शनि की साढ़ेसाती का आज सारे संसार में हौवा बना हुआ है। यदि किसी व्यक्ति को यह कह दिया जाये कि तुम पर शनिदेव की साढ़ेसाती चल रही है तो न जाने उस व्यक्ति के दिमाग में क्या-क्या भ्रान्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
अभी थोड़े समय पहले की बात है। मेरी मुलाक़ात एक सज्जन से हुई। मैंने देखा कि वह बहुत ही चिंतित हैं। मैंने पुछा, "क्या बात है भाई?" तो उन्होंने मुझे बताया कि पिछले दिनों मैंने अपनी जन्मपत्री एक पंडित जी को दिखायी तो उन्होंने कहा कि आने वाले वर्ष में आपको शनिदेव की साढ़ेसाती का सामना करना पड़ेगा। कहते हैं कि साढ़ेसाती बहुत खराब होती है, वह संबंधित व्यक्ति और उसके परिवार वालों के लिए बहुत कष्टदायक होती है, कारोबार में घाटा होता है, किसी प्रियजन के बिछुड़ने का भी दु:ख होता है। परिवार में किसी को भयंकर बीमारी भी हो सकती है। .....
मैंने उन्हें बहुत समझाया कि शनिदेव की साढ़ेसाती हर व्यक्ति के लिए एक ही प्रकार की नहीं होती। इस विषय में कई बातों का विश्लेषण करने के बाद ही कोई निर्णय निकाला जा सकता है। लेकिन उन्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
मेरे मित्रो, यह हाल आज के विद्वान कहे जाने वाले मनुष्यों का है, शनिदेव की साढ़ेसाती के बारे में । वास्तव में सभी जातक-जातिकाओं पर साढ़ेसाती का प्रभाव एक जैसा नहीं होता। क्योंकि शनिदेव एक ऐसे ग्रह हैं जो संतुलन एवं न्याय का प्रतीक माने जाते हैं। ज्योतिष विद्या की शब्दावली में श्री शनिदेव तुला राशि में उच्च के होते हैं व मेष राशि में नीच के। यहाँ यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि कोई भी ग्रह उच्च या नीच नहीं होता। किसी राशि विशेष में उच्च का होने का तात्पर्य उत्तम फल देने वाला और नीच का तात्पर्य प्रतिकूल फल देने वाला होता है। किंतु नीच का होने के बावजूद शनिदेव कभी-कभी जातकों को अनुकूल फल भी उपलब्ध कराते हैं। शनिदेव के स्वभाव का एक महत्वपूर्ण गुण यह है कि ये अनुचित विषमता तथा अस्वाभाविक सक्षमता को पसन्द नहीं करते। जो जातक-जातिकाएं उपरोक्त व्यवहार अपनाते हैं, शनिदेव उन पर कुपित हो जाते हैं।
साढ़ेसाती का स्वानुभूत विशलेषण
शनिदेव के कुपित होने का अर्थ यह है कि संबंधित जातक अन्याय एवं अनावश्यक विषमताओं का साथ दे रहा है। ऐसे मनुष्यों को शनिदेव दंडित कर उनका शुध्दिकरण करते हैं। साथ ही उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित भी करते हैं। ऐसी स्थिति में यह कहना कि शनिदेव की साढ़ेसाती की पूरी अवधि खराब है, एकदम गलत है। क्योंकि यदि एक बच्चा स्कूल से एक पेंसिल चुरा कर घर ले आये और मां उसे दंड देने के बजाय उसे प्रोत्साहन दे तो वह भविष्य में एक दिन बहुत बड़ा चोर बन जायेगा। यदि उसे पहले दिन ही पेंसिल चोरी के लिए दंडित कर दिया जाये तो वह दंड उसे हमेशा सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेगा। या यूं कह दीजिए कि सुनार सोने को गर्म आग में रखकर ही सुन्दर आभूषणों के लिए ढालता है, ठीक उसी प्रकार शनिदेव न्याय अधिकारी बनकर जातक-जातिकाओं के पापों की सजा देकर उन्हें पवित्र कर सुख-सम्पत्ति एवं धन देते हैं।
शनिदेव का एक विशेष गुण यह भी है कि वह दूध का दूध एवं पानी का पानी कर देते हैं। यानी वह सच्चे और झूठे का भेद भलीभांति समझते हैं। शनिदेव बहुत बड़े उपदेशक, शिक्षक एवं गुरु भी कहे जाते हैं, जो जातक को विपत्ति और कष्ट, अभाव व निर्धनता रूपी तापों से तपाकर मलहीन बनाते हुए उसे उन्नति के सोपान पर लाकर खड़ा कर देते हैं। यानी इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि साढ़ेसाती में यदि शनिदेव प्रतिकूल परिस्थितियों का संकेत देने वाले भाव में बैठे हैं तो हमारे प्रारब्ध या यिमाण कर्म में कहीं न कहीं त्रुटि जरूर रही है और उसका फल हमें साढ़ेसाती में अवश्य भुगतना होगा।
