06 मार्च 2010

कालसर्प योग

'कालसर्प' एक पारिभाषिक शब्द है। 'काल' का अर्थ मृत्यु होता है। यह लोक विदित है। दूसरे शब्दों में काल यम को कहते हैं, यम अर्थात यमराज जो मृत्यु के अािपति देवता हैं। काल का आदेश होने पर मृत्यु अवश्यम्भावी है। इसी प्रकार विषैले सर्पदंश से अािकतर लोगों की मृत्यु की संभावना रहती है और होती भी है। इसीलिए ही सर्प का नाम सुनते ही लोग सशंकित हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्रा में राहु को कालसर्प का मुँह और केतु को कालसर्प की पूंछ माना गया है। वैसे भी दोनों एक ही शरीर के सिर और ाड़ भाग है। राहु सिर होने से सर्प का मुंह और केतु नीचे ाड़ भाग के कारण पूंछ हैं। ज्योतिष के अनुसार जिस जातक की जन्म कुंडली में राहु और केतु के बीच सारे ग्रह आ जाते हैं, उसे पूर्ण कालसर्प योग माना जाता है। पूर्ण कालसर्प योग को उदित गोलार्द्ध्र या ग्रस्तयोग कहते हैं। यदि एक या दो ग्रह बीच में नहीं आते हैं तो भी कालसर्प योग माना जाता है। ऐसा योग अनुदित गोलार्द्ध या मुक्त योग कहलाता है। किन्तु प्रभावित रहता है।

आयु और कालसर्प योग
जैसा कि पीछे वर्णन आया है कि कुज सम केतु शनि सम राहु होता है। अर्थात केतु मंगल जैसा फल देता है और राहु शनि जैसा। शनि आयु का कारक ग्रह होता है। किसी की आयु कितनी है, अथवा उसकी मृत्यु कब होगी? ये दोनों बातें एकार्थी हैं। दोनों का एक ही अर्थ होता है। जैसे अािकतर व्यक्ति यह प्रश्न जरूर करते हैं कि पंडित जी मेरी आयु कितनी है? इसका क्या मतलब है? वह जातक सीधे-सीधे यह पूछना चाहता है कि मैं कब मरूंगा?
मृत्यु का अर्थ यह नहीं होता कि वह अब इस दुनिया से चला गया और अंतिम संस्कार हो गया। शास्त्राों में मृत्यु कई प्रकार की लिखी गयी है। जैसे - माता-पिता द्वारा त्याग दिया जाये, गांव या शहर से अर्थात देश निकाला कर दिया जाये, ार्म से वंचित कर दिया जाये, संतान द्वारा अपमानित किया जाये, कारोबार व व्यवसाय समाप्त हो जाये, अग्नि द्वारा सब कुछ समाप्त हो जाये, आजीवन कारावास हो जाये, किसी अश्लील व अनुचित कार्य की वजह से अपमानित किया जाये आदि। इन बातों से मिलते-जुलते कार्यों से संबंाित घटनाओं को भी मृत्यु कहते हैं।
शास्त्राों में ऐसा वर्णन है कि राहु मनुष्य के ऊपर उस समय हावी होता है जब व्यक्ति किसी न किसी रूप में किसी भी तरह मृत्यु की तरफ चला जाता है। मृत्यु को अंतिम अंजाम राहु-केतु ही देते हैं। ज्योतिष शास्त्रा में ऐसा वर्णन है कि यदि राहु-केतु शुभ ग्रहों की राशियों में बैठे हों और शुभ ग्रह के द्वारा दृष्ट हाें तो ऐसे व्यक्ति की अंतिम यात्राा बड़े अच्छे तरीके से श्माशान घाट तक निकलती है और प्राण भी अच्छे तरीके से अपने परिजनों के बीच में निकलते हैं। जितना ये दोनों अशुभ ग्रहों की राशियों में और अशुभ प्रभाव में होते हैं तो इस शरीर की उतनी ही दुर्दशा चीड़फाड़ होकर अंतिम संस्कार होता है। चाहे व्यक्ति ने जीवन भर कितना ही सत्कर्म किया हो। इसलिए इन वचनों से साफ संकेत मिलता है कि इस जन्म में किये हुए पाप कर्मों या पुण्य कर्मों का फल अगले जन्म में मनुष्य भोगता है।
कालसर्प योग को हमेशा अशुभ योग माना जाता है परंतु यदि राहु और केतु सतोगुणी नक्षत्राों पर हों अर्थात बुध या गुरु के नक्षत्राों पर हो तो यह बहुत ही शुभकारी योग भी बनता है।


