हमारे चेहरे पर (दिमाग और आंखों के नीचे व नाक के चारों तरफ) चार हडि्डयां होती हैं, जिन्हें हम साइनस कहते हैं। ये हडि्डयां अंदर से खोखली होती हैं। ये एक छोटे से रास्ते से नाक के अंदर खुलती हैं। इनमें लगातार पानी बनता रहता है, जो इस छोटे रास्ते से होकर नाक में जाकर गिरता है। यदि इनमें किसी कारण से रूकावट आ जाए तो व्यक्ति को "साइनोसाइटिस" की समस्या होती है। साइनोसाइटिस में साइनस का संक्रमण हो जाता है। इससे व्यक्ति को जुकाम, नाक में रूकावट, सांस लेने में असुविधा होती है, जो कई दिनों तक चलती है। इससे व्यक्ति के दैनिक कामों में विघ्न और कई अन्य तरह की समस्याएं होती हैं।
साइनोसाइटिस और तनाव
साइनोसाइटिस में मरीज की हालत में तनाव का उतना फर्क नहीं पड़ता, जितना बीमारी का तनाव पर पड़ता है। दरअसल इससे व्यक्ति दिन-ब-दिन के कामों में इतना परेशान होने लगता है कि वह लगातर तनाव का दबाव महसूस करता है, जिससे उसे बीमारी से लड़ने में और परेशानी होती है।
सर्दी ही नहीं....
सांस लेने में तकलीफ
बलगम रहना
सिरदर्द और एकाग्रता में कमी
कोई भी काम करने में परेशानी होना चिड़चिड़ापन, आत्मविश्वास में कमी की वजह से व्यक्तिगत संबंधों में खटास आना
व्यक्ति का डिप्रेस होना और तनाव
कान की बीमारियां भी
संक्रमण का कान, नाक और गले में फैलना
अस्थमा, सोते समय खर्राटे लेना
सांस लेने में रूकावट
मुंह से सांस लेने की वजह से दिल व फेफड़ों पर जोर पड़ना
बहुत ज्यादा थकान होना
कई बार संक्रमण दिमाग और आंखों में फैल जाता है, जिससे व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है या उसकी दृष्टि भी जा सकती है, लेकिन ऎसा बहुत कम मामलों में होता है।
संक्रमण और एजर्ली है कारण
साइनोसाइटिस की समस्या मुख्त: दो कारणों से होती है, पहला साइनस के संक्रमण से और दूसरा नाक के रास्ते में रूकावट आने या एलर्जी से।
नाक का परदा तिरछा होने से
बच्चों में नाक के नीचे टांसिल्स होने से
नाक में मस्सा होने से
नाक की हड्डी में वृद्धि होने से
इन समस्याओं से नाक में रूकावट होती है।
बीमारी के चार प्रकार
एक्यूट साइनोसाइटिस - चार हफ्तों से कम समय
सबएक्यूट साइनोसाइटिस-चार हफ्तों से ज्यादा समय तक
क्रॉनिक साइनोसाइटिस - आठ या अघिक हफ्तों तक
रिकरंट साइनोसाइटिस- तीन या इससे अघिक बार एक ही साल में साइनोसाइटिस होने पर। भारत में इस तरह का साइनोसाइटिस सबसे ज्यादा पाया जाता है।
सर्दी होने पर ध्यान दें
मामूली सर्दी होने पर ध्यान न रखने से साइनोसाइटिस की समस्या हो सकती है या फिर पहले से नाक के रास्ते में रूकावट का होना लंबी सर्दी के बाद साइनोसाइटिस के रूप में उभरकर आ सकती है। इसलिए जुकाम को जड़ से मिटाए बगैर आश्वस्त न हों।
किन में ज्यादा
पिछले कुछ सालों में साइनोसाइटिस के मामलों में खासा बढ़ोतरी हुई है। इसमें 20 से 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रदूषण, धूल से अत्यघिक संपर्क, धूम्रपान, कुछ केमिकल्स के संपर्क, परफ्यूम, कालीन व पालतू जानवरों से संपर्क करने वालों में इसके होने की ज्यादा आशंका है। ज्यादा भीड़-भाड़ वाली जगहों में जाने से भी इसके होने की आशंका रहती है।
जल्द कराएं जांच
ज्यादातर साइनोसाइटिस के मामलों में एंडोस्कोपी से ही जांच की जाती है। इस दौरान यदि नाक में दवा लगा दो तो कई बार अलग से इलाज की जरूरत नहीं पड़ती। सारी दवाएं देने के बाद भी यदि बीमारी नियंत्रित नहीं होती तो सीटी स्कैन कर कारण का पता लगाना होता है। इसकी जरूरत बहुत कम मामलों में होती है।
एंडोस्कोपी सर्जरी से बेहतर इलाज
मामला गंभीर न होने पर या यूं कहें कि बीमारी बार-बार वापस न आने पर नैसल ड्रॉप्स, एंटीबायोटिक्स और एंटी एजर्ली दवाओं से इलाज किया जाता है। बीमारी बार-बार आए तो एंडोस्कोपी सर्जरी कर साइनस में रूकावट के कारण को ठीक किया जाता है। हाल ही में "बलून साइनोप्लास्टी" नाम से नई तकनीक आई है, जिसे एंजियोप्लास्टी के ही तरीके से किया जाता है। इसके अलावा योग, प्राणायाम व नेजेल इरिगेशन से भी मरीजों को काफी फायदा होता है।
11 मई 2010
साइनोसाइटिस
Posted by Udit bhargava at 5/11/2010 06:05:00 am
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