यदि हमें यह ज्ञात हो जाए कि साढ़े सात वर्ष में से कौन सा समय अच्छा जायेगा, या कौन सा समय बुरा जायेगा, तो संबंधित व्यक्ति तदनुसार कदम उठाकर हर हालत में अपने को खुशहाल रखने की युक्ति निकाल सकता है। उसे यह मालूम हो जाये कि आज मेरा समय खराब है, अत: मैं अच्छा कार्य करूं, कल शुभ समय भी आने वाला है तो वह दु:ख एवं मुसीबतों को सहते हुए भी उनको भुलाकर सुख व सुनहरे पल का इन्तजार करेगा। सुख के इंतजार में बड़ा से बड़ा दुख भी आसानी से कट जाता है। वैसे भी यह परंपरा है कि अंधेरी रात के बाद सदैव सुबह होती है। आज दुख है तो कभी सुख भी अवश्य आयेगा।
अत: शनिदेव की साढ़ेसाती को हौवा समझ उससे डरने के बजाय हम अपने यिमाण कर्म को सुधारें तो अच्छा रहेगा। याद रहे, शनिदेव की साढ़ेसाती का प्रभाव तीन चरणों में होता है और तीनों चरण एक समान नहीं होते, तीनों चरणों में संबंधित व्यक्ति को सुख-दुख के अलग अलग स्वाद चखने को मिलते हैं।
शनिदेव पूरे भच का 30 वर्ष में एक चक्कर लगा पाते हैं। अर्थात एक राशि में ढाई वर्ष रहते हैं। मनुष्य अपने स्वार्थवश अच्छा-बुरा कार्य करता रहता है। जब शनिदेव उसकी राशि में प्रवेश करता है तो पिछले 30 वर्षों में जो जातक ने अच्छे-बुरे कार्य किये हैं, उनका ऑडिट करते हैं। ऑडिट करने पर वह देखते हैं कि इस जातक का पिछले 30 वर्षों का कैसा व्यवहार रहा। यदि अच्छा रहा, मानवता के प्रति प्रेम भरा रहा तो साढ़ेसाती में सुख प्राप्त होता है और यदि मानवता के प्रति दर्ुव्यवहार रहा तो जितना दर्ुव्यवहार रहा उसके अनुसार उसे सजा देते हैं। इसलिए व्यक्ति का मानवता के प्रति अच्छा व्यवहार रहे। नेक कमाई करे तो उसे साढ़ेसाती ढैय्या में किसी भी प्रकार का कष्ट प्राप्त नहीं होता है। अनेक राजनीतिज्ञों को शनिदेव की साढ़ेसाती में ऊँचाइयों पर चढ़ते देखा गया है।
शनिदेव का नाम सुनकर अक्सर लोगों में भय का आतंक व्याप्त हो जाता है। शनिदेव की साढ़ेसाती का हौवा जनमानस में अति प्राचीनकाल से चला आ रहा है। जिससे जातकों के मन में भीषण भय एवं सघन संत्रास उत्पन्न करने वाली स्थिति पैदा हो जाती है। इस संबंध में लोगों के मन में अनेक भ्रांतियां बैठी हैं। लौकिक कथाओं में इसकी विनाशकारी स्थितियों को प्रस्तुत किया गया है। अत: इस दशा में व्यवस्थित विवेचन की अनिवार्यता स्वत: सिध्द है।
वैसे ज्योतिष शास्त्रो के अनुसार शनिदेव यदि जन्मराशि से द्वादश, लग्न व धन भाव में स्थित हों तो उसकी साढ़ेसाती शुरू हो जाती है और ढाई वर्ष तक शनि की दृष्टि प्रथम चरण में पड़ती है और संकेत देती है कि पूर्व कर्मों के फलस्वरूप जातक को आर्थिक कठिनाइयों, शारीरिक कष्ट, स्थान परिवर्तन, अधिकाधिक व्यय और आमदनी कम होने से मानसिक तनाव, वैवाहिक मामले में व्यवधान आदि फल प्राप्त होने वाले हैं। यदि शनि जन्म राशि में स्थित हो तो भी ढाई वर्ष तक भोग काल कहा जाता है। दूसरे चरण में पूर्वकृत निजकर्मों के फलस्वरूप जातकों को व्यावसायिक हानि, सम्बंधियों को कष्ट, यात्रा, मित्रों का अभाव, शत्रु, पीड़ा व कार्यों में अवरोध आदि फल मिलते हैं। तीसरे चरण में पूर्वकृत निजकर्मों के फलस्वरूप जातको को सुख का अभाव अधिकाधिक व्यय से मानसिक व्यग्रता, गलत आचरण रखने वालों से संबंध, विरोध, विवाद व संबंधियों से मतभेद तथा असहयोग का वातावरण बना रहता है। यह अक्सर नेत्रों, उदर और पैर में निवास करता है। वैसे इसे अच्छा भी मानते हैं। ढैया और अल्प-कल्याणकारी में ढाई वर्ष तक रहने वाली अन्य शनि दशा भी है।
