व्यक्ति को तीन चीजें- अच्छी पत्नी, आज्ञाकारी पुत्र व सच्चा मित्र- तकदीर से मिला करती हैं। पत्नी का चयन तो परिवार वाले करते हैं, पुत्र भाग्य से मिलता है, पर मित्र का चयन व्यक्ति स्वयं करता है। पत्नी गलत निकल गई तो केवल आपको दुःखी करेगी, पर मित्र गलत निकल गया तो सात पीढि़यों को बर्बाद कर देगा।
प्रेरक विचार संत ललितप्रभ-सागरजी ने धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को भूलकर भी गलत आदतों वाले व्यक्ति को मित्र नहीं बनाना चाहिए, जो दुःख में भी साथ निभाए और सही राह दिखाए ऐसे मित्र को कभी नहीं छो़ड़ना चाहिए। व्यक्ति सबका कहना टाल सकता है, पर मित्र का नहीं।
मित्र हो तो जिंदगी सरस बन जाती है नहीं तो नीरस। सच्चा मित्र वही होता है, जो जीवन की हर विपत्ति में हमारे साथ खड़ा रहता है। ढाल की तरह सुख में पीठ पीछे व दुःख में बचाने के लिए आगे आ जाता है, वही सच्चा मित्र होता है।
20 फ़रवरी 2010
श्रेष्ठ मित्र जीवन का वरदान
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 06:30:00 am
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