बचपन से ही उसकी बुद्धि तीक्ष्ण थी। अपनी अवस्था के बालकों से वह अधिक ज्ञानी और विचारवान था। माता-पिता का दुलारा था, लेकिन दादा का तो वह मानों प्राण था।
दादा बहुत ही बूढ़े थे। वे घर का कोई काम नहीं कर सकते थे। उलटे घर के लोगों को उनकी सेवा में रहना पड़ता। यह बात कमल की माँ को बहुत अखरती थी।
एक दिन कमल की माँ ने अपने पति से कहा, ‘‘मैं तो तुम्हारे पिता की सेवा करते-करते खुद ही स्वर्ग सिधार जाऊँगी। सारा दिन उसी की टहल करते रहो। लगता है घर में और काम ही नहीं हैं। आखिर यह कब तक चलता रहेगा!''
‘‘जब तक उनकी आयु है, तब तक उनकी सेवा करना हमारा धर्म बनता है। आखिर मौत के पहले किसी का गला घोंट कर तो नहीं मार सकते।'' किसान ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा।
‘‘मार डालने में भी क्या बुराई है? ज़िन्दा रहने में न उसे सुख है न हमें। तिल-तिल कर मरने से तो अच्छा है एक बार मौत आ जाये।''
किसान से अधिक पत्नी की आवाज़ तेज़ थी। किसान को पहले पत्नी की बात बहुत बुरी लगती थी। लेकिन धीरे-धीरे पत्नी के दबाव में आकर उसकी बातों से वह भी सहमत हो गया। वह भी सोचने लगा कि पिता को मार देने में कोई पाप नहीं है, बल्कि वे बुढ़ापे की पीड़ा से मुक्त हो जायेंग़े। उसने एक योजना भी बना ली।
एक दिन किसान ने अपने पिता से कहा, ‘‘बाबूजी! खेत में एक कुआँ खोदवाने के लिए पड़ोसी गाँव के महाजन से कर्ज़ ले रहा हूँ। महाजन कहता है कि दस्तावेज़ पर आप के हस्ताक्षर भी आवश्यक हैं। इसलिए मेरे साथ गाड़ी पर कृपा करके चलिये।''
उसका पिता बेटे की बात सच मान कर उसके साथ चल पड़ा। कमल भी ज़िद करके अपने दादा के पास बैठ गया।
रास्ते में एक छोटा-सा जंगल था। किसान ने जंगल के बीच गाड़ी रोक दी। वह एक फावड़ा लेकर उतर पड़ा और बोला, ‘‘तुम दोनों गाड़ी में ठहरो। मैं अभी आता हूँ।''
पिता के जाने के बाद कमल भी एक फावड़ा लेकर उसी ओर चल पड़ा। थोड़ी दूर पर कमल का पिता एक झाड़ी के पास गड्ढा खोद रहा था। उसी झाड़ी के दूसरी ओर कमल भी एक गड्ढा खोदने लग गया।
थोड़ी देर में कुछ आहट पाकर किसान रुक गया। जिधर से आहट आ रही थी, उधर जाकर उसने देखा। ‘‘अरे कमल, तुम यहाँ गड्ढा क्यों खोद रहे हो?''
‘‘जिस काम के लिए आप खोद रहे हैं, मैं भी उसी काम के लिए खोद रहा हूँ।'' कमल के उत्तर ने पिता को झकझोर दिया।
पिता ने साहस करके पूछा, ‘‘क्या तुम्हें मालूम है कि मैं क्यों यह गड्ढा खोद रहा हूँ?''
‘‘मुझे मालूम तो नहीं है लेकिन किसी कार्य के लिए ही ऐसा कर रहे होंगे। आप का अनुसरण करने में क्या कोई दोष है?'' कमल के भोलेपन ने उसके हृदय को छू दिया।
वह अपने बेटे से कुछ छिपा न सका। उसने कहा, ‘‘मैं अपने पिता को दफ़नाने के लिए यह गड्ढा खोद रहा हूँ। उनके मरने पर उनके अन्तिम संस्कार की जिम्मेदारी मुझ पर है, क्योंकि मैं उनका पुत्र हूँ।''
‘‘लेकिन दादा तो अभी जीवित हैं।'' कमल ने जैसे पिता का षड्यंत्र ताड़ लिया हो।
‘‘क्षणभंगुर जीवन का क्या भरोसा! वे किसी समय दम तोड़ सकते हैं। वे बहुत वृद्ध हो चुके हैं।'' पिता ने पुत्र को समझाने की कोशिश की।
‘‘जीवन तो किसी का शाश्र्वत नहीं है। इसलिए मैं भी अपने पिता के लिए क़ब्र खोद रहा हूँ। पुत्र होने के नाते उन्हें दफ़नाने की जिम्मेदारी मेरी है।'' कमल उसी भोलेपन में कह गया।
उसके पिता को लगा जैसे वह आसमान से नीचे गिर गया हो। बेटे ने उसकी आँख की पट्टी खोल दी। उसे अब समझ में आया कि वह नीच कर्म करने जा रहा था। लज्जा से वह गड़ गया।
किसान अपने पिता और पुत्र के साथ घर लौट आया। किसान की पत्नी उस दिन बहुत प्रस थी और विशेष भोजन तथा मिष्टा बना कर अपने पति की प्रतीक्षा कर रही थी। लेकिन गाड़ी में ससुर को देख कर उसकी सारी प्रसता निराशा में बदल गई।
किसान ने, अपनी पत्नी को कमल के गाड़ी में साथ जाने तथा अपने पिता के लिए गड्ढा खोदने का सारा समाचार सुना दिया।
उसकी पत्नी को काटो तो खून नहीं। वह सिर पीटती हुई बोली, ‘‘हाय भगवान? कैसा युग आ गया! हम बेटे को कितना लाड़-प्यार से पालते हैं, लेकिन वह अपने जीवित पिता के लिए ही क़ब्र खोदता है !''
‘‘लेकिन मैं भी तो वही काम करने जा रहा था। क्या उन्होंने मुझे बचपन में लाड़-प्यार से नहीं पाला?'' किसान ने पत्नी की ओर एक विशेष प्रयोजन से देखा।
उसके बाद पत्नी ने अपने बूढ़े ससुर के प्रति कोई शिकायत नहीं की।
प्रेरक...सीख देती कथा..आभार!!
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