03 मार्च 2010

प्रेम और भक्ति में हिसाब!

एक पहुंचे हुए सन्यासी का एक शिष्य था, जब भी किसी मंत्र का जाप करने बैठता तो संख्या को खडिया से दीवार पर लिखता जाता। किसी दिन वह लाख तक की संख्या छू लेता किसी दिन हजारों में सीमित हो जाता। उसके गुरु उसका यह कर्म नित्य देखते और मुस्कुरा देते।

एक दिन वे उसे पास के शहर में भिक्षा मांगने ले गये। जब वे थक गये तो लौटते में एक बरगद की छांह बैठे, उसके सामने एक युवा दूधवाली दूध बेच रही थी, जो आता उसे बर्तन में नाप कर देती और गिनकर पैसे रखवाती। वे दोनों ध्यान से उसे देख रहे थे। तभी एक आकर्षक युवक आया और दूधवाली के सामने अपना बर्तन फैला दिया, दूधवाली मुस्कुराई और बिना मापे बहुत सारा दूध उस युवक के बर्तन में डाल दिया, पैसे भी नहीं लिये। गुरु मुस्कुरा दिये, शिष्य हतप्रभ!

उन दोनों के जाने के बाद, वे दोनों भी उठे और अपनी राह चल पडे। चलते चलते शिष्य ने दूधवाली के व्यवहार पर अपनी जिज्ञासा प्रकट की तो गुरु ने उत्तर दिया,

'' प्रेम वत्स, प्रेम! यह प्रेम है, और प्रेम में हिसाब कैसा? उसी प्रकार भक्ति भी प्रेम है, जिससे आप अनन्य प्रेम करते हो, उसके स्मरण में या उसकी पूजा में हिसाब किताब कैसा?'' और गुरु वैसे ही मुस्कुराये व्यंग्य से।

'' समझ गया गुरुवर। मैं समझ गया प्रेम और भक्ति के इस दर्शन को।

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एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया, और उसने पूरे गॉंव में अपनी एक वर्ष की उपलब्‍धी का बखान करने के लिये प्रीति भोज का आयोजन किया। सेठ की एक वर्ष की उपलब्‍धी थी कि वह अपने अंदर से क्रोध-अंहकार को अपने अंदर से बाहर चारों धाम में ही त्‍याग आये थे। सेठ का एक नौकर था वह बड़ा ही बुद्धिमान था, भोज के आयोजन से तो वह जान गया था कि सेठ अभी अंहकार से मुक्‍त नही हुआ है किन्‍तु अभी उसकी क्रोध की परीक्षा लेनी बाकी थी। उसने भरे समाज में सेठ से पूछा कि सेठ जी इस बार आपने क्‍या क्‍या छोड़ कर आये है ? सेठ जी ने बड़े उत्‍साह से कहा - क्रोध-अंहकार त्‍याग कर आया हूं। फिर कुछ देर बाद नौकर ने वही प्रश्‍न दोबारा किया और सेठ जी का उत्‍तर वही था अन्‍तोगत्‍वा एक बार प्रश्‍न पूछने पर सेठ को अपने आपे से बाहर हो गया और नौकर से बोला - दो टके का नौकर, मेरी दिया खाता है, और मेरा ही मजाक कर रहा है। बस इतनी ही देर थी कि नौकर ने भरे समाज में सेठ जी के क्रोध-अंहकार त्‍याग की पोल खोल कर रख दी। सेठ भरे समाज में अपनी लज्जित चेहरा लेकर रह गया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि दिखावे से ज्‍यादा कर्त्तव्‍य बोध पर ध्‍यान देना चाहिए।