कल्याणी प्रददाति वै रविसुता राशेश्चतुर्थाष्टमे।
वैसे शनिदेव मेषादि राशियों का चक्कर 30 वर्ष में पूरा कर लेते हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार ये एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहते हैं। साढ़ेसाती का आरंभ तब होता है जब शनिदेव चन्द्र राशि से द्वादश भाव में संचार करते हैं। लग्न या द्वितीय भाव तक साढ़ेसाती का प्रभाव मवार चलता है। इन्हीं साढ़े सात वर्षों को साढ़ेसाती के नाम से जानते हैं।
शनिदेव की साढ़ेसाती क्या और किस पर?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिदेव की साढ़ेसाती तब प्रारम्भ होती है जब शनिदेव जातक की जन्म राशि अर्थात् (वह राशि जिसमें चन्द्रमा बैठता है, उससे पहले वाली राशि चन्द्र कुण्डली से द्वादश भाव में प्रवेश करते हैं तो यहां ये ढाई वर्ष रहते हैं। उसके बाद शनिदेव प्रथम भाव जन्म राशि में प्रवेश करते हैं, फिर ढाई वर्ष का समय लेते हैं, इसके बाद वह अगली राशि द्वितीय भाव में प्रवेश कर फिर वहां ढाई वर्ष का समय लेते हैं। यानी शनिदेव जन्मराशि की पहली राशि में प्रवेश करते हैं तो शनिदेव की साढ़ेसाती प्रारम्भ होती है, पूरे साढ़े सात वर्ष के बाद शनिदेव जब जन्म से अगली राशि को पार कर जाते हैं तो शनिदेव की साढ़ेसाती समाप्त हो जाती है। अब मैं आपको जानकारी दे रहा हूं कि शनिदेव जब किसी राशि में होता है तो किस राशि के जातक को शनिदेव की साढ़ेसाती होती है।
• जब शनिदेव गोचर में भ्रमण करते हुए मीन, मेष और वृष राशियों पर भ्रमण करते हैं तो मेष राशि के व्यक्तियों को शनिदेव की साढ़ेसाती प्रारम्भ होती है।
• मेष, वृष और मिथुन राशि के भ्रमण काल में वृष राशि पर शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
• शनिदेव जब वृष, मिथुन और कर्क राशि में स्थित हों, तब मिथुन राशि वालों को शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
• शनिदेव जब मिथुन, कर्क और सिंह राशि पर भ्रमण करते हैं तो कर्क राशि वालों को शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
• शनिदेव जब कर्क, सिंह और कन्या राशि में स्थित हो तो सिंह राशि वालों को शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
• शनिदेव गोचर भ्रमण काल में सिंह, कन्या एवं तुला राशि में हों तो कन्या राशि के जातकों को शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
• शनिदेव कन्या, तुला व वृश्चिक राशि में भ्रमण करते हैं तो तुला राशि पर साढ़ेसाती रहती है।
• शनिदेव जब तुला, वृश्चिक एवं धनु राशि में स्थित हों तो वृश्चिक राशि वाले जातकों को शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
• जब गोचर में शनिदेव वृश्चिक, धनु व मकर राशि पर हों तो धनु राशि वालों को शनिदेव की साढ़ेसाती रहेगी।
• जब शनिदेव धनु, मकर एवं कुंभ राशि में हो तो मकर राशि वालों को शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
• शनिदेव जब गोचर में मकर, कुंभ व मीन राशि में प्रवेश करते हैं तो कुंभ राशि के लोगों को शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
• शनिदेव जब कुंभ, मीन एवं मेष में आते हैं तो मीन राशि वाले जातक-जातिकाओं के लिए शनिदेव की साढ़ेसाती रहती है।