कालसर्प योग के शुभाशुभ प्रभाव
कालसर्प एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी जन्मकुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है। तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं।
जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह राहु और केतु के बीच अवस्थित रहते हैं तो उससे ज्योतिष विद्या मर्मज्ञ व्यक्ति यह फलादेश आसानी से निकाल लेते हैं कि संबंधित जातक पर आने वाली उक्त प्रकार की परेशानियां कालसर्प योग की वजह से हो रही हैं। परंतु याद रहे, कालसर्प योग वाले सभी जातकों पर इस योग का समान प्रभाव नहीं पड़ता। किस भाव में कौन सी राशि अवस्थित है और उसमें कौन-कौन ग्रह कहां बैठे हैं और उनका बलाबल कितना है - इन सब बातों का भी संबंाित जातक पर भरपूर असर पड़ता है। इसलिए मात्रा कालसर्प योग सुनकर भयभीत हो जाने की जरूरत नहीं बल्कि उसका ज्योतिषीय विश्लेषण करवाकर उसके प्रभावों की विस्तृत जानकारी हासिल कर लेना ही बुद्धिमत्ता कही जायेगी। जब असली कारण ज्योतिषीय विश्लेषण से स्पष्ट हो जाये तो तत्काल उसका उपाय करना चाहिए। नीचे हम कुछ ज्योतिषीय स्थितियां दे रहे हैं जिनमें कालसर्प योग बड़ी तीव्रता से संबंधित जातक को परेशान किया करता है।
जब राहु के साथ चंद्रमा लग्न में हो और जातक को बात-बात में भूत-प्रेतों की बाधा सताती रहती हो, या किसी के टोने-टोटके से पीड़ित होने की बीमारी आम रूप से परेशान करने लगती है।
जब लग्न में मेष, वृश्चिक, कर्क या धनु राशि हो और उसमें बृहस्पति व मंगल स्थित हों, राहु की स्थिति पंचम भाव में हो तथा वह मंगल या बुध से युक्त या दृष्ट हो, अथवा राहु पंचम भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आती ही है, अथवा जातक किसी बड़े संकट या आपराधिक मामले में फंस जाता है।
चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में कोई ग्रह न हो। यानी केंद्रुम योग हो और चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई ग्रह न हो तो जातक को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी होती है।
जब राहु के साथ बृहस्पति की युति हो तब जातक को तरह-तरह के अनिष्टों का सामना करना पड़ता है।
जब राहु की मंगल से युति यानी अंगारक योग हो तब संबंधित जातक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है।
जब राहु के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियां बढ़ती हैं।
जब राहु के साथ शनि की युति यानी नंद योग हो तब भी जातक के स्वास्थ्य व संतान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी कारोबारी परेशानियां बढ़ती हैं।
जब राहु की बुध से युति अर्थात जड़त्व योग हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी आर्थिक व सामाजिक परेशानियां बढ़ती हैं।

