राम भक्त हनुमान एक कुशल प्रबंधक भी थे। वे मानव संसाधन का बेहतर उपयोग करना जानते थे। मैनेजमेंट गुरुओं के मुताबिक, संपूर्ण रामचरित मानस में ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे साबित होता है कि महाबली हनुमान में मैनेजमेंट की जबर्दस्त क्षमता थी। समुद्र को पार किया श्रीराम के परम भक्त हनुमान के मैनेजमेंट से भगवान ने रावण पर विजय प्राप्त की। हनुमानजी ने सेना से लेकर समुद्र को पार करने तक जो कार्य कुशलता व बुद्धि के साथ किया वह उनके विशिष्ट मैनेजमेंट को दर्शाता है। हर काम में निपुण भगवान राम से परिचय के बाद से हनुमानजी को जो भी कार्य सौंपा वह उन्होंने पूर्ण कुशलता के साथ संपन्न किए। इस प्रकार हनुमानजी को प्रबंधन के क्षेत्र में एक कुशल स्तंभ माना जा सकता है।
सही प्लानिंग :- श्री हनुमानजी ऊर्जा प्रदान करने वाले शक्ति और समर्पण के पुंज हैं। आज के युवा मैनेजरों को अंजनी पुत्र हनुमानजी से कई प्रकार की प्रेरणा मिलती है। बुद्धि के साथ सही प्लानिंग करने की उनमें गजब की क्षमता है।
वैल्यूज और कमिटमेंट :- हनुमानजी का प्रबंधन क्षेत्र बड़े ही विस्तृत, विलक्षण और योजना के प्रमुख योजनाकार के रूप में जाना जाता है। हनुमानजी के आदर्श बताते हैं कि डेडिकेशन, कमिटमेंट, और डिवोशन से हर बाधा पार की जा सकती है। लाइफ में इन वैल्यूज का महत्व कभी कम नहीं होता।
दूरदर्शिता :- हनुमान जी ने सहज और सरल वार्तालाप के अपने गुण से कपिराज सुग्रीव से श्रीराम की मैत्री कराई। उनकी दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि सुग्रीव रामजी के सहयोगी बने। हनुमान जी की कुशलता एवं चतुरता आगे चल कर सही दिखाई पड़ती है जब सुग्रीव श्रीराम के काम आते हैं और रामजी की मदद से सुग्रीव को अपना राज्य मिलता है।
नीति कुशल :- राजकोष व पराई नारी प्राप्त कर सुग्रीव मैत्रीधर्म भुला देते हैं तो हनुमानजी उसे चारों विधियों साम, दाम, दण्ड, भेद नीति का प्रयोग कर श्रीराम के कार्यों की याद दिलाते हैं। यहाँ उनकी स्मरण शक्ति, सजगता, सतर्कता तथा लक्ष्य की दिशा में तत्परता श्रीराम को प्रभावित करती है। हनुमानजी मैनेजमेंट की यह सीख देते हैं कि अगर लक्ष्य महान हो और उसे पाना सभी के हित में हो तो हर प्रकार की नीति अपनाई जा सकती है, और यह भी कि कोई अपने कर्तव्यों और अहसानों को भूल रहा है तो उसे सही राह पर लाने के लिए भी हर तरह की नीति लागू की जा सकती है।
लीडर हो तो हनुमान जैसा :- उनकी सहज विनम्रता, लीडरशिप और सब को साथ लेकर चलने की क्षमता श्रीराम पहचान लेते हैं। कठिनाइयों में जो निर्भयता और साहसपूर्वक साथियों का सहायक और मार्गदर्शक बन सके लक्ष्य प्राप्ति हेतु जिसमें उत्साह और जोश, धैर्य और लगन हो, कठिनाइयों पर विजय पाने, परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर लेने का संकल्प और क्षमता हो वही तो नेतृत्व कर सकता है।
सबकी सलाह सुनने का गुण :- हनुमानजी का राम-काज हेतु उत्साह और वह जामवंत से मार्गदर्शन चाहना भी प्रबंधन का तत्व है। सबको सम्मानित करना, सक्रिय और ऊर्जा संपन्न होकर कार्य में निरंतरता बनाए रखने की क्षमता भी कार्यसिद्धि का गुरुमंत्र है। ह्यूमन नेचर की स्टडी और पहचान, मैनेजमेंट का खास एलिमेंट है। यह एलिमेंट हनुमानजी में पूरी राम-कथा के दौरान मिलता है।
दुश्मन पर नजर :- विरोधी के असावधान रहते ही उसके रहस्य को जान लेना दुश्मनों के बीच दोस्त खोज लेने की दक्षता विभीषण प्रसंग में दिखाई देती है। हनुमानजी उससे भ्राता का संबंध जोड़कर अपना और उसका भी कार्य सिद्ध करने में सफल होते हैं। उनके हर कार्य में थिंक और एक्ट का अद्भुत कॉम्बिनेशन है।
नैतिक साहस :- परिस्थितियों से विचलित हुए बिना दृढ़ इच्छाशक्ति को बनाए रखना प्रबंधन कला का महान गुण है। रावण को सीख देने में उनकी निर्भीकता, दृढ़ता, स्पष्टता और निश्चिंतता अप्रतिम है। उनमें न कहीं दिखावा है, न छल कपट। व्यवहार में पारदर्शिता है, कुटिलता नहीं। उनमें अपनी बात को कहने का नैतिक साहस हैं। हनुमानजी की शीलता और निर्भयता की प्रशंसा रावण भी करता है।
हर हाल में मस्त :- रावण को हनुमानजी 'रामचरन पंकज उर धरहू लंका अचल राज तुम्ह करहू' का मंत्र देते हैं। लेकिन वह अभिमानवश उनकी सलाह की उपेक्षा करता है परंतु विनम्र विभीषण उसी को मानकर लंका के राजा बनते है। इन सबके साथ ही उनमें आज की सबसे अनिवार्य मैनेजमेंट क्वॉलिटी है कि वे अपना विनोदी स्वभाव हर सिचुएशन में बनाए रखते हैं। हर हाल में मस्त रहना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
17 अप्रैल 2010
'हनुमानजी' से सीखें फंडे ( Learn tips from Hanuman ji )
Posted by Udit bhargava at 4/17/2010 10:19:00 pm
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