जो व्यक्ति प्रथम बार साढ़ेसाती से गुजर जाता है, उसे पुन: 30 वर्ष पश्चात शनिदेव की साढ़ेसाती से प्रभावित होना पड़ता है। अगर अपवाद को छोड़ दिया जाये तो जातक को अपने जीवन में तीन बार साढ़ेसाती का सामना करना पड़ता है। साढ़ेसाती से अक्सर लोग भयाांत हो जाते हैं। लेकिन सब साढ़ेसाती अनिष्टकारक नहीं होती। शनिदेव जन्मांक के अनुसार फल प्रस्तुत करते हैं। कुछ ज्योतिर्विदों के कथनानुसार - शनिदेव जन्म-राशि के अनुसार परिणाम को प्रस्तुत करते हैं।
ढैय्या का विचार
शनिदेव चंद्र कुंडली अर्थात जन्म राशि के अनुसार चतुर्थ व अष्टम से गोचर करते हैं तो जातक को ढैय्या देते हैं। ढैय्या का मतलब होता है ढाई वर्ष। वैसे तो शनिदेव प्रत्येक राशि में ही ढाई वर्ष रहता हैं। परन्तु ढैय्या का विचार और कहीं से नहीं होता है। फिर चतुर्थ और अष्टम से ही क्यों ? क्योंकि शनिदेव प्रत्येक भाव में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के अनुसार फल देते हैं। चतुर्थ और अष्टम भाव मोक्ष के भाव हैं। आज दुनिया में ज्यादातर व्यक्ति धर्म की तरफ कम और भौतिक सुखों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। परन्तु ज्योतिष का नियम है कि शनिदेव जिस भाव से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिए गोचर करे, उसी के अनुरूप व्यक्ति को कार्य करना चाहिए। जो व्यक्ति ढैय्या में तीर्थ यात्रा, समुद्र स्नान और धर्म के कार्य दान-पुण्य इत्यादि करते हैं, उन्हें ढैय्या में भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। लेकिन जो उस अवधि में इन कामों से दूर रहते हैं, उन्हें अपने ही पूर्वकृत अशुभ कर्मों के फलस्वरूप शारीरिक-मानसिक परेशानी और कारोबार में हानि होती है।
चतुर्थ भाव की ढैय्या
ढैय्या का फल जानने के लिए सर्वप्रथम यह देखा जाता है कि शनिदेव किस भाव में बैठे हैं और कहां-कहां उनकी तीसरी, सातवीं व दसवीं पूर्ण दृष्टि पड़ रही है क्योंकि उन भावों से संबंधित बातों में जातक को पूर्वकर्मवश अशुभ फल की प्राप्ति होती है। चतुर्थ भाव से शनिदेव छठे भाव को, दशम भाव को तथा लग्न को देखते हैं। अर्थात् जब शनिदेव चतुर्थ भाव से गोचर करते हैं तो जातक के निजकृत पूर्व के अशुभ कर्मों के फलस्वरूप उसके भौतिक सुखों यानी मकान व वाहन आदि में परेशानी पैदा होती है जिसका संकेत कुण्डली में शनिदेव की स्थिति दिया करती है। जिसकी वजह से उसके कारोबार में फर्क पड़ता है। उसकी परेशानी बढ़ जाती है। परेशानियों के बढ़ने से जातक को शारीरिक कष्ट की भी प्राप्ति होती है। अर्थात् चतुर्थ भाव की ढैय्या में मकान खरीदना या बेचना नहीं चाहिए। साथ ही अपने व्यवसाय में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति अधिकतर शांत रहते हैं और धार्मिक कार्यों में संलग्न रहते हैं, ऐसे व्यक्तियों को चतुर्थ ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी पैदा नहीं होती है। और जो व्यक्ति नया कार्य करते हैं, उन्हें परेशानी पैदा होती है।
अष्टम भाव की ढैय्या