स्थितियां
जब अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब जातक के विवाह में विघ्न, देर होती है, अथवा उसे वैधव्य या विाुरत्व की प्राप्ति होती है।
यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक बहुत बड़ा धूर्त व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्ति में भी फंसना पड़ जाता है।
जब लग्न में राहु-चंद्र हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब जातक की दिमागी हालत ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ सकता है।
जब दशम भाव का नवांशेश मंगलराहु या शनि से युति करे तब संबंधित जातक भयंकर अग्निकांड का शिकार होता है।
जब दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तब संबंधित जातक की दम घुटने से मौत या मरणांतक कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती है।
जब अष्टम भाव में पाप ग्रह युक्त राहु अवस्थित हो तब संबंधित जातक की मृत्यु सांप काटने से होती है।
जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तब संबंाित जातक को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी बढ़ जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।
जब लग्न मेष, वृष या कर्क हो तथा राहु की स्थिति 1ए 3ए 4ए 5ए 6ए 7ए 8ए 11 या 12वें भाव में हो। तब उस स्थिति में जातक स्त्राी, पुत्रा, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता है।
जब राहु छठे भाव में अवस्थित हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।
जब राहु व चंद्रमा की युति केंद्र (1ए 4ए 7ए 10वें भाव) या त्रिाकोण में हो तब जातक के जीवन में सुख-समृद्धि की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
जब शुक्र दूसरे य12वें भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
जब लग्न व लग्नेश सूर्य व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में अवस्थित हों और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।
जब दशम भाव में मंगल बली हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हों। तब संबंधित जातक पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती है।
जब राहु अदृश्य भावों में स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग समृद्धिदायक होता है।
जब राहु छठे भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब जातक के जीवन में धन-धान्य की जरा भी कमी महसूस नहीं होती।
उक्त लक्षणों का उल्लेख इस दृष्टि से किया गया है ताकि सामान्य पाठकों को कालसर्प योग के बुरे प्रभावों की पर्याप्त जानकारी हासिल हो सके। किंतु ऐसा नहीं है कि कालसर्प योग सभी जातकों के लिए बुरा ही होता है। विविध लग्नों व राशियों में अवस्थित ग्रह जन्म-कुंडली के किस भाव में हैं, इसके आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय किया जा सकता है।

कालसर्प योग वाले बहुत से ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं, जो अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ऊंचे पदों पर पहुंचे। जिनमें भारत के प्रथम प्राानमंत्राी स्व पं ज़वाहर लाल नेहरू का नाम लिया जा सकता है। स्व मोरारजी भाई देसाई व श्री चंद्रशेखर सिंह भी कालसर्प आदि योग से ग्रसित थे। किंतु वे भी भारत के प्रधानमंत्राी पद को सुशोभित कर चुके हैं।
अत: किसी भी स्थिति में व्यक्ति को मायूस नहीं होना चाहिए और उसे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हमेशा अपने चहुंमुखी प्रगति के लिए सतत सचेष्ट रहना चाहिए। यदि कालसर्प योग का प्रभाव किसी जातक के लिए अनिष्टकारी हो तो उसे दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उपायों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से हर प्रकार की ग्रह-बाधाएं व पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है।
कालसर्प योग के प्रमुख भेद
कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं। आगे सभी भेदों को उदाहरण कुंडली प्रस्ुत करते हुए समझाने का प्रयास किया गया है -
1 अनन्त कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातकों के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्राों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक परेशानियां जातक को आये दिन व्यथित करती रहती हैं। उन्हें अपयश का भी भागी होना पड़ता है। मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाया करती हैं। व्यवसाय में उसे आये दिन नुकसान होता रहता है। लाटरी, शेयर व सूद के व्यवसाय में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है। यह योग जातकों को प्राय: निंदित कर्मों में संलग्न कराता है। शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डावाडोल रहती है। फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घोलने लगती है। जातक को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। कई प्रकार के षड़यंत्राों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है। उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन प्रतिकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है। जो जातक इस योग से ज्यादा परेशानी महसूस करते हैं। उन्हें निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठाना चाहिए।

अनुकूलन के उपाय -
प्रतिदिन एक माला 'ॐ नम: शिवाय' मंत्रा का जाप करें। कुल जाप संख्या 21 हजार पूरी होने पर शिव का रुद्राभिषेक करें।
कालसर्पदोष निवारक यंत्रा घर में स्थापित करके उसका नियमित पूजन करें।
नाग के जोड़े चांदी के बनवाकर उन्हें तांबे के लौटे में रख बहते पानी में एक बार प्रवाहित कर दें।
प्रतिदिन स्नानोपरांत नवनागस्तोत्रा का पाठ करें।
राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्रा का जाप करें और जब जाप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिधा दुर्वा से पूर्णाहुति हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्रा का दान करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शनिवार का व्रत रखते हुए हर शनिवार को शनि व राहु की प्रसन्नता के लिए सरसों के तेल में अपना मुंह देखकर उसे शनि मंदिर में समर्पित करें।

