''तुम्हें क्या मिला वह तो मैं नहीं जानता लेकिन एक बात जरूर जानता हूँ कि तुमने उस शख्स को खोया है जो कभी अपने आपसे भी ज्यादा तुम्हें प्यार करता था। तुमने उसे धोखा दिया है जिसने अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ तुम पर भरोसा किया। खैर तुम्हे जो करना था वह तुमने कर लिया बस अब एक आखिरी गुजारिश है। मेरे बाकी बचे जीवन में कभी भी और कहीं भी अगर तुम्हारा मुझसे सामना हो जाए तो भगवान के लिए अपना रास्ता बदल देना या फिर अपना मुँह फेर लेना। क्योंकि मैं जानता हूँ कि जब कभी भी मैं तुम्हारा चेहरा देखूँगा तब मुझे सिर्फ एक ही बात का अफसोस रहेगा कि मैंने इस चेहरे के पीछे छुपे हुए उस शख्स से प्यार किया जिसने आखिर तक मुझे धोखे के अलावा और कुछ भी नहीं दिया। हो सकता है कि उस वक्त मैं गुस्से में आकर कुछ ऎसा काम कर जाऊँ जो मैं कभी नहीं करना चाहता।''
उस दिन अचानक ही रीटा की नजर राजीव के द्वारा लिखे गए उस खत पर पड़ गई जो कई सालों से एक किताब के पन्नों के बीच में सड़ रहा था। यह खत राजीव और रीटा की प्यार की यादों को बयाँ करने वाला आखिर खत था।
कॉलेज के दिनो में ही इन दोनों के प्यार का गुल खिला था। रीटा प्रिंसीपल साहब की ऑफिस से बाहर ही निकली थी कि अचानक ही सामने के कैन्टीन में राजीव अपने दोस्तों के साथ काफी पी रहा था। नई स्टूडेंट को देखकर सभी सीनियर्स रीटा के नजदीक आ गए और देखते ही देखते उसकी रैगिंग शरू कर दी। हद तो तब हो गई जब रीटा को कहा गया कि 'वह एक अपाहिज महिला की तरह लंगडाती लंगडाती सभी स्टूडेन्ट्स के सामने आकर भीख माँगे।
रीटा के लिए दिल्ली शहर बिल्कुल नया था और यहाँ के लोग भी। वह बिलकुल घबरा गई और फूट फूट कर रोने लगी। उस समय राजीव ही था जो एक फरिश्ता बनकर उसे बचाने आया था। उसने सभी सीनियर्स को खूब डाँटा और उन्हें रीटा से माफी माँगने के लिए भी कहा।
उसी दिन से राजीव रीटा के मन को भा गया। धीरे-धीरे उन दोनों की दोस्ती बढ़ने लगी। दूरियाँ नजदीकियों में तब्दील होने लगी और एक दिन रीटा ने सामने से ही राजीव को प्रप्रोज कर दिया। राजीव को भी रीटा बहुत पसंद थी उसने भी उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया। समय बीतता गया और उनका प्यार परवान चढ़ते गया। बात शादी तक भी आ पहुँची।
अब राजीव एक प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर था उसकी तनख्वाह भी अच्छी थी। रीटा भी हाईस्कूल के विद्यार्थियों को पढ़ाती थी। अचानक ही राजीव का तबादला मुंबई शहर में हो गया। रीटा से कोसों दूर होने के बावजूद भी वह हर महीने उसे मिलने के लिए मुंबई से दिल्ली आता रहता था। दोनों घंटों तक टेलीफोन पर एक-दूसरे से बातें किया करते थे। लेकिन धीरे-धीरे रीटा के फोन आने बंद हो गए। राजीव जब कभी भी फोन करता या तो फोन काट दिया जाता या फिर लंबे समय तक उसमे घंटियाँ बजती रहती।