जब शनिदेव चंद्र कुंडली अर्थात जन्म राशि के अनुसार अष्टम भाव से गोचर करते हैं तो ढैय्या देते हैं, अष्टम ढैय्या चतुर्थ की ढैय्या से ज्यादा अशुभ फलों का संकेत देती है। मेरे अनुभव के अनुसार जब यह ढैय्या शुरू होती है तो जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है और वह नया कार्य करने लगता है। परन्तु अष्टम ढैय्या नया कार्य शुरू कराकर बीच में ही धोखा दे जाती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि अष्टम भाव से शनिदेव तीसरी दृष्टि से दशम भाव को सप्तम दृष्टि से द्वितीय भाव को और दशम दृष्टि से पंचम भाव को देखता है। अष्टम ढैय्या सबसे पहले कारोबार में परेशानी पैदा करती है। जिसकी वजह से जातक के निजी कुटुंब और धन पर बुरा असर पड़ता हैं तथा धन की वजह से जातक के संतान के ऊपर भी कुप्रभाव पड़ता है। अष्टम ढैय्या में देश, काल व पात्र के अनुसार संतान को कष्ट अथवा संतान से कष्ट प्राप्त होता है। अत: जातक को अष्टम ढैय्या में कोई भी नया कार्य, यानी बैंक आदि से कर्ज या जमीन-जायदाद का खरीदना-बेचना या पिता की संपत्ति को बांटना नुकसानदायक होता है। अत: इस ढैय्या के दौरान ये कार्य नहीं करने चाहिए। अष्टम ढैय्या में जो व्यक्ति धार्मिक कार्य, समुद्र स्नान व तीर्थ यात्रा आदि करता है और परमात्मा को हाजिर-नाजिर रखता है तो उस व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है। जो व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं करते हैं, उन्हें शनिदेव लालच देकर ऐसा फंसा देता है कि वे जीवन भर परेशान रहते हैं। फिर भी याद रहे, इस प्रतिकूल परिस्थिति के पीछे भी संबंधित जातक के पूर्वकृत अशुभ कर्म ही रहते हैं।
ढैय्या किसको और कब
• शनिदेव जब कर्क एवं वृश्चिक राशि में भ्रमण करते हैं तो मेष राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• शनिदेव सिंह व धनु राशि में गोचर में भ्रमण करते हैं, तब वृष राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• कन्या व मकर राशि में शनिदेव के भ्रमणकाल में मिथुन राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• तुला एवं कुम्भ राशि में गोचर में शनिदेव जब भ्रमण करते हैं तब कर्क राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• गोचर भ्रमणकाल में शनिदेव जब वृश्चिक और मीन राशि में आते हैं तो सिंह राशि वालों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• शनिदेव जब धनु और मेष राशि में स्थित होते हैं तो कन्या राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• शनिदेव जब मकर एवं वृष राशि में गोचर में स्थित रहते हैं तब तुला राशि के जातकों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• गोचर में शनिदेव जब कुंभ और मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं तो वृश्चिक राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• शनिदेव जब गोचर में मीन तथा कर्क राशि में स्थित रहते हैं तब धनु राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
• जब शनिदेव मेष और सिंह राशि से गोचर करते हैं तब मकर राशि वालों को शनिदेव की ढैय्या प्रारम्भ होती है।
• गोचर में शनिदेव जब वृष और कन्या राशि में आते हैं तब कुम्भ राशि वालों को शनिदेव की ढैय्या प्रारम्भ होती है।
• शनिदेव जब गोचर में मिथुन व तुला राशि में गोचर करते हैं तब मीन राशि वाले लोगों को शनिदेव की ढैय्या प्रारम्भ होती है।
ढैय्या में व्यक्ति को धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि ढैय्या में व्यक्ति को अपने सगे संबंधियों की भी मदद कम से कम मिलती है। इसलिए स्वयं सभी कार्य करने पड़ते हैं। इसलिए प्रतिदिन प्रात:काल चिड़ियों को दाना डालें, उनके लिए पानी रखें। चींटियों को आटा शक्कर डालें और स्नान आदि से निवृत होकर सूर्य को प्रतिदिन जल दें। बुरे कार्यों से बचें। ढैय्या में सफलता प्राप्त होगी। वैसे आगे उपाय विस्तार से लिखे हुए हैं परंतु उपरोक्त बातें दैनिक जीवन में जरूरी हैं।
एक टिप्पणी भेजें