2 क़ुलिक कालसर्प योग
राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। जातक को अपयश का भी भागी बनना पड़ता है। इस योग की वजह से जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है और उसका वैवाहिक जीवन भी सामान्य रहता है। परंतु आर्थिक परेशानियों की वजह से उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घुल जाता है। मित्रों द्वारा धोखा , संतान सुख में बाधा और व्यवसाय में संघर्ष कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। जातक का स्वभाव भी विकृत हो जाता है। मानसिक असंतुलन और शारीरिक व्याधियां झेलते-झेलते वह समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है। उसके उत्साह व पराक्रम में निरंतगिरावट आती जाती है। उसका कठिन परिश्रमी स्वभाव उसे सफलता के शिखर पर भी पहुंचा देता है। ऐसे जातकों को इस योग की वजह से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपायों का अवलंबन लेना चाहिए।
अनुकूलन के उपाय
सरस्वती जी की एक वर्ष तक विधिवत उपासना करें।
देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।

3 वासुकी कालसर्प योग
राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में और इस बीच सारे ग्रह ग्रसित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है। जातक का वैवाहिक जीवन दु:खमय रहता है। वह भाई-बहनों से भी परेशान रहता है। अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी आपसी खींचतान बनी रहती है। रिश्तेदार एवं मित्रागण उसे प्राय: धोखा देते रहते हैं। घर में सुख-शांति का अभाव रहता है। जातक को समय-समय पर व्याधि ग्रसित करती रहती हैं जिसमें अधिक ान खर्च हो जाने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति भी असामान्य हो जाती है। अर्थोपार्जन के लिए जातक को विशेष संघर्ष करना पड़ता है, फिर भी उसमें सफलता संदिग रहती है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण उसका जीवन मानसिक रूप से उद्विग्न रहता है। इस योग के कारण जातक को कानूनी मामलों में विशेष रूप से नुकसान उठाना पड़ता है। राज्यपक्ष से प्रतिकूलता रहती है। जातक को नौकरी या व्यवसाय आदि के क्षेत्रा में निलम्बन या नुकसान उठाना पड़ता है। लेकिन सब कुछ होने के बाद भी जातक अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। विलम्ब से उत्तम भाग्य का निर्माण भी होता है और शुभ कार्य सम्पादन हेतु उसे कई अवसर प्राप्त होते हैं।

अनुकूलन के उपाय
नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रा में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
महामृत्युंजय मंत्रा का 51 हजार जप राहु, केतु की दशा अंतर्दशा में करें या करवायें।
किसी शुभ मुहूर्त में नाग पाश यंत्रा को अभिमंत्रित कर धारण करें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्रा धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्रा का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुशा लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है।
श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला 'ॐ नम: शिवाय' मंत्रा का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्रा व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।

4 शंखपाल कालसर्प योग
राहु दशम स्थान में और केतु चौथे स्थान में हो इसके बीच सारे ग्रह हो तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है। इससे घर-द्वार, जमीन-जायदाद व चल- अचल संपत्ति संबांी थोड़ी बहुत कठिनाइयां आती हैं और उससे जातक को कभी-कभी बेवजह चिंता घेर लेती है तथा विद्या प्राप्ति में भी उसे आंशिक रूप से तकलीफ उठानी पड़ती है।
जातक को माता से कोई, न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है। सवारी एवं नौकरों की वजह से भी कोई न कोई कष्ट होता ही रहता है। इसमें उन्हें कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। जातक का वैवाहिक जीवन सामान्य होते हुए भी वह कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाता है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण जातक समय-समय पर मानसिक संतुलन खोया रहता है। कार्य के क्षेत्रा में भी अनेक विघ्न आते हैं। पर वे सब विघ्न कालान्तर में स्वत: नष्ट हो जाते हैं। बहुत सारे कामों को एक साथ करने के कारण जातक का कोई भी काम प्राय: पूरा नहीं हो पाता है।
इस योग के प्रभाव से जातक का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिस कारण आर्थिक संकट भी उपस्थित हो जाता है। लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी जातक को व्यवसाय, नौकरी तथा राजनीति के क्षेत्रा में बहुत सफलताएं प्राप्त होती हैं एवं उसे सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी मिलती है।
यदि उपरोक्त परेशानी महसूस करते हैं तो निम्नलिखित उपाय करें। अवश्य लाभ मिलेगा।

