बरसाना
होली की बात चले, तो बरसाना का जिक्र सबसे पहले आएगा। यहां की होली की खासियत यह है कि इस मौके पर रंगों के साथ लठ भी बरसते हैं। मथुरा से लगभग 45 किलोमीटर दूर बरसाना को राधा जी का जन्म स्थल माना जाता है। यहां जब लड़के लड़कियों के साथ होली खेलने आते हैं, तो रंगों की बजाय उनका स्वागत लाठियों से होता है। इस दौरान लड़कियां (गोपियां) उन्हें पकड़ने की कोशिश करती हैं और वे बच निकलने की। इस फेर में जो लड़का पकड़ा जाता है, उसे लड़कियों के कपड़े पहनाकर नचाया जाता है। बेशक यह सब होली की मस्ती का हिस्सा है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के साथ भी ऐसा हुआ था। उस समय को याद कर खेली जाने वाली बरसाना की होली देश-विदेश से पर्यटकों को खींचती है।
चूंकि इस दौरान भीड़ बहुत होती है, इसलिए पर्यटकों की सुविधा व सुरक्षा का ध्यान रखते हुए इस होली का आयोजन शहर के कुछ दूर खुले मैदान में किया जाता है। वैसे, इस होली के रंग एक ही दिन नहीं बिखरते, बल्कि इसका मजा पूरे एक हफ्ते तक लिया जा सकता है। वैसे, इस दौरान भगवान कृष्ण के मंदिरों की शोभा देखने लायक होती है।
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जयपुर
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महाराष्ट्र
महाराष्ट्र की होली यानी रंगपंचमी में मटकी तोड़ने के खेल को लेकर खासी मशहूर है और हर साल बड़ी तादाद में टूरिस्ट इसे देखने आते हैं। अलग-अलग टोलियां ऊंचाई पर टंगी मटकी को फोड़ने की जुगत लगाती हैं और इस प्रतियोगिता के दौरान संगीत व जोशीली आवाजें किसी को भी रोमांचित करने के लिए काफी हैं। वहीं पूरन पोली का स्वाद भी लोगों को यहां खींच लाता है, तो गन्ने का जूस भी इस मौके की शान रहता है।
होली पर पूरा गुजरात 'गोविंदा आला रे...' की जोरदार आवाजों से गूंज उठता है और माहौल में जोश देखने लायक होता है। गुजरात की होली की यही बात सैलानियों को खूब आकर्षित करती है और वे भी रंगों की बौछार का खूब आनंद लेते हैं। यही नहीं, सड़कों से निकलने वाली टोलियां लोगों से दूध व मक्खन के अपने बर्तनों का ध्यान रखने को कहती जाती हैं। महाराष्ट्र की तरह यहां भी मटकी फोड़ने की प्रतियोगिता होती है, तो कल्चरल प्रोग्राम्स भी होली के इस मेले की शान बढ़ाते हैं।
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