रामभक्त बजरंग बली (हनुमान) का जन्म चैत्र मास की पूर्णिमा को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो हनुमान का जन्मदिवस वर्ष में दो बार मनाया जाता है, उत्तर भारत में कार्तिक चतुर्दर्शी व दक्षिण भारत में चैत्र पूर्णिमा को। आपकी जन्मकुण्डली का विवरण कहीं नहीं मिलता है, लेकिन भारत के महान ज्योतिषी स्व. पं. सूर्यनारायण व्यास की कुण्डली संग्रह से कल्पना द्वारा बनाई गई से उद्घृत है।
आपने तुला का सूर्य बताया है सो यह कार्तिक में ही आता है। और हनुमान की राशि कर्क बताई है लेकिन चतुर्दशी के दिन चन्द्रमा कन्या में ही रहता है, कर्क में किसी भी सूरत में नहीं होगा। हनुमान पवन पुत्र हनुमान के नाम से विख्यात, सो आपकी कन्या राशि बनती है क्योंकि अमावस्या के दिन सूर्य-चन्द्र साथ होते हैं इस हिसाब से चन्द्र कन्या में ही होना चाहिए।
आइए जानें हनुमान किन ग्रहों से प्रभावित है :- बजरंग बली के लग्न में मेष का मंगल जो कि अष्टमेश भी है, ऐसे जातक अत्यंत शूरवीर, पराक्रमी और साहस से भरपूर होते है। अतः आप महापराक्रमी, बलशाली और अजर-अमर हैं। मंगल की नीच दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ने से आपको पारिवारिक सुख नहीं है। अतः रावण की लंका जलाने के बाद जब समुद्र से जा रहे थे उस समय आपके पसीने की समुद्र में गिरी एक बूँद को एक मछली ने पी लिया, जिसके परिणामस्वरूप उस मछली को मकरध्वज नाम का पुत्र हुआ था। कन्या राशि होने और मीन राशि पर सप्तम दृष्टि पड़ने से ही मीन यानी मछली को पुत्र हुआ। हनुमान भगवान शिव के अंश माने जाते है। सप्तम पत्नी भाव का स्वामी शुक्र नीच का होकर षष्ट भाव में होने से व सप्तम में नीच का सूर्य भी दाम्पत्य जीवन में अवरोध का कारण रहा और इसी कारण ये आजीवन ब्रह्मचारी रहे। पिता भाव दशम में शनि स्वराशि का होने से इनके पिता यानी भगवान शिवजी अजर-अमर है। ज्ञानवान, धर्मज्ञ, सेवाभावी और वचन के पक्के होना यह सब भाग्येश गुरु की ही देन है। और यही कारण है कि द्वापर युग में महापराक्रमी भीम को वचन दिया था कि मैं तुम्हारी विजय पताका पर सुमेरु पर्वत के साथ विराजमान होऊँगा। गुरु का पंचम में होना और भाग्य धर्म भाव पर स्वदृष्टि तथा कन्या राशि के साथ राम की नाम राशि तुला का स्वामी बुध के साथ है, जो षष्ट भाव में है यही कारण भी शत्रुओं के नाश का कारण बनता है। इसी वजह से भगवान राम के अनन्य भक्त होने का श्रेय भी हनुमान को जाता है। चूँकि शुक्र-बुध के साथ राहु भी है जो प्रबल रूप से षष्ट भाव में होने से शत्रुहंता बनता है। अत: बजरंग बली का नाम ही शत्रुओं का काल है। भूत-पिशाच भी इनके नाम स्मरण से निकट नहीं आते। जो भी भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसके सारे कष्ट मिट जाते हैं। हनुमान जयंती के दिन बजरंग बली को सिंदूर लगाया जाता है व चोला चढ़ाया जाता है। साथ ही व्रत भी रख सकते हैं। रामचरित मानस का पाठ, हनुमान चालीसा एवं हनुमान मंत्रों का प्रयोग विशेष फलदायी है।
17 अप्रैल 2010
मंगल ने बढ़ाया हनुमान का बल
Labels: देवी-देवता
Posted by Udit bhargava at 4/17/2010 10:55:00 pm
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