अनुकूलन के उपाय
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
नीला रुमाल, नीला घड़ी का पट्टा, नीला पैन, लोहे की अंगूठी धारण करें।
शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करें।
हरिजन को मसूर की दाल तथा द्रव्य शुभ मुहूर्त में तीन बार दान करें।
18 शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। लसनी, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, धूम्रवस्त्रा, ाूम्रपुष्प, नारियल, कंबल, बकरा, शस्त्रा आदि एक बार दान करें।

5 पद्म कालसर्प योग
राहु ग्यारहवे व केतु पंचम भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। इसके कारण जातक के विद्याध्ययन में कुछ व्यवाान उपस्थित होता है। परंतु कालान्तर में वह व्यवाान समाप्त हो जाता है। उन्हें संतान प्राय: विलंब से प्राप्त होती है, या संतान होने में आंशिक रूप से व्यवधान उपस्थित होता है। जातक को पुत्रा संतान की प्राय: चिंता बनी रहती है। जातक का स्वास्थ्य कभी-कभी असामान्य हो जाता है।
इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में जातक को अपयश मिलने का भी भय बना रहता है। जातक के मित्रागण स्वार्थी होते हैं और वे सब उसका पतन कराने में सहायक होते हैं। जातक को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
इस योग के प्रभाव से जातक के गुप्त शत्रु भी होते हैं। वे सब उसे नुकसान पहुंचाते हैं। उसके लाभ मार्ग में भी आंशिक बाधा उत्पन्न होती रहती है एवं चिंता के कारण जातक का जीवन संघर्षमय बना रहता है। जातक द्वारा अर्जित सम्पत्ति को प्राय: दूसरे लोग हड़प लेते हैं। जातक को व्याधियां भी घेर लेती हैं। इलाज में अािक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। जातक वृद्धावस्था को लेकर अधिक चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी जातक के जीवन में कई सफलताएं मिलती हैं।
अनुकूलन के उपाय
किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी में प्रवाहित करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
शुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्रा को पूजित कर धारण करें।
नित्य प्रति हनुमान चालीसा पढ़ें और भोजनालय में बैठकर भोजन करें।
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
शयन कक्ष में लाल रंग के पर्दे, चादर तथा तकियों का उपयोग करें।

6 महापद्म कालसर्प योग
राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग से संबंधित जातक का वैवाहिक जीवन दुखमय व्यतीत होता है। उसके घर में सुख शांति का अभाव रहता है। इस योग के कारण जातक को समय-समय पर रोग व्याधि ग्रसित करता रहता है। जातक चाहे कितना ही इलाज करा ले, लेकिन उसका रोग प्राय: ठीक नहीं होता है। इसमें अधिक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक स्थिति असामान्य हो जाती है। अर्थात आर्थिक संकट जातक को घेर लेता है।
इस योग के कारण जातक यात्राा बहुत करता है पर उसमें उसे सफलता नहीं मिलती। उसके मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन में शत्रुता पालकर रखने वाला भी होता है। उसके अनेक शत्रु भी होते हैं। जातक को भारी नुकसान होता रहता है। उसे कभी कारावास की सजा भी भोगनी पड़ सकती है। जातक का आत्मबल कमजोर रहता है और चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण उसका जीवन मानसिक रूप से अशांत रहता है। जातक का चरित्रा भी बहुत संदेहास्पद हो जाता है। उसके धर्म की हानि होती है। वह समय-समय पर बुरा स्वप्न देखता है। उसकी वृद्धावस्था कष्टप्रद होती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जातक के जीवन में एक अच्छा समय आता है और वह एक अच्छा दलील देने वाला वकील अथवा तथा राजनीति के क्षेत्रा में सफलता पाने वाला नेता होता है।

अनुकूलन के उपाय
श्रावणमास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत 18 बार करें। काला वस्त्रा धारण करके 18 या 3 राहु बीज मंत्रा की माला जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें।
इलाहाबाद (प्रयाग) में संगम पर नाग-नागिन की विधिवत पूजन कर दूध के साथ संगम में प्रवाहित करें एवं तीर्थराज प्रयाग में संगम स्थान में तर्पण श्राद्ध भी एक बार अवश्य करें।
मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रद्धापूर्वक करें।

