हर देश की संस्कृति में शिष्टाचार का समावेश रहता है। शिष्टाचार का मतलब में आपस में सद्व्यवहार करना। अभिवादन करना भी शिष्टाचार में शामिल है। हम जब किसी से भें करते हैं तो उसे अभिवादन करना हमारा पहला काम होता है, सामने वाला उसका जवाब अभिवादन करके ही देता है। कहीं सिर झुककर अभिवादन करना शिष्टाचार माना जाता है तो कहीं एक दुसरे की जीभ छूकर, कहीं हाथ मिलाकर तो कहीं हाथ जोड़कर। ऐसा भी देखा जाता है क़ी एक आचार एक समाज में असभ्यता माना जाता हो और वहीँ आचार दुसरे समाज में शिष्टआचार हो। आचारों में समय के अनुसार बदलाव भी होते रहते हैं। वैसे यह बात पूरी तरह सही है क़ी जहाँ जो आचार व्यव्हार प्रचलन में हो उनका पालन हर एक को करना ही चाहिए। मानव धर्म यही सिखाता है।
मेहमान के शिष्टाचार
बरसात क़ी यह प्रकृति होती है क वह बिना पूर्व सन्देश के प्राय : आती है और कुछ देर बाद स्वतः चली जाती है, मेहमान के सम्बन्ध में भी ऐसा ही है, मह (यानी वर्षा) की तरह आना-जाना। मेहमान के एक नाम है अतिथि यानी बिना तिथि (या सुचना) के आते वाला।
आजकल तो नगरों में अपने परिवारजनों के सोने-बैठने में तकलीफ उठानी पड़ती है, ऐसे में मेहमान के आ जाने पर दिक्कत बढ़ना स्वाभाविक है। अतः मेहमान को मेजवान क़ी स्थिति देखते-समझते हुए ज्यादा दिन नहीं रुकना चाहिए।
- मेजवान के समय और व्यस्तता को ध्यान में रखते हुए ही मेहमान को मेजवान के यहाँ जाना चाहिए।
- जैसा क़ी ऊपर बताया, आजकल घरों में ज्यादा जगह प्राय: नहीं होती, लिहाजा मेहमान को कम से कम सामान मेजवान के यहाँ ले जाना चाहिए।
- यदी साथ में बच्चे भी हैं तो मेहमान को यह हिदायत बच्चों को अवश्य दे देनी चाहिए क़ी वे मेजवान के यहाँ उधम न करें।
- मेजवान के आत्मा सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली कोई बात न कहें- न करें।
- घूमने-फिरने, खरीददारी में अपनी इच्चा न तो मेजवान पर थोपें और न उसकी जेब हलकी करें बल्कि खर्चे में अपनी भी भागीदारी रखें।
- मेजवान के टेलीफोन का बिल न बढायें।
- मेजवान की व्यवस्था में कमी रह जाने पर भी उस पर ध्यान न दें।
- मेजवान के सामने अपने पड़, धन-सम्पदा का का बखान न करें।
- मेजवान की घरेलु व्यवस्था में हस्तक्षेप न करें।
- संभव हो तो मेजवान के कार्य एवं व्यवस्था में हाथ बताएं।
- मेजवान के बच्चों को उपहार दें।
- विदा लेते समय आथित्य के लिये शुक्रिया अदा करते हुए अपने यहाँ आने का निमंत्रण दें।
- पहले दिन अतिथि, दुसरे दिन बोझ और तीसरे दिन कंटक है।
- जन्म से मनुष्य शुद्र ही पैदा होता है, किन्तु संस्कार होने से द्विज कहलाता है।
- जैसे कुम्हार द्वारा मिटटी के बर्तन में खींची गयी रेखाएं फिर कभी नहीं छूटती, उसी प्रकार माता-पिता द्वारा डाले गए संस्कार बच्चों के मन से कभी नहीं छूटते।
- सभ्यता शरीर है, संस्कृति आत्मा, सभ्यता जानकारी और भिन्न क्षेत्रों में महान एवं दुखदायी खोज का परिणाम है; संस्कृति ज्ञान का परिणाम है।
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