाहा करने वालों की फेहरिस्त लंबी है।
हो सके तो परहेज जितना इससे उतना कीजिए
इश्क वो नासूर है जिसका कोई मरहम नहीं।
वैसे भी भारतीय समाज में इश्क को इल्जाम माना गया है। विभिन्न कारणों से समाज प्राय: ऐसे संबंधों को स्वीकृति नहीं देता। इसीलिए प्रेमी-प्रेमिका लुक-छिपकर मिलते हैं। दुनिया कितनी ही आगे चली गई हो, लड़की के किसी लड़के से इश्क को समाज अनैतिक मानता है। परिजन इसे सामाजिक भय, प्रतिष्ठा और जातीय भेदभाव की दृष्टि से देखते हैं।
प्रेम का एक रूप वह है जो घृणा और निराशा से उपजता है। जब लड़की प्रेम निवेदन अस्वीकर कर देती है तो प्रेमोन्मत्त प्रेमी उसका गला रेत देता है। शायद यह नफरत, निराशा और नाकामयाबी से उपजे प्यार का घृणित रूप है।
प्रेम की प्रारंभिक अवस्था में भी सेक्स के आकर्षण से इंकार नहीं किया जा सकता। सत्येनकुमार की कहानियाँ 'तेंदुआ' और काँच में भी प्रेम के साथ शरीर का संगीत है। देखा गया है कि अरैंज्ड मैरिज में देह के साथ-साथ प्रेम परवान चढ़ता है - स्थायी भाव के रूप में - एक अव्यक्त सुखानुभूति के साथ। उसी से समर्पण बढ़ता है।
सच्चे प्यार की डोर बारीक, किंतु मजबूत होती है। इसीलिए छोटे-छोटे आघात से टूटती नहीं। प्रेम में सघनता है तो तमाम कुंठाएँ, अंतर्विरोध, संदेह समाप्त हो जाते हैं। ऐसे में शरीर की शुचिता, अशुचिता का प्रश्न भी गौण हो जाता है। यदि समझ व्यापक, दृष्टि उदार, प्रेम सच्चा और भरोसेमंद हो तो देह की पवित्रता-अपवित्रता का सवाल पीछे छूट जाता है।
यदि सवाल ऊब, अतृप्ति और एकरसता का है तो उसका सीधा संबंध शरीर से है, वासना से है। टाल्सटॉय ने एक जगह लिखा है - 'एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कब तक प्यार करता रह सकता है!' यदि ऊबकर लोग देह की तलाश में बाजार जाते हैं या विवाहेत्तर संबंध बनाते हैं तो वहाँ व्यक्ति की अनिष्ठा और वासना पूर्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं है। प्रेम के बिना तृप्ति अधूरी है। तृप्ति और पूर्णता प्रेम के साथ आती है।
आस्ट्रियाई लेखक आंद्रेयास वेबर के अनुसार, 'दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण चीज है प्रेम। प्रेम के कई रंग हैं। कई तरह से किया जाता है प्रेम। मैं अपनी माँ, पत्नी, बहनों और भाइयों सबको बहुत प्यार करता हूँ।' ईश्वर हो या मनु्ष्य, विनम्र लोगों के प्रति उसके मन में प्रेम सहज रूप से उमड़ता है। विनयशील होकर आप किसी का भी दिल जीत सकते हैं। झुककर ही मंदिर में प्रवेश करना होता है। जिसने प्रेम को समझ लिया, उसने परमात्मा को समझ लिया।
ओशो के अनुसार 'करुणा' के बिना प्रेम अपूर्ण है। अगर करुणा से प्रेम निकले तो प्रेम मुक्तदायी हो जाएगा, बंधनकारी नहीं रहेगा। हमें उन लोगों के प्रति भी प्रेमपूर्ण होना चाहिए जो हमारे प्रति प्रेमपूर्ण नहीं हैं। यदि कोई हमारा शत्रु है या हमें प्रेम नहीं करता है तो हम उसके प्रति घृणा की व्यवस्था कर लें, यह उचित नहीं। प्रेमपूर्ण हृदय को दिखाई नहीं पड़ता कि सामने वाला दुश्मन है। जिसके हृदय में प्रेम प्रतिष्ठित है, उसे तो प्रेम देना अच्छा लगता है। प्रेम करने में ही उसे आनंद मिलता है।'
कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम सर्वथा भिन्न है। वहाँ प्रीति का स्थायी भाव भक्ति है। एक संसार पति के होते हुए लोकलाज को दरकिनार कर मीरा अंत तक कृष्ण के प्रेमरस में डूबी रहीं। मीरा का प्रेम एकांगी था। उनके गीतों में जहाँ भी मिलन या सामीप्य का वर्णन है, वह काल्पनिक है। उनकी भक्ति में माधुर्य भाव है, वासना नहीं। पति प्रेम के रूप में ढले भक्ति-रस ने मीरा की संगीत धारा में जो दिव्य माधुर्य घोला है, वैसा शायद ही अन्यत्र मिले।
प्रेम की शक्ति असीम है। प्रेम इंसान को मानवीय बनाता है। उसे अंदर तक बदल देता है। प्रेम के ढाई अक्षर जिसने सही अर्थ में आत्मसात कर लिया, वही सच्चा पंडित है। जिसने प्रेम पा लिया, मानो प्रभु को पा लिया। किसी ने सच कहा है - प्रेम का मतलब रब होता है। प्रेम के बिना जीवन व्यर्थ है -
जिये तो जिये तेरी दुनिया में
उल्फ़त व मोहब्बत समझे ही नहीं
तो आइए, इस भयावह समय में घृणा, स्वार्थ और ईर्ष्या के कोहरे को चीरकर प्रेम की सरिता बहाएँ। बगिया में ऐसे फूल उगाएँ जिनकी सांस्कृतिक सुगंध दूर तक फैलकर धरती को इस लायक बनाए कि मनुष्य उस पर सुख, शांति और सुकून से रह सके।
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