7 तक्षक कालसर्प योग
केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग की शास्त्राीय परिभाषा में इस प्रकार का अनुदित योग परिगणित नहीं है। लेकिन व्यवहार में इस प्रकार के योग का भी संबंधित जातकों पर अशुभ प्रभाव पड़ता देखा जाता है। तक्षक नामक कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्ति का सुख नहीं मिल पाता। या तो उसे पैतृक संपत्ति मिलती ही नहीं और मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है अथवा बर्बाद कर देता है। ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं। गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि अलगाव की नौबत आ जाती है। जातक को अपने घर के अन्य सदस्यों की भी यथेष्ट सहानुभूति नहीं मिल पाती। साझेदारी में उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शत्रुओं षड्यंत्रों का शिकार बनना पड़ता है। जुए, सट्टे व लाटरी की प्रवृत्ति उस पर हावी रहती है जिससे वह बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता है। संतानहीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर क्लेश देती रहती है। उसे गुप्तरोग की पीड़ा भी झेलनी पड़ती है। किसी को दिया हुआ धन भी उसे समय पर वापस नहीं मिलता।

अनुकूलन के उपाय
कालसर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलायें ।
देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें।
शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल वस्त्रा और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।

8 क़र्कोटक कालसर्प योग
केतु दूसरे स्थान में और राहु सप्तम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है। परंतु इस कुंडली में यह योग अनुदित रूप में है। जैसा कि हम इस बात को पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं, किसी अनुदित योग का जातक पर पूरा प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि इस पर काल सर्प की शास्त्राोक्त परिभाषा भी पूरी तरह लागू नहीं होती। ऐसे जातकों के भाग्योदय में इस योग की वजह से कुछ रुकावटें अवश्य आती हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करने का भी दंड भुगतना पड़ता है। पैतृक संपत्ति से भी ऐसे जातकों को मनोनुकूल लाभ नहीं मिल पाता। व्यापार में भी समय-समय पर क्षति होती रहती है। कोई भी काम बढ़िया से चल नहीं पाता। कठिन परिश्रम के बावजूद उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता। मित्रों से धोखा मिलता है तथा शारीरिक रोग व मानसिक परेशानियों से व्यथित जातक को अपने कुटुंब व रिश्तेदारों के बीच भी सम्मान नहीं मिलता। चिड़चिड़ा स्वभाव व मुंहफट बोली से उसे कई झगड़ों में फंसना पड़ता है। उसका उधार दिया पैसा भी डूब जाता है। शत्राु षड़यंत्रा व अकाल मृत्यु का जातक को बराबर भय बना रहता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए जातक निम्न उपाय कर सकते हैं।

अनुकूलन के उपाय
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग करें।
किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।

9 शंखचूड़ कालसर्प योग
केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं। व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में प्रोन्नति तथा पढ़ाई- लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है। शारीरिक व्याधियां भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। सरकारी महकमों व मुकदमेंबाजी में भी उसका धन खर्च होता रहता है। उसे पिता का सुख तो बहुत कम मिलता ही है, वह ननिहाल व बहनोइयों से भी छला जाता है। उसके मित्रा भी धोखाबाजी करने से बाज नहीं आते। उसका वैवाहिक जीवन आपसी वैमनस्यता की भेंट चढ़ जाता है। उसे हर बात के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसे समाज में यथेष्ट मान-सम्मान भी नहीं मिलता। उक्त परेशानियों से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय बड़े लाभप्रद सिद्ध होते हैं।

अनुकूलन के उपाय
इस काल सर्प योग की परेशानियों से बचने के लिए सम्बंधित जातक को किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए और उसे लगातार 18 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्रा धारण करके राहु बीज मंत्रा की तीन या 18 माला जाप करें। जाप के उपरांत एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का उपयोग करें। उपयोग के पहले इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें तथा रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।
महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
चांदी या अष्टधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करें। किसी शुभ मुहुर्त में अपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
10 घातक कालसर्प योग
राहु चतुर्थ तथा केतु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं। सम्बंधित जातक के लिए यह योग विशेष प्रभावशाली है क्योंकि केतु के साथ सूर्य मौजूद है। ऐसे जातक को नाना-नानी व दादा-दादी का सुख नहीं मिल पाता। उसे पिता का भी विछोह झेलना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहता। व्यवसाय के क्षेत्रा में उसे अप्रत्याशित समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है। नौकरी पेशा वाले जातकों को सस्पेंड, डिस्चार्ज या डिमोशन के खतरों से रूबरू होना पड़ता है। साझेदारी के काम में भी मनमुटाव व घाटा उसे क्लेश पहुंचाते रहते हैं। सरकारी पदाधिकारी भी उससे खुश नहीं रहते और मित्रा भी धोखा देते रहते हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा उसे जरूर मिलती है परंतु उसका जीवन हमेशा अभावों से घिरा रहता है।