राजीव भी थोड़ा व्यस्त होने के कारण चार-पाँच महीनों तक दिल्ली नहीं जा पाया। बाद में राजीव को मालूम हुआ कि रीटा और उनका परिवार दिल्ली छोड़कर कहीं दूर चले गए हैं। राजीव ने रीटा के बारे में जानने के लिए पूरी कोशिश की। वह रीटा के हर दोस्त, हर रिश्तेदार से मिला लेकिन किसी को भी रीटा कहाँ है उसकी जानकारी नहीं थी।
इस बात को पूरे पाँच साल बीत गए। एक दिन राजीव ऑफिस से बाहर ही निकला था कि सामने सड़क पर खड़े एक गुब्बारे वाले के पास एक महिला अपने छोटे बच्चे के साथ खड़ी थी। उसका बेटा गुब्बारे खरीदने के लिए बार बार उससे जिद करता था लेकिन वह मना कर रही थी।
राजीव को उस महिला का चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा। वह न चाहते हुए भी अपनी कार को रोड के दूसरी तरफ ले गया। उसने उस महिला को गौर से देखने का प्रयास किया, वह महिला और कोई नहीं बल्कि रीटा ही थी और वह बच्चा जो कब से उससे गुब्बारा खरीदने की जिद कर रहा था वह उसका ही बेटा था। एक मिनट के लिए राजीव अपने आपको सँभाल नहीं पाया। रीटा अब तक कहाँ थी और कब उसकी शादी हो गई, उसने क्यों मुझे नहीं बताया? ऎसे कई सवाल थे जो राजीव को परेशान कर रहे थे। उसने धीरे से अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला और रीटा के नजदीक आकर खड़ा हो गया।
एक पल के लिए तो अपने सामने राजीव को देखकर रीटा हैरान ही रह गई लेकिन बाद में अपने आपको सँभालते हुए सिर्फ फॉर्मलिटी के लिए उसने न चाहते हुए भी कहा 'हैलो राजीव कैसे हो?'
जिंदा हूँ। राजीव ने कड़वे लहजे में जवाब दिया। उसके जेहन में पिछले कई सालों से जो सवाल एक शूल की भाँति चुभ रहा था वह आज बाहर निकल ही गया 'रीटा तुम बिना बताए कहाँ चली गई थीं? मैंने तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा।
रीटा ने राजीव की इस बात का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा और अपने बेटे के पास जाकर कहा' सोहम, बेटा यह राजीव अंकल हैं उन्हें हैलो कहो। सोहम ने मीठी मुस्कान के साथ राजीव को हैलो कहा। उसकी मुस्कान को देखकर राजीव अपनी कड़वाहट और गुस्सा भूल गया, उसने गुब्बारे वाले से एक बड़ा गुब्बारा खरीदकर उसके हाथ में थमा दिया।
रीटा सोहम की अँगुली पकड़कर अब सड़क के दूसरे छोर पर चलने लगी। सामने के मल्टी में ही उसका फ्लैट था। राजीव ने सोहम का दूसरा हाथ पकड़ लिया। राजीव बार-बार एक ही बात रट रहा था जिससे परेशान होकर आखिर में रीटा भड़क गई।
'देखो राजीव अब हमारे बीच में ऎसा कुछ भी नहीं रहा, जैसा तुम चाहते थे। कहीं मेरे पति ने तुम्हें मेरे साथ देख लिया तो मेरी गृहस्थी बर्बाद हो जाएगी। भगवान के लिए यहाँ से चले जाओ। प्लीस राजीव यहाँ से चले जाओ।' रीटा ने मुँह फेरते हुए कहा।
आज रीटा पूरी तरह बदल चुकी थी। यह वही रीटा थी जो कभी राजीव के लिए अपनी जान देने के लिए भी तैयार हो जाती थी लेकिन अचानक उसे क्या हो गया। आधी अधूरी बातों से राजीव को यह तो मालूम हो गया कि रीटा ने लंदन के एक बड़े उद्योगपति मोहन अग्रवाल से उसी समय शादी कर ली थी जब वह मुंबई में था। यह रिश्ता रीटा के चाचाजी लाए थे। उस वक्त रीटा असमंज में थी कि वह किसे चुने एक तरफ राजीव था तो और दूसरी और मोहन।
