हेलो दोस्तो! कौन नहीं चाहता कि उसकी जिंदगी सुचारु रूप से चले। जिस रिश्ते में वह रहे वह स्वच्छ जल की मानिंद कल-कल बहता जाए। बस वहाँ खुशी और सुकून हो, अनबन की गुंजाइश ही न हो। एक-दूसरे से केवल शक्ति पाएँ तथा उसे रचनात्मक काम लगाएँ। हमारा समय आपसी उलझन को सुलझाने में नष्ट न हो। पर ऐसा नहीं होता है। हम हर रिश्ते में कुछ न कुछ परेशानी झेलते ही रहते हैं।
ऐसी ही समस्या से जूझ रही हैं रोशनी। उसे पता ही नहीं चलता है वह अपने दोस्त के साथ कैसे संतुलन बनाए। जब दोनों बेहद प्यार में डूबे रहते हैं तो एक-दूसरे पर अधिक अधिकार और अपेक्षाएँ जोड़ लेते हैं और किसी भी कारणवश वे अपेक्षाएँ पूरी नहीं होने पर प्यार का भरोसा हिलने लगता है। फिर एक-दूसरे की मजबूरी समझने में कई दिन लग जाते हैं। गिला, शिकवा, रूठना-मनाना इसमें ही बेहतरीन समय नष्ट हो जाता है। रोशनी को लगता है आखिर क्या तरीका अपनाया जाए कि वे दोनों अपनी गरिमा और स्वतंत्रता बरकरार रखते हुए भी बिल्कुल एक महसूस करें।
रोशनी जी, आपकी समस्या आज कमोबेश सभी रिश्तों में नजर आती है। हाँ, आपकी एक बात जरूर भिन्नता लिए हुए है, वह है आप दोनों प्यार में रहते हुए भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखना चाहते हैं। यह प्रयास आम चलन से हटकर है इसलिए इसमें उतार-चढ़ाव की गुंजाइश भी ज्यादा है। ऐसी सोच समझदारी के साथ-साथ धैर्य और बौद्धिक नजरिए की भी माँग करता है। ऐसा रिश्ता सींचने में हम यदि कामयाब हो जाएँ तो इससे खूबसूरत चीज और कोई नहीं हो सकती।
सवाल यह उठता है कि आखिर यह स्वाधीनता कैसे बनाए रखी जाए। कैसे अपना प्यार लुटाते हुए भी दूसरे से अपेक्षा न करें। सच यह है तो बहुत ही पेचीदा प्रश्न। पर जहाँ चाह है वहाँ राह है। हमें सबसे पहले बहुत संजीदगी से विचार कर लेना चाहिए कि हम किस स्थिति में जीना चाहते हैं। अगर हमने यह तय कर लिया कि जिसे हम प्यार करते हैं उसे हर हाल में प्यार करते रहेंगे, चाहे जो भी सामंजस्य करना पड़े तो मेरे खयाल से बहुत सारी दुविधा और अपेक्षाएँ खत्म हो जाती हैं। प्यार के रिश्ते में भावनाओं की प्राथमिकता तय करना बहुत अहम है। यदि प्यार में सम्मान, खुशी और शांति से जीना है तो केवल अपनी जिम्मेदारी निभाने के विषय में सोचना चाहिए।
आप ही नहीं, बहुत जोड़ों की यही शिकायत रहती है कि फलाँ हालत में मैंने इतना समय दिया, इतना कष्ट उठाया पर जब मेरी बारी आई तो उसने वैसा कुछ भी नहीं किया। हम यह भूल जाते हैं कि हम किसी की बीमारी में कोई सेवा या कोई भी कष्ट इसलिए उठाते हैं कि हमें वैसा करके संतोष मिलता है। उस व्यक्ति को हम स्वस्थ और खुश देखना चाहते हैं ताकि हमें सुकून मिले इसलिए कष्ट उठाना बुरा नहीं लगता है। पर वैसे ही व्यवहार की कामना करना अपनी और दूसरे की स्वाधीनता पर प्रतिबंध लगाना है।
जब माँ-बाप बच्चों को यह सुनाते रहते हैं कि हमने तुम्हारे लिए यह कष्ट उठाया अब तुम्हारी बारी है तो उस वक्त बच्चों को लगता है काश उन्होंने हमारे लिए इतना न किया होता और हमारी आजादी बरकरार रहती। बच्चे माँ-बाप के लिए बहुत कुछ कर भी सकते हैं बशर्ते कि उसे किसी उलाहने के बदले में न करना पड़े। हर किसी को यदि हम मुक्त रहने का अहसास दिलाएँ तो शायद सभी रिश्ते में ज्यादा सच्चाई और गहराई हो सकती है।
रोशनी जी, आप तो रिश्ते में रहते हुए स्वाधीन रहना चाहती हैं। ऐसी हालत में आप केवल अपने प्यार की जिम्मेदारी संभालें। अपने साथी को आजाद छोड़ें। यह उसका सिरदर्द है, वह आपके साथ कैसा व्यवहार करे।
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