अनुकूलन के उपाय
नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।
एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें।
शनिवार का व्रत रखें और लहसुनियां, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, काला वस्त्रा, काला फूल, छिलके समेत सूखा नारियल, कंबल व हथियार आदि का समय-समय पर दान करते रहें।
नागपंचमी के दिन व्रत रखें और चांदी के नाग की पूजा कर अपने पितरों का स्मरण करें और उस नाग को बहते जल में श्रद्धापूर्वक विसर्जित कर दें।
शनिवार का व्रत करें और नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें। मंगलवार के दिन बंदरों को केला खिलाएं और बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें।

11 विषार कालसर्प योग
राहु पंचम और केतु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। जातक को ज्ञानार्जन करने में आंशिक व्यवधान उपस्थित होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने में थोड़ी बहुत बाधा आती है एवं स्मरण शकित का प्राय: ह्रास होता है। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हुए भी आंशिक नुकसान उठाना पड़ता है। चाचा, चचेरे भाइयों से कभी-कभी मतान्तर या झगड़ा- झंझट भी हो जाता है। बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है।
इस योग के कारण जातक अपने जन्म स्थान से बहुत दूर निवास करता है या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करता रहता है। लेकिन कालान्तर में जातक के जीवन में स्थायित्व भी आता है। लाभ मार्ग में थोड़ा बहुत व्यवधान उपस्थित होता रहता है। वह व्यक्ति कभी-कभी बहुत चिंतातुर हो जाता है। धन सम्पत्ति को लेकर कभी बदनामी की स्थिति भी पैदा हो जाती है या कुछ संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। उसे सर्वत्रा लाभ दिखलाई देता है पर लाभ मिलता नहीं। संतान पक्ष से थोड़ी-बहुत परेशानी घेरे रहती है। जातक को कई प्रकार की शारीरिक व्याधियों से भी कष्ट उठाना पड़ता है। उसके जीवन का अंत प्राय: रहस्यमय ढंग से होता है। उपरोक्त परेशानी होने पर निम्नलिखित उपाय करें।

अनुकूलन के उपाय
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
नागपंचमी को चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रद्धापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें।
सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - 'ॐ हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। ऐसा केवल सोलह सोमवार तक करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।

12 शेषनाग कालसर्प योग
राहु छठे और केतु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग कालसर्प योग बनता है। शास्त्राोक्त परिभाषा के दायरे में यह योग परिगणित नहीं है किंतु व्यवहार में लोग इस योग संबंधी बाधाओं से पीड़ित अवश्य देखे जाते हैं। इस योग से पीड़ित जातकों की मनोकामनाएं हमेशा विलंब से ही पूरी होती हैं। ऐसे जातकों को अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए अपने जन्मस्थान से दूर जाना पड़ता है और शत्रुओं षड्यंत्रों से उसे हमेशा वाद-विवाद व मुकदमे बाजी में फंसे रहना पड़ता है। उनके सिर पर बदनामी की कटार हमेशा लटकी रहती है। शारीरिक व मानसिक व्याधियों से अक्सर उसे व्यथित होना पड़ता है और मानसिक उद्विग्नता की वजह से वह ऐसी अनाप-शनाप हरकतें करता है कि लोग उसे आश्चर्य की ओओदृष्टि से देखने लगते हैं। लोगों की नजर में उसका जीवन बहुत रहस्यमय बना रहता है। उसके काम करने का ढंग भी निराला होता है। वह खर्च भी आमदनीअधिक किया करता है। फलस्वरूप वह हमेशा लोगों का देनदार बना रहता है और कर्ज उतारने के लिए उसे जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। उसके जीवन में एक बार अच्छा समय भी आता है जब उसे समाज में प्रतिष्ठित स्थान मिलता है और मरणोपरांत उसे विशेष ख्याति प्राप्त होती है। इस योग की बाधाओं से त्रााण पाने के लिए यदि निम्नलिखित उपाय किये जायें तो जातक को बहुत लाभ मिलता है।