मोहन के सामने राजीव की औकात फूटी कौड़ी की भी नहीं थी। उसके पास पुरखों की जायदाद और एक बड़ा कारोबार था। घर में दस-दस नौकर थे, वह रीटा के वो सभी सपने पूरे कर सकता था जिसे वह दिन-रात देखा करती थी। जबकि दूसरी और राजीव के पास उस व्यक्त रहने के लिए खुद का एक कमरा भी नहीं था। काफी सोच विचारकर अंत में रीटा ने प्यार के बदले पैसे देखकर मोहन से शादी कर ली और उसका पूरा परिवार दिल्ली छोड़ लंडन जा बसा।
बेचारा राजीव आखिर तक यह बात नहीं जान पाया कि वह सालों से जिस लड़की की प्रतिक्षा कर रहा था, वह आज एक लड़के की माँ बन चुकी है और मुंबई में अपने एक रिश्तेदार की शादी के लिए आई है।
राजीव अब तुम वापस चले जाओ। मेरे परिचितों का घर आ गया है। वो हम दोनों को जानते हैं। प्लीज चले जाओ' रीटा ने सामने वाली बिल्डिंग की और इशारा करते हुए कहा।
'लेकिन रीटा मेरी बात तो सुनो' राजीव अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया और रीटा अपने पति का विजिटिंग कार्ड देकर मल्टी के भीतर चली गई कार्ड में लिखा था। मि।मोहन कुमार अग्रवाल, एमडी फोर्च्युन प्राइवेट लि. लंदन।
उस मल्टी में दो-तीन तक शादी का माहौल रहा। शादी खत्म होने के बाद जब रीटा अपने परिवार के साथ लंदन जाने के लिए रवाना हो रही थी तभी मल्टी के चौकीदार ने उसे एक लेटर दिया और कहा कि मैडम यह एक साहब आपके लिए छोड़कर चले गए हैं। यह वही लेटर था जो रीटा आज पढ़ रही थी। उसने उसका दूसरा पन्ना खोला जिसे पढ़ने का कष्ट रीटा ने आज से पहले कभी नहीं किया था। जिसमें राजीव ने एक बड़ी बात लिखी थी।
'रीटा मालूम नहीं क्यों मैं चाहकर भी तुमसे नफरत नहीं कर पाया। तुम्हारे जाने के बाद भी मुझे हमेशा ऎसा लगा कि तुम मेरे साथ हो रीटा तुम नहीं हो फिर भी हमेशा ऎसा लगता कि तुम मेरे साथ हो, जब भी कोई बात होती है तब लोगों से मैं तुम्हारी बात छेड़ देता हूँ। तुम्हीं मेरी वो आँखें हो जो मुझे सूनी और तन्हा राहों में रास्ता दिखाती है। तुम्हारे मुस्कान को याद करके में दुनियाभर का गम भूल जाता हूँ। मैं तुम्हें कल भी प्यार करता था, आज भी करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा। हो सके तो अगले जन्म में जरूर मिलना। सदा तुम्हें प्यार करने वाला राजीव!
रीटा ने लेटर के नीचे देखा जिसमें उसी कंपनी का पता लिखा था जिसमें रीटा के पति काम करते थे। दूसरे दिन सुबह-सुबह रीटा ने अपने पति से पूछा 'क्या आप राजीव शर्मा को जानते हैं?
क्यों नहीं भला एक नौकर अपने बॉस को कैसे भूल सकता है। वह हमारी कंपनी के सीईओ हैं। फिलहाल वह मुंबई में हैं। मोहन ने बिना रीटा को देखे एक हाथ में चाय का कप और दूसरे हाथ में अखबार रखते हुए कहा।
14 मई 2010
वो तेरे प्यार का गम!
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:35:00 pm
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