अनुकूलन के उपाय
किसी शुभ मुहूर्त में 'ॐ नम: शिवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि सामग्रियां श्रद्धापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्रा सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।
किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाने के बाद ही कोई काम प्रारंभ करें।
काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें और भोजनालय में ही बैठकर भोजन करें अन्य कमरों में नहीं।
किसी शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रिात कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग चिपका दें तथा एक बार देवदारु, सरसों तथा लोहवान इन तीनों को उबाल कर स्नान करें।

1 अनन्त कालसर्प योग
राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है।
2 क़ुलिक कालसर्प योग
राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा।
3 वासुकी कालसर्प योग
राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में और इस बीच सारे ग्रह ग्रसित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है।
4 शंखपाल कालसर्प योग
राहु दशम स्थान में और केतु चौथे स्थान में हो इसके बीच सारे ग्रह हो तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है।
5 पद्म कालसर्प योग
राहु ग्यारहवे व केतु पंचम भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है।
6 महापद्म कालसर्प योग
राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है।
7 तक्षक कालसर्प योग
केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है।
8 क़र्कोटक कालसर्प योग
केतु दूसरे स्थान में और राहु सप्तम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है।
9 शंखचूड़ कालसर्प योग
केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है।
10 घातक कालसर्प योग
राहु चतुर्थ तथा केतु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं।
11 विषार कालसर्प योग
राहु पंचम और केतु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं।
12 शेषनाग कालसर्प योग
राहु छठे और केतु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग कालसर्प योग बनता है।

कालसर्प योग बुरा ही नहीं
उक्त लक्षणों का उल्लेख इस दृष्टि से किया गया है ताकि सामान्य पाठकों को कालसर्प योग के बुरे प्रभावों की पर्याप्त जानकारी हासिल हो सके। किंतु ऐसा नहीं है कि कालसर्प योग सभी जातकों के लिए बुरा ही होता है। विविध लग्नों व राशियों में अवस्थित ग्रह जन्म-कुंडली के किस भाव में हैं, इसके आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय किया जा सकता है। कालसर्प योग वाले बहुत से ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं, जो अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ऊंचे पदों पर पहुंचे। जिनमें भारत के प्रथम प्रधाानमंत्री स्व। पं। जवाहर लाल नेहरू का नाम लिया जा सकता है। स्व। मोरारजी भाई देसाई व श्री चंद्रशेखर सिंह भी कालसर्प आदि योग से ग्रसित थे। किंतु वे भी भारत के प्रधानमंत्राी पद को सुशोभित कर चुके हैं। अत: किसी भी स्थिति में व्यक्ति को मायूस नहीं होना चाहिए और उसे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हमेशा अपने चहुंमुखी प्रगति के लिए सतत सचेष्ट रहना चाहिए। यदि कालसर्प योग का प्रभाव किसी जातक के लिए अनिष्टकारी हो तो उसे दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उपायों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से हर प्रकार की ग्रह-बाधाएं व पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है। यह एक ज्योतिषिय विश्लेषण था पुन: आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि हमें अपने जीवन में मिलने वाले सारे अच्छे या बुरे फल अपने निजकृत कर्मो के आधार पर है, इसलिए ग्रहों को दोष न दें और कर्म सुधारें और त्रिसूत्रिय नूस्खा अपने जीवन में अपनायें और मेरे बताये गए उपायों को अपने जीवन ममें प्रयोग में लायें आपके कष्ट जरुर समाप्त होंगे; त्रिसूत्रिय नुस्खा: नि:स्वार्थ भाव से माता-पिता की सेवा, पति-पत्नी का धर्मानुकूल आचरण, देश के प्रति समर्पण और वफादारी। यह उपाय अपनाते हुए मात्रा इक्कीस शनिवार और इक्कीस मंगलवार किसी शनि मंदिर में आकर नियमित श्री शनि पूजन, श्री शनि तैलाभिषेक व श्री शनिदेव के दर्शन करेंगे तो आपके कष्ट अवश्य ही समाप्त होंगे। आपके जन्म कुंडली में कालसर्प योग है या नहीं? घबरायें नहीं, आप समय लेकर किसी योग्य पंदित से से मिलें।